आयात बाला में लफ़्ज़ सजदा है मगर किसी ने इन मख़लूक़ात को सजदा करते नहीं देखा मतलब वही है कि अल्लाह ने जो क़ानून उनके लिए मुक़र्रर कर दिया है इस के तहत ही ये काम कर रहे हैं यही उनकी सलात है और ये इन्सान को फ़ायदा दे रहे हैं। आयात बाला से सज्दे वाली बात खुल कर सामने आ गई यानी अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ मख़लूक़ का काम करना ही सजदा है सलात है इसलिए फ़रिश्तों का सजदा आदम के लिए ये है कि वो अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ इन्सान के मददगार हैं अगर मददगार होना ना होता तो आज इन्सान अपने राकेटों के ज़रीया निज़ाम-ए-शमसी में परवाज़ कर रहा है चांद और मरीख़ पर जा रहा है तो यक़ीनन फिर शते उस को रोक देते लेकिन ऐसा नहीं है इन्सान बराबर ठोस धातुुुओ को जो वज़नी होती हैं अपनी अक़ल से काम लेकर उस को उड़ा रहा है और ये इन्सान के हुक्म के मुताबिक़ रुक और चल रहे हैं ऐसे ही हज़रत दाऊद और हज़रत सुलेमान के लिए अल्लाह ने बहुत सी इश्याय मुसख़्ख़र हम-आहंग कर दी थीं और ग़ालिबन हज़रत सुलेमान ने पहला हवाई जहाज़ भी बनाया था जिसके लिए सुबह व शाम एक एक माह की मुसाफ़त कहा है ।
एक सजदा नमाज़ भी होता है जो नमाज़ अदा करते हुए किया जाता है आजिजी से सज्दे में कोई तावील नहीं हो सकती ये ऐसे ही किया जायेगा ।
इन्सान अल्लाह की दीगर मख़लूक़ात ख़ाह वो जानदार हों या बे-जान सबसे काम ले रहा है और वो बेचूं व कर लिल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ इन्सान के हुक्म की तामील कर रही हैं यही उनका सजदा है । सज्दे के बारे में एक आयत क़ुरआन पेश है । सूरत इंशिक़ाक़(८४)आयत२१:।व अज़ा कर-ए-अलैहिम उल-क़ुरआन ला यसजदोन तर्जुमा:। और जब उनके लिए क़ुरआन पढ़ा जाता है तो इस में दर्ज अहकाम को तस्लीम कर के अमल क्यों नहीं करते? यानी सजदा क्यों नहीं करते। इस आयत में सजदा का मतलब साफ़ हो गया ,यानी तस्लीम करना भी सजदा है।इस लिए आदम के लिए जो सजदा है वो उनकी बात को तस्लीम करते हुए काम करना है ना कि नमाज़ की तरह सजदा करना।
अब वो आयात लिखी जा रही हैं जिनमें आदम का ज़िक्र है उनसे पहले दो हर्फ़ इज़॒ और अज़ के बारे में लिखा जा रहा है इज़॒ ज़िम्मा ना माज़ी के लिए ज़र्फ़ है और इस के बाद हमेशा जुमला वाक़्य होता है और कभी लाम तालील के लिए भी इस्तिमाल किया जाता है जैसे ज़र बुत अबनी इज़ा सा ॒ मैंने अपने बेटे को इस लिए मारा कि उसने गुस्ताख़ी की थी । अज़ ज़िम्मा ना मुस्तक़बिल के लिए ज़र्फ़ है और हर्फ़ मफ़ा जाৃ भी है जैसे ख़र जत फ़ा ज़ा सद बा लबा ब में निकला तो अचानक दरवाज़ा पर शेर था । ए-ए-ज़॒ के लिए ये समझा जाये कि माज़ी में कोई काम हुआ उस के जवाब में कुछ हो रहा है या करना चाहता है । अमल रद्द-ए-अमल इसलिए अल्लाह का प्लान था आदम को बनाना और इस को और इस की नसल को ख़लीफ़ा के तौर पर आबाद करना इस प्लान के तहत फ़रिश्तों से कहा और अज़्का मतलब फिर भी है जो सुम्मा की जगह आता है और सुम्मा के बारे में आगे लिखा जाये गा । सूरत दहर( ७२) आयत १:।
बेशक इन्सान पर ज़िम्मा ना में एक ऐसा ज़िम्मा ना भी आचुका है कि वो कोई काबिल-ए-ज़िक्र चीज़ ना था । सूरत स (३८) आयत ७१:। इसलिए (अज़) तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से कहा कि मैं मिट्टी से एक इन्सान बशर बना ने वाला हूँ।आयत ( ७२ ) फिर जब उस को दरुस्त कर लूं और इस में इलम रूह फूंक दूं तो उस के आगे सजदा में गिर जाना यानी उस को बरतरतस्लीम करते हुए उस की हर कार-ए-ख़ैर में मदद करना जो वो कायनात की इश्याय से लेना चाहे ।आयत( ७३ ) वक़्त आने पर जब अल्लाह ने आदम को फ़रिश्तों के सामने पेश किया ) तो तमाम फ़रिश्तों ने हुक्म को मान लिया (सजदा किया)।आयत (७४) मगर शैतान अकड़ बैठा और काफ़िरों में हो गया।आयत-ए-अल्लाह ने फ़रमाया! ए इबलीस जिस शख़्स को मैंने अपनी क़ुदरत से बड़े एहतिमाम के साथ बनाया काफ़ी दिनों तक इलम हासिल करने का मोका दिया और इस की सलाहीयत तुझ पर ज़ाहिर (बताने से ) तो उस के आगे सजदा करने यानी उस के आगे ज़ेर फ़रमान होने से तुझे किस चीज़ ने मना क्या-किया तो ग़रूर में आगया या ऊंचे दर्जे वालों में है ।
आयत( ७६ ) बोला कि में इस से बेहतर हूँ तो ने मुझे आग से पैदा किया और उसे मिट्टी से बनाया ।आयत (७७) कहा यहां से निकल जा तू मरदोॗद है ( फ़ख़रज ) । सूरत उल-हिजर( १५)
आयत--अल्लाह का जो मन्सूबा था ) इसलिए तुम्हारे परवरदिगार ने फ़रिश्तों से फ़र्माया कि मैं खनखातय सडे गारे से एक बशर बना ने वाला हूँ।आयत (२९) फिर जब उस को इलम से सीधा कर लूं और इस में इलम की सलाहीयत पैदा हो जाये तो मेरे हुक्म के मुताबिक़ उस के साथ हम-आहंग हो जाना उस को बरतर तस्लीम कर लेना । आयत(३०) वक़्त आने पर फ़रिशते तो सब के सब सज्दे में गिर पड़े यानी आदम की सलाहीयत और जा नशीनी के तौर पर आबाद रहने की हिक्मत को तस्लीम करते हुए बरतर तस्लीम कर लिया और इस के मददगार बन गए ।आयत(३१ ) मगर शैतान कि उसने सजदा करने वालों के साथ होने से इनकार कर दिया ।आयत--अल्लाह ने फ़रमाया कि इबलीस!तुझे किया हुआ कि तो सजदा करने वालों में शामिल ना हुआ । आयत(३३) इबलीस ने कहा मैं ऐसा ( कमतर) नहीं हूँ कि बशर जिसको तू ने खनखातय सडे हुएगा रे से बना या है, सजदा करूँ, यानी उस को अपने से बरतर तस्लीम कर के इस के ताबे मान हो जाऊँ
अल्लाह ने कहा निकल जा तू मर्दूद है ।
सूरत ता( २०) आयत ११५:। और हमने पहले आदम से अह्द लिया था मगर वो (उसे) भूल गया । और हमने उनमें सब्रो सबात ना देखा ।आयत( ११६) उस ज़माना और मुत्तसिल ज़माना में आदम ने जो इलम हासिल किया और तरकी की और वो दानिश आ गई जो अल्लाह चाहता था ) इस वजह से ( वक़्त आने पर अल्लाह ने कहा ) हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम के लिए सजदा करो ( यानी हम-आहंग हो जाओ तुम्हारी ज़ेर फ़र्र मान मख़लूक़ से जो ये काम ले इस में माने ना होना बल्कि हर कार-ए-ख़ैर में इस की मदद करना ) तो सबने हुक्म माना मगर इबलीस ने इनकार किया । आयत(११७)
( आयत ( ११५) में जिस बात का ज़िक्र है कि अह्द लिया था तो आदम भूल गया आयत ११७में इस का ही ज़िक्र किया है ) हमने फ़रमाया कि आदम ये तुम्हारा और तुम्हारी बीवी का दुश्मन है तो ये कहीं तुम दोनों को जन्नत से निकलवा ना दे फिर तुम तकलीफ़ में पड़ जाओ ।
आयत (११८) यहां तुमको ( आसाइश है ) ना भूके रहोगे ना नंगे । आयत(११९) ओर ये कि ना पियासे रहोगे और ना धूप खाओ गे। आयत(१२०) तो शैतान ने उनके दिल में वस्वसा डाला और कहा कि आदम भला तुम कौमें ( ऐसा शजर बताऊं ( जो ) हमेशा की ज़िंदगी का( समरा दे ) और ऐसी ) बादशाहत कि कभी ज़ाइल ना हो।आयत (१२१)तो दोनों ने इस शजर की आज़माईश कर ली तो उन पर उनकी पोशीदा सलाहीयतें और शर्मगाहें
ज़ाहिर हो गईं और वह अपने ऊपर जन्नत के पत्ते चिपकाने लगे और आदम ने अपने पर वर दिगार के (हुक्म के) ख़िलाफ़ किया तो वो अपने मतलूब से ) बेराह हो गए।आयत (१२२ ) फिर उनके पर वर दिगार ने उनको नवाज़ा तो उन पर महरबानी से तव्वजा फ़र्मा ई और सीधी राह बताई ।
आयत(१२३ ) ख़ता को माफ़ करके फ़रमाया कि तुम दोनों यहां से नीचे उतर जाओ तुम में बाअज़, बाअज़ के दुश्मन होंगे फिर अगर मेरी तरफ़ से तुम्हारे पास हिदायत आए तो जो शख़्स मेरी हिदायत की पैर वी कर लेगा वो ना गुमराह होगा और ना तकलीफ़ में पड़ेगा ।आयत(१२४ ) और जो मेरी नसीहत से मुँह फेरेगा उस की ज़िंदगी तंग हो जायेगी और क़ियामत को हम उसे अंधा कर के उठाएं गे । सूरत अलकहफ़( १८) आयत ५० :। इस वजह से इसलिए हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम को सजदा, यानी बरतर तस्लीम करो।इस की सलाहीयत की वजह से सबने हुक्म माना मगर इबलीस ने ना माना क्यों कि वो जिन्नात में से था वो अपने रब के हुक्म से बाहर हो गया ।क्या तुम उस को और इस की ज़रीत को मेरे सिवा दोस्त बनाते हो हालां की वो तुम्हारे दुश्मन हैं और ज़ालिमों के लिए बुरा बदल है। सूरत इल्ला सिरा (१७) आयत ६१ :। इसलिए ( जो वजह पीछे बताई गई है ) हमने फ़रिश्तों से कहा कि आदम की बुजु़र्गी तस्लीम करो तो सबने हुक्म माना मगर इबलीस ने ना माना बोला कि भला में ऐसे शख़्स को सजदा करूँ । ज़ेर फ़रमान हो जाऊँ जिसको तूने मिट्टी से पैदा किया है।आयत (६२) और( अज़राह-ए-तंज़ ) कहने लगा कि देखो तो यही वो है जिसे तू ने मुझ पर फ़ज़ीलत दी है अगर तो मुझे क़ियामत के दिन तक की मोहलत दे तो थोड से शख्सों के इलावा उस की औलाद की जड़ काटता रहूं गा ।आयत--अल्लाह ने फ़र्मा या चला जा जो शख़्स उनमें से तेरी पैरवी करेगा तो तुम सबकी जज़ा जहन्नुम है और पूरी सज़ा ।
सूरत एराफ़ (७) आयत ११:। हमने तुम्हारी तख़लीक़ की इबतिदा की फिर तुम्हारी सूरत बनाई फिर फ़रिश्तों से कहा आदम को सजदा करो ( यानी आदम की बरतरी तस्लीम करो उस के ताबा फ़र्रमान हो जाओ ) इस हुक्म को सबने तस्लीम किया मगर इबलीस हुक्म मानने वालों में शामिल ना हुआ। फिर तरकी पज़ीर ख़सोस्यात् का हामिल वजूद बिना या इन्सान के पैदाइश के साथ ही अल्लाह ने इस की शरीशत में सब ख़सोस्यात् रख दी जो इस का फ़र्ज़ है या जो वो कर सकता है । और इस में वो वक़्त के साथ तरकी कर रहा है और रोज़ नई नई ईजाद कर के उनकी सिफ़ात के मुताबिक़ उनके नाम भी रख रहा है कोई चीज़ सामने है इस को इस की सिफ़ात के मुताबिक़ काम में ला ईं । और इस का नाम ना हो तो ये अक़लमंदी का काम नहीं है बल्कि अक़लमंदी ये है कि उनका नाम भी हो जो रखा जा रहा है बसी यही बात थी जिससे काम लेकर आदम आ ने इश्याय के नाम रखे थे और फ़रिश्ते इस काम को करने से मजबूर थे ।
सूरत आराफ़ आयत११ में अल्लाह ने इन्सान की पैदाइश का तरीक़ा बताया है और अपनी इनायात जो की हैं आयत में हुरूफ़ सुम्मा है इस का मतलब ये होता है कि जो काम माज़ी में हुआ या अब हुआ, इस से ताल्लुक़ रखने वाला काम जब सुम्मा के बाद होता है तो वो फ़ौरन ही नहीं होता बल्कि बीच में कुछ वक़फ़ा होता है वक़फ़ा का दौरा नेह काम की नौईयत के हिसाब से कम ज़्यादा हो सकता है इस तख़लीक़ और सूरत बनाने में काफ़ी अरसा है एक दो मिनट या एक दो दिन नहीं है इस तरह फ़रिश्तों के सामने भी फ़ौरन पेश नहीं किया गया बल्कि सूरत बनने यानी इलम आने में जितना वक़्त लगा उस के बाद पेश किया गया सुम्मा का मतलब देखने के लिए (देखो
आयात२:२८,६:६०।६१।६२,२३:१३ता१६) । सूरत आराफ़(७) आयत१२:। में इबलीस के हुक्म ना मानने पर ,पूछा! तुझे किस चीज़ ने सजदा करने से रोका जब कि मैंने तुझे हुक्म दिया था ।बोला में इस से बेहतर हूँ तूने मुझे आग से पैदा किया है और उसे मिट्टी से ।
नोट आयत में ( ख़ैर मुँह ) यानी में इस से बेहतर हूँ फिर आदम को बरतर तस्लीम क्यों करूँ बात बरतर की थी ।
सूरत आराफ़(७) आयत१३:। फ़रमाया अच्छा तो यहां से जा तुझे हक़ नहीं कि यहां बड़ाई घमंड करे ।निकल जा कि दर-हक़ीक़त तो उनमें से है जो ख़ुद अपनी ज़िल्लत चाहते हैं । सूरत आराफ़(७) आयत१४:। बोला मुझे उस दिन तक मोहलत दे जब कि ये सब दोबारह उठाए जाएं गे। सूरत आराफ़(७) आयत१५:। फ़रमाया तुझे मोहलत है। सूरत आराफ़(७) आयत१६:। बोला अच्छा तो जिस तरह तू ने यानी तेरे क़ानून ने मुझे गुमराही में मुबतला किया है में भी तेरे सीधे रस्ते पर उनको गुमराह करने ) के लिए बैठूँ गा। सूरत आराफ़(७) आयत१७:। फिर उनके आगे से और पीछे से और दाएं से बाएं से आऊँगा और उनमें से अक्सर को शुक्रगुज़ार नहीं पाए गा । सूरत आराफ़(७) आयत-ए-अल्लाह ने) फ़रमाया निकल जा यहां से ( तन्हा) पाजी मर्दूद, जो लोग उनमें से तेरी पैर वी करें गे, में इन सबसे जहन्नुम को भर दूंगा। इस वाक़िया के बाद फिर आदम की पैदाइश के फ़ौरन बाद का वक़्क़ा आगया जैसा कि सूरत बक़रा में भी ऐसे ही लिखा है यानी जो वाक़िया पहले हुआ वो बाद में अलिफ़ व्रुजू बाद में हुआ वो पहले । चूँकि क़ुरआन में यही तर्तीब है और क़ुरआन में सूरतों के लिखने में भी यही उस्लूब है । यानी सूरत बक़रा मदीना में नाज़िल हुई लेकिन लिखने और पढ़ने में नंबर २ पर है और मक्की सूरतें बाद में हैं । सूरत आराफ़(७) आयत१९:।ए आदम तुम और तुम्हारी बीवी जन्नत में रहो सहो और जहां से चाहो नोशजान करो मगर इस शजर के पास ना जाना,वरना गुनहगार हो जाओगे । सूरत आराफ़(७) आयत२०:। तो शैतान दोनों को बहकाने लगाता कि उनके सत्तर की चीज़ें जो उनसे पोशीदा थीं खोल दे और कहने लगा कि तुमको तुम्हारे परविर्दगार ने इस शजर से इसलिए मना किया है कि तुम फ़रिश्ते ना बन जाओ या हमेशा जीते ना रहो। सूरत आराफ़(७) आयत२१:। और उनसे कसम खा कर कहा कि मैं तुम्हारा ख़ैर-ख़्वाह हूँ । सूरत आराफ़(७) आयत२२:। ग़रज़ धोका देकर इन दोनों को ( मासियत की) तरफ़ खींच ही लिया जब इन्होंने इस शजर का तजुर्बा कर लिया तो उनकी पोशीदा चीज़ें खुल गईं और वो जन्नत के पत्ते अपने उपर चिपकाने लगे तब उनके पर विर्दगा र ने उनको पुकारा किया मैंने तुमको इस शजर से मना नहीं किया था और बता नहीं दिया था कि शैतान तुम्हारा खुल्लम खुल्ला दुश्मन है । नोट:। इस शजर के खाने से सतर के खुलने का मतलब ये हुआ कि जिस वक़्त का अल्लाह को इंतिज़ार था यानी ऐश की ज़िंदगी से गुज़रकर अब अपने बल बोते पर अपने खाने पीने का इंतिज़ाम ख़ुद करने के लायक़ हो जाएं । अब उनको अच्छे बुरे का एहसास होने लगा गोया बलूग़ को पहुंच गए । और अब आदम की तशरीही ज़िंदगी का आग़ाज़ हो गया । सतर का खुलना और इस का एहसास हो ना ही आग़ाज़ था तब अल्लाह ने उनको इस आराम से मुंतक़िल कर के मैदान-ए-अमल में सर-गर्म कर दिया जहॉ वो तरक़्क़ी कर के इस मुक़ाम के हक़दार बने जो अल्लाह चाहता था ।
सूरत आराफ़(७) आयत२३:। दोनों अर्ज़ करने लगे कि पर वर दिगार हमने अपनी जानों पर ज़ुलम किया है और अगर तू ने हमें बख़्शा नहीं होता और हम पर रहम नहीं किया होता तो हम तबाह हो जाते।अब भी हमारी मग़फ़िरत कर और हम पर रहम कर । सूरत आराफ़(७) आयत-ए-अल्लाह ने ) फ़रमाया तुम सब जन्नत से मुंतक़िल हो जाओ तुम एक दूसरे के दुश्मन हो और तुम्हारे लिए एक वक़्त तक ज़मीन पर ठिकाना है और सामान है। सूरत आराफ़(७) आयत२५:।
कहा कि इस में तुम्हारा जीना होगा और इस में मरना और इसी में से निकाले जाओगे । अब वो आयात लिखी जा रही हैं जो क़ुरआन में वाका आदम की जानकारी सबसे पहले देती हैं ।यानी बक़रा की आयात, जिनमें तर्तीब कुछ ऐसी है कि जो वाका पहले हुआ वो बाद में लिखा है और जो बाद में हुआ वो पहले लिखा है। उनको पढ़ने से पहले हर्फ़ इज़॒ , अज़ और सुम्मा को ग़ौर से देखना पड़ेगा तब आयात का मतलब साफ़ होगा अल्लाह ने अपने प्लान के तहत ही काम किया और ऐसे ही अचानक नहीं किया ।पहले और बाद जो मैंने ऊपर लिखा है और इस की एक दलील आयत में मौजूद है लेकिन ये तब ही नज़र आएगी जब हम तदब्बुर करेंगे । यानी आदम हव्वा को अपना भी होश नहीं था कि हम नंगे हैं और कहा नया कमाल कि जिस चीज़ को फ़रिश्ते ना बता सके यानी इश्याय के नाम और आदम ने अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ फ़ौरन ही बता दिए । बात साफ़ हो गई या नहीं कि अल्लाह ने पैदा करते ही फ़रिश्तों के सामने पेश नहीं किया बल्कि मुख़्तलिफ़ जगह में रखकर आदम की सूरत बनाई तब फ़रिश्तों के सामने पेश किया । सोरৃबक़रा( २) आयत३०:। और इस वक़्त का तसव्वुर करो जब जो प्लान था इस पर मुकम्मल हो गया मैदान-ए-अमल में सर-गर्म रह कर आदम ने इलम हासिल कर लिया ) इसलिए तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा था कि मैं ज़मीन में ख़लीफ़ा बना ने वाला हूँ । उन्हों ने अर्ज़ क्या-क्या आप ज़मीन में किसी ऐसे को मुक़र्रर करने वाले हैं जो उस के इंतिज़ाम को बिगाड़ देगा।और खूँरेज़याँ करेगा ? आपकी हमद सना के साथ तस्बीह और आपकी तक़दीस तो हम कर रहे हैं फ़रमाया मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते । सोरৃबक़रा( २) आयत--अल्लाह ने आदम को हर चीज़ का नाम सिफ़ात-ओ-ख़वास जानने के लिए इलम अता कर दिया फिर ( उस के बाद जब आदम ने ये नाम जानने का काम कर लिया) तब उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और फ़र्मा या । अगर तुम्हारा ख़्याल दरुस्त है ( कि किसी ख़लीफ़ा के तकर रस्से इंतिज़ाम बिगड़ जाएगा ) तो ज़रा इन चीज़ों के नाम बताओ । सोरৃबक़रा( २) आयत३२:। इन्होंने अर्ज़ किया कि नुक़्स से पाक तो आप ही की ज़ात है हम तो बस इतना ही इलम रखते ही जितना आपने हमको दिया है । हक़ीक़त में सब कुछ जानने और समझने वाला आपके सिवा कोई नहीं । सोरৃबक़रा( २) आयत३३:। फिर अल्लाह ने आदम से कहा तुम उन्हें इन चीज़ों के नाम बताओ आदम ने उनको उन इश्याय के नाम बता दिए तो अल्लाह ने फ़रमाया मैंने तुमसे कहा ना था कि मैं आसमानों और ज़मीन की वो सारी हक़ीक़तें जानता हूँ जो तुमसे मख़फ़ी हैं। जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो वह भी मालूम है । और जो कुछ तुम छुपाते हो उसे भी जानता हूँ ।
सोरৃबक़रा( २) आयत३४:। (आदम के इलम का मुशाहिदा करने के बाद जब फ़रिश्तों को यक़ीन हो गया कि वाक़ई ये इन्सान इस लायक़ है कि ज़मीन में जा नशीनी के तौर पर आबाद रह सकता है तो) अल्लाह ने फ़रमाया ! हमने फ़रिश्तों को हुक्म दिया कि आदम के आगे झुक जाओ ( यानी उस की करामत बुजु़र्गी का एतराफ़ करते हुए उस के मददगार बनो हम-आहंग हो जाओ । तो सबने आदम की बरतरी को तस्लीम कर लिया मगर इबलीस ने इनकार किया वो अपनी बड़ाई के घमंड में पड़ गया और नाफ़रमानों में शामिल हो गया । बाला वाक़िया से पहले अल्लाह ने आदम व हवा को मिट्टी से पैदा कर के इस की परवरीश और तर्बीयत के लिए एक बाग़ में रखा जिसको जन्नत कहा जाता है मिसाल के तौर पर जब बच्चा पैदा होता है तो पैदा होते ही ख़ुद कफ़ील नहीं होता बल्कि इस बच्चे के वालदैन उस की ज़रूरीयात का इंतिज़ाम करते हैं और उसकी पर वर्ष तर्बीयत बड़े प्यारो शफ़क़त के साथ करते हैं उस के हर दुख-दर्द का ख़्याल रखते हैं हर नशेब-ओ-फ़राज़ से वाक़िफ़ कराते हैं क्या उस के लिए अच्छा है क्या बुरा है सब बताते हैं । जब एक इन्सान इतना काम करता है तो फिर अल्लाह आदम को पैदा कर के किसी जंगल में बग़ैर किसी सरपरसती के ऐसे ही भटकने को छोड़ देता ? हरगिज़ नहीं बल्कि अल्लाह ने आदम को जिस मुक़ाम पर फ़ाइज़ करने के लिए पैदा किया था जिसका ज़िक्र फ़रिश्तों से किया था। इस लायक़ बना ने के लिए आदम-ओ-हवा को एक ऐसी जन्नत में रखा जहां उस की हर ज़रूरत का इंतिज़ाम किया गया था सब छूट थी सिर्फ एक काम के ना करने को कहा था जिसका ज़िक्र आयत जे़ल में किया जा रहा है । सूरत बक़रৃ(२)आयत ३५:। ( आदम व हवा को पैदा कर के अल्लाह ने फ़रमाया ) हमने आदम से कहा कि तुम और तुम्हारी बीवी दोनों जन्नत में रहो और यहां बफरा गत जो चाहो खाओ मगर इस शजर का रुख ना करना वर्ना ज़ालिमो ं में शुमार होगा ।
सूरत बक़रৃ(२)आयत३६:। आख़िर-कार शैतान ने इन दोनों को वहां से फुसला दिया और हमारे हुक्म की पैरवी से हटा दिया और उन्हें इस हालत से निकलवा कर छोड़ा जिसमें वो थे ।(इस ना फ़रमानी पर ) हमने हुक्म दिया कि अब तुम यहां से मुंतक़िल हो जाओ तुम एक दूसरे के दुश्मन हो और तुम्हें मुक़र्ररा वक़्त तक ज़मीन में ठहरना और वहीं गुज़र बसर करना है। इस हुक्म के बाद आदम को अपनी ग़लती का एहसास हो गया और नादिम हो कर अल्लाह से माफी माँगी आयत जे़ल में वही ज़िक्र है । सूरत बक़रৃ( २)आयत ३७:। उस वक़्त आदम ने अपने रब से चंद कलिमात सीख कर तौबा की
उस के रब ने क़बूल कर लिया क्यों कि वो बड़ा माफ़ करने वाला और रहम फ़रमाने वाला है ।
आदम ने जब माफ़ी मांगी तो अल्लाह ने आदम का क़सूर तो माफ़ कर दिया मगर जो हुक्म मुंतक़िल होने का दिया था वो बाकी रहा उस को मंसूख़ नहीं किया ? इसलिए कि अब आदम के अंदर इतनी सलाहीयत और अक़ल आगई थी कि इस से काम लेकर वो मैदान-ए-अमल में सर-गर्म हो जाये और अपनी अल्लाह दाद सलाहीयत से वो काम करे जिसको अल्लाह चाहता है और कायनात की इश्याय जो अल्लाह ने इन्सान के लिए मुसख़्ख़र कर दी हैं उनसे काम ले जिसको अल्लाह ने सज्दे से मंसूब किया है यानी अल्लाह के क़ानून हुक्म के मुताबिक़ काम करना और वो काम है इन्सान के लिए मुसख़्ख़र होना(यानी बग़ैर किसी उजरत के बेगार में लग जाना) । इस माफ़ी के बाद अल्लाह ने फिर अपने पहले हुक्म को बरक़रार रखते हुए आदम को मुकर्रर हुक्म दिया । जो नीचे लिखा जाये गा पहले मुसख़्ख़र वाली आयात लिखी जा रही हैं।
सूरत बक़रৃ(२)आयत २९:। वही तो है जिसने सब चीज़ें जो ज़मीन में हैं तुम्हारे लिए पैदा कीं फिर आसमानों की तरफ़ मुतवज्जा हुआ तो उनको ठीक सात आसमान बना दिया । और वो हर चीज़ से ख़बरदार है ।
सूरत(३१) आयत २०:। क्या तुमने देखा नहीं कि जो कुछ आसमानों में और जो ज़मीन में है सब ख़ुदा ने तुम्हारे क़ाबू में कर दिया है यानी मुसख़्ख़र कर दिया है। और तुम पर अपनी ज़ाहिरी और बातिनीनेअमतें पूरी कर दी हैं ।
सूरत( ३१) आयत २९:। क्या तुमने देखा नहीं कि ख़ुदा ही रात को दिन में दाख़िल करता है और इसी ने सूरज और चांद को तुम्हारे ज़ेर फ़रमान कर रखा है( यानी मुसख़्ख़र) । हर एक एक वक़्त मुक़र्रर तक चल रहा है और ये कि अल्लाह तुम्हारे सब आमाल से ख़बरदार है ।
सूरत( ४५)आयत १३:। और जो कुछ आसमानों में है और जो कुछ ज़मीन में है सबको अपने हुक्म से (अल्लाह ने ) तुम्हारे काम में लगा दिया है जो लोग ग़ौर करते हैं उनके लिए इस में
निशानियां हैं
३८) आयत १८:। हमने पहाड़ो को उनके ज़ेर फ़रमान कर दिया था कि सुबह और शाम उनके साथ ज़िक्र करते थे । सूरत(३८)आयत१९ :।और परिंदों को भी, कि जमा रहते थे। सब उनके फ़रमांबर्दार थे । ग़ालिबन सज्दे वाली आयात और मुसख़्ख़र वाली आयात को पढ़ने के बाद हम ज़रूर जान गए होंगे कि सजदा का मतलब किया है । जो अल्लाह ने फ़रिश्तों और दूसरी मख़लूक़ से आदम के लिए करा दिया था ।
सूरा बक़रৃ(२) आयत३८:। हमने कहा तुम सब यहां से मुंतक़िल हो जाओ,फिर जो मेरी तरफ़ से कोई हिदायत तुम्हारे पास पहुंचे तो जो लोग मेरी इस हिदायत की पैरवी करें गे उनके लिए किसी ख़ौफ़ और रंज का मौक़ा नहीं है।
सूरा बक़रৃ(२) आयत३९:। और जो इस को क़बूल करने से इनकार करें गे और हमारी आयात को झुटलाएँ गे वो आग में जाने वाले हैं । जहां वो हमेशा रहेंगे
हुबूत के हुक्म मुकर्रर को ऐसे समझा जाये एक अदालत ने एक मुक़द्दमे में दो हुक्म दिए । (१) दो साल की सज़ा ओर (२) दो हज़ार रुपया जुर्माना,मुजरिम ने अपील की ,अपील में दो साल की सज़ा माफ़ हो गई और वो जुरमाना बाकी रहा तो अदालत यही हुक्म लिखेगी कि सज़ा तो माफ़ की जाती है मगर जुरमाना बाकी रहता है वो अदा करना पड़ेगा। बस यही क़रीना इन आयात में है। दो बार जो मुंतक़िल होने का हुक्म है एक माफ़ी मांगने से पहले और एक माफ़ करने बाद,तो अल्लाह ने आदम को माफ़ तो कर दिया मगर मुंतक़िल होने को बरक़रार रखा क्यों कि मुंतक़िल होने में ही आदम की तर की का राज़ था। जैसे हज़रत यूसुफ़ का वाक़िया है कि भाईयों के हसद ने ही उनको मिस्र का हाकिम बना दिया ना भाई कुँवें में डालते और ना यूसुफ़ मिस्र पहुंचते । ये सब अल्लाह की कार फ़र्मा ई हैं। मशीयत अल्लाह की है और करते हैं इन्सान। अल्लाह ने मुंतक़िल कर के आदम को मैदान-ए-अमलमें सर-गर्म कर दिया और वहां उन्हों ने इश्याय के नाम वग़ैरा रखे जो उनको ज़रूरत थी । हुबूत का मतलब दूसरों ने नीचे उतर ना लिखा है जो ग़लत है मैंने इस लुफ्त का तर्जुमा मुंतक़िल होना लिखा है इस की दलील क़ुर आन ही है:।
सूरत बक़रৃ(२) आयत ६१:। और जब तुमने कहा कि मूसा ! हमसे एक खाने पर सब्र नहीं हो सकता तो अपने पर वर दिगार से दुआ कर कि तरकारी और ककड़ी और गेहूँ और मुसव्विर और प्याज़ जो नबातात ज़मीन से उगती हैं हमारे लिए पैदा कर दे । इन्होंने कहा कि भला उम्दा चीज़ें छोड़ कर उनके बदले नाकिस चीज़ें क्यों चाहते हो । तो किसी शहर में जाबसो मुंतक़िल हो जाओ (अहबतो मसृण )जो मांगते हो वहां मिल जाये गा।
देखिए आयत में लफ़्ज़ अहबतो है।क्या बनीइसराईल आसमानी जन्नत या आसमान में थे, जिनको नीचे उतरने को कहा है, नहीं बल्कि उस जगह से जहां ये चीज़ें बग़ैर मशक़्क़त मिल रही थीं उस जगह से दूर होने को कहा, जिसके लिए लफ़्ज़ उह्बतवा आया है। बस यही बात आदम के लिए है ऊपर से नीचे नहीं बल्कि एक जगह से दूसरी जगह मुंतक़िल करने को हुबूत का लफ़्ज़ बोला है ।
तक़रीबन राइज उल्लू कत् सब तर्जुमों में जो मेरी नज़र से गुज़रे हैं लफ़्ज़ शिजरा का मतलब दरख़्त लिखा है और मैंने दरख़्त ना लिखते हुए शजर ही लिखा है । मुझे दरख़्त का मतलब लिखने में कुछ उलझन हो रही है । इसलिए कि क़ुर आन तसरीफ़ आयात से अपना मक़सद मतलब साफ़ साफ़ बयान कर देता है तो यक़ीनन इस लफ़्ज़ को भी साफ़ कया होगा देखा जाये :। सो रह नबी इसराईल १७।आयत ६० :।याद करो ए नबी ! हमने तुमसे कह दिया था कि तेरे रब ने उन लोगों को घेर रखा है । और ये जो कुछ हमने तुम्हें दिखाया है इस को और शिजरा को जिस पर क़ुरआनमें लानत की गई है शजरৃ अलमलावनता फ़ी उल-क़ुरआन हमने उन लोगों के लिए बस एक फ़ित्ना बना कर रख द या है ।हम उन्हें तंबी पर तंबी किए जा रहे हैं मगर हर तंबीय उनकी सरकशी में इज़ाफ़ा किए जाती है । सोरৃनसा-ए-(४) आयत ६५:। ए मुहम्मद ऐ !तुम्हारे रब की क़सम ये कभी मोमिन नहीं हो सकते जब तक कि अपने बाहमी इख़तिलाफ़ात में (शजर बेनहम) में ये तुमको फ़ैसला करने वाला ना मान लें(सुम्मा) फिर जो कुछ तुम फ़ैसला करो इस पर अपने दिलों में भी तंगी महसूस ना करें बल्कि सर-ए-तस्लीम ख़म कर लें।(इस आयत में शिजरा का मतलब तनाज़ा,झगड़ा में आता है)
सोरৃाल इमरान(३) आयत १०३:। और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को यानी किताब को मज़बूत पकड़े रहना और मुतफ़र्रिक़ ना होना। और अल्लाह की मेहरबानी को याद करो जब तुम एक दूसरे के दुश्मन थे तो उसने तुम्हारे दिलों में उलफ़त डाल दी और तुम उस की मेहरबानी से भाई भाई हो गए और तुम आग के घड़े के किनारे तक पहुंच चुके थे तो अल्लाह ने तुमको इस से बचा लिया। इस तरह अल्लाह तुमको अपनी आयात खोल खोल कर सुनाता है ताकि तुम हिदायत पाओ।
सूरत इनाम( ६)आयत २० :। जिन लोगों ने अपने दीन में इख़तिलाफ़ कर के बहुत से रास्ते निकाले और कई कई फ़िरक़े हो गए । तो ए मुहम्मद उनसे तुमको कुछ काम नहीं उनका काम अल्लाह के हवाले फिर जो जो कुछ वो करते रहे हैं वो उनको बता देगा ।
सूरत रुम (३०) आयत ३० । ३१:। मोमिनो ! उसी की तरफ़ रुजू किए रहो और इस से डरते रहो और नमाज़ पढ़ते रहो और मुुश रिकों में ना होना । उन लोगों में जिन्हों ने अपने दीन को टुकड़े टुकड़े कर दिया और फिरके फिरके हो गए। सब फ़िरक़े इसी से ख़ुश हैं जो उन के पास है । क़ुरआन में झूट पर लानत है फ़िस्क़ पर लानत है क़तल कुफ़्र इख़तिलाफ़ात पर लानत है । लुग़त में शजर का एक मतलब मुख़्तलिफ़ फिया होना झगड़ा करना भी है अब देखा जाये सूरत बनीइसराईल(१७) आयत ६० में क्या तर्जुमा कर रखा है । इस दरख़्त को जिस पर क़ुरआन में लानत की गई है क़ुरआन में लानत अल्लाह की ना फ़र्मा नी पर की गई है और ना फ़रमानी वो करता है जिसमें ना फ़रमानी करने की हिस हो मगर दरख़्त में ऐसी कोई हिस नहीं जिससे ना फ़र्मा नी कर सके वो तो अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ उगता है बड़ा होता है । और अपनी ज़िंदगी को पूरी कर देता है । और इस ज़िंदगी में इन्सान को और दूसरे हैवानात को फ़ायदा पहुँचाता है दुनिया में किसी ने भी नहीं देखा कि किसी दरख़्त ने चोरी की हो ज़ना क्या हो किसी को क़तल क्या हो या वो काम किए हूँ जिन पर क़ुरआनमें लानत है जब दरख़्त ने ये काम किए ही नहीं तो क़ुरआन में दरख़्त पर लानत कैसे क़ुरआन में लानत बुरे कामों पर की गई है आपस में झगड़ने पर की गई है ग़रज़ जो भी अल्लाह के हुक्म के ख़िलाफ़ किया जाये ग़ा इस पर क़ुरआन में लानत है ना कि दरख़्त पर हाँ शजर का एक मतलब दरख़्त भी है मैंने जो आयात लिखी हैं उनमें किस चीज़ को बुरा बताया गया है। क़ुरआन में और बहुत आयात हैं जिनमें इख़तिलाफ़ झगड़े ना फ़रमानी को बुरा बताया गया है इसलिए में नहीं समझ पाया कि आदम से किसी दरख़्त के खाने को मना किया गया था और ना ही कोई समझदार आदमी दरख़्त मानेगा। उनसे जो कहा गया था वो ये कि ए आदम तुम आपस में इख़तिलाफ़ तनाज़ा झगड़ा ना करना लेकिन ये मशीयत एज़दी थी सो शैतान ने उनको यही वर गला या कि ए आदम तुम और तुम्हारी ज़ौजा ये तनाज़ा इख़तिलाफ़ कर लू बस यही तुम्हारी हमेश्गी की ज़िंदगी का राज़ है । तुमको इसलिए इस शजर से रो का गया है कि कहीं तुम हमेशा ऐसे मज़े में ही ना रहो इसलिए इस शजर की आज़माईश कर लू इन्होंने उस की बात मान ली और किसी बात में तनाज़ा किया और इस तनाज़ा में ही उनकी तरकी का राज़ था। यानी अब उनको ग़ौर व फिक्र करने का शऊर आगया । जिसका इंतिज़ार अल्लाह को था तब अल्लाह ने उनको मैदान-ए-अमल में सर-गर्म कर दिया जहां उन्हों ने इलम हासिल किया और इस तनाज़ा को देखकर ही अल्लाह ने कहा था कि तुम एक दूसरे के दुश्मन रहोगे क्योंकि तुम तनाज़ा भी करते हो और क़तल भी। एक ग़लत रिवायत ये भी हमारे यहां दर्ज है कि जब आदम जन्नत में उदास रहते थे तो उनकी उदासी को दूर करने के लिए अल्लाह ने उनकी बाएं पिसली से हव्व को बनाया जब कि ये अक़ीदा बिलकुल ही ग़लत है।
क्यों कि सोरৃनसा-ए-(४)आयत१ में साफ़ है कि आदम हवा को जन्नत में साथ दाख़िल किया गया, फिर ये जन्नत में पैदा होना कैसा? इसी सूरत की आयत ४ में है कि जिस मिट्टी से आदम को बनाया इस से ही हवा को बनाया और सूरत यसीन आयत३६में लिखा है कि हर चीज़ जोड़े से पैदा की ।दूसरी ग़लत रिवायत ये भी है कि शैतान ने हवा को बहका या और हवाने आदम को, इस के बारे में भी सूरत बक़रৃ(२)आयत३६ के साथ दूसरी आयात में भी यही लिखा है कि इन दोनों को शैतान ने बहका दिया ।इसलिए ये हवा वाली बात भी ग़लत है । दोनों ही धोका खा गए। तीसरी ग़लत रिवायत ये है कि वो दरख़्त गंदुम का था कोई लहसुन का बताता है कोई अंगूर का , आदम व हवा ने गंदुम खा लिया अब गौरतलब बात ये है कि क्या गंदुम , लहसुन और अंगूर के पौदों को दरख़्त कह सकते हैं ।दरख़्त तो तनेदार होता है लेकिन ये दरख़्त वाली बात भी ग़लत है । और जो
कुरआन की आयात के हवाले से लिखा है । जो आपने पढ़ लिया है । ठीक वो है, यानी तनाज़ा, झगड़ा, इख़तिलाफ़ जोकि सूरत निसा-ए-(४)आयत६५से साफ़ ज़ाहिर हो रहा है। एक रिवायत ये भी है कि इश्याय के नाम आदम को अल्लाह ने ही बता दिए थे । ये बात भी काबील एतराज़ है ? क्यों कि एक उस्ताज़ के दो शागिर्द,हूँ एक शागिर्द को एक सवाल का हल बता दिया और दूसरे को ना बताया और इमतिहान में दोनों से वही मालूम कर लिया तो यक़ीनन वही तालिब आलिम कामयाब हो जाये गा ।जिसको हल बता दिया जिसको ना बताया वो कामयाब ना होगा। तो ये अमल भी ज़ुलम और जांबदारी का हुआ।मगर अल्लाह ज़ालिम नहीं है , आदिल है । इस लिए ख़ुद अल्लाह ने आदम को बराह-ए-रास्त नाम नहीं बताए बल्कि जो आदम की सरिशत में तर की करने का अंसर रखा था जिसको वो जिबलत कहा जाता है ।इस से काम लेकर उस ज़माने में जिसका ज़िक्र सूरत दहरमें है जन्नत से मुंतक़िल होने के बाद उनके नाम रखे उनकी सिफ़ात वख़वास के मुताबिक़ जिसका ज़िक्र दूसरी जगह लिखा है।
जिस काम को इन्सान अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ उस के दिए हुए इलम से करता है इस को अल्लाह अपनी तरफ़ मंसूब कर लेता है जैसे सूरत फ़तह ४८ :१८ :१० में कहा है कि ए मुहम्मद ऐया मोमिन दरख़्त के नीचे जो बैअत तेरे हाथ पर कर रहे थे वो मेरे हाथ पर ही कर रहे थे या काफ़िरों को क़तल तुमने नहीं किया मैंने क़तल क्या या तुमने नहीं फेंका मैंने फेंका या शिकारी जानवरों को जो तुम इलम सिखाते हो वो मेरे बताए हुए तरीक़े से बताते हो इस लिए आदम के नाम रखने को अल्लाह ने अपनी तरफ़ मंसूब किया है। अब तक आदम का ज़िक्र ग़ैर तर्तीब तरीक़े से लिखा गया है अब में इस को तर्तीब के साथ लिख रहा हूँ। उम्मीद है कि ग़ौरोफ़िक्र किया जाये गा ।
अल्लाह को इस ज़मीन पर एक मख़लूक़ ऐसी आबाद करनी थी जो जा नशीनी के तौर पर आबाद रह कर अल्लाह के हुक्म के मुताबिक़ ज़िंदगी गुज़ारे और जो अल्लाह की बनाई हर शैय से उसकी सिफ़ात के मुताबिक़ काम ले और ये तब ही हो सकता था जब इस मख़लूक़ में इलम हो हुनर हो इन इश्याय पर क़ाबू हासिल करने की सलाहीयत हो इस इरादे को अल्लाह ने फ़रिश्तों पर इन अलफ़ाज़ के साथ ज़ाहिर किया कि मैं मिट्टी से एक बशर बना ने वाला हूँ जब उस को इलम से सँवार दूं दरुस्त कुर्दों और इलम वाला बना दूं तो तुम उस के ज़ेर फ़रमान मददगार हम-आहंग हो जाना।
इस के बाद अल्लाह ने आदमऑ को और हवा को एक ही जिन्स मिट्टी से बना या जिस का ज़िक्र सूरत निसा-ए-में शुरू में ही है और चूँकि अल्लाह ने हर चीज़ को जोड़े से बनाया जो सूरत यसीन आयत३६ में कहा है इसलिए उनको भी एक साथ बनाया दोनों को बना कर कहा कि ए आदम तुम और तुम्हारी ज़ौजा इस जन्नत में पु र फि ज़ा में रहो। वहां पर उनके खाने पीने का हर सामान था जैसे माँ बाप अपने बच्चे की
परवरिश करते
हैं अल्लाह ने आदम पर सिर्फ एक पाबंदी लगा दी कि इस शजर के क़रीब ना जाना यानी आपस में तनाज़ा,मकरो फ़रेब ना करना और कहा कि शैतान तुम्हारा दुश्मन है इस से भी होशयार रहना।लेकिन मशीयत एज़दी को कुछ और मंज़ूर था यानी आदम को इलम वाला बनाना तो जब तक आदम ख़ूब तंदरुस्त ना हो गए और अच्छे बुरे की जानकारी ना होने लगी उस वक़्त तक इस आराम की जगह जन्नत में रखा जब बलूग़ का वक़्त आगया इधर शैतान भी बहका ने में लगा था और एक बात ये भी काबिल ग़ोरहे कि अगर किसी बच्चे से किसी काम को करने से मना किया जाये तो वो इस को करने की कोशिस करता है अक्सर बड़ा भी ऐसा ही करता है । इसलिए आदम के दिल में भी यही बात गर्दिश कर रही थी कि इस काम को करने से ही क्यों रोका गया है ।शैतान भी बराबर यक़ीन दिला रहाथा कि इस शजर में ही तुम्हारी हमेश्गी की ज़िंदगी पोशीदा है इसलिए इस काम को करो वक़्त आने पर आदम हवा ने आपस में किसी बात पर तनाज़ा कर लिया इस तनाज़ा का जैसे ही मिलकर ज़ायक़ा चखा क
हा नहीं जाता कि लड़ाई का मज़ा चखोतो क़्या लड़ाई खाई जाती है नहीं बल्कि इस लड़ाई से जो नुक़्सान होताहै उस को ही कहा जाता है कि लड़ाई का मज़ा चखो या जिसे अज़ाब का मज़ा चखो ।
बस यही बात ये है कि जैसे ही दोनों ने एक साथ तनाज़ाकिया यानी मज़ा चखा तो उनको पता चल गया कि हमसे ना-फ़रमानी हो गई और उनके सतर खुल गए। अंदर की
पोशीदा चीज़ें ज़ाहिर हो गईं अब तक उनको पता नहीं था कि हम नंगे हैं इस शजर के चखते ही वो अपने ऊपर जन्नत के पत्ते चिपका ने लगे उस वक़्त से ही आदम की ज़िंदगी का वो दौर शुरू हो गया जिसका अल्लाह को इंतिज़ार था यानी अब आदम को आराम वाली जगह से मुंतक़िलकर के इस जगह रखा जाये जहां ये इलम हासिल करे तो अल्लाह ने उनको मुंतक़िल कर दिया और ऐसी जगह रखा जहां आदम
को ख़ुद ही अपने खाने पीने का इंतिज़ाम करना पड़ा उस जगह ही आदम ने इन इश्याय का उनके ख़वास के मुताबिक़ नाम रखा और अपने क़ाबू में करता रहा उनसे काम लेता रहा उस ज़माने में ही आदम औलाद वाला हो गया और उनके दो लड़कों में झगड़ा हुआ जिसको फ़रिश्तों ने देखा मगर उस वक़्त तक औलाद आदम किसी मुशरीकाना
काम में मुलव्वस ना हुई थी इसलिए ही वक़्त आने पर फ़रिश्तों ने सिर्फ ख़ूँरेज़ी और फ़साद का ज़िक्र किया शिर्क का ज़िक्र नहीं किया ।
इस तरह आदम अपनी तरक़्क़ी पज़ीर जिबलत से तरक़्क़ी करता रहा जब इलम वाला हो गया तब अल्लाह ने अज़ हर्फ़ के साथ फ़रिश्तों से कहा कि मैं ज़मीन में एक ख़लीफ़ा मुक़र्रर करने वाला हूँ ख़लीफ़ा की बेहस में पहले कर चुका हूँ । अल्लाह के इस फ़रमान को सुनकर फ़रिश्तों ने वही अलफ़ाज़कहे कि अल्लाह तो किस को जा नशीनी के तौर पर आबाद करने वाला है ये तो फ़सादी है ज़्यादा दिनों तक बाक़ी ना रहेगी लड़ भर कर ख़त्म हो जाये गई ये लड़ती है तेरी तस्बीह तक़दीस तो हम कर ही रहे हैं तब उनकी इस ख़ामख़याली को ख़त्म करने के लिए कहा जो मैं जानता हूँ तुम नहीं जानते अगर तुम्हारा ख़्याल दरुस्त है तो उन इश्याय के नाम बताओ फ़रिश्ते उनका नाम नहीं जानते थे ,इनकार किया। तब आदम से कहा ।चूँकि आदम ने मैदान-ए-अमल में सर-गर्म रह कर अल्लाह के दिए हुए इलम से उनके नाम रख लिए थे और वही रखे जो लौह-ए-महफ़ूज़ में थे फ़ौरन बता दिए तब अल्लाह ने कहा ए फ़रिश्तों अब तुम्हारा क्या ख़्याल है ? तब फ़रिश्तों ने अपनी कम इलमी और आदम की बरतरी बुजु़र्गी तस्लीम की अल्लाह ने कहा कि मेरी बात ठीक है तुम्हारा ख़्याल ग़लत है तब अल्लाह ने फ़रिश्तों से कहा कि अब ये मख़लूक़ ज़मीन पर ख़लीफ़ा क़ायम मुक़ामी के तौर पर आबाद रहेगी और ये तुमसे काम लेगी चूँकि मैंने सब इश्याय को इस के लिए ही बना या है अब से तुम उस के मददगार बनू तुम उस के रास्ते में रूकावट मत होना चूँकि के मेरी मशीयत भी इस के शामिल-ए-हाल है तुम भी इस के हम-आहंग हो जाओ ये फ़रिश्तों का सजदा है ना कि ज़मीन पर आजिज़ी के साथ माथा टेक देना जिसको सजदा ताज़ीमी कहा गया है ये सजदा ताज़ीमी ग़लत है।लेकिन इस हुक्म को इबलीस ने नहीं माना। ये एतराज़ करते हुए कि अल्लाह ! मुझे आपने आग से बनाया है और इस इन्सान (बशर) को मिट्टी से बनाया , इस लिए में इस से अफ़ज़ल हूँ , इस लिए इन्सान मेरे ज़ेर फ़रमान हो।
ये है हक़ीक़त जो लिखी गई है ।ग़ौर करना हमारा काम है । अल्लाह मदद करे ।
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