मुहम्मद उमर कैरानवी: 2020

Thursday, July 23, 2020

क़ुरआन में नमाज़ की तफसील

क़ुरआन में नमाज़ की तफसील मौजूद है, जो अल्लाह को नमाज़ के सिलसिले में कराना है वो है, अपनी अपनी नमाज़ क़ुरआन में ढूंढोगे तो ना मिलेगी।
Ilmul-Fiqh-Fil-Quran (Pages 49-59) صلوٰۃ  اور اوقات نماز  पढ़ें , विवाद ना हो इस लिए केवल क़ुरआन की आयतें उधर से इधर दी हैं, 
https://archive.org/details/Ilmul-Fiqh-Fil-Quran

रसूल 
और पूरी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पैदल जिस तरह बन पड़े पढ़ लो फिर जब तुम्हें इत्मेनान हो तो जिस तरह ख़ुदा ने तुम्हें (अपने रसूल की मआरफत इन बातों को सिखाया है जो तुम नहीं जानते थे) (2:239)


निस्संदेह ईमानवालों पर समय की पाबन्दी के साथ नमाज़ पढना अनिवार्य है (4:103) 
अज़ान
Azan
जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो तो वे उसे हँसी और खेल बना लेते है। इसका कारण यह है कि वे बुद्धिहीन लोग है (5:58)

नमाज़ के लिए जाना 
सजना ज़ीनत
ऐ औलाद आदम हर नमाज़ के वक्त बन सवर के निखर जाया करो और खाओ और पियो और फिज़ूल ख़र्ची मत करो (क्योंकि) ख़ुदा फिज़ूल ख़र्च करने वालों को दोस्त नहीं रखता (7:31)

वज़ू' तयम्मुम
ऐ ईमान लेनेवालो! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चहरों को और हाथों को कुहनियों तक धो लिया करो और अपने सिरों पर हाथ फेर लो और अपने पैरों को भी टखनों तक धो लो। और यदि नापाक हो तो अच्छी तरह पाक हो जाओ। परन्तु यदि बीमार हो या सफ़र में हो या तुममें से कोई शौच करके आया हो या तुमने स्त्रियों को हाथ लगया हो, फिर पानी न मिले तो पाक मिट्टी से काम लो। उसपर हाथ मारकर अपने मुँह और हाथों पर फेर लो। अल्लाह तुम्हें किसी तंगी में नहीं डालना चाहता। अपितु वह चाहता हैं कि तुम्हें पवित्र करे और अपनी नेमत तुमपर पूरी कर दे, ताकि तुम कृतज्ञ बनो (5:6) 

गुसल
ऐ ईमान लानेवालो! नशे की दशा में नमाज़ में व्यस्त न हो, जब तक कि तुम यह न जानने लगो कि तुम क्या कह रहे हो। और इसी प्रकार नापाकी की दशा में भी (नमाज़ में व्यस्त न हो), जब तक कि तुम स्नान न कर लो, सिवाय इसके कि तुम सफ़र में हो। और यदि तुम बीमार हो या सफ़र में हो, या तुममें से कोई शौच करके आए या तुमने स्त्रियों को हाथ लगाया हो, फिर तुम्हें पानी न मिले, तो पाक मिट्टी से काम लो और उसपर हाथ मारकर अपने चहरे और हाथों पर मलो। निस्संदेह अल्लाह नर्मी से काम लेनेवाला, अत्यन्त क्षमाशील है (4:103

नमाज़ के समय 
असर,मग़रिब,फज्र
नमाज़ क़ायम करो सूर्य के ढलने से लेकर रात के छा जाने तक और फ़ज्र (प्रभात) के क़ुरआन (अर्थात फ़ज्र की नमाज़ः के पाबन्द रहो। निश्चय ही फ़ज्र का क़ुरआन पढ़ना हुज़ूरी की चीज़ है (17:78) 

 ऐ ईमान लानेवालो! जो तुम्हारी मिल्कियत में हो और तुममें जो अभी युवावस्था को नहीं पहुँचे है, उनको चाहिए कि तीन समयों में तुमसे अनुमति लेकर तुम्हारे पास आएँ: प्रभात काल की नमाज़ से पहले और जब दोपहर को तुम (आराम के लिए) अपने कपड़े उतार रखते हो और रात्रि की नमाज़ के पश्चात - ये तीन समय तुम्हारे लिए परदे के हैं। इनके पश्चात न तो तुमपर कोई गुनाह है और न उनपर। वे तुम्हारे पास अधिक चक्कर लगाते है। तुम्हारे ही कुछ अंश परस्पर कुछ अंश के पास आकर मिलते है। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतों को स्पष्टप करता है। अल्लाह भली-भाँति जाननेवाला है, तत्वदर्शी है (24:58)

फजर और मग़रिब
और नमाज़ क़ायम करो दिन के दोनों सिरों पर और रात के कुछ हिस्से में। निस्संदेह नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती है। यह याद रखनेवालों के लिए एक अनुस्मरण है (11:114)


फज्र,
नमाज़ क़ायम करो सूर्य के ढलने से लेकर रात के छा जाने तक और फ़ज्र (प्रभात) के क़ुरआन (अर्थात फ़ज्र की नमाज़ः के पाबन्द रहो। निश्चय ही फ़ज्र का क़ुरआन पढ़ना हुज़ूरी की चीज़ है (17:78)

तहज्जुद
 और रात के कुछ हिस्से में उस (क़ुरआन) के द्वारा जागरण किया करो, यह तुम्हारे लिए तद्अधिक (नफ़्ल) है। आशा है कि तुम्हारा रब तुम्हें उठाए ऐसा उठाना जो प्रशंसित हो (17:79)

फज्र,असर, मग़रिब,फज्र
अतः जो कुछ वे कहते है उसपर धैर्य से काम लो और अपने रब का गुणगान करो, सूर्योदय से पहले और उसके डूबने से पहले, और रात की घड़ियों में भी तसबीह करो, और दिन के किनारों पर भी, ताकि तुम राज़ी हो जाओ (20:130) 

असर,फज्र
अतः अब अल्लाह की तसबीह करो, जबकि तुम शाम करो और जब सुबह करो। (30:17)

ज़ुहर
और उसी के लिए प्रशंसा है आकाशों और धरती में - और पिछले पहर और जब तुम पर दोपहर हो (30:18) 
फज्र,असर,
अतः जो कुछ वे कहते है उसपर धैर्य से काम लो और अपने रब की प्रशंसा की तसबीह करो; सूर्योदय से पूर्व और सूर्यास्त के पूर्व, (50:39)

ईशा
और रात की घड़ियों में फिर उसकी तसबीह करो और सजदों के पश्चात भी (50:40)

तहज्जुद
और रात के कुछ हिस्से में उस (क़ुरआन) के द्वारा जागरण किया करो, यह तुम्हारे लिए तद्अधिक (नफ़्ल) है। आशा है कि तुम्हारा रब तुम्हें उठाए ऐसा उठाना जो प्रशंसित हो (17:79)


जुमा
ऐ ईमान लानेवालो, जब जुमा के दिन नमाज़ के लिए पुकारा जाए तो अल्लाह की याद की ओर दौड़ पड़ो और क्रय-विक्रय छोड़ दो। यह तुम्हारे लिए अच्छा है, यदि तुम जानो (9) फिर जब नमाज़ पूरी हो जाए तो धरती में फैल जाओ और अल्लाह का उदार अनुग्रह (रोजी) तलाश करो, और अल्लाह को बहुत ज़्यादा याद करते रहो, ताकि तुम सफल हो। - (62:9)


सफबंदी
और हम तो यक़ीनन (उसकी इबादत के लिए) सफ बाँधे खड़े रहते हैं (37:165) 


अदब,पाबंदी
सदैव नमाज़ो की और अच्छी नमाज़ों की पाबन्दी करो, और अल्लाह के आगे पूरे विनीत और शान्तभाव से खड़े हुआ करो (2:238) 

किबला
जहाँ से भी तुम निकलो, 'मस्जिदे हराम' की ओर अपना मुँह फेर लिया करो, और जहाँ कहीं भी तुम हो उसी की ओर मुँह कर लिया करो, ताकि लोगों के पास तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई हुज्जत बाक़ी न रहे - सिवाय उन लोगों के जो उनमें ज़ालिम हैं, तुम उनसे न डरो, मुझसे ही डरो - और ताकि मैं तुमपर अपनी नेमत पूरी कर दूँ, और ताकि तुम सीधी राह चलो (2:150)

किबला
ऐ रसूल) तुम कह दो कि मेरे परवरदिगार ने तो इन्साफ का हुक्म दिया है और (ये भी क़रार दिया है कि) हर नमाज़ के वक्त अपने अपने मुँह (क़िबले की तरफ़) सीधे कर लिया करो और इसके लिए निरी खरी इबादत करके उससे दुआ मांगो जिस तरह उसने तुम्हें शुरू शुरू पैदा किया था (7:29)  
और जहाँ से भी तुम निकलों, 'मस्जिदे हराम' (काबा) की ओर अपना मुँह फेर लिया करो। निस्संदेह यही तुम्हारे रब की ओर से हक़ है। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है (2:149)

नियत 
मैंने तो एकाग्र होकर अपना मुख उसकी ओर कर लिया है, जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया। और मैं साझी ठहरानेवालों में से नहीं।" (79)

सना 
वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, परोक्ष और प्रत्यक्ष को जानता है। वह बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है (22) वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई पूज्य नहीं। बादशाह है अत्यन्त पवित्र, सर्वथा सलामती, निश्चिन्तता प्रदान करनेवाला, संरक्षक, प्रभुत्वशाली, प्रभावशाली (टुटे हुए को जोड़नेवाला), अपनी बड़ाई प्रकट करनेवाला। महान और उच्च है अल्लाह उस शिर्क से जो वे करते है (23) वही अल्लाह है जो संरचना का प्रारूपक है, अस्तित्व प्रदान करनेवाला, रूप देनेवाला है। उसी के लिए अच्छे नाम है। जो चीज़ भी आकाशों और धरती में है, उसी की तसबीह कर रही है। और वह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है (59:24)

तऊज़
अतः जब तुम क़ुरआन पढ़ने लगो तो फिटकारे हुए शैतान से बचने के लिए अल्लाह की पनाह माँग लिया करो (16:98)

सूरे फातिहा
 और हमने तुमको सात (आयतें) जो (नमाज में) दोहरा कर पढ़ी जाती है यानी सूरे अलहम्द और अजमत वाला क़ुरआन अता फ़रमाया है (7:88)

आवाज़ केसी रखें
कह दो, "तुम अल्लाह को पुकारो या रहमान को पुकारो या जिस नाम से भी पुकारो, उसके लिए सब अच्छे ही नाम है।" और अपनी नमाज़ न बहुत ऊँची आवाज़ से पढ़ो और न उसे बहुत चुपके से पढ़ो, बल्कि इन दोनों के बीच मध्य मार्ग अपनाओ (17:110) 

तो तुम अपने परवरदिगार की हम्दो सना (गुणगान) से उसकी तस्बीह करो और (उसकी बारगाह में) सजदा करने वालों में हो जाओ (15:98)

और जब तक तुम्हारे पास मौत आए अपने परवरदिगार की इबादत में लगे रहो (15:99)

जब क़ुरआन पढ़ा जाए तो उसे ध्यानपूर्वक सुनो और चुप रहो, ताकि तुमपर दया की जाए (7:204) 

जितना याद हो:
निस्संदेह तुम्हारा रब जानता है कि तुम लगभग दो तिहाई रात, आधी रात और एक तिहाई रात तक (नमाज़ में) खड़े रहते हो, और एक गिरोंह उन लोगों में से भी जो तुम्हारे साथ है, खड़ा होता है। और अल्लाह रात और दिन की घट-बढ़ नियत करता है। उसे मालूम है कि तुम सब उसका निर्वाह न कर सकोगे, अतः उसने तुमपर दया-दृष्टि की। अब जितना क़ुरआन आसानी से हो सके पढ़ लिया करो। उसे मालूम है कि तुममे से कुछ बीमार भी होंगे, और कुछ दूसरे लोग अल्लाह के उदार अनुग्रह (रोज़ी) को ढूँढ़ते हुए धरती में यात्रा करेंगे, कुछ दूसरे लोग अल्लाह के मार्ग में युद्ध करेंगे। अतः उसमें से जितना आसानी से हो सके पढ़ लिया करो, और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात देते रहो, और अल्लाह को ऋण दो, अच्छा ऋण। तुम जो भलाई भी अपने लिए (आगे) भेजोगे उसे अल्लाह के यहाँ अत्युत्तम और प्रतिदान की दृष्टि से बहुत बढ़कर पाओगे। और अल्लाह से माफ़ी माँगते रहो। बेशक अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है (73:20)

रकात
कस्र, खौफ़ में 
और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो इसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं कि नमाज़ को कुछ संक्षिप्त कर दो; यदि तुम्हें इस बात का भय हो कि विधर्मी लोग तुम्हें सताएँगे और कष्ट पहुँचाएँगे। निश्चय ही विधर्मी लोग तुम्हारे खुले शत्रु है (4:101)

और जब तुम उनके बीच हो और (लड़ाई की दशा में) उन्हें नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो, जो चाहिए कि उनमें से एक गिरोह के लोग तुम्हारे साथ खड़े हो जाएँ और अपने हथियार साथ लिए रहें, और फिर जब वे सजदा कर लें तो उन्हें चाहिए कि वे हटकर तुम्हारे पीछे हो जाएँ और दूसरे गिरोंह के लोग, जिन्होंने अभी नमाज़ नही पढ़ी, आएँ और तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े, और उन्हें भी चाहिए कि वे भी अपने बचाव के सामान और हथियार लिए रहें। विधर्मी चाहते ही है कि वे भी अपने हथियारों और सामान से असावधान हो जाओ तो वे तुम पर एक साथ टूट पड़े। यदि वर्षा के कारण तुम्हें तकलीफ़ होती हो या तुम बीमार हो, तो तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने हथियार रख दो, फिर भी अपनी सुरक्षा का सामान लिए रहो। अल्लाह ने विधर्मियों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है (4:102)

फिर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो खड़े, बैठे या लेटे अल्लाह को याद करते रहो। फिर जब तुम्हें इतमीनान हो जाए तो विधिवत रूप से नमाज़ पढ़ो। निस्संदेह ईमानवालों पर समय की पाबन्दी के साथ नमाज़ पढना अनिवार्य है (4:103) 

सजदा
और तुम उस (ख़ुदा) पर जो सबसे (ग़ालिब और) मेहरबान है (26:217) भरोसा रखो कि जब तुम (नमाजे तहज्जुद में) खड़े होते हो (26:218) और सजदा (26:219) करने वालों (की जमाअत) में तुम्हारा फिरना (उठना बैठना सजदा रुकूउ वगैरह सब) देखता है (26:220)

दुआ,सजदा, क़याम
और वह लोग जो अपने परवरदिगार के वास्ते सज़दे और क़याम में रात काट देते हैं (25:64) और वह लोग जो दुआ करते हैं कि परवरदिगारा हम से जहन्नुम का अज़ाब फेरे रहना क्योंकि उसका अज़ाब बहुत (सख्त और पाएदार होगा (25:65)

सजदा दुआ 
मेरे रब! मुझे और मेरी सन्तान को नमाज़ क़ायम करनेवाला बना। हमारे रब! और हमारी प्रार्थना स्वीकार कर (40) 
हमारे रब! मुझे और मेरे माँ-बाप को और मोमिनों को उस दिन क्षमाकर देना, जिस दिन हिसाब का मामला पेश आएगा।" (14:41)

रुकू, सजदा
तो) ऐ मरियम इसके शुक्र से मैं अपने परवरदिगार की फ़रमाबदारी करूं सजदा और रूकूउ करने वालों के साथ रूकूउ करती रहूं (43)

सलाम दरूद
 اللَّـهَ وَمَلَائِكَتَهُ يُصَلُّونَ عَلَى النَّبِيِّ ۚ يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آمَنُوا صَلُّوا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوا تَسْلِيمًا ﴿٥٦﴾ إِ
निस्संदेह अल्लाह और उसके फ़रिश्ते नबी पर रहमत भेजते है। ऐ ईमान लानेवालो, तुम भी उसपर रहमत भेजो और ख़ूब सलाम भेजो (33:56)
और सलाम है रसूलों पर; (181) 
औऱ सब प्रशंसा अल्लाह, सारे संसार के रब के लिए है (37:182)

सुब्हाना, तशहुद
वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, परोक्ष और प्रत्यक्ष को जानता है। वह बड़ा कृपाशील, अत्यन्त दयावान है (22) वही अल्लाह है जिसके सिवा कोई पूज्य नहीं। बादशाह है अत्यन्त पवित्र, सर्वथा सलामती, निश्चिन्तता प्रदान करनेवाला, संरक्षक, प्रभुत्वशाली, प्रभावशाली (टुटे हुए को जोड़नेवाला), अपनी बड़ाई प्रकट करनेवाला। महान और उच्च है अल्लाह उस शिर्क से जो वे करते है (23) वही अल्लाह है जो संरचना का प्रारूपक है, अस्तित्व प्रदान करनेवाला, रूप देनेवाला है। उसी के लिए अच्छे नाम है। जो चीज़ भी आकाशों और धरती में है, उसी की तसबीह कर रही है। और वह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है (59:24)

ताश हुद 
कहो, "मेरे रब ने मुझे सीधा मार्ग दिखा दिया है, बिल्कुल ठीक धर्म, इबराहीम के पंथ की ओर जो सबसे कटकर एक (अल्लाह) का हो गया था और वह बहुदेववादियों में से न था।" (161) कहो, "मेरी नमाज़ और मेरी क़ुरबानी और मेरा जीना और मेरा मरना सब अल्लाह के लिए है, जो सारे संसार का रब है (6:162)

तस्बीह
और हम तो यक़ीनी (उसकी) तस्बीह पढ़ा करते हैं (37:166)
अतः तुम अपने महान रब के नाम की तसबीह करो 
(56:74)


किसी कारण और तकलीफ में 
सिखाया है:
और (मुसलमानों) तुम तमाम नमाज़ों की और ख़ुसूसन बीच वाली नमाज़ सुबह या ज़ोहर या अस्र की पाबन्दी करो और ख़ास ख़ुदा ही वास्ते नमाज़ में क़ुनूत पढ़ने वाले हो कर खड़े हो फिर अगर तुम ख़ौफ की हालत में हो (2:238) 
और पूरी नमाज़ न पढ़ सको तो सवार या पैदल जिस तरह बन पड़े पढ़ लो फिर जब तुम्हें इत्मेनान हो तो जिस तरह ख़ुदा ने तुम्हें (अपने रसूल की मआरफत इन बातों को सिखाया है जो तुम नहीं जानते थे) (2:239)

किबला,एतकाफ
(ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब हमने ख़ानए काबा को लोगों के सवाब और पनाह की जगह क़रार दी और हुक्म दिया गया कि इबराहीम की (इस) जगह को नमाज़ की जगह बनाओ और इबराहीम व इसमाइल से अहद व पैमान लिया कि मेरे (उस) घर को तवाफ़ और एतक़ाफ़ और रूकू और सजदा करने वालों के वास्ते साफ सुथरा रखो (2:125) 
और (ऐ रसूल वह वक्त भी याद दिलाओ) जब इबराहीम ने दुआ माँगी कि ऐ मेरे परवरदिगार इस (शहर) को पनाह व अमन का शहर बना, और उसके रहने वालों में से जो खुदा और रोज़े आख़िरत पर ईमान लाए उसको तरह-तरह के फल खाने को दें खुदा ने फरमाया (अच्छा मगर) वो कुफ्र इख़तेयार करेगा उसकी दुनिया में चन्द रोज़ (उन चीज़ो से) फायदा उठाने दूँगा फिर (आख़ेरत में) उसको मजबूर करके दोज़ख़ की तरफ खींच ले जाऊँगा और वह बहुत बुरा ठिकाना है (2:126)


......
कुछ अलग हटके नमाज़ विषय पर Urdu पुस्तक
SALAAT-FIL-QURAAN
https://archive.org/details/salaatfilquraansikandarahmadkamal/mode/2up


Friday, July 10, 2020

مسلمانوں کے حالات اور ماضی کی بازیافت


مسلمانوں کے حالات اور ماضی کی بازیافت 
نکتہ
تمہارا مضمون عبدالحمید انصاری (یکتا یکتا 024) پر ماضی کی بازیافت اور مسلمانوں میں حالات کے تحت کبھی ابھرنا کبھی ڈوبنا کی تفسیر پڑھی۔ ایک بات بتاؤ کہ خلافت راشدہ کے بعد عہد سپین و بغداد کو چھوڑ کر مسلمان علمی ترقی، سیاسی سوجھ بوجھ، معاشرتی اصلاح، انفرادی غور و فکر، اجتماعی عمل سے دور دور کیوں رہا؟ انسان کی شخصیت وہ اوصاف پیدا کرے کہ دوسروں کے لئے اس کا علم، عمل، فکری بلندی اور ذات ناگزیر بن جائے۔ جب ایسا نہیں ہوگا تب انسان ہو یا کوئی گروہ وہ خس و خاشاک کی طرح ہوجاتا ہے: یعنی روندے جانے کے لئے۔میں اس معاملہ میں بہت سوچتی ہوں مگر سب سمجھ میں نہیں آتا۔ وہ کونسی رکاوٹ ہے جو ہم راہ میں رکے ہوئے ہیں؟ کس بات کا انتظار ہے؟ علی گڑھ آکر ایک بات محسوس ہوئی کہ سر سیدتو پیدا ہوتے ہیں مگر ان کو وہ شیروانی خاندان بھی ملنا ضروری ہے جو اپنا تن من دھن لے کر آجاتا ہے۔ تم نے صحیح لکھا ہے کہ عبدالحمید انصاری کے ساتھ ڈاکٹر عبدالحق اور قاسم بھائی بھی ضروری ہیں۔ مگر سوال یہ ہے کہ ان کو بھی کون تلاش کرے؟ میرا سوال اپنی جگہ ہے۔ اس کا بھی جواب دو۔۔۔۔
شہناز غا زی
ایک نجی خط کا قتباس ، 25 اکتوبر 2009

گفتہ
مدت ہوئی جب میری عزیز بہن شہنازنے ایک خط میں یہ سوالات کئے تھے۔ میں نے جواباً اس موضوع پر کچھ لکھنے کا وعدہ بھی کیا تھا مگر اس کے بعد نکتگو اور یکتا یکتا دونوں ہی سلسلے موقوف ہوگئے تھے اور میرا تمام تر فارغ وقت لفظ نما کی تحقیق میں صرف ہونے لگا تھا۔ سو یہ وعدہ بھی بہت سے دیگر وعدوں کی طرح تشنۂ تکمیل رہ گیا ۔ اب یہ سلسلہ دوبارہ شروع کرنے کا ارادہ کیا اور پرانے کاغذات پر نظر دوڑائی تو ان میں سے شہناز کے سوال کو اس نئے سلسلہ کا نقطہ آغاز بنانے کا فیصلہ کیا۔
میں نے نکتگو کے گزشتہ 41 مضامین میں سب سے زیادہ مضامین ارتقا اور زوال ہی کے موضوع پرلکھے تھے۔ اس کے علاوہ زندگی کے چالیس طویل صحافتی برسوں میں بھی میرے بیشتر مضامین اور مقالے راست یا بالواسطہ اسی موضوع کا احاطہ کرتے رہے ہیں ۔ پھر بھی یہ موضوع خود میری حد تک بھی تشنہ ہے۔اس کو بہت تشریح کی ضرورت ہے، ایک تو اس لئے کہ جب کسی قوم کا تاریخی شعور مفقودنہ سہی، نیم جاں ہوجائے تو سیدھی گزرگاہ بھی بے نتیجہ بحثوں کے گرد و غبارمیں چھپ جاتی ہے۔ دوسرے یہ کہ جب کسی قوم کا عمرانی شعور کمزور ہو جاتا ہے تو ایک ہی بات کو بار بار مختلف پیرایوں میں دہرانا پڑتا ہے۔ قرآن حکیم میں اللہ کی وحدانیت اور اس کے قادر مطلق ہونے جیسی سامنے کی باتوں کوسیکڑوں آیات میں بار بار کھول کھول کر بیان کیا گیا پھر بھی انسانوں کی اکثریت کی سمجھ میں کچھ بھی نہ آیا۔ مگر بہت سے لوگ جو صدق دل سے سچائی کے متلاشی تھے بات پا گئے اورانہوں نے دنیا کو وہ قیادت مہیا کردی جوپہلے کبھی انسانیت کا مقدر نہ بن سکی تھی۔تیسری وجہ یہ کہ میری وہ تحریریں بہت سے لوگوں کی نظر ہی سے نہ گزریں یا بے ربطی کے ساتھ انہیں پڑھا گیا تو بات پوری طرح سمجھ میں نہ آئی۔آج اسی موضوع کو ایک نئے پیرائے میں بیان کردیتا ہوں۔
مگر بات شروع کرنے سے پہلے کچھ نکات طے کرلیں۔

*کیا واقعی بغداد اور سپین کے بعد دنیا کے مسلمان علمی ترقی، سیاسی سوجھ بوجھ، معاشرتی اصلاح، انفرادی غور و فکر، اجتماعی عمل سے دور ہوگئے تھے؟
*کیا واقعی پچھلے چھ سو سال میں مسلمانوں میں ایک بھی شخصیت ایسی پیدا نہ ہوئی جس کے اوصاف،علم، عمل، فکری بلندی اور ذات دوسروں کے لئے ناگزیر نہ سہی قابل ذکر بھی ہوتی؟
*کیا مسلمان وقت کے کسی جامد لمحہ پر ٹھہرے ہوئے ہیں یا ایک ایسی حالت سفرمیں ہیں جس کی منزل دور ہے؟
*کیا کام کرنے کے لئے سرمایہ یا کسی دولت مندکی اعانت لازمی ہے؟
*کیا واقعی دنیا میں کسی ایسی قوم نے کوئی ترقی کی ہے جس کا خود پر اور اپنی صلاحیت اور استعداد پراعتماد ہی نہ ہو؟
*اگران تمام سوالات کا جواب اثبات میں ہے تو پھرنجات کا راستہ کیا ہے؟ اور اگر ان کا جواب نفی میں ہے تو پھر مسلمان اس ناگفتہ بہ حالت میں کیوں ہیں؟
پہلے پانچ سوالوں کے بارے میں کسی نتیجہ پر پہنچنے کے بعد ہی اس آخری سوال پر بات ہوسکتی ہے۔ اس لئے موجودہ مضمون پہلے پانچ سوالوں تک محدود رہے ۔
تاریخ ان محولہ بالا سوالوں کے جواب مہیا کرتی ہے ۔مگر تاریخ کوئی نرس نہیں ہوتی کہ وقت مقررہ پر دوا کی گولی اور پانی کا گلاس لے کر مریض کے پاس آئے، اسے دواکھلا دے ،اورتین دن بعد معالج اسے صحت مندی کا پروانہ عطا فرمادے۔ تاریخ میں اپنے سوالوں کے جواب ڈھونڈنے پڑتے ہیں اور اس کام میں کبھی کبھی برسوں لگ جاتے ہیں۔ تو جن اہل علم، دانشمندوں، مفکروں پر کبھی کبھی ہم غصہ ہوتے ہیں کہ ہماری مشکل کا حل نہیں بتاتے خود ان کی مشکل سے ہم باخبر نہیں ہوتے۔اور وہ ہماری شکایت کو درد مندی سن کے خاموش رہتے ہیں کہ ممکن ہے وہ خود ابھی درمیان راہ میں ہوں۔ وہ نبی نہیں ہوتے کہ اللہ کی طرف سے فورا جواب مہیا کردیا جائے۔ لیکن ان کی تربیت ایک اعتبار سے قرآن حکیم کا علم کرتا جہاں ایک آیت کی تفہیم کیلئے کئی دوسری آیتوں کی جزئیات کا علم ہونا ضروری ہوتا ہے۔
ایک مثال دیتا ہوں۔
صدیوں سے، بالخصوس گزشتہ دو صدیوں سے، مستشرقین، اور اب معربین، کا اصرار ہے کہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کے مدینہ تشریف لانے کے بعدمکہ کے تجارتی قافلوں کو مدینہ کے مسلمان لوٹتے رہے اور بعض مرتبہ تو اس کام کے لئے کوئی فوجی ٹکڑی لے خود رسول ؐ اللہ بھی نکلے۔
تاریخ کیا ہے؟
تاریخ تو یہی ہے!
مکہ والوں کے تجارتی کاروان شام جانے کے لئے نکلتے تھے اور مدینہ کے مہاجرین و انصار کی چھوٹی چھوٹی فوجیں ان پر حملہ کرنے کے لئے نکلتی تھی۔
یہ تاریخ کہاں لکھی ہوئی ہے؟
دیکھ لو، ابن ہشام نے اپنی سیرۃ میں لکھا ہے۔ ابن کثیر، ابن اثیر، طبری، بلاذری، یعقوبی۔ سب نے لکھا ہے اور سب مسلمان مؤرخ تھے۔ تو بات تاریخی سچ ہے ا ور تاریخی سچ تھی۔
مگر کیا اس موضوع پر یہی آخری اور سچا سچ ہے؟
نہیں۔ یہ ادھورا سچ ہے۔ مگر اس کے ادھورے پن کو سمجھا نہ جاسکا۔ مستشرقین کی بات چھوڑئے، انہیں تو سفیدشکر میں کالی چیونٹیاں ہی نظر آتی تھیں، خود مسلمان بھی اس معاملہ دفاعی ہو گئے۔بات دفاع طلب نہیں، وضاحت طلب تھی۔
سیرت مبارکہ پرمیرے آٹھویں لیکچر میں13 اپریل 2008 کو یہ تاریخی واقعیت بیان میں آئی تو اس مسئلہ پر کچھ حاضرین نے سوال کئے۔ہنگامی طور پر جواب تو دے دیا مگر اس کے بعد سوا دو سال اس موضوع پرمطالعہ اور غور و فکر کر کے چار صفحات پر مشتمل ایک مضمون اسلام آباد کے سہ ماہی الاقربا کے جولائی تا ستمبر 2010 کے شمارہ میں شائع کیا، جس میں مزید تحقیقی اضافے کر کے ہندستان کے ایک علمی رسالہ کو بھیجا ہے جہاں سے ابھی کوئی جواب نہیں آیا۔
مجھے اس خود ستائی کی ضرورت کیوں پیش آئی؟
یہ بتانے کے لئے کہ میری اس تحقیق کے نتیجہ میں تاریخی حقائق تو وہی رہے جو ابن سعد، ابن اسحق، ابن ہشام، ابن کثیر، بلاذری، طبری، وغیرہ نے لکھے ہیں لیکن انہی تاریخی حقائق سے یہ بھی ثابت ہوگیا کہ قریشی قافلوں پر مسلمانوں کی فوج کشی کے یہ واقعات لوٹ مارکے لئے نہیں تھے۔ وہ کیا تھے اس کے لئے الاقربا میں میرا مضمون دیکھا جاسکتا ہے؛ جو انٹر نیٹ پر گوگل کی مدد سے مل جاتا ہے۔
قصہ مختصر ،کسی ایک تاریخی حقیقت کو بہت سے دیگر تاریخی حقائق کے ساتھ مربوط کرکے ہی تاریخ مرتب ہوتی ہے۔محض وقائع نگاری کی بنیاد پر کسی عہد یا کسی شخصیت کے بارے میں حتمی فیصلے نہیں کئے جاتے۔مستشرقین نے یہی کیا ، یہی جدید اصول تاریخ نویسی ہے۔
یہ اصول شہناز غازی سلمہا کے سوالات پر بھی منطبق ہوتا ہے۔
ہم اپنی جس تاریخ کی بات کررہے ہیں وہ یورپ کے معاشرتی مزاج اور علمی مذاق کی طرح بہت پیچیدہ ہے۔تاریخ کی پیچیدگی کااحساس مجھے اس وقت ہوا تھا جب علی گڑھ میں جدید مسلم دنیا کے پرچہ میں ترکی کی زوال آمادہ سلطنت عثمانیہ کے نام پر مجھے یورپ کی تاریخ پر نظر ڈالنے کا موقعہ ملا تھا۔اسی تاریخ کے گہرے اثرات نے عصر حاضر کے مسلمان کی تاریخ ہی نہیں اس کے مزاج اور شعورکو بھی پیچیدہ کردیا ہے۔ اس لئے بہت سی باتیں ہم سمجھ نہیں پاتے۔ ہر ایک بات میں اتنے گوشے، اتنے پہلو تراش لئے جاتے ہیں اور ہر گوشہ اور پہلو پر لفظوں اور نظریات کی آراستگی کے اتنے پھول پھندنے اور ان پر دلائل کے اتنے خول ہوتے ہیں کہ عموما حقیقت کی گری ہاتھ ہی نہیں آتی اور ہم اپنے حالات اور اپنے ماضی کا مطالعہ کرتے ہوئے پہلے سے زیادہ پریشان خیال ، بلکہ نفسیاتی الجھنوں کا شکار ہوجاتے ہیں۔
تو مختصراً ان سوالوں کے جواب کھوجیں جو اوپر لکھے تھے۔
* کیا واقعی بغداد اور سپین کے بعد دنیا کے مسلمان علمی ترقی، سیاسی سوجھ بوجھ، معاشرتی اصلاح، انفرادی غور و فکر، اجتماعی عمل سے دور ہوگئے تھے؟
نہیں۔ یہ بیان درست نہیں ہے۔ سلطنت عثمانیہ کی زیر تحریر تاریخ کا دوسرا باب لکھنے کے بعد اس کے افتتاحیہ میں ایک اہم ابتکاری نکتہ سامنے آیا تھا۔ اسے نقل کردیتا ہوں:
"اسلام کی 1443 سالہ تاریخ میں زوال کا کوئی دور نہیں ہے۔ اس کا ہر دور عروج کا دور رہا ہے۔ اسلام کی تاریخ موجوں کی صورت میں ظہور کرتی آرہی ہے۔ اس کا آغاز علم کی ایک عظیم الشان موج کی صورت میں رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی بعثت اور ہجرت میں رونما ہوا۔ خلافت راشدہ اور پھر بنی امیہ کے زمانہ میں یہ تاریخ دو موجوں کی شکل میں مرتب ہوتی ہے: ایک طرف وہی علمی موج تھی جس کا عنوان تحریر مصحف مقدس اور تدوین حدیث کا سرآغاز تھا، بعد میں کتب حدیث کی ترتیب اور فقہوں کے ارتقا کی صورت میں سامنے آیا؛ اور دوسری موج اقدامی اور دفاعی تھی جو عہد صدیقیؓ میں مرتدین کے خلاف فوج کشی سے شروع ہوکر بنی امیہ کے زمانہ میں افریقہ، ہسپانیہ، ہند اور ماورا ء النہر کی فتوحات کی صورت میں وجود میں آئی۔ بنی عباس کے ابتدائی دور میں حربی موج کمزور پڑ گئی، مگر ٹھیک اسی زمانہ میں علمی موج کا ارتفاع آسمان دانش و حکمت تک پہنچ گیا۔ عباسیوں کے آخری دور میں یہ علمی موج بھی رفتہ رفتہ اتر گئی ، مگر دوسری طرف حربی اور تہذیبی موج بر صغیر جنوبی ایشیامیں بلند ہوتی دکھائی دی۔ منگول طوفان کے بعد ایک نئی زبردست حربی موج ایک بار پھر تاریخ اسلام کے سمندر میں اناطولیہ کے ساحلوں پرنمودار ہوئی اور مسلم توسیع کی حدیں یورپ کے قلب میں وئینا کی دیواروں سے ذراپرے رہ گئیں۔ پھر وقت آیا کہ ترک عثمانیوں کی یہ حربی موج بھی بیٹھ گئی۔ اب مسلمان حربی اور سیاسی اعتبار سے کوئی آبرومند قوم نہیں رہے۔ مگر اسی حربی اور سیاسی زوال کے زمانہ میں علمی موج از سر نو بلند ہونی شروع ہوئی اور بے شمار صف اول کے مفکرین اور اہل دانش سے آسمان جگمگا اٹھا۔لہٰذا دیکھنے اور غور کرنے کی بات یہ ہے کہ موجودہ سیاسی اورحربی دور انحطاط کے باوجود دوبارہ علمی موج مسلمانوں میں کہاں ابھر رہی ہے۔ اسی سوال کے جواب پر مسلم مستقبل اور اس کے ارتقائی رخ کا انحصار ہے۔” (اسلامی تاریخ کے مد و جزر،سہ ماہی الاقربا، اسلام آباد، اکتوبر۔دسمبر 2010، ص 11۔10)
یہ ضرور ہے کہ سقوط بغداد(1258) اور سقوط غرناطہ(1492) کے بعداکثر مسلم منطقوں میں سیاسی انحطاط کا آغاز ہوا تھا جس کے نتیجہ میں ایشیا اور شمالی افریقہ میں استعماری طاقتوں کو اقتدار حاصل کرنے میں آسانی ہوئی تھی۔لیکن دوسری طرف انہی دنوں اناطولیہ اور مشرقی یورپ میں سلطنت عثمانیہ کے پرچم تلے مسلم سیاست بڑی قوت سے دنیا پر مؤثر ہورہی تھی اور ان علاقوں میں مغربی یورپی استعمار کو قدم ٹکانے کی جگہ نہیں مل رہی تھی، تاآنکہ پہلی عالمی جنگ میں عربوں کو ایک عظیم سلطنت کے سبز باغ دکھا کر ان کے ذریعہ سلطنت عثمانیہ کو ختم کیا گیا اور مشرقی یورپ پر سیاسی عنوان سے عیسائی مذہبی غلبہ حاصل کیا گیا۔ چنانچہ تقریبا آٹھ عشروں تک جمہوریہ ترکی میں بھی مسلم سیاسی زوال کا کھیل کھیلا جاتا رہا۔
جس بات کو ہم اپنے زوال سے تعبیر کرتے ہیں وہ دراصل سیاسی عمل کا بانجھ پن ہے، انحطاط بلکہ جمود اسی میدان میں پایا جاتا ہے ۔ البتہ جب سیاسی طور پر مسلمان ناکام نظر آرہے تھے،تو فکری میدان میں وہ زندگی کا ثبوت فراہم کررہے تھے۔ اس ثبوت کو غیر مؤثر کرنے کے لئے خود ہمارے مغرب مزاج تعلیمیہ اور ابلاغیہ نے بھی شور مچا دیا کہ مسلمانوں کا زوال مکمل ہوچکا ہے اور بظاہر ان کے دوبارہ ابھرنے اور ترقی کرنے کا کوئی امکان نہیں ہے اور اگر ہے تو صرف مغربی کلچر، مغربی علوم اور مغربی طرز فکر کی نقالی ہی سے ممکن ہے۔اسی شور شرابہ میں گزشتہ دوسوسال میں پوری مسلم دنیا میں ایسے کئی مصلحین پیدا ہوئے جنہوں نے اپنی قوموں کو یہ سبق پڑھایا۔ حیرت انگیز بات یہ ہے کہ بیسویں صدی کے اواخر میں مسلم دنیا کے انتہائی مشرق اور انتہائی مغرب میں کم و بیش ایک ہی وقت میں اس نظریہ کو رد کرکے خود اعتمادی کا مظاہرہ شروع ہوا۔ مشرق میں اس قوت کا نام محاتیر محمد اور اس کا میدان عمل ملیشیا بنا،مغرب میں خوداعتماد کا نام تھا نجم الدین اربکان، پھر سلیمان دیمرل کے شاگرد ترگت اوزال اور پھر اربکان کے سیاسی تلامیذ رجب طیب اردگان اور عبداللہ گل اورمیدان کار ترکی۔ تاہم ان دو "قطبوں "کے درمیان پڑنے والی مسلم دنیا اور عام مسلمان بدستور اسی بدگمانی میں ہیں کہ اگر کسی بھی درجہ میں ترقی کا کوئی امکان ہے تو صرف مغربی طرز فکر کی نقل میں ہے۔ ان لوگوں کی نگاہیں تاریخ کی کتابیں اور اخبارات پڑھنے کے قابل نہیں ہیں۔
مسلمانوں کے معاملہ میں قدرت کا عجیب نظام ہے۔ ان کے سیاسی انحطاط و زوال کے ساتھ ہی ان میں زبردست علمی اور فکری انقلابات آتے ہیں۔ ہسپانیہ میں بنی امیہ کی حکومت (1039۔756) کے دوران علمی کام ہورہاتھا جس کی حیثیت بالعموم فلسفیانہ تحقیقات کی تھی۔ الحکم ثانی(976۔915)کے ذاتی کتب خانہ میں چار لاکھ سے چھ لاکھ تک کتابیں موجود تھیں ۔ یہ اس دور کی بات ہے جب چھپائی کی مشین ایجاد نہیں ہو ئی تھی۔ بنی امیہ کے خاتمہ کے ساتھ مسلم ہسپانیہ چھوٹی چھوٹی مملکتوں میں تقسیم ہوگیا تھا۔ طوائف الملوکی کا یہ دور 453 برس پر محیط تھا۔ اسی زمانہ میں بے شمار مسلم نظری اوراطلاقی سائنسداں پیدا ہوئے (عباس ابن فرناس،ابوالقاسم الزہراوی،ابن رشد، ابن الطفیل، ابن باجہ،ابن حزم، البطروجی،محی الدین المغربی،ابن زُہر، ابن جبیروغیرہ)جن کی تحقیقات اور ایجادات بعد میں یورپ کی سائنسی اور تکنولوجیائی ترقی کا ذریعہ بنیں۔ اس سے پہلے سلطنت عباسیہ کے اپنے عروج کے دور میں مامون جیسے فلسفی مزاج بادشاہ کی توجہ سے فکر اورنظری علوم میں تو بے شک غیر معمولی ترقی ہو ئی، نیز کسی درجہ میں اطلاقی علوم میں بھی اہم کام ہوا، لیکن اس خاندان کے دسویں حکمراں المتوکل کے دور حکومت (861۔847)کے بعدزمانۂ انحطاط شروع ہوا اور اسی دورمیں مسلم مشرق میں امتیازی علمی ترقی ہوئی (الزرکلی، الجزری، قطب الدین شیرازی، ابن شاطر، الکاشی، ابن النفیس،ابن تیمیہ، المقریزی، الادریسی، الغزالی، الرازی وغیرہ)۔ بر صغیر جنوبی ایشیا میں دہلی سلطنت (1207 تا 1526) اور سلطنت مغلیہ کے عروج (1556 میں اکبر کی تخت نشینی سے1707 میں اورنگزیب کے انتقال تک) اگرچہ علوم کے میدان میں کام ہوتا رہا اورشیخ عبدالحق محدث دہلوی،خان خاناں، شیخ احمد سرہندی اور استاد عیسیٰ جیسے اہل علم و فن پیدا ہوئے، لیکن اورنگزیب کے انتقال کے ساتھ سیاسی زوال شروع ہوا اور اس کے نتیجہ میں جو علمی انقلاب آیا تھا وہ برصغیر میںآج تک جاری ہے اور اس کی ضیاؤں سے نگاہیں آج بھی خیرہ ہوتی ہیں۔
بے شک مسلمانوں میں سیاسی سوجھ بوجھ کا فقدان سب کے سامنے ہے۔مگر اس کا سبب سوائے اس کے کیا ہے کہ مسلمانوں کی خود اعتمادی کو خود ہم نے ادھ موا کر رکھاہے۔ مسلمان غیر مؤثر ہے اس لئے کہ اس کے سامنے کوئی سیاسی نصب العین نہیں ہے۔ان کے حکمراں یا تو مغرب کے دسترخوان فکر کے ریزہ چیں ہیں یا غلام قصر ہیں۔تاہم معاشرتی اصلاح کے میدان میں خاصا مؤثر کام ہورہاہے جو انفرادی غور و فکر اور کسی درجہ میں اجتماعی عمل کے بغیر ممکن نہیں ہوتا۔ان میدانوں میں بڑا مسئلہ قوتِ نافذہ کا ہے جو کسی بھی مفکراور کارکن کے پاس نہیں ہوتی۔ یہ قوت جن ہاتھوں میں ہے انہیں سیاست داں کہتے ہیں اور ان کو ایسے کاموں سے اب اتنی نسبت بھی نہیں رہی جتنی ہارون رشید اور مامون رشید کو تھی کہ وہ اپنے زمانہ کے علماء کو بلا کر ان سے بات تو کرتے تھے اور اکثر ان کی بات مان بھی لیتے تھے۔ اب اسی طبقۂ اہل علم کوسب سے زیادہ خطرناک سمجھاجاتا ہے۔اس میں کچھ قصور خود علماء بھی ہے، مگراس کا یہ مطلب بھی نہیں کہ اس پورے طبقہ ہی کولعن طعن کا شکار بنا دیا جائے اور ان میں مثبت فکر و عمل والے افرادکو نہ تلاش کیا جائے نہ ان سے استفادہ کیا جائے۔
** کیا واقعی پچھلے چھ سو سال میں (1400 سے اب تک) مسلمانوں میں ایک بھی شخصیت ایسی پیدا نہ ہوئی جس کے اوصاف،علم، عمل، فکری بلندی اور ذات دوسروں کے لئے ناگزیر نہ سہی قابل ذکر بھی ہوتی؟

جی ہاں، 1400 عیسوی سے اب تک کی چھ سو سالہ مدت میں ایسی بے شمار شخصیات پیدا ہوئی ہیں: چند کے نام گنے جائیں:
علوم دین و دنیا: (78)
ابن خلدون(1406۔1332)۔
پیری رئیس (ترکی ۔ جغرافیہ داں امیر البحر: ۔ 1513)۔
قاضی زادہ رومی (ترکی۔فلکیاتی : 1436۔1364)۔
مرزا محمد طارق اُلُغ بیگ (فارس ۔ مہندس، فلکیاتی : 1449۔1394)۔
مولانا جلال الدین سیوطی (مصر۔ عالم، مفسر،فقیہ، اقتصادیات : 1505۔)
تقی الدین ابن معروف السعدی (ترکی/شام۔سائنسداں، فلکیاتی، موجد، مہندس،گھڑی ساز: 1585۔1526)۔
شیخ عبدالحق محدث دہلوی (ہند۔عالم، محدث: 1642۔1551)۔
ملا علی قاری (محدث، فقیہ: م:1605)۔
احمد بابا المصوفی ٹمبکٹی (ٹمبکٹو : مالی ،مغربی افریقہ ۔ عالم ، انقلابی : 1627۔1556)۔
اولیا ء چلبی (عثمانی ترکی۔ سیاح، جغرافیہ داں: 1682۔1611)۔
مرزا مظہر جان جاناں(ہند ۔ عالم، تصوف : 1781۔1701)۔
شاہ ولی اللہ(ہند۔مفکر عالم، ماہر عمرانیات، سیاسی فلسفی، اقتصادیات: 1762۔1703)۔
شاہ عبدالقادر۔(ہند۔عالم، محدث، مترجم قرآن: م:1815)۔
شاہ عبد العزیز(ہند۔محدث، محقق:1824۔1745)۔
امام محمد امین ابن عابدین (شام ۔ محدث،فقیہ، اقتصادیات: 1836۔1783)۔
علامہ محمود آلوسی بغدادی (عراق۔عالم، مفسر، فلسفئ سیاسیات: 1853۔1802)۔
مولانا خالد کردی( کردستان/عربیہ /عراق۔ تصوف،حدیث :م:1827)۔
شاہ اسمٰعیل شہید(ہند۔ محقق : ش: 1831)۔
مولانارشیداحمدگنگوہی(ہند۔عالم، محدث:1905۔1829)۔
مولانا محمد قاسم نانوتوی(ہند۔عالم، محقق، مفکر، انقلابی : 1880۔1832)۔
مصطفی عاصم کوکسال (ترکی۔مؤرخ/محقق: 1913۔1898)۔
شبلی نعمانی(ہند۔مؤرخ، محقق: 1914۔1857)۔
شیخ الہند مولانا محمود لحسن(عالم، محدث، مترجم قرآن، محرک آزادی، مفکر، عمرانیات : 1920۔1851)۔
مولاناخلیل احمدسہارنپوری(ہند: عالم،محدث: 1927۔1852)۔
علامہ سید انور شاہ کاشمیری (ہند۔عالم، محدث، مفکر، فقیہ : 1933۔1875)۔
مولانا اشرف علی تھانوی (عالم، محقق، مفسر، فقیہ : 1943۔1863)۔
احمد ابن امین الشنقیطی (موریطانیہ ۔ تاریخ، جغرافیہ، ادب : 1913۔1872)۔
مارماڈیوک محمد پکتھال (انگلستان۔ مدرس،مترجم قرآن : 1936۔1875)۔
مولانا شبیر احمد عثمانی(ہند۔پاکستان۔عالم، محدث، مفسر : 1949۔1886)۔
مولانا احمد علی لاہوری (ہند/پاکستان ۔عالم، مفسر، مفکر: 1961۔1887)۔
سید سلیمان ندوی (ہند۔پاکستان ۔عالم، مؤرخ، محقق: 1953۔1884)۔
مولانا محمد الیاس کاندھلوی (ہند۔عالم، مبلغ دین : 1944۔1885)۔
محمد حسین ہیکل (مصر۔صحافی/سیرۃ نگار: 1956۔1888)۔
مولانا ابولکلام آزاد(ہند۔محقق، مفکر، مجاہد آزادی: 1958۔1888)
شیخ بدیع الزماں سعید نورسی (ترکی۔عالم، مصلح: 1960۔1878)۔
امام محمد زاہد الکوثری (ترکی/مصر/شام ۔فقیہ، محدث : 1951۔1879)۔
محمدفواد کوپرولو (ترکی۔مؤرخ: 1966۔1890)۔
مفتی امین الحسینی (فلسطین ۔ عالم، فقیہ، محرک آزادی : 1974۔1895)۔
حکیم الاسلام مولانا قاری محمد طیب (ہند۔عالم ، محقق،مفکر،خطیب: 1983۔1897)۔
ڈاکٹر سلیم الزماں صدیقی (ہند/پاکستان ۔ سائنسداں : 1994۔1897)۔
شیخ محمد ابو زہرہ (مصر۔عالم، مفکر، فقیہ: 1974۔1898)
محمد اسد (لیوپولڈ ویس) (آسٹریا/ہسپانیہ۔مفسر، صحافی: 1992۔1900)۔
مولانا محمد یوسف بنوری(پاکستان۔عالم، محدث : م: 1977۔)۔
ڈاکٹر قدرت خدا (بنگلہ دیش۔سائنسداں: 1977۔1900)۔
خلیل اِنالجک (ترکی۔مؤرخ : ۔1905)۔
مولاناحامد الانصاری غازی(ہند۔صحافی، مفکر،محقق، مجاہد آزادی: 1992۔1907)۔
ڈاکٹرمحمدحمیداللہ (حیدرآباد/فرانس۔عالم،مؤرخ، محقق: 2002۔1908)۔
ڈاکٹر رضی الدین صدیقی (پاکستان ۔ سائنسداں : 1998۔1908)۔
ابوبکر سراج الدین مارٹن لنگس (کینڈا۔عالم، صوفی،سیرت نگار، محقق: 2005۔1909)۔
شیخ عبداللہ الغمری (مراکش۔عالم، محدث، فقیہ ،صوفی۔1910)۔
عائشہ بنت عبدالرحمٰن۔بنت الشاطی( مصر۔عالمہ،مفسر، ادیبہ: 1999۔1913)۔
ڈاکٹر تھامس بیلنٹائن (ٹی۔بی۔) اِروِنگ(امریکہ۔ مترجم قرآن، ماہر لسانیات، مدرس: 2002۔1914)۔
زینب الغزالی (مصر۔عالمہ، ادیبہ : 2005۔1917)۔
محمد الغزالی (مصر۔عالم، محقق: 1996۔1917)۔
اسمٰعیل راجی الفاروقی شہید (امریکہ۔محقق: 1986۔1921)۔
ڈاکٹر مصطفیٰ محمود (مصر ۔ سائنسداں : 2009۔1921)۔
مولانا سعید احمد اکبرآبادی(ہند۔عالم، محقق، مدرس)۔
شیخ انطا ضیوف (سینیگال ۔ مؤرخ، سائنسداں : 1986۔1923)۔
ڈاکٹر سید صمد حسین (پاکستان۔ فلکیاتی، طبیعیاتی: ۔1924)۔
خلیق احمد نظامی(ہند۔مؤرخ، محقق: ۔1925)۔
ڈاکٹر منیر احمد خان (پاکستان ۔ نیوکلیائی سائنسداں : ۔1926)۔
ڈاکٹرسید ظہور قاسم (ہند ۔ سائنسداں : ۔1926)۔
ڈاکٹرعرفان حبیب(ہند۔مؤرخ، محقق: ۔1931)۔
ڈاکٹراے۔پی۔جے۔عبدالکلام (ہند۔ سائنسداں: ۔1931)۔
ڈاکٹرعبید الرحمٰن صدیقی(ہند۔سائنسداں: ۔1932)۔
شیخ حسن الترابی (سودان ۔ عالم ، سیاست داں : ۔1932)۔
ڈاکٹر علی شریعتی (ایران:ماہر عمرانیات، انقلابی: 1977۔1933)۔
سید حسین نصر (ایران/امریکہ۔اسلامی فلسفہ : ۔1933)
ڈاکٹرعبدالقدیر خان (پاکستان۔سائنسداں: ۔1936)۔
محمد یونس (بنگلہ دیش ۔ اقتصادیات، رفاہیات عامہ : ۔1940)۔
مولانا مفتی محمد تقی عثمانی (پاکستان۔عالم، قانون داں، مدرس، محقق: ۔1943)۔
ڈاکٹر اصغر قادر (پاکستان، فلکیاتی: ۔1946)۔
عائشہ (عبدالرحمٰن ترجمانہ) بیولی (امریکہ۔تصوف، عالمہ، محقق: ۔1948)۔
ڈاکٹر شیر علی (ہند۔سائنسداں: ۔1955)۔
مفتی زَروَلی خان (پاکستان ۔ عالم، مفسر، محدث : ۔1955)۔
عدنان اوکتارعرف ہارون یحی (ترکی ۔ سائنس داں : ۔1956)۔
یوسف زیدان (مصر ۔ اسلامیات، آثار قدیمہ، محقق : ۔1958)۔
شیخ حمزہ یوسف ہانسن (امریکہ۔عالم، تصوف،مدرس، محقق: ۔1960)۔

سیاست: (41)
مرزا محمد طارق اُلُغ بیگ (فارس ۔ بادشاہ، مہندس، فلکیاتی : 1449۔1394)۔
سلطان محمد فاتح(عثمانیہ ترکی : 1481۔1432)۔
سلطان سلیمان قانونی(عثمانیہ ترکی: ح: 1566۔1520)۔
سلطان سلیم ثانی (عثمانیہ ترکی: 1574۔1524)۔
ظہیر الدین بابر(ہند:1483۔1531)۔
شاہجہاں (ہند: 1666۔1592)۔
اورنگزیب عالمگیر(ہند: 1707۔1618)۔
آصف جاہ نظام الملک اول (ہند: 1758۔1671)۔
نواب بنگال مرزا محمد سراج الدولہ (ہند۔ 1757۔1728)۔
سلطان ٹیپو شہید(ہند: 1799۔1750)۔
مولانا فضل حق خیرآبادی (ہند۔عالم، انقلابی: 1861۔1791)۔
مولانا احمد اللہ شاہ مدراسی(ہند۔عالم، مجاہد آزادی: پ: 1825 تقریباً)۔
امام شامل (داغستان/چیچنیا۔عالم، انقلابی: 1859۔1797)۔
امیرعبدالقادرالجزائری (الجزائر:مجاہدآزادی: 1883۔1808)۔
اعرابی پاشا (مصر۔ انقلابی: 1911۔1839)۔
سعد زغلول پاشا (مصر ۔ انقلابی، محرک آزادی : 1927۔1859)۔
سلطان عبدالحمید ثانی (عثمانیہ ترکی۔سلطان: 1909۔1876)۔
شیخ الہندمولانا محمود الحسن(ہند: عالم ، محدث،مفسر، مفکر،محرک آزادی: 1920۔1851)۔
شیخ احمد سنوسی (لبیا۔صوفی، مجاہدآزادی)۔
محمد علی جوہر (ہند۔صحافی، مدبر: 1931۔1878)۔
عمر مختار شہید (لبیا۔عالم، مدرس، مجاہد آزادی: 1931۔1862)۔
امیر شکیب ارسلان (لبنان ۔ادیب، سیاست داں: 1946۔1869)۔
انور پاشا (عثمانی ترکی : 1922۔1881)
جلال بایار (ترکی۔ انقلابی : 1986۔1883)۔
محمد ابن عبدالکریم الخطابی ( مراکش۔ انقلابی، مجاہد آزادی : 1963۔1883)
مولانامحمد میاں منصور انصاری(ہند/افغانستان۔عالم، مفکر،انقلابی : 1949۔1886)۔
مولاناابولکلام آزاد(ہند۔محقق، مجاہد آزادی: 1958۔1888)۔
امیرامان اللہ خان (افغانستان:1960۔1892)۔
رفیع احمد قدوائی (ہند ۔ 1954۔1894)۔
مفتی امین الحسینی (فلسطین ۔ عالم، فقیہ، محرک آزادی : 1974۔1895)۔
عدنان مندریس (ترکی ۔ انقلابی : 1961۔1899)۔
مولانا حفظ الرحمان سیوہاروی(ہند۔عالم، محقق،مجاہد آزادی)۔
کنعان ایورن (ترکی : ۔ 1917)۔
جمال عبدالناصر(مصر: 1970۔1918)۔
جنرل ضیاء الحق (پاکستان ۔ صدر: 1988۔1924)۔
نجم الدین اربکان (ترکی۔ انجنئر، پروفیسر،سیاست داں : ۔1926)۔
علیہ عزت بیگووِچ (بوسنیا۔انقلابی، صدر: 2003۔1925)۔
محاتیر محمد(ملیشیا۔طبیب، سیاست داں: ۔1925)۔
تُرگُت اوزال (ترکی : 1993۔1927)۔
رجب طیب اِردُگان (ترکی : ۔1954)۔
عبداللہ گل(ترکی : ۔1950)۔

ادبیات:(26)
نظیری نیشاپوری (ایران/ہند۔شاعر: م: 1412)۔
مولانا عبدالرحمٰن جامی (افغانستان۔شاعر، صوفی: 1492۔1414)۔
ملا طاہر غنی کاشمیری(ہند۔شاعر: 1664۔1630)۔
مرزا محمد رفیع سودا(ہند۔شاعر: 1781۔1713)۔
میر تقی میر(ہند۔شاعر: 1810۔1723)۔
مرزا اسداللہ خان غالب(ہند۔شاعر: 1869۔1797)۔
علامہ راشد الخیری (ہند۔ ادب نسواں : 1936۔1868)۔
احمد شوقی (مصر۔شاعر: 1932۔1869)۔
ظفر علی خان (ہند/پاکستان۔صحافی، شاعر: 1956۔1873)۔
محمداقبال(ہند۔شاعر،فلسفی : 1938۔1877)۔
امیر شکیب ارسلان (لبنان ۔ادیب،شاعر: 1946۔1869)۔
عمرابوریشہ(شام۔شاعر،سفارت کار)۔
محمد لطفی جمعہ (مصر ۔ ادیب، انشاء ، انقلابی : 1953۔1886)۔
توفیق الحکیم (مصر ۔ ناول : 1987۔1898)۔
حفیظ جالندھری (ہند۔پاکستان۔شاعر:1982۔1900)۔
شفیع الدین نیر (ہند۔ ادب اطفال : 1978۔1904)۔
عائشہ بنت عبدالرحمٰن (بنت الشاطی ۔ مصر۔مفسر، ادیبہ: 1999۔1913)۔
زینب الغزالی (مصر۔ ادیبہ : 2005۔1917)۔
ہاجرہ نازلی (ہند۔ادیبہ: 2004۔1920)۔
محمد دیب (الجزائر ۔ کہانی، عصری تاریخ، بچوں کا ادب : 2003۔1920)۔
قرۃ العین حیدر (ہند۔ادیبہ: 2009۔1926)۔
احمدو کوروما(ساحل العاج،مغربی افریقہ ۔ ناول، انقلابی : 2003۔1927)۔
علی الامین مزروعی (کینیا ۔ اسلامیات، سیاسی تبصرہ، مدرس، فلسفی : ۔1933)۔
عبداللہ سدران (بوسنیا ۔ ادیب : ۔1944)۔
جمال الغیطانی (مصر ۔ صحافی، تاریخی کہانی نگار : ۔1945)۔
اسما گل حسن (امریکہ ۔ ناول، سیاسی تبصرہ، قانون : ۔1974)

یہ تقریباً ڈیڑھ سو وہ افرادہیں جنہوں نے اپنے اپنے میدانوں میں دنیا میں یا کم سے کم اپنے ملکوں اور معاشروں میں امتیاز حاصل کیاہے۔زوال کا شکارکسی قوم میں چھ سو برس میں اگر اتنے لوگ بھی مختلف میدانوں میں امتیازی مقام حاصل کرلیں تو یقین کرنا چاہیئے کہ وہ قوم اورمعاشرہ زوال پذیر نہیں ہے۔ یہ الگ بات ہے کہ بعض میدانوں میں کام سست ہو، مگر سست رفتاری کو زوال کا مترادف کبھی نہیں سمجھا گیا۔ان تین فہرستوں میں ابھی بہت کچھ اضافہ ہوسکتا ہے۔ میں نے اسے صرف ایک خاص فکری سمت میں محدود رکھاہے تاکہ تجزیہ کرنے میں سہولت ہو۔ان فہرستوں سے ایک نکتہ پر روشنی پڑتی ہے کہ گزشتہ چھ سو سال میں مسلمان فکری اور علمی میدانوں میں بے انتہا متحرک ہیں، جبکہ ادبیات میں سب سے کمزور ہیں۔ سیاست میں اٹھارویں صدی کے آغاز سے اب تک احتجاج اور مزاحمت پر قوت مرکوز ہے۔ یہ بھی بہت کمزور پہلوہے۔ حقیقت یہ ہے کہ مسلم معاشروں میں اجتماعی عمل ہی کا فقدان ہے ۔اگر اورنگزیب کے انتقال کو خط تفریق مان لیا جائے تو حقیقت ہے کہ پچھلے تین سو برس میں عملی سیاست سے متعلق لوگوں کے پاس عموماً کوئی نظریہ اور اصول اور مقصد نہیں ہے اس لئے ان میں اتفاقاً ہی کسی شخص نے کوئی امتیازی کام کیا ہے، اور کچھ کیا بھی ہے تواس کے اثرات محدود رہے ہیں۔
** کیا مسلمان وقت کے کسی جامد لمحہ پر ٹھہرے ہوئے ہیں یا ایک ایسی سفر کی حالت میں ہیں جس کی منزل دور ہے؟
نہیں۔مسلمان کسی جامد لمحہ پر رکے ہوئے نہیں ہیں۔وہ بحیثیت مجموعی متحرک اورحالت سفر میں ہیں۔
جب ہم ریل میں سفر کرتے ہیں تو بظاہر اپنے ڈبہ میں بیٹھے ہیں اور غیر متحرک ہیں، مگراجتماعی طور پرایک متعین منزل کی سمت رواں دواں ہیں۔مسلمانوں کو بھی وقت ایک منزل کی طرف لئے بہت تیزی سے گزر رہا ہے۔مسلمان ساری دنیا میں اسی کیفیت میں ہیں۔منزل پر چشم زدن میں نہیں پہنچا جاتا۔ وقت لگتا ہے۔ ہاں یہ ضرور ہے کہ مسلمانوں کی بہت سی ٹرینوں کے ڈرائیور گاڑی چلانا نہیں جانتے اس لئے یا تو ان کی گاڑیاں ہچکولے کھا رہی ہیں یا غلط پٹری پر چلی گئیں جو منزل مقصود پر نہیں پہنچائے گی۔یہ عملی سیاست سے وابستہ لوگ ہیں جن کے سامنے کوئی مقصد ہے نہ منزل، سوائے اپنی ذات کے ۔البتہ اہل علم اور اہل فکر مسلسل منزل کی سمت اشارے کررہے ہیں۔کچھ لوگ ان اشاروں کو پاجاتے ہیں تو عارضی طور پر سمت قبلہ درست ہو جاتی ہے، مگر پھر کوئی منچلا اس سارے کئے کرائے پر پانی پھیر دیتا ہے۔ سیاست دانوں اور حکمرانوں کی اکثریت سیاسی عمل میں تسلسل اور تواتر نیز خدمت کے اصول سے غافل ہے۔ یہی اصل مسئلہ ہے۔
اس مسئلہ پر ایک اہم عمرانی نکتہ ہماری نگاہوں میں عموماً نہیں رہتا۔مسلمانوں کی ترقی سے یہ سمجھنا غلط ہے کہ ساری دنیا کے تمام مسلمان ایک ہی وقت میں ایک ہی معیار کی ترقی کے نتیجہ پر پہنچیں گے۔ نہیں۔ عمرانیات اور تاریخ دونوں اس کی نفی کرتی ہیں۔
عروج و زوال کے سلسلہ میں اللہ تعالیٰ کی ایک حکمت اور انصاف کا ایک نظام ہے۔یہ نظام ساری انسانیت کا احاطہ کرتا ہے۔اللہ نے انسان کو مکرم بنایا ہے اور کفار و مشرکین تک اس کرم و شرف سے خالی نہیں ہیں اگرچہ انہیں اس کا عرفان نہیں ہے۔ چنانچہ اسی شرف کی بنا پر انسانوں کی ہر نوع کو تاریخ میں نمایاں کام کردکھانے کے موقعے دئے جاتے رہے ہیں اور دئے جاتے رہیں گے۔یہی کلیہ مسلمانوں پر بھی منطبق ہوتا ہے۔مسلمان عرب بھی ہیں، ترک بھی، ہندی بھی، ملایاوی بھی، افریقی بھی ،قفقازی بھی،اور عہد جدید میں یورپی بھی، شمالی امریکی بھی اور آسٹریلیاوی بھی۔یہ دنیا کھیل ہے تو ہر کھلاڑی کو میدان میں اپنے جوہر دکھانے کا موقعہ ملنا ضروری ہے۔ تاریخ میں عرب، ترک اور ایرانی مسلمان اپنے جوہر دکھا چکے ہیں۔تو یہ اندازہ کرنا مشکل نہیں کہ انصاف کرنے والے اللہ کی جانب سے نئے دور میں نئے علاقوں کے مسلمانوں کو موقعہ ملے گا۔
یہ کونسے مسلمان ہوں گے؟
میرے تجزیہ کی سوئی چارسمتوں میں اشارہ کرتی ہے۔
ہندستان۔
شمالی امریکہ۔
وسطی یورپ۔
وسطی ایشیا۔
مگر ان میں پہلے تین خطوں کو کسی قائدانہ کردار کے لئے ابھی کچھ اور انتظار کرنا ہے۔ اس کے کچھ اخلاقی اور کچھ عمرانی اسباب ہیں۔ امریکہ فی الحال عالمی فضا میں قائدانہ کردار ادا کررہا ہے۔ اس سے پہلے،تقریبا 70 سال پہلے تک، یہ کردار مغربی یورپ ادا کررہا تھا۔اسلامی عمرانی اصول کے تحت اب ان قوموں کے لئے مزید کوئی موقعہ نہیں ہے۔ مگر میرا تجزیہ عالمی کھلاڑیوں کے بارے میں نہیں ہے۔یہ محدود ہے مسلمانوں تک۔ان خطوں کے مسلمانوں نے ابھی کوئی تاریخی کردار ادا نہیں کیا۔اس کردارکی کچھ سخت شرائط ہیں۔ پہلے تین خطوں میں بڑا اخلاقی، تہذیبی اور انسانی فساد پایا جاتا ہے۔ جہاں فساد زیادہ ہوگا وہاں انقلاب کا امکان اتنا ہی بڑھ جائے گا۔ مگر پھر اس انقلاب کے لئے بڑی ابتکاری تخلیقی فکری اور عملی قیادت لازمی ہوگی۔قیادت بجائے خود ایک مسئلہ ہے۔ یہ ارادتاً بھی پیدا کی جاتی ہے (جیسا کہ ہندستان میں شیخ الہند نے کیا تھا)، اور من جانب اللہ بھی ابھر آتی ہے جیسا کہ ہندستان میں چندرگپت موریہ اوربابر، اناطولیہ میں عثمان خان غازی، امریکہ میں جارج واشنگٹن،تھامس جیفرسن کی شخصیتوں میں دیکھا گیا تھا۔ البتہ یہ اتفاقات کی بات ہے۔ بنیادی کام یہی ہے۔ ان تین خطوں میں اقدام کا انحصار قیادت کی موجودگی پر ہے۔ تینوں علاقوں میں سردست مسلم قیادت نہیں پائی جاتی۔البتہ ضرورت اس قیادت کی تربیت اور اس کو ترتیب دینے کی ہے۔یہ کام کسی مدرسہ میں ہوسکتا ہے، اور وہیں ہوگا۔یہ معاملہ تفصیلی تجزیہ کا مطالبہ کرتا ہے۔
**کیا کام کرنے کے لئے سرمایہ یا کسی دولت مندکی اعانت لازمی ہے؟
جی ہاں۔ سرمایہ قیادت کی ایک اہم ضرورت ہوتا ہے۔مگر یہ وہ سرمایہ نہیں ہے جوعیش پسند مسلم سیاست داں اور حکمراں غیر ملکی بنکوں میں ذخیرہ کرتے ہیں، یا تیل اور اسلحہ کے کاروبار میں بطور رشوت لیتے ہیں۔وہ سرمایہ نہیں ،جہنم کا انگارہ ہوتا ہے۔ان دولت اندوز افراد میں قائدانہ فراست بھی نہیں ہوتی۔ یہ لوگ زوال اور ادبار، پستی اور انحطاط کے کارندے ہوتے ہیں اور قوموں پر بطور سزا مسلط کئے جاتے ہیں۔ سرمایہ اسی وقت مفید ہوتا ہے جب قائدانہ فراست اوراخلاص انقلابی افکار میں لفظوں کی صورت اختیار کرتا ہے۔سرمایہ رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کی مادی قیادت کی ضرورت بھی تھا۔ حضرت ابوبکر الصدیق رضی اللہ عنہ اسی ضرورت کی تکمیل فرمارہے تھے کہ ایک سے زائد بار اپنی تمام دولت حضور ؐ کے قدموں میں لاڈالی تھی۔ اور بھی کئی حضراتؓ تھے، جن میں ام المومنین خدیجۃ الکبریٰؓ کا نام سر فہرست ہے۔معاشرہ ترقی کرنا چاہتا ہے تو وہ افراد بھی پیدا کرنے پڑتے ہیں جو تکمیل مقاصد کی صدیقی سنت پر عمل کرنے کی صلاحیت رکھتے ہوں۔
**کیا واقعی دنیا میں کسی ایسی قوم نے کوئی ترقی کی ہے جس کا خود پر اور اپنی صلاحیت اور استعداد پراعتماد ہی نہ ہو؟
اس سوال کا جوب نفی میں ہے۔ یہی اس عہد کا بڑا مسئلہ ہے۔ وہ قومیں کبھی ترقی نہیں کرسکیں جن کا خود پر اعتماد نہیں ہوتا۔ اس کی تفصیل ستمبر 2009 میں نکتگو/0037 میں لکھ دی تھی۔ وہاں دوبارہ پڑھی جاسکتی ہے۔
یہ جواب ابھی نامکمل ہے۔اس مضمون کا ایک پہلو اور ہے۔
نکتگو کے آئندہ شمارہ میں ان نو دس نکات پر بات کروں گا جو عمرانی ترتیب میں ترقی اور عروج کے مرحلے ہیں۔

بشکریہ: کالم "نکتگو" (سیریز: 042) - امواج
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Tariq Ghazi
Ottawa, Canada
tariqghazi04[@]yahoo.ca


Wednesday, June 17, 2020

प्रोफेसर "डाक्टर ज़ियाउर्रहमान आज़मी" - गंगा से ज़मज़म Dr. Zia ur-Rahman Azmi

आज़म गढ़ का भारतीय (बांकेलाल) कैसे मदीना यूनीवर्सिटी और मस्जिद नबवी का प्रोफेसर बन गया
-----"डाक्टर लुबना ज़हीर"----
اعظم گڑھ کا ہندو کیسے مدینہ یونیورسٹی اور مسجد نبوی کا معلم بن گیا..ڈاکٹر لبنیٰ ظہیر
https://www.baseeratonline.com/109641

Journey from Hinduism to Islam to professor of Hadith in Madinah .....By: Zakir Azmi
https://saudigazette.com.sa/article/174057

یاسر قاضی کے ساتھ انٹرویو
https://www.youtube.com/watch?v=y2ZI_ykyv8o
यासिर क़ाज़ी के साथ इंटरव्यू yotube
بلریا گنج کے بانکے رام سے مدینہ منورہ کے پروفیسر ضیاء الرحمن اعظمی کے ساتھ ایک خاص گفتگو
=====ازقلم۔ ذاکر اعظمی ندوی ، ریاض=====
क़ुरआन मजीद की इनसाइक्लोपीडिया

https://quranwahadith.com/product/quran-majeed-ki-encyclopedia/

क़ुरआन की शीतल छाया 
https://archive.org/details/QuranKiSheetalChaya

डाक्टर ज़ियाउर्रहमान आज़मी ,लेखक:  हिंदी पुस्तक "क़ुरआन की शीतल छाया में" और "क़ुरआन मजीद की एनसाइक्लोपीडिया" के बारे में जानिये।

ये 2005 का ज़माना था। रोज़नामा नवा-ए-वक़्त में मारूफ़ कालम निगार इर्फ़ान सिद्दीक़ी साहिब का एक कालम बउनवान गंगा से ज़मज़म तक। शाय हुआ। कालम में उन्होंने भारत के एक कट्टर हिंदू नौजवान का तज़किरा किया था। इस्लामी तालीमात से मुतास्सिर हो कर जिसने इस्लाम क़बूल किया। नौजवान पर इस क़दर एहसान इलाही हुआ कि वो दिल-ओ-जान से इस्लामी तालीमात की जानिब राग़िब हो गया। मदीना मुनव्वरा और मिस्र की जमिआत से तालीम हासिल करने के बाद शोबा तदरीस से मुंसलिक हुआ।

सऊदी अरब की मदीना यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर और डीन के ओहदे तक जा पहुंचा। रिटायरमैंट के बाद तहक़ीक़ात इस्लामी में जुट गया। अरबी और हिन्दी में दर्जनों किताबें लिख डालीं। इन कुतुब का तर्जुमा दुनिया के मुख़्तलिफ़ ममालिक के दीनी मदारिस के निसाब का हिस्सा है। इस क़दर बा सआदत ठहरा कि मस्जिद नबवीﷺ मैं हदीस का दरस देने लगा।

कुफ़्र के अंधेरों से निकल कर इस्लाम के रोशन रास्तों पर गामज़न होने वाले प्रोफेसर डाक्टर ज़िया अल रहमान आज़मी के सफ़र सआदत के बारे में लिखा गया ये कालम मेरी यादाशत से कभी गायब नहीं हो सका
इस मर्तबा मक्का उमरा पर जाते वक़्त मैंने हज-ओ-उमरा की दुआओं और इस्लामी तारीख़ से मुताल्लिक़ कुछ किताबें अपने सामान में रख ली थीं। एक किताब जो आख़िरी वक़्त पर मैंने अपने हमराह ली वो इरफान सिद्दीक़ी साहिब की मक्का मदीना थी। मदीना मुनव्वरा में आए दूसरा दिन था। मैं होटल के कमरे में मक्का मदीना की वर्क़ गरदानी में मसरूफ़ थी। अचानक पंद्रह बरस क़बल लिखा गया कालम। "गंगा से ज़मज़म तक" आँखों के सामने आ गया। एक-बार फिर मुझे डाक्टर ज़िया अल रहमान आज़मी और उनकी ज़िंदगी का सफ़र याद आ गया।

अम्मी को में उनके क़बूल इस्लाम का क़िस्सा बताने लगी। बा आवाज़ बुलंद कालम भी पढ़ कर सुनाया। कालम पढ़ने के बाद उनके मुताल्लिक़ सोचने लगी। उंगलीयों पर गिन कर हिसाब लगाया कि अब उनकी उम्र कम-ओ-बेश77 बरस होगी। 

ख़्याल आया न जाने अब उनकी सेहत इलमी और तहक़ीक़ी सरगर्मीयों की मुतहम्मिल होगी भी या नहीं। दिल में ख़ाहिश उभरी कि काश मैं उनसे मुलाक़ात कर सिक्कों। एक इलमी-ओ-अदबी शख़्सियत से राबिता किया और ये ख़ाहिश गोश गुज़ार की। 

उनका जवाब सुनकर मुझे बेहद मायूसी हुई। कहने लगे कि आज़मी साहिब उमूमी तौर पर मेल मुलाक़ातों से इंतिहाई गुरेज़ां रहते हैं। ख़वातीन से तो ग़ालिबन बिलकुल नहीं मिलते-जुलते। इंतिहाई मायूसी के आलम में ये गुफ़्तगु इख़तताम पज़ीर हुई। 

लेकिन अगले दिन उन्होंने ख़ुशख़बरी सुनाई कि आज़मी साहिब से बात हो गई है। हिदायत दी कि मैं फ़ोन पर उनसे राबिता कर लूं।

ज़िंदगी में मुझे बहुत सी नामवर दीनी, इलमी, अदबी और दीगर शख़्सियात से मुलाक़ात और गुफ़्तगु के मवाक़े मिले हैं। ख़ुसूसी तौर पर भारी भरकम सयासी शख़्सियात। प्रोटोकोल जिनके आगे पीछे बंधा रहता है। लोग जिनकी ख़ुशनुदी ख़ातिर में बिछे जाते हैं। एक लम्हे के लिए में किसी शख़्सियत से मरऊब हुई, ना किसी के ओहदे, रुतबे और मर्तबे का रोब-ओ-दबदबा मुझ पर कभी तारी हुआ। लेकिन डाक्टर ज़िया अल रहमान आज़मी को टेलीफ़ोन काल मिलाते वक़्त मुझ पर घबराहट तारी थी

दिल की धड़कनें मुंतशिर थीं। उनसे बात करते मेरी ज़बान कुछ लड़खड़ाई और आवाज़ कपकपा गई। अर्ज़ किया कि बरसों पहले एक कालम के तवस्सुत से आपसे तआरुफ़ हुआ था। बरसों से मैं आपके बारे में सोचा करती हूँ। बरसों से ख़ाहिश है कि आपसे शरफ़ मुलाक़ात हासिल हो सके। निहायत आजिज़ी से कहने लगे। मैं कोई ऐसी बड़ी शख़्सियत नहीं हूँ। जब चाहें घर चली आएं।

अगले दिन बाद अज़ नमाज़ इशा मुलाक़ात का वक़्त तै हुआ। निहायत फ़राख़दिली से कहने लगे आपको यक़ीनन रास्तों से आगाही नहीं होगी, कल मेरा ड्राईवर आपको लेने पहुंच जाएगा। शुक्रिया के साथ अर्ज़ किया कि मैं ख़ुद वक़्त मुक़र्ररा पर हाज़िर हो जाऊँगी। इस के बाद में बे-ताबी से अगले दिन का इंतिज़ार करने लगी। इस से क़बल कि में इस मुलाक़ात का अहवाल लिखूँ, क़ारईन के लिए प्रोफेसर डाक्टर ज़िया अल रहमान आज़मी के क़बूल इस्लाम की मुख़्तसर दास्तान बयान करती हूँ।

1943 मैं आज़म गढ़ (हिन्दोस्तान के एक हिंदू घराने में एक बच्चे ने जन्म लिया। वालदैन ने इस का नाम बांके राम रखा। बच्चे का वालिद एक ख़ुशहाल कारोबारी शख़्स था। आज़मगढ़ से कलकत्ता तक उस का कारोबार फैला हुआ था। बच्चा आसाइशों से भरपूर ज़िंदगी गुज़ारते हुए जवान हुआ। वो शिबली कॉलेज आज़म गढ़ में ज़ेर-ए-ताअलीम था। किताबों के मुताले से उसे फ़ित्री रग़बत थी। एक दिन मौलाना मौदूदी की किताब "दीन हक़" का हिन्दी अनुवाद
(सत्य धर्म) उस के हाथ लगा। निहायत ज़ौक़-ओ-शौक़ से इस किताब का मुताला किया। बार-बार पढ़ने के बाद उसे अपने अंदर कुछ तबदीली और इज़तिराब महसूस हुआ। इस के बाद उसे ख़्वाजा हसन निज़ामी का हिन्दी अनुवाद क़ुरआन पढ़ने का मौक़ा मिला।

नौजवान का ताल्लुक़ एक ब्रह्मण हिंदू घराने से था। कट्टर हिंदू माहौल में इस की तर्बीयत हुई थी। हिंदू मज़हब से उसे ख़ास लगाओ था। बाक़ी मज़ाहिब को वो बरसर हक़ नहीं समझता था। इस्लाम का मुताला शुरू किया तो क़ुरआन की ये आयत उस की निगाह से गुज़री। तर्जुमा:
"अल्लाह के नज़दीक पसंदीदा दीन इस्लाम है। "

उसने एक-बार फिर हिंदू मज़हब को समझने की कोशिश की।" अपने कॉलेज के लैक्चरार जो गीता और वेदों के एक बड़े आलिम थे, से रुजू किया। उनकी बातों से मगर उस का दिल मुतमइन नहीं हो सका। शिबली कॉलेज के एक उस्ताद हफ़्ता-वार क़ुरआन का दरस दिया करते थे। नौजवान की जुस्तजू को देखते हुए उस्ताद ने उसे हलक़ा दरस में शामिल होने की ख़ुसूसी इजाज़त दे दी

सय्यद मौदूदी की किताबों के मुसलसल मुताले और दरस क़ुरआन में बाक़ायदगी से शमूलीयत ने नौजवान के दिल को क़बूल इस्लाम के लिए क़ाइल और माइल कर दिया। परेशानी मगर ये थी कि मुस्लमान होने के बाद हिंदू ख़ानदान के साथ किस तरह गुज़ारा हो सकेगा। अपनी बहनों के मुस्तक़बिल के मुताल्लिक़ भी वो फ़िक्रमंद था। यही सोचें इस्लाम क़बूल करने की राह में हाइल थीं। एक दिन दरस क़ुरआन की क्लास में उस्ताद ने सूरत अन्कबूत की ये आयत पढ़ी। तर्जुमा:
"जिन लोगों ने अल्लाह को छोड़कर दूसरों को अपना कारसाज़ बना रखा है, उनकी मिसाल मकड़ी की सी है, जो घर बनाती है और सबसे कमज़ोर घर मकड़ी का होता है। काश लोग इस हक़ीक़त से बाख़बर होते"

इस आयत और इस की तशरीह ने बांके राम को झंजोड़ कर रख दिया। उसने तमाम सहारों को छोड़कर सिर्फ़ अल्लाह का सहारा पकड़ने का फ़ैसला किया और फ़ौरी तौर पर इस्लाम क़बूल कर लिया। इस के बाद उस का बेशतर वक़्त सय्यद मौदूदी की किताबें पढ़ने में गुज़रता। नमाज़ के वक़्त ख़ामोशी से घर से निकल जाता और किसी अलग-थलग जगह पर अदायगी करता। चंद माह बाद वालिद को ख़बर हुई तो उन्होंने समझा कि लड़के पर जिन भूत का साया हो गया है
पंडितों पुरोहितों से ईलाज करवाने लगे। जो चीज़ वो पंडितों पुरोहितों से ला कर देते ये बिसमिल्लाह पढ़ कर खा लेता। ईलाज मुआलिजे में नाकामी के बाद घर वालों ने उसे हिंदू मज़हब की एहमीयत समझाने और दीन इस्लाम से मुतनफ़्फ़िर करने का एहतिमाम किया। जब कोई फ़ायदा ना हुआ तो रोने धोने और मिन्नत समाजत का सिलसिला शुरू हुआ। इस से भी बात ना बन सकी तो घर वालों ने भूक हड़ताल का हर्बा आज़माया। वालदैन और भाई बहन उस के सामने भूक से निढाल पड़े सिसकते रहते। इस के बाद घर वालों ने मार पीट और तशद्दुद का रास्ता इख़तियार किया। अल्लाह ने मगर हर मौक़ा पर उसे दीन हक़ पर इस्तिक़ामत बख़शी।

उसने तमाम रुकावटों और मुश्किलात को नज़रअंदाज किया। हिन्दोस्तान के मुख़्तलिफ़ दीनी मदारिस में तालीम हासिल की। इस के बाद मदीना मुनव्वरा की जामिआ इस्लामीया (मदीना यूनीवर्सिटी) मैं दाख़िल हो गया। जामाता उल-मलिक अबदुलअज़ीज़ जामिआ उम अलकरी। मक्का मुअज़्ज़मा से एम.ए. किया। मिस्र की जामिआ अज़हर क़ाहिरा से पी. ऐच. डी. की डिग्री हासिल की। आज़म गढ़ के कट्टर हिंदू घराने में आँख खोलने वाला ये बच्चा दुनियाए इस्लाम का नामवर मुफ़क्किर, मुहक़्क़िक़, मुसन्निफ़ और मुबल्लिग बन गया।
उन्हें प्रोफेसर डाक्टर ज़िया उर रहमान आज़मी के नाम से पहचाना जाता है। उनकी किताबें हिन्दी, अरबी, अंग्रेज़ी, उर्दू, मिलाई, तुर्की और दीगर ज़बानों में छप चुकी हैं।
क़ुरआन की शीतल छाया
https://archive.org/details/QuranKiSheetalChaya

इंतिहाई सआदत है कि डाक्टर साहिब ने सही अहादीस को मुरत्तिब करने के एक इंतिहाई भारी भरकम तहक़ीक़ी काम का बीड़ा उठाया और बरसों की मेहनत के बाद उसे पाया-ए-तकमील तक पहुंचाया। ऐसा काम जो बड़ी बड़ी जमात और तहक़ीक़ी इदारे नहीं कर सके, एक शख़्स ने तन-ए-तन्हा कर डाला। गुज़श्ता कई बरस से वो मस्जिद नबवी में हदीस का दरस देते हैं।

अल्लाह रब्बुल इज़त ने इस रोय ज़मीन पर बेशुमार नेअमतें नाज़िल फ़रमाई हैं। इन तमाम में सबसे अज़ीम और अनमोल ईमान की नेअमत है। सूरत हजरात में फ़रमान इलाही है कि दरअसल अल्लाह का तुम पर एहसान है कि उसने तुम्हें ईमान की हिदायत की। सूरत इनाम में फ़रमान रब्बानी है। तर्जुमा
"जिस शख़्स को अल्लाह ताला रास्ते पर डालना चाहे, उस के सीने को इस्लाम के लिए कुशादा कर देता है।"

इस शाम में तय-शुदा वक़्त के मुताबिक़ प्रोफेसर डाक्टर ज़िया उर रहमान आज़मी से मुलाक़ात के लिए रवाना हुई, तो क़ुरआन की ये आयात मुझे याद आ गईं। ख़्याल आया कि अल्लाह के इनाम और एहसान की इंतिहा-ए-है कि उसने हिंदू घराने में जन्म लेने वाले को सिराते मुस्तक़ीम के लिए मुंतख़ब किया। उसे बांके राम से प्रोफेसर डाक्टर ज़िया उर रहमान आज़मी बना डाला। मदीना यूनीवर्सिटी और मस्जिद नबवीﷺ मैं हदीस के मुअल्लिम और मुबल्लिग की मस्नद पर ला बिठाया।

डाक्टर साहिब का घर मस्जिद नबवी से चंद मिनट की मुसाफ़त पर वाक़्य है। घर पहुंची तो आज़मी साहिब इस्तिक़बाल के लिए खड़े थे। निहायत शफ़क़त से मिले। कहने लगे आप पहले घर वालों से मिल लीजीए। चाय वग़ैरा पीजिए। इस के बाद नशिस्त होती है। मेहमान ख़ाना drawing room) मैं दाख़िल हुई तो उनकी बेगम मुंतज़िर थीं। मुहब्बत और तपाक से मिलीं। चंद मिनट बाद उनकी दोनों बहूएं चाय और दीगर लवाज़मात थामे चली आएं। कुछ देर बाद उनकी बेटी भी आ गई।

इस के बाद घर में मौजूद तमाम छोटे बच्चे भी। उनकी बेगम ने जामिआ कराची से एम.ए. कर रखा है। कहने लगीं पी. ऐच. डी. में दाख़िला लेने का इरादा था। लेकिन शादी हो गई।
तजस्सुस से सवाल किया कि डाक्टर साहिब हिन्दुस्तानी थे। जबकि आप पाकिस्तानी। शादी कैसे हो गई। कहने लगीं कि मेरे मामूं मदीना यूनीवर्सिटी से मुंसलिक थे। आज़मी साहिब से उनकी मेल-मुलाक़ात रहती थी। बुताने लगीं कि आज़मी साहिब इस क़दर मसरूफ़ रहा करते थे कि मेरे पढ़ने लिखने की गुंजाइश नहीं निकलती थी।

अलबत्ता चंद साल क़बल मैंने हिफ़्ज़ क़ुरआन की सआदत हासिल की। तीनों बच्चे इशाअत दीन की तरफ़ नहीं आए। उनका ख़्याल था कि जितना काम उनके वालिद ने किया है। इस क़दर वो कभी नहीं कर सकेंगे। यही सोच कर वो मुख़्तलिफ़ शोबों में चले गए। फिर कहने लगीं कि आप किसी भी शोबा में हूँ, अल्लाह के बंदों की ख़िदमत कर के अपनी आख़िरत सँवार सकते हैं।

आध पोन घंटा बाद आज़मी साहिब का बुलावा आ गया। उनके लाइब्रेरी नुमा दफ़्तर का रुख किया। इबतिदाई तआरुफ़ के बाद कहने लगे कि मीडीया और दीगर लोग इंटरव्यू वग़ैरा के लिए राबिता करते हैं। मैं अपनी ज़ाती तशहीर से घबराता हूँ। दरख़ास्त करता हूँ कि मेरी ज़ात के बजाय, मेरे तहक़ीक़ी काम की तशहीर की जाये। ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस से आगाह और मुस्तफ़ीद हो सकें। फिर अपनी किताबें दिखाने और तहक़ीक़ी काम की तफ़सीलात बताने लगे। उनकी तहक़ीक़ और दर्जनों तसानीफ़ की मुकम्मल तफ़सील कई सफ़हात की मुतक़ाज़ी है।

लेकिन एक तसनीफ़ (बल्कि अज़ीम कारनामा का मुख़्तसर तज़किरा नागुज़ीर है। डाक्टर ज़िया उर रहमान आज़मी ने बीस बरस की मेहनत और जाँ-फ़िशानी के बाद
”الجامع الکامل فی الحدیث ال صحیح الشامل۔“
"अल-जामे अल-कामिल फ़ी अल-हदीस अल-सही अल-शामिल" की सूरत एक अज़ीमुश्शान इलमी और तहक़ीक़ी मन्सूबा पाया-ए-तकमील तक पहुंचाया है।

इस्लाम की चौदह सौ साला तारीख़ में ये पहली किताब है जिसमें रसूल अल्लाहﷺ की तमाम सही हदीसों को मुख़्तलिफ़ कुतुब अहादीस से जमा किया और एक किताब में यकजा कर दिया गया है। अल-जामे अल-कामिल सोला हज़ार सही अहादीस पर मुश्तमिल है। इस के 6 हज़ार अबवाब हैं। इस का पहला ऐडीशन 12 जबकि दूसरा ऐडीशन इज़ाफ़ात के साथ 19 ज़ख़ीम जिल्दों पर मुश्तमिल है।


आज़मी साहिब ने बताया कि कमोबेश 25 बरस में बतौर प्रोफेसर दुनिया के मुख़्तलिफ़ ममालिक के दौरे करता रहा। अक्सर ये सवाल उठता कि क़ुरआन तो एक किताबी शक्ल में मौजूद है। मगर हदीस की कोई एक किताब बताएं, जिसमें तमाम अहादीस यकजा हूँ। जिससे इस्तिफ़ादा किया जा सके।
सदीयों से उलमाए किराम और मुबल्लग़ीन से ग़ैर मुस्लिम और मुस्तश्रिक़ीन ये सवाल किया करते। मगर किसी के पास उस का तश्फ़ी बख़श जवाब ना था। मुझे भी ये सवालात दरपेश रहते। लिहाज़ा मैंने हदीस की एक किताब मुरत्तिब करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने बताया कि दूसरी बार छपने में 99 फ़ीसद सही अहादीस आ गई हैं। सो फ़ीसद कहना इस लिए दरुस्त नहीं कि सद फ़ीसद सही सिर्फ़ अल्लाह की किताब है।
इंतिहाई हैरत से इस्तिफ़सार किया कि इस क़दर दकी़क़ और पेचीदा काम आपने तन-ए-तन्हा कैसे पाया-ए-तकमील तक पहुंचाया। कहने लगे मेरी ये बात गिरह से बांध लीजीए कि किसी काम की लगन और जुस्तजू हो तो वो ना-मुम्किन नहीं रहता।

सवाल किया कि इस क़दर भारी भरकम तहक़ीक़ के लिए आप दिन रात काम में जुते रहते होंगे। कहने लगे। अठारह अठारह घंटे काम किया करता था। सुब्ह-सवेरे काम का आग़ाज़ करता और रात दो अढ़ाई बजे तक मसरूफ़ रहता। बताने लगे कि ये (वसीअ-ओ-अरीज़ घर जो आप देख रही हैं
ये सारा घर एक लाइब्रेरी की मानिंद था। हर जानिब किताबें ही किताबें थीं। यूं समझें कि मैंने एक लाइब्रेरी में अपनी चारपाई डाल रखी थी। जब तहक़ीक़ी काम मुकम्मल हो गया तो मैंने तमाम किताबें अतीया donate) कर दीं।
ख़ानदान का तआवुन मयस्सर ना होता तो मैं ये काम नहीं कर सकता था। कम्पयूटर की जानिब इशारा कर के बताने लगे कि मैं उसे इस्तिमाल नहीं कर सकता। अशरों से मामूल है कि अपने हाथ से लिखता हूँ। कोई ना कोई शागिर्द मेरे साथ मुंसलिक रहता है। वो कम्पोज़िंग करता है।

डाक्टर आज़मी साहिब हिन्दी और अरबी ज़बान में बीसियों किताबें लिख चुके हैं। इन तसानीफ़ के तराजुम दर्जनों ज़बानों में छुपते हैं। सऊदी अरब और दीगर ममालिक की जमिआत और दीनी मदारिस में उनकी कुतुब पढ़ाई जाती हैं।

कहने लगे कि निहायत तकलीफ़-दह बात है कि मुस्लमानों ने हिन्दोस्तान में कम-ओ-बेश आठ सदीयों तक हुक्मरानी की। बादशाहों ने आलीशान इमारात तामीर करवाईं। ताहम ग़लती ये हुई कि उन्होंने अपने हमवतन ग़ैर मुस्लिमीन को इस्लाम की तरफ़ राग़िब करने के लिए इशाअत देन का काम नहीं किया।
हिंदूओं की किताबों का फ़ारसी और संस्कृत में तर्जुमा करवाया। मगर क़ुरआन-ओ-हदीस का हिन्दी तर्जुमा नहीं करवाया। अगर मुस्लमान हुकमरान ये काम करते तो यक़ीन जानें आज सारा भारत मुस्लमान हो चुका होता। (इन दिनों भारत में मुस्लमानों को शहरीयत से महरूम करने की मुहिम उरूज पर थी)।

कहने लगे कि अगर बर्र-ए-सग़ीर के मुस्लमान हुकमरानों ने इशाअत देन का फ़रीज़ा सरअंजाम दिया होता, तो आज ये नौबत ना आती। भारत में 80 करोड़ हिंदू बस्ते हैं। मिशन मेरा ये है कि हर हिंदू घराने में क़ुरआन और हदीस की कुतुब पहुंचे। यही सोच कर में हिन्दी ज़बान में लिखता हूँ।
इस मक़सद के तहत डाक्टर साहिब ने हिन्दी ज़बान में क़ुरआन-ए-मजीद इन्साईक्लो पीडीया की तसनीफ़ फ़रमाई। अरसा दस बरस में ये तहक़ीक़ी काम मुकम्मल हुआ। ये किताब क़ुरान-ए-पाक के तक़रीबन छः सौ मौज़ूआत पर मुश्तमिल है। तारीख़ हिंद में ये अपनी नौईयत की पहली किताब है जो इस मौज़ू पर लिखी गई। ये किताब भारत में काफ़ी मक़बूल है। अब तक उस के आठ ऐडीशन शाय हो चुके हैं। कुछ बरस क़बल उस का अंग्रेज़ी और उर्दू तर्जुमा भी पाया-ए-तकमील को पहुंचा।

सवाल किया कि आपकी किताबों से हिंदू और दीगर ग़ैर मुस्लिम मुतास्सिर होते हैं? कहने लगे जी हाँ इत्तिलाआत आती रहती हैं कि मेरी फ़ुलां फ़ुलां किताब पढ़ने के बाद फ़ुलां फ़ुलां ग़ैर मुस्लिम हल्क़ा-ब-गोश इस्लाम हो गए।
कम-ओ-बेश गुज़श्ता बीस बरस से उन्होंने कोई सफ़र नहीं किया। कहने लगे कि लाइब्रेरी से दूर कहीं आने जाने को जी नहीं चाहता। किताबों से दूर होता हूँ तो घबराहट होने लगती है। मालूम किया कि आजकल क्या मसरुफ़ियात हैं। बुताने लगे कि कुछ तहक़ीक़ी काम जारी हैं। गुज़श्ता आठ दस बरस से मस्जिद नबवीﷺ मैं हदीस का दरस देता हूँ। पहले बुख़ारी शरीफ़ और सही मुस्लिम के दरूस दिए। आजकल सुन्न अबु दाउद का दरस जारी है। बताने लगे कि मैं लैक्चर कुछ इस तरह तैयार करता हूँ कि शरह तैयार हो जाये। ताकि लैक्चरज़ मुकम्मल होने के बाद किताबी शक्ल में छिप सके।

मुख़्तसर ये कि उन्होंने दीन की नशर-ओ-इशाअत को अपना ओढ़ना बिछौना बना रखा है। उनकी हर तालीमी, इलमी और तहक़ीक़ी सरगर्मी के पीछे यही जज़बा-ओ-जुनून कारफ़रमा है।
आख़िर में मुझे अपनी कुछ किताबों का उर्दू तर्जुमा इनायत किया। इन पर मेरा नाम और अरबी ज़बान में दुआइया कलिमात तहरीर फ़रमाए। कम-ओ-बेश अढ़ाई तीन घंटों बाद मैंने वापसी की राह ली। आज़मी साहिब बरामदा porch) तक तशरीफ़ लाए। गाड़ी घर से बाहर निकलने तक वहीं खड़े रहे। होटल वापिस लोटते वक़्त मुझे उन पर निहायत रशक आया। ख़ुद पर इंतिहाई नदामत हुई। ख़्याल आया कि एक में हूँ, जिसे बरसों से दुनिया जहां के बेवुक़त कामों से फ़ुर्सत नहीं। एक ये हैं जो अशरों से हक़ीक़ी फ़लाह और कामयाबी समेटने में मसरूफ़ हैं। दुआ की कि काश मुझे भी अल्लाह का पैग़ाम समझने, इस पर अमल करने और इस की नशर-ओ-इशाअत की तौफ़ीक़ नसीब हो जाये। आमीन

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Professor Dhiya ur-Rahman Azmi
Dr. Zia ur-Rahman Azmi

 گنج کے بانکے رام سے مدینہ منورہ کے پروفیسر ضیاء الرحمن اعظمی تک
اسلام کی صداقت کے معترف عصر حاضر میں اعظم گڈھ کے در نایاب کے ساتھ ایک خاص گفتگو=================================
Quran Achya Sheetal Chhayet
कुरआनच्या' शीतल छायेत
https://archive.org/details/quranachyasheetalchhayet

پروفیسر دکتور ضیاء الرحمن اعظمی کی علمی خدمات کا مختصر تعارف
داکٹر عبد الحلیم بسم اللہ
(مدرس جامعہ سلفیہ بنارس)
جاری کردہ ؛
کامران عبد العزیز قاضی
متعلم جامعہ اسلامیہ، مدینہ منورہ



URDU: Ittiba-e-Sunnat (Aqaid-o-Ahkam Mein) by Dr Muhammad Ziaur Rahman Al Azmi




Thursday, June 11, 2020

मोटर साईकलिस्ट और ट्रैवल ब्लॉगर रोज़ी गैब्रियल rosie Gabrielle ने इस्लाम क़बूल कर लिया

कैनेडा की मारूफ़ मोटर साईकलिस्ट और ट्रैवल ब्लॉगर रोज़ी गैब्रियल rosie Gabrielle ने इस्लाम क़बूल कर लिया
http://www.0333pro.com/روزی-گیبریئل-کے-اسلام-قبول-کرنے-کی-وجہ-؟/
समाजी राबते की वेबसाइट इंस्टाग्राम पर रोज़ी गैब्रियल ने अपने तसदीक़ शूदा एकाऊंट से हाथ में क़ुरआन-ए-मजीद थामे तस्वीरें शईरकीं और मज़हब तबदील करने ऐलान किया
Famous Moto Travelers “Rosie Gabrielle” Converted to Islam in Pakistan
Original Writing is in link below.

रोज़ी ने अपनी तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा कि2019 उनकी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल तरीन साल था जिसमें उन्होंने बहुत से मुश्किल फ़ैसले लिए उन्होंने लिखा कि उन्हें अपनी ज़िंदगी में बहुत से चैलेंजिज़ और मुश्किलात का सामना था उन्होंने लिखा कि मैंने अपनी ज़िंदगी में हमेशा तकलीफ़ और ग़म-ओ-ग़ुस्से की हालत में हमेशा ख़ुदा से शिकायत की कि आज़माईश के लिए में ही क्यों

उन्होंने लिखा कि मैंने रूहानियत में अपने ख़ौफ़ का हल तलाश किया और अपने मज़हब से4 साल क़बल दूरी इख़तियार की उन्होंने मज़ीद लिखा कि मैं अपनी ज़िंदगी में ग़ुस्से और तकलीफ़ से नजात चाहती थी और सुकून चाहती थी मैं तकलीफों से नजात चाहती थी और दिल्ली तौर पर सुकून चाहती थी कि क़ुदरत ने मुझे पाकिस्तान भेजा जहां मुझे अपनी मंज़िल मिल गई

ब्लॉगरज़ के मुताबिक़ गुज़श्ता10 साल मैंने मुस्लिम दुनिया में गुज़ारे और यहां मुझे जो चीज़ सबसे ज़्यादा मिली वो सुकून था बदक़िस्मती से इस्लाम को दुनिया में ग़लत माअनों में पेश किया जाता है जबकि इस्लाम के असल मअनी अमन, इन्सानियत और यकसानियत-ओ-बराबरी के हैं

उन्होंने कहा कि मैं अब बाज़ाबता तौर पर मुस्लमान हो गई हूँ अपनी पोस्ट के आख़िर में उन्होंने अपने म्दाहों से कहा कि अगर उनके ज़हन में इस हवाले से कोई सवाल हो तो वो कमंट कर के सकते हैं

کینیڈا کی معروف موٹر سائیکلسٹ اور ٹریول بلاگر روزی
گیبریل نے اسلام قبول کرلیا
سماجی رابطے کی ویب سائٹ انسٹاگرام پر روزی گیبریل نے اپنے تصدیق شدہ اکاؤنٹ سے ہاتھ میں قرآن مجید تھامے تصویریں شئیرکیں اور مذہب تبدیل کرنے کا اعلان کیا



روزی نے اپنی تصویریں شیئر کرتے ہوئے لکھا کہ 2019 ان کی زندگی کا سب سے مشکل ترین سال تھا جس میں انہوں نے بہت سے مشکل فیصلے لیے انہوں نے لکھا کہ انہیں اپنی زندگی میں بہت سے چیلنجز اور مشکلات کا سامنا تھا انہوں نے لکھا کہ میں نے اپنی زندگی میں ہمیشہ تکلیف اور غم و غصے کی حالت میں ہمیشہ خدا سے شکایت کی کہ آزمائش کے لیے میں ہی کیوں؟
انہوں نے لکھا کہ میں نے روحانیت میں اپنے خوف کا حل تلاش کیا اور اپنے مذہب سے 4 سال قبل دوری اختیار کی انہوں نے مزید لکھا کہ میں اپنی زندگی میں غصے اور تکلیف سے نجات چاہتی تھی اور سکون چاہتی تھی میں تکلیفوں سے نجات چاہتی تھی اور دلی طور پر سکون چاہتی تھی کہ قدرت نے مجھے پاکستان بھیجا جہاں مجھے اپنی منزل مل گئی
بلاگرز کے مطابق گزشتہ 10 سال میں نے مسلم دنیا میں گزارے اور یہاں مجھے جو چیز سب سے زیادہ ملی وہ سکون تھا بدقسمتی سے اسلام کو دنیا میں غلط معنوں میں پیش کیا جاتا ہے جبکہ اسلام کے اصل معنی امن، انسانیت اور یکسانیت و برابری کے ہیں
انہوں نے کہا کہ میں اب باضابطہ طور پر مسلمان ہوگئی ہوں اپنی پوسٹ کے آخر میں انہوں نے اپنے مداحوں سے کہا کہ اگر ان کے ذہن میں اس حوالے سے کوئی سوال ہو تو وہ
کمنٹ کر کے پوچھ سکتے ہیں

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history  of legend  muslim player in football.
دنیائے فٹبال کے سلطنت پر مسلمان نوجوانوں کی بادشاہت 
دنیائے فٹبال پر یقیناً مسلمان ممالک کے مقابلے میں غیر مسلم ممالک کی تعداد بہت زیادہ ہے مگر ان تمام غیر مسلم ممالک میں بھی ایک بڑی تعداد مسلمان نوجوانوں کی ہے جنھوں نے فٹبال کے میدانوں پر اپنا بادشاہت ہمیشہ سے قائم رکھا ہوا ہے اور دوران کھیل بھی اپنے مسلمان ہونے کا اظہار فخر سے کرتے ہیں جیسے کہ اپنے جیت کا جشن     اللہ اکبر کا نعرہ  سجدے میں گرکر اور آسمان کی طرف ہاتھ اٹھا کر اللہﷻ کا شکر ادا کرنا 
ان تمام مسلم نوجوانوں کی تفصیل اپنے پاکستانی فٹبالر دوستوں کیلۓ پیش خدمت ہے 
(1)محمد صلاح 
محمد صلاح کا تعلق مصر سے ہے انکا پورا نام محمد صلاح غالی ہے صلاح نے جون 2017 میں انگلش پریمیر کلب لیور پول جوائن کیا اور 10برس بعد اسے چیمپینز لیگ کے سیمی فائنل میں پہنچانے میں کلیدی کردار ادا کیا تھا 18-2017میں انگلش پریمیر لیگ کے بہترین فٹبالر کا اعزاز حاصل کیا کیھل میں انکی بہترین کاردگردگی کی وجہ سے انہیں گول مشین کا خطاب دیا گیا ہے  صلاح کے شاندار کیھل کے بدولت مصر نے 2018 میں ہونے والے ورلڈکپ کیلۓ کوالیفائی کرنے میں کامیابی حاصل کی ہے 
(2)نعیم عرفيت محمد علی معمار 
پہلے مسلمان فٹبالر جنکا تعلق اسپین سے ہیں 5برس تک انگلش پریمیر لیگ کے کلب ٹوٹہنم ہاٹ اسپر سے وابستہ رہے انکی وجہ شہرت 1993میں اے ایف کپ کے کواٹر فائنل میں مانچسٹر سٹی کے خلاف ہیٹ ٹرک تھی جبکہ بارسلونا کو کوپاڈیل رے چمپین بنوایا 
(3)پاول پوگبا
مانچسٹر یونائٹیڈ کے سینٹر مڈفیلڈر پاول پوگبا کا شمار دنیا کے مہنگے ترین فٹبالر میں ہوتا ہے  انکی والدہ مسلمان تھیں بعدازاں پاول نے بھی اسلام قبول کیا پاول نے اطالوی کلب یونٹس کی نمایندگی کرتے ہوے ٹیم کو چار مرتبہ اطالوی سیریز اے دو مرتبہ کوپا اٹالین کپ اور دو مرتبہ سپر کوپا اٹالین میں کامیابی دلا دی 2013میں گولڈن بواۓ 2014 میں براوو ایوارڈ 2015میں یوئیفا ٹیم آف دی ائر اور 2014میں عمده فارمنس پر بیسٹ ینگ پلیر ایوارڈ سے نوازہ گیا 2016میں یورو کپ میں فرانس کو فاینل تک لانے میں کلیدی کردار پاول کا ہی تھا 
(4) سیدو مانے 
لیور پول کی جانب سے دوسرے مسلمان پلیر ہیں سیدو مانے نے یوئیفا چیمپینز لیگ کے کواٹر فاینل میں مانچسٹر سٹی کو آوٹ کلاس کردیا اور لیور پول کو دس سال بعد یوئیفا چیمپینز لیگ کے ٹاپ فور میں پہنچھایا 2015میں انہوں نے ساوتھمپٹن کو ایشٹن ویلا کے خلاف 1-6سے کامیابی دلائی اور صرف دو منٹ 56سیکنڈ میں تیز ترین ہیٹ ٹرک کرنے کا ریکارڈ قائیم کیا 2016میں تاریخ کے مہنگے ترین افریقی پلیر بنے 
(5) زین الدین زیڈان 
دنیا کا نامور فٹبالر زین الدین زیڈان کا شمار فرانس کے لیجنڈ کھلاڑيوں میں ہوتا ہے انہیں 2013میں تاریخ کے مہنگے ترین کھلاڑی کا اعزاز حاصل تھا انہیں 34 سال کی عمر میں فیفا ورلڈکپ گولڈن بال جیتنے کا اعزاز ملا زیڈان 1998 میں ورلڈکپ اور 2000میں یورو کپ کے بہترین کھلاڑی قرار پائے الجرایزی نژاد فٹبالر کھیل میں نمایاں کاردگردگی دکھانے کے بعد 2014سے ہسپانوی کلب ریال میڈرڈ میں منیجر کے فرائض انجام دے رہے ہیں وہ اپنے کلب کو لالیگا۔سپرکوپاڈی اسپین۔2بار یوئیفا چمپينزلیگ۔ 2بار یوئیفا سپر کپ اور 2بار فیفا ورلڈکپ جیتنے کا اعزاز دلوا چکے ہیں اسکے علاوه زیڈان 2017 میں اسکورایوارڈ اور ورلڈاسکورمیگزین ورلڈ منیجر آف دی ایرکا ایوارڈ بھی جیت چکے ہیں 
مگر اس عظیم مسلمان کھلاڑی کا شاندار کیریئر کا اختیتام ریڈ کارڈ پر ہوا کیوںکہ اسکو دوران میچ ایک یہودی پلیر نے مسلمان ہونے کا طعنہ دیا جس پر طیش میں آکر زیڈان نے ٹھکر مار کر اس یہودی پلیر کو ہوا میں اچھال دیا تھا اور میچ ریفری نے ریڈ کارڈ دکھا کر انہیں گراونڈ سے باہر کر دیا 
(6) مسعود اوزل
مسعود اوزل ترک نسل اور جرمنی سے تعلق ہے 
آرسنل کی نمایندگی کرتے ہیں اور ریال میڈرڈ ورڈیر بریمین اور شالکے کی طرف سے کھیل چکے ہیں جرمنی کو ورلڈ چمپین بنوانے میں سب سے اہم کلیدی کردار ادا کیا 2010 فیفا کپ اور 2016میں انگلش پریمیر لیگ اور ٹاپ اسسٹ پروائیڈر کے ایوارڈ اپنے نام کئے اسکے علاوه ریال میڈرڈ لالیگا کوپاڈیل رے سپر کوپا ڈی اسپونئیل چمپین بنوانے میں اہم کردار ادا کیا 
(7)کریم بن زیما
الجزائر سے تعلق فرانس سے تعلق ہے کریم بن زیما 2011 2012 2014 میں فرنچ پلیر آف دی ایر کا ایوارڈ حاصل کر چکے ہیں 
4مرتبہ فرنچ لیگ فرنچ کپ اور دو مرتبہ سپر کپ دو بار اسپینیش لیگ دو مرتبہ اسپینیش کپ دو مرتبہ یوئیفا چمپیینز لیگ دو مرتبہ یوئیفا سپر کپ دو بار فیفا کلب ورلڈکپ اور یورپین ٹرافی جیتنے کا اعزاز حاصل کر چکے ہیں
(8)فرینک ریبری(بلال یوسف محمد )
2004میں اسلام قبول کرنے والے بلال یوسف جرمن کلب بائرن میونخ کی طرف سے کیھلتے ہیں 
ڈی میٹز فٹبال کلب ٹرکش کلب گلاٹسٹارے اور فرنچ کلب ڈی مارسلی کی نمایندگی کر چکے ہیں انہیں 2013میں فیفا بیلن ڈی ایوارڈ کیلۓ دنیائے فٹبال پر حکمرانی کرنے والے میسی اور رونالڈو کے ساتھ شاٹ لسٹ میں شامل کیا گیا تھا جس میں انھوں نے تیسری پوزیشن حاصل کیا وہ پہلے فٹبالر ہیں جنکو تین مرتبہ جرمن پلیر آف دی ائر اور فرنچ پلیر آف دی ائر کا ایوارڈ ملا وہ یوئیفا بیسٹ پلیر کا ایوارڈ بھی حاصل کرچکے ہیں 
(9)ریاض مھریز
الجزائر سے تعلق ریاض مھریز نے اپنے جارحانہ کیھل سے لیسٹر سٹی فٹبال کلب کوپہلی بار پریمیر چمپین بنوایا رواں سال سپر سٹار مسلم ان اسپورٹس کا ایوارڈ اپنے نام کیا 2014میں میں پہلی بار ورلڈکپ میں الجزائر کی نمایندگی کی 
(10)سمع خدیرا
جرمنی کے کھلاڑی 2014میں فیفا ورلڈکپ کے فاتح ٹیم کا حصہ تھے ہسپانوی کلب ریال میڈرڈ کو لالیگا دو بار کوپا ریل ڈے سپر کوپا ڈی اسپین یوئیفا چمپیینز لیگ فیفا کلب ورلڈکپ جتوا چکے ہیں
(11)یحیی طورے
افریقی ملک آیوری کوسٹ سے تعلق ہے مانچسٹر سٹی کے علاوه بارسلونا۔مناکو فٹبال کلب یونانی اولمپکو کی نمایندگی کر چکے ہیں 2015میں آئیوری کوسٹ کی قیادت کرتے ہوے دوسری بار افریقن کپ آف نیشنز جتوایا اور افریقن پلیر آف دی ائیر کا اعزاز حاصل کیا 
(12)کولو طورے
یحیی طورے کے بڑے بھائی کولو طورے آرسنل۔مانچسٹر سٹی ۔لیور پول اور سیلٹک فٹبال کلب کی جانب سے کیھل چکے ہیں کولو طورے آیوری کوسٹ کی جانب سے سب سے زیادہ میچ کیھلنے والے دوسرے پلیر ہیں مانچسٹر یونائٹیڈ  لیور پول اور اسکاٹش فٹبال کلب کو چمپین بنوایا 
(13)ایڈن زیکو
ایڈن زیکو کا تعلق بوسنیا سے ہیں اور فٹبال کے بہترین مسلمان کھلاڑيوں میں شمار ہوتے ہیں اٹلی کے فٹبال کلب روما کی نمایندگی کرہے ہیں دو بار پریمیر لیگ ٹائٹلز۔ ایف اے کپ فٹبال لیگ کپ ۔ایف اے کمیونٹی شیلڈ جیتی وہ 2014میں فیفا ورلڈکپ کوالیفائرز کے ٹاپ اسکورر میں دوسرے نمبر پر رہے 
(14)نکولس انیلکا 
فرانس کے سابق فٹبالر نکولس انیلکا نے 16 سال کے عمر میں اسلام قبول کیا اور اپنا نام عبدالسلام بلال رکھا 
آرسنل ریال میڈرڈ لیور پول مانچسٹر سٹی سمیت کئی مشہور کلبوں کی نمایندگی کی
عبدالسلام کو 2008 اور 2009 میں ٹاپ اسکورر ہونے پر گولڈن بوٹ آیوارڈ سے نوازا گیا
(15)مارونے فیلا نینی
بلیجئم سے تعلق رکھنے والے فٹبالر مارونے فیلا نینی پریمیر لیگ میں کپتانی کے فرئض انجام دینے والے پہلے مسلمان فٹبالر ہیں جنکو 17. 2016 کے سیزن میں سندر لینڈ کے خلاف میچ میں مانچسٹر یونائٹیڈ کا کپتان مقرر کیا گیا تھا 2013 سے دنیا کے مہنگے ترین کلب مانچسٹر یونائٹیڈ سے وابستہ ہے اور مانچسٹر یونائٹیڈ کو ایف اے کپ اور یورپالیگ ٹائٹل جتوایا


Friday, June 5, 2020

राशियन क़ुरआन अनुवादक : ईमान फालेरिया बोरोखोफा

फालेरिया बोरोखोफा
रशियन से हिंदी अनुवाद करके विकिपीडिया के लिये लिखा गया।

फालेरिया बोरोखोफा (जन्म: 14 मई, 1940 - 2019; अरबी: فاليريا بوروخوفا) या ईमान फालेरिया बोरोखोफा: रूसी अनुवादक[1]और दुभाषिया थीं । इंग्लिश से रशियन में अनुवाद में माहिर थीं। क़ुरआन का रशियन भाषा में अनुवाद किया था।
परिचय
ईसाई धर्म से इस्लाम धर्म अपनाया। "ईमान" नाम को अपने प्रथम नाम के रूप में जोड़ा।
मुहम्मद सईद अल-रशद से विवाह किया।
1981 में अपने पति और धार्मिक विद्वानों के एक समूह की मदद से दमिश्क की यात्रा की।
1991 में क़ुरआन का अनुवाद रशियन भाषा में पूरा किया। जिसे रूस और मध्य एशिया के अनुमोदन के साथ अल-अजहर की 1997 में समीक्षा के बाद प्रकाशित किया गया था। इस अनुवाद को बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में रूसी भाषा में लिखा गया सबसे महत्वपूर्ण भी माना जाता है।

पुरस्कार और उपाधियाँ
इतिहास में वह एक विदेशी भाषा में डिप्लोमा करने वाली पहली महिला थी।
ईमान फालेरिया बोरोखोफा को रूसी लेखक संघ की सदस्यता और रूस और इस्लामिक सेंट्रल एशियाई देशों में कई साहित्यिक और वैज्ञानिक अकादमियों की सदस्यता दी गई।
रूस में यूरोपीय क्षेत्र के मुस्लिमों के धार्मिक प्रशासन से "धार्मिक एकता के लिए" पदक जीता।
6 नवंबर, 2003 - इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति , मोहम्मद खातमी ने मुस्लिम दुनिया में "पवित्र कुरआन के सेवक" के महत्वपूर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया।
ईमान फालेरिया बोरोखोफा को बिजनेस ऑनलाइन " के ऑनलाइन संस्करण के "रूस के शीर्ष 100 प्रभावशाली मुसलमानों" में 60 वां स्थान हासिल किया ।

मृत्यु
इमान फालेरिया बोरोखोफा का निधन 79 वर्ष की उम्र में 2 सितंबर, 2019 को सोमवार को मास्को में निधन हुआ। मास्को में खोवैंस्की कब्रिस्तान में दफ़न की गयी।

बाहरी कड़ियाँ
ईमान फालेरिया बोरोखोफा के काम पर आधारित वेबसाइट iman.tora.ru/
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इन्हें भी देखें जो मैं ने लिखे[edit source]





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1فاليريا بوروخوفا7912,596Log · History · Page History · Top Edits · Pageviews
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5غازی محمود دھرمپال

















वालेरी पोरोखोव का निधन हो गया। हम उस महिला के बारे में क्या जानते हैं जिसने कुरान का रूसी में अनुवाद किया था।


 4 सितंबर, 2019, 17:00

 19605
वलेरिया प्रोखोरोवा
वेलेरिया प्रोखोरोवा / फोटो Zinovoevcenter.com से

2 सितंबर को, एक मुस्लिम सार्वजनिक व्यक्ति वालेरी पोरोखोव का निधन हो गया। हम उसके जीवन और वैज्ञानिक गतिविधि के बारे में बात करते हैं।

प्रसिद्ध मुस्लिम सार्वजनिक व्यक्ति, एक साथ दुभाषिया और रूसी में कुरान के शब्दार्थ अनुवाद के लेखक, वेलेरिया (ईमान) पोरोखोवा का 79 साल की उम्र में मॉस्को में निधन हो गया। इस बारे में जानकारी 2 सितंबर को रूस के मुफ्तीस परिषद की वेबसाइट पर प्रकाशित हुई थी 
"रूस के मुफ़्तीस परिषद की ओर से, रूसी संघ के मुसलमानों का आध्यात्मिक प्रशासन और स्वयं व्यक्तिगत रूप से, मैं सम्मानित वेलेरिया (इमान) पोरोखोवा की मृत्यु पर अपनी गंभीर संवेदना व्यक्त करता हूं। वह केवल एक साथ व्याख्या करने वाली नहीं थीं, बल्कि आधुनिक रूसी इतिहास में पवित्र कुरान की एकमात्र अनुवादक थीं।" एक बयान में मुफ्ती शेख रवील गितनदीन ने कहा।
विभिन्न स्रोतों ने वेलेरिया की मृत्यु के कारण के रूप में एक लंबी बीमारी का हवाला दिया, विशेष रूप से, फुफ्फुसा और कैंसर।

जीवनी

वेलेरिया पोरोखोवा का जन्म 1940 में रूसी शहर उख्ता में वंशानुगत महानुभावों के परिवार में हुआ था। उसके पिता पावेल पोरोखोव को स्टालिनवादी दमन के वर्षों के दौरान गोली मार दी गई थी। माँ नताल्या, "लोगों के दुश्मन की पत्नी" होने के नाते, वेलेरिया को जन्म दिया, निर्वासन में रही, और ख्रुश्चेव पिघल में वह मास्को वापस जाने में सक्षम हुई, जहाँ उसने लगभग 30 वर्षों तक मेडिकल अकादमी में एक शिक्षिका के रूप में काम किया।
अपनी जवानी में जीवनसाथी के साथ वेलेरिया
वेलेरिया अपने युवावस्था में अपने पति के साथ / फोटो वेलेरिया पोरोखोवा की आधिकारिक वेबसाइट से
1975 में, वेलेरिया पोरोखोवा ने दमिश्क विश्वविद्यालय के शरिया संकाय के स्नातक, मुहम्मद सईद अल-रोशद से शादी की, उस समय उन्होंने मॉस्को ऑटोमोटिव इंस्टीट्यूट में अध्ययन किया था। जैसा कि वेलेरिया ने अपने संस्मरणों में लिखा है , मुहम्मद ने उनसे मुलाकात के बाद छठे दिन एक प्रस्ताव रखा और सबसे पहले एक निर्णायक इनकार किया।
"लेकिन, इनकार कर दिया, मैं जानबूझकर पूर्वी आदमी की मानसिकता की ख़ासियत को नजरअंदाज कर दिया, उसकी इच्छाओं को प्राप्त करने में मजबूत और राजसी। मुहम्मद ने संस्थान में अकादमिक अवकाश लिया और आठ महीने तक मुझे, मेरी माँ, नादेज़्दा पावलोवना के साथ प्यार किया, लेकिन पूरे परिवार के साथ। सामान्य तौर पर, "वलेरिया ने कहा।
वेलेरिया दो बेटों की माँ है - आंद्रेई (अपनी पहली शादी से बेटा) और खालिद।
वेलेरिया पोरोखोवा ने अल-फुरकान मॉस्को इस्लामिक एजुकेशन सेंटर की परिषद का नेतृत्व किया, जिसके महानिदेशक उनके पति हैं। 2000 में, वह रूसी मुसलमानों के सीधे पथ के धार्मिक संगठन की सह-अध्यक्ष बनीं। वह अंतर्राष्ट्रीय फंड "इंटरफेथ सद्भाव और स्थिरता" के अध्यक्ष थे।

रूसी में कुरान का अनोखा अनुवाद

वलेरिया पोरोखोवा द्वारा कुरान के अनुवाद को विहित अल-अजहर इस्लामिक रिसर्च अकादमी (मिस्र, काहिरा) द्वारा मान्यता प्राप्त थी, जो इस्लामी दुनिया में श्रम की सर्वोच्च मान्यता है।
1985 से 1990 के दशक की शुरुआत तक, वैलेरिया पोरोखोवा दमिश्क में रहती थी, जहाँ उसने पवित्र पुस्तक का अनुवाद किया। उसके पास मॉरिस थोरेज़ मॉस्को स्टेट पेडागोगिकल इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन लैंग्वेजेज का डिप्लोमा था, वह अपने इतिहास में किसी विदेशी भाषा के डिप्लोमा की रक्षा करने वाली पहली महिला थी।
वैलेरी प्रोखोरोवा (दाएं से दूसरा) यूएई के अरबपति कारोबारी अब्दुल्ला अल गुरिरा से मिलने गए
Valery Prokhorov (दाएं से दूसरे) UAE से अरबपति व्यवसायी अब्दुल्ला अल गुरिरा का दौरा / साइट Klauzura.ru से फोटो
वालिया ने कहा, "मैं चाहता था कि कुरान का अनुवाद किसी व्यक्ति द्वारा रूसी में नहीं किया जाए, जैसा कि वे कहते हैं, बाहर से, लेकिन वह जो कहता है, उस पर विश्वास करके। केवल इस तरह से अपने सार, पूर्वाग्रह और पूर्वाग्रह के बिना इसका अर्थ बता सकता है," वालिया ने कहा।
वेलेरिया ने अरबी पाठ की सामग्री को दिखाने के लिए, रूप, कल्पना और शास्त्र की शैली को संरक्षित करने की मांग की। अनुवाद काव्यात्मक रूप में किया गया था, इसे काम करने में 11 साल लग गए।
विशेषज्ञों ने वेलेरिया पोरोखोवा के काम की प्रशंसा की। तो, कार्नेगी सेंटर के मास्को शाखा के एक विशेषज्ञ अलेक्सेई मालाशेंको ने अनुवाद को "एक शानदार काव्य कृति" कहा।
अक्ताऊ में वलेरी पोरोखोव धर्म पर अपना व्याख्यान देते हैं
अक्ताऊ में वलेरी पोरोखोव धर्म / फोटो पर अपना व्याख्यान देते हैं: फोटो
प्रसिद्ध सोवियत प्राच्यविद आंद्रेई बर्टेल्स ने कहा: "पोरोखोवा पहले अनुवादक हैं जिन्होंने कुरान के वर्चस्व के स्वर्गीय संगीत को प्रसारित किया।"
इंटरनेशनल चैरिटेबल फाउंडेशन ह्यूमन अपील इंटरनेशनल (यूएई) के अनुसंधान केंद्र ने अपनी विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में संकेत दिया कि "उनके विश्लेषण के परिणामों ने अनुवाद के स्पष्ट मुस्लिम अभिविन्यास का संकेत दिया, जो मूल इस्लामी परंपरा में बनाया गया था, और अर्थ के संचरण में विकृतियों की अनुपस्थिति थी।"
यूएई के राष्ट्रपति शेख जायद बिन सुल्तान अल-इंहान ने अनुवाद के प्रकाशन के बाद, पोरोखोवा के काम का गहन विश्लेषण किया। आठ वैज्ञानिकों ने विश्लेषणात्मक अध्ययन में भाग लिया - चार अरब देशों से, चार रूस से। विद्वानों के अनुमोदन के बाद, शेख ने रमजान के पवित्र महीने में रूसी मुसलमानों को उपहार के रूप में 25 हजार प्रतियों के संचलन के साथ अनुवाद के प्रकाशन को वित्त पोषित किया।

पोरोखोवाया के अनुवाद की आलोचना

"द कुरान; अनुवाद का अर्थ" पुस्तक की व्यापक मान्यता के बावजूद, इसके लिए धर्मशास्त्रियों की प्रतिक्रिया मिश्रित थी।
"उसके काम को उसकी उच्च-प्रोफ़ाइल शैली द्वारा प्रतिष्ठित किया गया है। लेकिन साथ ही, इसका अनुवाद कई कुरान के शब्दों का सटीक अर्थ और, इसके अलावा, शर्तों से अवगत नहीं करता है," अज़रबैजान इस्लामी विद्वान एलमीर कुलीयेव ने कहा।
तातार विश्व पत्रिका के साथ एक साक्षात्कार में, कुरानवाद में प्रसिद्ध रूसी विशेषज्ञ, यिफिम रेजवान, ने भी पोरोखोवा के अनुवाद को रद्द करने के बारे में जानकारी से इनकार किया। उनके अनुसार, अल-अजहर आयोग ने केवल पाठ के अरबी संस्करण को मुद्रित करने की अनुमति दी, जो निश्चित रूप से कुरान के अनुवाद के किसी भी संस्करण में मौजूद होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इसमें त्रुटियां नहीं हैं।
"क्या हम अंतर को समझते हैं? रूसी अनुवाद की कोई बात नहीं थी! लेकिन रूसी पाठ के लेखक और संपादक ने इस दस्तावेज़ को अल-अजहर द्वारा अनुवाद के पाठ के आधिकारिक इस्लामी केंद्र द्वारा आधिकारिक अनुमोदन के रूप में प्रकाशित किया," येफिम रेजवान ने कहा।

इस्लाम धर्म को अपनाया

वेलेरिया केवल 45 साल की उम्र में इस्लाम में आई थीं। उसके कबूलनामे से, वह जीवन भर विश्वास करती रही।
वैलेरिया ने विश्वास की राह पर चलते हुए कहा, "मेरी मां को उसी Tsarskoye Selo कैथरीन कैथेड्रल में Tsar की बेटी के रूप में बपतिस्मा दिया गया था। उसने मुझे बपतिस्मा देने का आदेश दिया। यह मेरी बहुत बड़ी इच्छा है।"
अपने पति के साथ वेलेरिया पोरोखोवा
वेलेरिया पोरोखोवा अपने पति / फोटो के साथ: Islamdag.ru
1981 में, वेलेरिया ने रूढ़िवादी बपतिस्मा प्राप्त किया।
वेलेरिया पोरोखोवा ने कोम्सोमोल्स्काया प्रवीडा के साथ एक साक्षात्कार में कहा , "मेरे पति एक अरब हैं, और मैंने तुरंत उन्हें i। उनका अपना विश्वास है, मेरा अपना विश्वास है ।"
लेकिन कुरान में वेलेरिया की दिलचस्पी बढ़ी। एक साक्षात्कार में, उसने कहा कि पवित्र सुरा ने उसे बताया कि इस्लाम हर चीज के लिए कितना सहिष्णु है - धर्म, लोग, मानव अधिकार। 1985 में यह शौक उसे सीरिया ले जाने के लिए प्रेरित करता है, जहाँ वह इस्लाम और उसके मध्य नाम "ईमान" (वेरा - अरब ) को स्वीकार करती है 
"मैंने कुरान पढ़ा और कुछ बिंदु पर मुझे एक तरह की अंतर्दृष्टि महसूस हुई, जिसने मुझे अंदर से उकसाया। मेरे पूरे दिल से मुझे लगा कि मैं एक मुस्लिम था और इस पवित्र पुस्तक में एक भी शब्द नहीं था, जिसके साथ मेरा दिल सहमत नहीं होगा," वेलेरिया ने हमारे बारे में बताया इस्लाम में इसका परिवर्तन।
सीरिया में, वेलेरिया अरब संस्कृति में शामिल हो गए, उन्होंने दर्शन, धर्म और इस्लामी दुनिया के इतिहास पर कई काम किए। एक साक्षात्कार में, उसने स्वीकार किया कि उसके भाग्य में सबसे महत्वपूर्ण उपहार मुस्लिम विश्वास की एक समझ है।

पोरोखोवा और कजाकिस्तान

वलेरिया ने अक्सर कजाकिस्तान में धार्मिक मुद्दों पर अपनी राय साझा की। 2011 में, जब कजाकिस्तान में राज्य के संस्थानों में प्रार्थना कक्ष बंद थे, तो उसने इस निर्णय का समर्थन किया। उनकी राय में, सिविल सेवक, जिनके कार्यों पर राज्य की समस्याओं के निर्णय निर्भर करते हैं, दैनिक प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए संस्थानों में प्रार्थना कक्ष की आवश्यकता नहीं होती है।
वेलेरिया पोरोखोवा ने अनिवार्य प्रार्थना करने के लिए कुरान के आदर्श के बारे में कहा, "इस्लाम में इस तरह की एक गंभीर अवधारणा है" प्रार्थनाओं को एकत्रित करना। "यह तब है जब आप दिन की प्रार्थनाएं छोड़ते हैं और शाम को अतिरिक्त प्रार्थना करते हैं।"
कज़ान में वलेरी प्रोखोरोव
कज़री / फोटो में वैलेरी प्रोखोरोव
एक अन्य साक्षात्कार में, पोरोखोव ने पश्चिमी कजाकिस्तान में कट्टरपंथी सलाफिज़्म की समस्या को छुआ । उन्होंने धार्मिक चरमपंथ के विषय पर कजाकिस्तान गणराज्य के जनरल प्रॉसीक्यूटर कार्यालय के कर्मचारियों के लिए व्याख्यान दिया।
"रूस में, सलाफिज़्म के उपदेशकों को यह कहते हुए बेदखल कर दिया गया:" हम आपके बहुत आभारी हैं, आपने सलाम अलैकुम में भी योगदान दिया। और उन्हें भेज दिया। और कजाकिस्तान में, यह किया जाना चाहिए। कोई समारोह नहीं। आपको अपनी सीमाओं के भीतर भ्रम की आवश्यकता क्यों है? ”- पोरखोव ने 2011 में कज़ाकिस्तान को सलाह दी।
अलमाटी की यात्रा के दौरान इमांगली तस्मागमबेटोव के साथ वालेरी पोरोखोव
वेलेरिया पोरोखोवा की आधिकारिक वेबसाइट से अल्माटी / फोटो की यात्रा के दौरान इमांगली तस्मागमबेटोव के साथ वेलेरी पोरोखोव
2013 में, कज़ाकिस्तान में बुर्का या हिजाब पहनने के विवादों पर टिप्पणी करते हुए, पोरोखोवा ने सिफारिश की कि कज़ाख महिलाएँ बुर्का न पहनें। उनके अनुसार, अरब देशों में महिलाओं के लिए बुर्का प्रासंगिक है, जहाँ वह महिलाओं की त्वचा को धूप और धूल के तूफान से बचाती है। इसी समय, पोरखोवा रूस और मध्य एशिया में हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं के विरोध में नहीं थी। वेलेरिया खुद टोपी पहनना पसंद करती थीं, उन्होंने कहा कि जो महिलाएं बूढ़ी हैं और लंबे समय से शादीशुदा हैं, वे हेडस्कार्फ़ नहीं बल्कि दूसरी टोपी पहन सकती हैं।
मध्यरात्रि की प्रार्थना के बाद मास्को के कैथेड्रल मस्जिद में गुरुवार, 5 सितंबर को वेलेरिया पोरोखोवा के लिए विदाई होगी। जनाज़ की नमाज़ अदा करने के बाद, पोरोखोव को खोव्स्की कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा।