मुहम्मद उमर कैरानवी: June 2020

Wednesday, June 17, 2020

प्रोफेसर "डाक्टर ज़ियाउर्रहमान आज़मी" - गंगा से ज़मज़म Dr. Zia ur-Rahman Azmi

आज़म गढ़ का भारतीय (बांकेलाल) कैसे मदीना यूनीवर्सिटी और मस्जिद नबवी का प्रोफेसर बन गया
-----"डाक्टर लुबना ज़हीर"----
اعظم گڑھ کا ہندو کیسے مدینہ یونیورسٹی اور مسجد نبوی کا معلم بن گیا..ڈاکٹر لبنیٰ ظہیر
https://www.baseeratonline.com/109641

Journey from Hinduism to Islam to professor of Hadith in Madinah .....By: Zakir Azmi
https://saudigazette.com.sa/article/174057

یاسر قاضی کے ساتھ انٹرویو
https://www.youtube.com/watch?v=y2ZI_ykyv8o
यासिर क़ाज़ी के साथ इंटरव्यू yotube
بلریا گنج کے بانکے رام سے مدینہ منورہ کے پروفیسر ضیاء الرحمن اعظمی کے ساتھ ایک خاص گفتگو
=====ازقلم۔ ذاکر اعظمی ندوی ، ریاض=====
क़ुरआन मजीद की इनसाइक्लोपीडिया

https://quranwahadith.com/product/quran-majeed-ki-encyclopedia/

क़ुरआन की शीतल छाया 
https://archive.org/details/QuranKiSheetalChaya

डाक्टर ज़ियाउर्रहमान आज़मी ,लेखक:  हिंदी पुस्तक "क़ुरआन की शीतल छाया में" और "क़ुरआन मजीद की एनसाइक्लोपीडिया" के बारे में जानिये।

ये 2005 का ज़माना था। रोज़नामा नवा-ए-वक़्त में मारूफ़ कालम निगार इर्फ़ान सिद्दीक़ी साहिब का एक कालम बउनवान गंगा से ज़मज़म तक। शाय हुआ। कालम में उन्होंने भारत के एक कट्टर हिंदू नौजवान का तज़किरा किया था। इस्लामी तालीमात से मुतास्सिर हो कर जिसने इस्लाम क़बूल किया। नौजवान पर इस क़दर एहसान इलाही हुआ कि वो दिल-ओ-जान से इस्लामी तालीमात की जानिब राग़िब हो गया। मदीना मुनव्वरा और मिस्र की जमिआत से तालीम हासिल करने के बाद शोबा तदरीस से मुंसलिक हुआ।

सऊदी अरब की मदीना यूनीवर्सिटी में प्रोफेसर और डीन के ओहदे तक जा पहुंचा। रिटायरमैंट के बाद तहक़ीक़ात इस्लामी में जुट गया। अरबी और हिन्दी में दर्जनों किताबें लिख डालीं। इन कुतुब का तर्जुमा दुनिया के मुख़्तलिफ़ ममालिक के दीनी मदारिस के निसाब का हिस्सा है। इस क़दर बा सआदत ठहरा कि मस्जिद नबवीﷺ मैं हदीस का दरस देने लगा।

कुफ़्र के अंधेरों से निकल कर इस्लाम के रोशन रास्तों पर गामज़न होने वाले प्रोफेसर डाक्टर ज़िया अल रहमान आज़मी के सफ़र सआदत के बारे में लिखा गया ये कालम मेरी यादाशत से कभी गायब नहीं हो सका
इस मर्तबा मक्का उमरा पर जाते वक़्त मैंने हज-ओ-उमरा की दुआओं और इस्लामी तारीख़ से मुताल्लिक़ कुछ किताबें अपने सामान में रख ली थीं। एक किताब जो आख़िरी वक़्त पर मैंने अपने हमराह ली वो इरफान सिद्दीक़ी साहिब की मक्का मदीना थी। मदीना मुनव्वरा में आए दूसरा दिन था। मैं होटल के कमरे में मक्का मदीना की वर्क़ गरदानी में मसरूफ़ थी। अचानक पंद्रह बरस क़बल लिखा गया कालम। "गंगा से ज़मज़म तक" आँखों के सामने आ गया। एक-बार फिर मुझे डाक्टर ज़िया अल रहमान आज़मी और उनकी ज़िंदगी का सफ़र याद आ गया।

अम्मी को में उनके क़बूल इस्लाम का क़िस्सा बताने लगी। बा आवाज़ बुलंद कालम भी पढ़ कर सुनाया। कालम पढ़ने के बाद उनके मुताल्लिक़ सोचने लगी। उंगलीयों पर गिन कर हिसाब लगाया कि अब उनकी उम्र कम-ओ-बेश77 बरस होगी। 

ख़्याल आया न जाने अब उनकी सेहत इलमी और तहक़ीक़ी सरगर्मीयों की मुतहम्मिल होगी भी या नहीं। दिल में ख़ाहिश उभरी कि काश मैं उनसे मुलाक़ात कर सिक्कों। एक इलमी-ओ-अदबी शख़्सियत से राबिता किया और ये ख़ाहिश गोश गुज़ार की। 

उनका जवाब सुनकर मुझे बेहद मायूसी हुई। कहने लगे कि आज़मी साहिब उमूमी तौर पर मेल मुलाक़ातों से इंतिहाई गुरेज़ां रहते हैं। ख़वातीन से तो ग़ालिबन बिलकुल नहीं मिलते-जुलते। इंतिहाई मायूसी के आलम में ये गुफ़्तगु इख़तताम पज़ीर हुई। 

लेकिन अगले दिन उन्होंने ख़ुशख़बरी सुनाई कि आज़मी साहिब से बात हो गई है। हिदायत दी कि मैं फ़ोन पर उनसे राबिता कर लूं।

ज़िंदगी में मुझे बहुत सी नामवर दीनी, इलमी, अदबी और दीगर शख़्सियात से मुलाक़ात और गुफ़्तगु के मवाक़े मिले हैं। ख़ुसूसी तौर पर भारी भरकम सयासी शख़्सियात। प्रोटोकोल जिनके आगे पीछे बंधा रहता है। लोग जिनकी ख़ुशनुदी ख़ातिर में बिछे जाते हैं। एक लम्हे के लिए में किसी शख़्सियत से मरऊब हुई, ना किसी के ओहदे, रुतबे और मर्तबे का रोब-ओ-दबदबा मुझ पर कभी तारी हुआ। लेकिन डाक्टर ज़िया अल रहमान आज़मी को टेलीफ़ोन काल मिलाते वक़्त मुझ पर घबराहट तारी थी

दिल की धड़कनें मुंतशिर थीं। उनसे बात करते मेरी ज़बान कुछ लड़खड़ाई और आवाज़ कपकपा गई। अर्ज़ किया कि बरसों पहले एक कालम के तवस्सुत से आपसे तआरुफ़ हुआ था। बरसों से मैं आपके बारे में सोचा करती हूँ। बरसों से ख़ाहिश है कि आपसे शरफ़ मुलाक़ात हासिल हो सके। निहायत आजिज़ी से कहने लगे। मैं कोई ऐसी बड़ी शख़्सियत नहीं हूँ। जब चाहें घर चली आएं।

अगले दिन बाद अज़ नमाज़ इशा मुलाक़ात का वक़्त तै हुआ। निहायत फ़राख़दिली से कहने लगे आपको यक़ीनन रास्तों से आगाही नहीं होगी, कल मेरा ड्राईवर आपको लेने पहुंच जाएगा। शुक्रिया के साथ अर्ज़ किया कि मैं ख़ुद वक़्त मुक़र्ररा पर हाज़िर हो जाऊँगी। इस के बाद में बे-ताबी से अगले दिन का इंतिज़ार करने लगी। इस से क़बल कि में इस मुलाक़ात का अहवाल लिखूँ, क़ारईन के लिए प्रोफेसर डाक्टर ज़िया अल रहमान आज़मी के क़बूल इस्लाम की मुख़्तसर दास्तान बयान करती हूँ।

1943 मैं आज़म गढ़ (हिन्दोस्तान के एक हिंदू घराने में एक बच्चे ने जन्म लिया। वालदैन ने इस का नाम बांके राम रखा। बच्चे का वालिद एक ख़ुशहाल कारोबारी शख़्स था। आज़मगढ़ से कलकत्ता तक उस का कारोबार फैला हुआ था। बच्चा आसाइशों से भरपूर ज़िंदगी गुज़ारते हुए जवान हुआ। वो शिबली कॉलेज आज़म गढ़ में ज़ेर-ए-ताअलीम था। किताबों के मुताले से उसे फ़ित्री रग़बत थी। एक दिन मौलाना मौदूदी की किताब "दीन हक़" का हिन्दी अनुवाद
(सत्य धर्म) उस के हाथ लगा। निहायत ज़ौक़-ओ-शौक़ से इस किताब का मुताला किया। बार-बार पढ़ने के बाद उसे अपने अंदर कुछ तबदीली और इज़तिराब महसूस हुआ। इस के बाद उसे ख़्वाजा हसन निज़ामी का हिन्दी अनुवाद क़ुरआन पढ़ने का मौक़ा मिला।

नौजवान का ताल्लुक़ एक ब्रह्मण हिंदू घराने से था। कट्टर हिंदू माहौल में इस की तर्बीयत हुई थी। हिंदू मज़हब से उसे ख़ास लगाओ था। बाक़ी मज़ाहिब को वो बरसर हक़ नहीं समझता था। इस्लाम का मुताला शुरू किया तो क़ुरआन की ये आयत उस की निगाह से गुज़री। तर्जुमा:
"अल्लाह के नज़दीक पसंदीदा दीन इस्लाम है। "

उसने एक-बार फिर हिंदू मज़हब को समझने की कोशिश की।" अपने कॉलेज के लैक्चरार जो गीता और वेदों के एक बड़े आलिम थे, से रुजू किया। उनकी बातों से मगर उस का दिल मुतमइन नहीं हो सका। शिबली कॉलेज के एक उस्ताद हफ़्ता-वार क़ुरआन का दरस दिया करते थे। नौजवान की जुस्तजू को देखते हुए उस्ताद ने उसे हलक़ा दरस में शामिल होने की ख़ुसूसी इजाज़त दे दी

सय्यद मौदूदी की किताबों के मुसलसल मुताले और दरस क़ुरआन में बाक़ायदगी से शमूलीयत ने नौजवान के दिल को क़बूल इस्लाम के लिए क़ाइल और माइल कर दिया। परेशानी मगर ये थी कि मुस्लमान होने के बाद हिंदू ख़ानदान के साथ किस तरह गुज़ारा हो सकेगा। अपनी बहनों के मुस्तक़बिल के मुताल्लिक़ भी वो फ़िक्रमंद था। यही सोचें इस्लाम क़बूल करने की राह में हाइल थीं। एक दिन दरस क़ुरआन की क्लास में उस्ताद ने सूरत अन्कबूत की ये आयत पढ़ी। तर्जुमा:
"जिन लोगों ने अल्लाह को छोड़कर दूसरों को अपना कारसाज़ बना रखा है, उनकी मिसाल मकड़ी की सी है, जो घर बनाती है और सबसे कमज़ोर घर मकड़ी का होता है। काश लोग इस हक़ीक़त से बाख़बर होते"

इस आयत और इस की तशरीह ने बांके राम को झंजोड़ कर रख दिया। उसने तमाम सहारों को छोड़कर सिर्फ़ अल्लाह का सहारा पकड़ने का फ़ैसला किया और फ़ौरी तौर पर इस्लाम क़बूल कर लिया। इस के बाद उस का बेशतर वक़्त सय्यद मौदूदी की किताबें पढ़ने में गुज़रता। नमाज़ के वक़्त ख़ामोशी से घर से निकल जाता और किसी अलग-थलग जगह पर अदायगी करता। चंद माह बाद वालिद को ख़बर हुई तो उन्होंने समझा कि लड़के पर जिन भूत का साया हो गया है
पंडितों पुरोहितों से ईलाज करवाने लगे। जो चीज़ वो पंडितों पुरोहितों से ला कर देते ये बिसमिल्लाह पढ़ कर खा लेता। ईलाज मुआलिजे में नाकामी के बाद घर वालों ने उसे हिंदू मज़हब की एहमीयत समझाने और दीन इस्लाम से मुतनफ़्फ़िर करने का एहतिमाम किया। जब कोई फ़ायदा ना हुआ तो रोने धोने और मिन्नत समाजत का सिलसिला शुरू हुआ। इस से भी बात ना बन सकी तो घर वालों ने भूक हड़ताल का हर्बा आज़माया। वालदैन और भाई बहन उस के सामने भूक से निढाल पड़े सिसकते रहते। इस के बाद घर वालों ने मार पीट और तशद्दुद का रास्ता इख़तियार किया। अल्लाह ने मगर हर मौक़ा पर उसे दीन हक़ पर इस्तिक़ामत बख़शी।

उसने तमाम रुकावटों और मुश्किलात को नज़रअंदाज किया। हिन्दोस्तान के मुख़्तलिफ़ दीनी मदारिस में तालीम हासिल की। इस के बाद मदीना मुनव्वरा की जामिआ इस्लामीया (मदीना यूनीवर्सिटी) मैं दाख़िल हो गया। जामाता उल-मलिक अबदुलअज़ीज़ जामिआ उम अलकरी। मक्का मुअज़्ज़मा से एम.ए. किया। मिस्र की जामिआ अज़हर क़ाहिरा से पी. ऐच. डी. की डिग्री हासिल की। आज़म गढ़ के कट्टर हिंदू घराने में आँख खोलने वाला ये बच्चा दुनियाए इस्लाम का नामवर मुफ़क्किर, मुहक़्क़िक़, मुसन्निफ़ और मुबल्लिग बन गया।
उन्हें प्रोफेसर डाक्टर ज़िया उर रहमान आज़मी के नाम से पहचाना जाता है। उनकी किताबें हिन्दी, अरबी, अंग्रेज़ी, उर्दू, मिलाई, तुर्की और दीगर ज़बानों में छप चुकी हैं।
क़ुरआन की शीतल छाया
https://archive.org/details/QuranKiSheetalChaya

इंतिहाई सआदत है कि डाक्टर साहिब ने सही अहादीस को मुरत्तिब करने के एक इंतिहाई भारी भरकम तहक़ीक़ी काम का बीड़ा उठाया और बरसों की मेहनत के बाद उसे पाया-ए-तकमील तक पहुंचाया। ऐसा काम जो बड़ी बड़ी जमात और तहक़ीक़ी इदारे नहीं कर सके, एक शख़्स ने तन-ए-तन्हा कर डाला। गुज़श्ता कई बरस से वो मस्जिद नबवी में हदीस का दरस देते हैं।

अल्लाह रब्बुल इज़त ने इस रोय ज़मीन पर बेशुमार नेअमतें नाज़िल फ़रमाई हैं। इन तमाम में सबसे अज़ीम और अनमोल ईमान की नेअमत है। सूरत हजरात में फ़रमान इलाही है कि दरअसल अल्लाह का तुम पर एहसान है कि उसने तुम्हें ईमान की हिदायत की। सूरत इनाम में फ़रमान रब्बानी है। तर्जुमा
"जिस शख़्स को अल्लाह ताला रास्ते पर डालना चाहे, उस के सीने को इस्लाम के लिए कुशादा कर देता है।"

इस शाम में तय-शुदा वक़्त के मुताबिक़ प्रोफेसर डाक्टर ज़िया उर रहमान आज़मी से मुलाक़ात के लिए रवाना हुई, तो क़ुरआन की ये आयात मुझे याद आ गईं। ख़्याल आया कि अल्लाह के इनाम और एहसान की इंतिहा-ए-है कि उसने हिंदू घराने में जन्म लेने वाले को सिराते मुस्तक़ीम के लिए मुंतख़ब किया। उसे बांके राम से प्रोफेसर डाक्टर ज़िया उर रहमान आज़मी बना डाला। मदीना यूनीवर्सिटी और मस्जिद नबवीﷺ मैं हदीस के मुअल्लिम और मुबल्लिग की मस्नद पर ला बिठाया।

डाक्टर साहिब का घर मस्जिद नबवी से चंद मिनट की मुसाफ़त पर वाक़्य है। घर पहुंची तो आज़मी साहिब इस्तिक़बाल के लिए खड़े थे। निहायत शफ़क़त से मिले। कहने लगे आप पहले घर वालों से मिल लीजीए। चाय वग़ैरा पीजिए। इस के बाद नशिस्त होती है। मेहमान ख़ाना drawing room) मैं दाख़िल हुई तो उनकी बेगम मुंतज़िर थीं। मुहब्बत और तपाक से मिलीं। चंद मिनट बाद उनकी दोनों बहूएं चाय और दीगर लवाज़मात थामे चली आएं। कुछ देर बाद उनकी बेटी भी आ गई।

इस के बाद घर में मौजूद तमाम छोटे बच्चे भी। उनकी बेगम ने जामिआ कराची से एम.ए. कर रखा है। कहने लगीं पी. ऐच. डी. में दाख़िला लेने का इरादा था। लेकिन शादी हो गई।
तजस्सुस से सवाल किया कि डाक्टर साहिब हिन्दुस्तानी थे। जबकि आप पाकिस्तानी। शादी कैसे हो गई। कहने लगीं कि मेरे मामूं मदीना यूनीवर्सिटी से मुंसलिक थे। आज़मी साहिब से उनकी मेल-मुलाक़ात रहती थी। बुताने लगीं कि आज़मी साहिब इस क़दर मसरूफ़ रहा करते थे कि मेरे पढ़ने लिखने की गुंजाइश नहीं निकलती थी।

अलबत्ता चंद साल क़बल मैंने हिफ़्ज़ क़ुरआन की सआदत हासिल की। तीनों बच्चे इशाअत दीन की तरफ़ नहीं आए। उनका ख़्याल था कि जितना काम उनके वालिद ने किया है। इस क़दर वो कभी नहीं कर सकेंगे। यही सोच कर वो मुख़्तलिफ़ शोबों में चले गए। फिर कहने लगीं कि आप किसी भी शोबा में हूँ, अल्लाह के बंदों की ख़िदमत कर के अपनी आख़िरत सँवार सकते हैं।

आध पोन घंटा बाद आज़मी साहिब का बुलावा आ गया। उनके लाइब्रेरी नुमा दफ़्तर का रुख किया। इबतिदाई तआरुफ़ के बाद कहने लगे कि मीडीया और दीगर लोग इंटरव्यू वग़ैरा के लिए राबिता करते हैं। मैं अपनी ज़ाती तशहीर से घबराता हूँ। दरख़ास्त करता हूँ कि मेरी ज़ात के बजाय, मेरे तहक़ीक़ी काम की तशहीर की जाये। ताकि ज़्यादा से ज़्यादा लोग इस से आगाह और मुस्तफ़ीद हो सकें। फिर अपनी किताबें दिखाने और तहक़ीक़ी काम की तफ़सीलात बताने लगे। उनकी तहक़ीक़ और दर्जनों तसानीफ़ की मुकम्मल तफ़सील कई सफ़हात की मुतक़ाज़ी है।

लेकिन एक तसनीफ़ (बल्कि अज़ीम कारनामा का मुख़्तसर तज़किरा नागुज़ीर है। डाक्टर ज़िया उर रहमान आज़मी ने बीस बरस की मेहनत और जाँ-फ़िशानी के बाद
”الجامع الکامل فی الحدیث ال صحیح الشامل۔“
"अल-जामे अल-कामिल फ़ी अल-हदीस अल-सही अल-शामिल" की सूरत एक अज़ीमुश्शान इलमी और तहक़ीक़ी मन्सूबा पाया-ए-तकमील तक पहुंचाया है।

इस्लाम की चौदह सौ साला तारीख़ में ये पहली किताब है जिसमें रसूल अल्लाहﷺ की तमाम सही हदीसों को मुख़्तलिफ़ कुतुब अहादीस से जमा किया और एक किताब में यकजा कर दिया गया है। अल-जामे अल-कामिल सोला हज़ार सही अहादीस पर मुश्तमिल है। इस के 6 हज़ार अबवाब हैं। इस का पहला ऐडीशन 12 जबकि दूसरा ऐडीशन इज़ाफ़ात के साथ 19 ज़ख़ीम जिल्दों पर मुश्तमिल है।


आज़मी साहिब ने बताया कि कमोबेश 25 बरस में बतौर प्रोफेसर दुनिया के मुख़्तलिफ़ ममालिक के दौरे करता रहा। अक्सर ये सवाल उठता कि क़ुरआन तो एक किताबी शक्ल में मौजूद है। मगर हदीस की कोई एक किताब बताएं, जिसमें तमाम अहादीस यकजा हूँ। जिससे इस्तिफ़ादा किया जा सके।
सदीयों से उलमाए किराम और मुबल्लग़ीन से ग़ैर मुस्लिम और मुस्तश्रिक़ीन ये सवाल किया करते। मगर किसी के पास उस का तश्फ़ी बख़श जवाब ना था। मुझे भी ये सवालात दरपेश रहते। लिहाज़ा मैंने हदीस की एक किताब मुरत्तिब करने का बीड़ा उठाया। उन्होंने बताया कि दूसरी बार छपने में 99 फ़ीसद सही अहादीस आ गई हैं। सो फ़ीसद कहना इस लिए दरुस्त नहीं कि सद फ़ीसद सही सिर्फ़ अल्लाह की किताब है।
इंतिहाई हैरत से इस्तिफ़सार किया कि इस क़दर दकी़क़ और पेचीदा काम आपने तन-ए-तन्हा कैसे पाया-ए-तकमील तक पहुंचाया। कहने लगे मेरी ये बात गिरह से बांध लीजीए कि किसी काम की लगन और जुस्तजू हो तो वो ना-मुम्किन नहीं रहता।

सवाल किया कि इस क़दर भारी भरकम तहक़ीक़ के लिए आप दिन रात काम में जुते रहते होंगे। कहने लगे। अठारह अठारह घंटे काम किया करता था। सुब्ह-सवेरे काम का आग़ाज़ करता और रात दो अढ़ाई बजे तक मसरूफ़ रहता। बताने लगे कि ये (वसीअ-ओ-अरीज़ घर जो आप देख रही हैं
ये सारा घर एक लाइब्रेरी की मानिंद था। हर जानिब किताबें ही किताबें थीं। यूं समझें कि मैंने एक लाइब्रेरी में अपनी चारपाई डाल रखी थी। जब तहक़ीक़ी काम मुकम्मल हो गया तो मैंने तमाम किताबें अतीया donate) कर दीं।
ख़ानदान का तआवुन मयस्सर ना होता तो मैं ये काम नहीं कर सकता था। कम्पयूटर की जानिब इशारा कर के बताने लगे कि मैं उसे इस्तिमाल नहीं कर सकता। अशरों से मामूल है कि अपने हाथ से लिखता हूँ। कोई ना कोई शागिर्द मेरे साथ मुंसलिक रहता है। वो कम्पोज़िंग करता है।

डाक्टर आज़मी साहिब हिन्दी और अरबी ज़बान में बीसियों किताबें लिख चुके हैं। इन तसानीफ़ के तराजुम दर्जनों ज़बानों में छुपते हैं। सऊदी अरब और दीगर ममालिक की जमिआत और दीनी मदारिस में उनकी कुतुब पढ़ाई जाती हैं।

कहने लगे कि निहायत तकलीफ़-दह बात है कि मुस्लमानों ने हिन्दोस्तान में कम-ओ-बेश आठ सदीयों तक हुक्मरानी की। बादशाहों ने आलीशान इमारात तामीर करवाईं। ताहम ग़लती ये हुई कि उन्होंने अपने हमवतन ग़ैर मुस्लिमीन को इस्लाम की तरफ़ राग़िब करने के लिए इशाअत देन का काम नहीं किया।
हिंदूओं की किताबों का फ़ारसी और संस्कृत में तर्जुमा करवाया। मगर क़ुरआन-ओ-हदीस का हिन्दी तर्जुमा नहीं करवाया। अगर मुस्लमान हुकमरान ये काम करते तो यक़ीन जानें आज सारा भारत मुस्लमान हो चुका होता। (इन दिनों भारत में मुस्लमानों को शहरीयत से महरूम करने की मुहिम उरूज पर थी)।

कहने लगे कि अगर बर्र-ए-सग़ीर के मुस्लमान हुकमरानों ने इशाअत देन का फ़रीज़ा सरअंजाम दिया होता, तो आज ये नौबत ना आती। भारत में 80 करोड़ हिंदू बस्ते हैं। मिशन मेरा ये है कि हर हिंदू घराने में क़ुरआन और हदीस की कुतुब पहुंचे। यही सोच कर में हिन्दी ज़बान में लिखता हूँ।
इस मक़सद के तहत डाक्टर साहिब ने हिन्दी ज़बान में क़ुरआन-ए-मजीद इन्साईक्लो पीडीया की तसनीफ़ फ़रमाई। अरसा दस बरस में ये तहक़ीक़ी काम मुकम्मल हुआ। ये किताब क़ुरान-ए-पाक के तक़रीबन छः सौ मौज़ूआत पर मुश्तमिल है। तारीख़ हिंद में ये अपनी नौईयत की पहली किताब है जो इस मौज़ू पर लिखी गई। ये किताब भारत में काफ़ी मक़बूल है। अब तक उस के आठ ऐडीशन शाय हो चुके हैं। कुछ बरस क़बल उस का अंग्रेज़ी और उर्दू तर्जुमा भी पाया-ए-तकमील को पहुंचा।

सवाल किया कि आपकी किताबों से हिंदू और दीगर ग़ैर मुस्लिम मुतास्सिर होते हैं? कहने लगे जी हाँ इत्तिलाआत आती रहती हैं कि मेरी फ़ुलां फ़ुलां किताब पढ़ने के बाद फ़ुलां फ़ुलां ग़ैर मुस्लिम हल्क़ा-ब-गोश इस्लाम हो गए।
कम-ओ-बेश गुज़श्ता बीस बरस से उन्होंने कोई सफ़र नहीं किया। कहने लगे कि लाइब्रेरी से दूर कहीं आने जाने को जी नहीं चाहता। किताबों से दूर होता हूँ तो घबराहट होने लगती है। मालूम किया कि आजकल क्या मसरुफ़ियात हैं। बुताने लगे कि कुछ तहक़ीक़ी काम जारी हैं। गुज़श्ता आठ दस बरस से मस्जिद नबवीﷺ मैं हदीस का दरस देता हूँ। पहले बुख़ारी शरीफ़ और सही मुस्लिम के दरूस दिए। आजकल सुन्न अबु दाउद का दरस जारी है। बताने लगे कि मैं लैक्चर कुछ इस तरह तैयार करता हूँ कि शरह तैयार हो जाये। ताकि लैक्चरज़ मुकम्मल होने के बाद किताबी शक्ल में छिप सके।

मुख़्तसर ये कि उन्होंने दीन की नशर-ओ-इशाअत को अपना ओढ़ना बिछौना बना रखा है। उनकी हर तालीमी, इलमी और तहक़ीक़ी सरगर्मी के पीछे यही जज़बा-ओ-जुनून कारफ़रमा है।
आख़िर में मुझे अपनी कुछ किताबों का उर्दू तर्जुमा इनायत किया। इन पर मेरा नाम और अरबी ज़बान में दुआइया कलिमात तहरीर फ़रमाए। कम-ओ-बेश अढ़ाई तीन घंटों बाद मैंने वापसी की राह ली। आज़मी साहिब बरामदा porch) तक तशरीफ़ लाए। गाड़ी घर से बाहर निकलने तक वहीं खड़े रहे। होटल वापिस लोटते वक़्त मुझे उन पर निहायत रशक आया। ख़ुद पर इंतिहाई नदामत हुई। ख़्याल आया कि एक में हूँ, जिसे बरसों से दुनिया जहां के बेवुक़त कामों से फ़ुर्सत नहीं। एक ये हैं जो अशरों से हक़ीक़ी फ़लाह और कामयाबी समेटने में मसरूफ़ हैं। दुआ की कि काश मुझे भी अल्लाह का पैग़ाम समझने, इस पर अमल करने और इस की नशर-ओ-इशाअत की तौफ़ीक़ नसीब हो जाये। आमीन

Tag:
Professor Dhiya ur-Rahman Azmi
Dr. Zia ur-Rahman Azmi

 گنج کے بانکے رام سے مدینہ منورہ کے پروفیسر ضیاء الرحمن اعظمی تک
اسلام کی صداقت کے معترف عصر حاضر میں اعظم گڈھ کے در نایاب کے ساتھ ایک خاص گفتگو=================================
Quran Achya Sheetal Chhayet
कुरआनच्या' शीतल छायेत
https://archive.org/details/quranachyasheetalchhayet

پروفیسر دکتور ضیاء الرحمن اعظمی کی علمی خدمات کا مختصر تعارف
داکٹر عبد الحلیم بسم اللہ
(مدرس جامعہ سلفیہ بنارس)
جاری کردہ ؛
کامران عبد العزیز قاضی
متعلم جامعہ اسلامیہ، مدینہ منورہ



URDU: Ittiba-e-Sunnat (Aqaid-o-Ahkam Mein) by Dr Muhammad Ziaur Rahman Al Azmi




Thursday, June 11, 2020

मोटर साईकलिस्ट और ट्रैवल ब्लॉगर रोज़ी गैब्रियल rosie Gabrielle ने इस्लाम क़बूल कर लिया

कैनेडा की मारूफ़ मोटर साईकलिस्ट और ट्रैवल ब्लॉगर रोज़ी गैब्रियल rosie Gabrielle ने इस्लाम क़बूल कर लिया
http://www.0333pro.com/روزی-گیبریئل-کے-اسلام-قبول-کرنے-کی-وجہ-؟/
समाजी राबते की वेबसाइट इंस्टाग्राम पर रोज़ी गैब्रियल ने अपने तसदीक़ शूदा एकाऊंट से हाथ में क़ुरआन-ए-मजीद थामे तस्वीरें शईरकीं और मज़हब तबदील करने ऐलान किया
Famous Moto Travelers “Rosie Gabrielle” Converted to Islam in Pakistan
Original Writing is in link below.

रोज़ी ने अपनी तस्वीरें शेयर करते हुए लिखा कि2019 उनकी ज़िंदगी का सबसे मुश्किल तरीन साल था जिसमें उन्होंने बहुत से मुश्किल फ़ैसले लिए उन्होंने लिखा कि उन्हें अपनी ज़िंदगी में बहुत से चैलेंजिज़ और मुश्किलात का सामना था उन्होंने लिखा कि मैंने अपनी ज़िंदगी में हमेशा तकलीफ़ और ग़म-ओ-ग़ुस्से की हालत में हमेशा ख़ुदा से शिकायत की कि आज़माईश के लिए में ही क्यों

उन्होंने लिखा कि मैंने रूहानियत में अपने ख़ौफ़ का हल तलाश किया और अपने मज़हब से4 साल क़बल दूरी इख़तियार की उन्होंने मज़ीद लिखा कि मैं अपनी ज़िंदगी में ग़ुस्से और तकलीफ़ से नजात चाहती थी और सुकून चाहती थी मैं तकलीफों से नजात चाहती थी और दिल्ली तौर पर सुकून चाहती थी कि क़ुदरत ने मुझे पाकिस्तान भेजा जहां मुझे अपनी मंज़िल मिल गई

ब्लॉगरज़ के मुताबिक़ गुज़श्ता10 साल मैंने मुस्लिम दुनिया में गुज़ारे और यहां मुझे जो चीज़ सबसे ज़्यादा मिली वो सुकून था बदक़िस्मती से इस्लाम को दुनिया में ग़लत माअनों में पेश किया जाता है जबकि इस्लाम के असल मअनी अमन, इन्सानियत और यकसानियत-ओ-बराबरी के हैं

उन्होंने कहा कि मैं अब बाज़ाबता तौर पर मुस्लमान हो गई हूँ अपनी पोस्ट के आख़िर में उन्होंने अपने म्दाहों से कहा कि अगर उनके ज़हन में इस हवाले से कोई सवाल हो तो वो कमंट कर के सकते हैं

کینیڈا کی معروف موٹر سائیکلسٹ اور ٹریول بلاگر روزی
گیبریل نے اسلام قبول کرلیا
سماجی رابطے کی ویب سائٹ انسٹاگرام پر روزی گیبریل نے اپنے تصدیق شدہ اکاؤنٹ سے ہاتھ میں قرآن مجید تھامے تصویریں شئیرکیں اور مذہب تبدیل کرنے کا اعلان کیا



روزی نے اپنی تصویریں شیئر کرتے ہوئے لکھا کہ 2019 ان کی زندگی کا سب سے مشکل ترین سال تھا جس میں انہوں نے بہت سے مشکل فیصلے لیے انہوں نے لکھا کہ انہیں اپنی زندگی میں بہت سے چیلنجز اور مشکلات کا سامنا تھا انہوں نے لکھا کہ میں نے اپنی زندگی میں ہمیشہ تکلیف اور غم و غصے کی حالت میں ہمیشہ خدا سے شکایت کی کہ آزمائش کے لیے میں ہی کیوں؟
انہوں نے لکھا کہ میں نے روحانیت میں اپنے خوف کا حل تلاش کیا اور اپنے مذہب سے 4 سال قبل دوری اختیار کی انہوں نے مزید لکھا کہ میں اپنی زندگی میں غصے اور تکلیف سے نجات چاہتی تھی اور سکون چاہتی تھی میں تکلیفوں سے نجات چاہتی تھی اور دلی طور پر سکون چاہتی تھی کہ قدرت نے مجھے پاکستان بھیجا جہاں مجھے اپنی منزل مل گئی
بلاگرز کے مطابق گزشتہ 10 سال میں نے مسلم دنیا میں گزارے اور یہاں مجھے جو چیز سب سے زیادہ ملی وہ سکون تھا بدقسمتی سے اسلام کو دنیا میں غلط معنوں میں پیش کیا جاتا ہے جبکہ اسلام کے اصل معنی امن، انسانیت اور یکسانیت و برابری کے ہیں
انہوں نے کہا کہ میں اب باضابطہ طور پر مسلمان ہوگئی ہوں اپنی پوسٹ کے آخر میں انہوں نے اپنے مداحوں سے کہا کہ اگر ان کے ذہن میں اس حوالے سے کوئی سوال ہو تو وہ
کمنٹ کر کے پوچھ سکتے ہیں

۔۔۔۔۔

history  of legend  muslim player in football.
دنیائے فٹبال کے سلطنت پر مسلمان نوجوانوں کی بادشاہت 
دنیائے فٹبال پر یقیناً مسلمان ممالک کے مقابلے میں غیر مسلم ممالک کی تعداد بہت زیادہ ہے مگر ان تمام غیر مسلم ممالک میں بھی ایک بڑی تعداد مسلمان نوجوانوں کی ہے جنھوں نے فٹبال کے میدانوں پر اپنا بادشاہت ہمیشہ سے قائم رکھا ہوا ہے اور دوران کھیل بھی اپنے مسلمان ہونے کا اظہار فخر سے کرتے ہیں جیسے کہ اپنے جیت کا جشن     اللہ اکبر کا نعرہ  سجدے میں گرکر اور آسمان کی طرف ہاتھ اٹھا کر اللہﷻ کا شکر ادا کرنا 
ان تمام مسلم نوجوانوں کی تفصیل اپنے پاکستانی فٹبالر دوستوں کیلۓ پیش خدمت ہے 
(1)محمد صلاح 
محمد صلاح کا تعلق مصر سے ہے انکا پورا نام محمد صلاح غالی ہے صلاح نے جون 2017 میں انگلش پریمیر کلب لیور پول جوائن کیا اور 10برس بعد اسے چیمپینز لیگ کے سیمی فائنل میں پہنچانے میں کلیدی کردار ادا کیا تھا 18-2017میں انگلش پریمیر لیگ کے بہترین فٹبالر کا اعزاز حاصل کیا کیھل میں انکی بہترین کاردگردگی کی وجہ سے انہیں گول مشین کا خطاب دیا گیا ہے  صلاح کے شاندار کیھل کے بدولت مصر نے 2018 میں ہونے والے ورلڈکپ کیلۓ کوالیفائی کرنے میں کامیابی حاصل کی ہے 
(2)نعیم عرفيت محمد علی معمار 
پہلے مسلمان فٹبالر جنکا تعلق اسپین سے ہیں 5برس تک انگلش پریمیر لیگ کے کلب ٹوٹہنم ہاٹ اسپر سے وابستہ رہے انکی وجہ شہرت 1993میں اے ایف کپ کے کواٹر فائنل میں مانچسٹر سٹی کے خلاف ہیٹ ٹرک تھی جبکہ بارسلونا کو کوپاڈیل رے چمپین بنوایا 
(3)پاول پوگبا
مانچسٹر یونائٹیڈ کے سینٹر مڈفیلڈر پاول پوگبا کا شمار دنیا کے مہنگے ترین فٹبالر میں ہوتا ہے  انکی والدہ مسلمان تھیں بعدازاں پاول نے بھی اسلام قبول کیا پاول نے اطالوی کلب یونٹس کی نمایندگی کرتے ہوے ٹیم کو چار مرتبہ اطالوی سیریز اے دو مرتبہ کوپا اٹالین کپ اور دو مرتبہ سپر کوپا اٹالین میں کامیابی دلا دی 2013میں گولڈن بواۓ 2014 میں براوو ایوارڈ 2015میں یوئیفا ٹیم آف دی ائر اور 2014میں عمده فارمنس پر بیسٹ ینگ پلیر ایوارڈ سے نوازہ گیا 2016میں یورو کپ میں فرانس کو فاینل تک لانے میں کلیدی کردار پاول کا ہی تھا 
(4) سیدو مانے 
لیور پول کی جانب سے دوسرے مسلمان پلیر ہیں سیدو مانے نے یوئیفا چیمپینز لیگ کے کواٹر فاینل میں مانچسٹر سٹی کو آوٹ کلاس کردیا اور لیور پول کو دس سال بعد یوئیفا چیمپینز لیگ کے ٹاپ فور میں پہنچھایا 2015میں انہوں نے ساوتھمپٹن کو ایشٹن ویلا کے خلاف 1-6سے کامیابی دلائی اور صرف دو منٹ 56سیکنڈ میں تیز ترین ہیٹ ٹرک کرنے کا ریکارڈ قائیم کیا 2016میں تاریخ کے مہنگے ترین افریقی پلیر بنے 
(5) زین الدین زیڈان 
دنیا کا نامور فٹبالر زین الدین زیڈان کا شمار فرانس کے لیجنڈ کھلاڑيوں میں ہوتا ہے انہیں 2013میں تاریخ کے مہنگے ترین کھلاڑی کا اعزاز حاصل تھا انہیں 34 سال کی عمر میں فیفا ورلڈکپ گولڈن بال جیتنے کا اعزاز ملا زیڈان 1998 میں ورلڈکپ اور 2000میں یورو کپ کے بہترین کھلاڑی قرار پائے الجرایزی نژاد فٹبالر کھیل میں نمایاں کاردگردگی دکھانے کے بعد 2014سے ہسپانوی کلب ریال میڈرڈ میں منیجر کے فرائض انجام دے رہے ہیں وہ اپنے کلب کو لالیگا۔سپرکوپاڈی اسپین۔2بار یوئیفا چمپينزلیگ۔ 2بار یوئیفا سپر کپ اور 2بار فیفا ورلڈکپ جیتنے کا اعزاز دلوا چکے ہیں اسکے علاوه زیڈان 2017 میں اسکورایوارڈ اور ورلڈاسکورمیگزین ورلڈ منیجر آف دی ایرکا ایوارڈ بھی جیت چکے ہیں 
مگر اس عظیم مسلمان کھلاڑی کا شاندار کیریئر کا اختیتام ریڈ کارڈ پر ہوا کیوںکہ اسکو دوران میچ ایک یہودی پلیر نے مسلمان ہونے کا طعنہ دیا جس پر طیش میں آکر زیڈان نے ٹھکر مار کر اس یہودی پلیر کو ہوا میں اچھال دیا تھا اور میچ ریفری نے ریڈ کارڈ دکھا کر انہیں گراونڈ سے باہر کر دیا 
(6) مسعود اوزل
مسعود اوزل ترک نسل اور جرمنی سے تعلق ہے 
آرسنل کی نمایندگی کرتے ہیں اور ریال میڈرڈ ورڈیر بریمین اور شالکے کی طرف سے کھیل چکے ہیں جرمنی کو ورلڈ چمپین بنوانے میں سب سے اہم کلیدی کردار ادا کیا 2010 فیفا کپ اور 2016میں انگلش پریمیر لیگ اور ٹاپ اسسٹ پروائیڈر کے ایوارڈ اپنے نام کئے اسکے علاوه ریال میڈرڈ لالیگا کوپاڈیل رے سپر کوپا ڈی اسپونئیل چمپین بنوانے میں اہم کردار ادا کیا 
(7)کریم بن زیما
الجزائر سے تعلق فرانس سے تعلق ہے کریم بن زیما 2011 2012 2014 میں فرنچ پلیر آف دی ایر کا ایوارڈ حاصل کر چکے ہیں 
4مرتبہ فرنچ لیگ فرنچ کپ اور دو مرتبہ سپر کپ دو بار اسپینیش لیگ دو مرتبہ اسپینیش کپ دو مرتبہ یوئیفا چمپیینز لیگ دو مرتبہ یوئیفا سپر کپ دو بار فیفا کلب ورلڈکپ اور یورپین ٹرافی جیتنے کا اعزاز حاصل کر چکے ہیں
(8)فرینک ریبری(بلال یوسف محمد )
2004میں اسلام قبول کرنے والے بلال یوسف جرمن کلب بائرن میونخ کی طرف سے کیھلتے ہیں 
ڈی میٹز فٹبال کلب ٹرکش کلب گلاٹسٹارے اور فرنچ کلب ڈی مارسلی کی نمایندگی کر چکے ہیں انہیں 2013میں فیفا بیلن ڈی ایوارڈ کیلۓ دنیائے فٹبال پر حکمرانی کرنے والے میسی اور رونالڈو کے ساتھ شاٹ لسٹ میں شامل کیا گیا تھا جس میں انھوں نے تیسری پوزیشن حاصل کیا وہ پہلے فٹبالر ہیں جنکو تین مرتبہ جرمن پلیر آف دی ائر اور فرنچ پلیر آف دی ائر کا ایوارڈ ملا وہ یوئیفا بیسٹ پلیر کا ایوارڈ بھی حاصل کرچکے ہیں 
(9)ریاض مھریز
الجزائر سے تعلق ریاض مھریز نے اپنے جارحانہ کیھل سے لیسٹر سٹی فٹبال کلب کوپہلی بار پریمیر چمپین بنوایا رواں سال سپر سٹار مسلم ان اسپورٹس کا ایوارڈ اپنے نام کیا 2014میں میں پہلی بار ورلڈکپ میں الجزائر کی نمایندگی کی 
(10)سمع خدیرا
جرمنی کے کھلاڑی 2014میں فیفا ورلڈکپ کے فاتح ٹیم کا حصہ تھے ہسپانوی کلب ریال میڈرڈ کو لالیگا دو بار کوپا ریل ڈے سپر کوپا ڈی اسپین یوئیفا چمپیینز لیگ فیفا کلب ورلڈکپ جتوا چکے ہیں
(11)یحیی طورے
افریقی ملک آیوری کوسٹ سے تعلق ہے مانچسٹر سٹی کے علاوه بارسلونا۔مناکو فٹبال کلب یونانی اولمپکو کی نمایندگی کر چکے ہیں 2015میں آئیوری کوسٹ کی قیادت کرتے ہوے دوسری بار افریقن کپ آف نیشنز جتوایا اور افریقن پلیر آف دی ائیر کا اعزاز حاصل کیا 
(12)کولو طورے
یحیی طورے کے بڑے بھائی کولو طورے آرسنل۔مانچسٹر سٹی ۔لیور پول اور سیلٹک فٹبال کلب کی جانب سے کیھل چکے ہیں کولو طورے آیوری کوسٹ کی جانب سے سب سے زیادہ میچ کیھلنے والے دوسرے پلیر ہیں مانچسٹر یونائٹیڈ  لیور پول اور اسکاٹش فٹبال کلب کو چمپین بنوایا 
(13)ایڈن زیکو
ایڈن زیکو کا تعلق بوسنیا سے ہیں اور فٹبال کے بہترین مسلمان کھلاڑيوں میں شمار ہوتے ہیں اٹلی کے فٹبال کلب روما کی نمایندگی کرہے ہیں دو بار پریمیر لیگ ٹائٹلز۔ ایف اے کپ فٹبال لیگ کپ ۔ایف اے کمیونٹی شیلڈ جیتی وہ 2014میں فیفا ورلڈکپ کوالیفائرز کے ٹاپ اسکورر میں دوسرے نمبر پر رہے 
(14)نکولس انیلکا 
فرانس کے سابق فٹبالر نکولس انیلکا نے 16 سال کے عمر میں اسلام قبول کیا اور اپنا نام عبدالسلام بلال رکھا 
آرسنل ریال میڈرڈ لیور پول مانچسٹر سٹی سمیت کئی مشہور کلبوں کی نمایندگی کی
عبدالسلام کو 2008 اور 2009 میں ٹاپ اسکورر ہونے پر گولڈن بوٹ آیوارڈ سے نوازا گیا
(15)مارونے فیلا نینی
بلیجئم سے تعلق رکھنے والے فٹبالر مارونے فیلا نینی پریمیر لیگ میں کپتانی کے فرئض انجام دینے والے پہلے مسلمان فٹبالر ہیں جنکو 17. 2016 کے سیزن میں سندر لینڈ کے خلاف میچ میں مانچسٹر یونائٹیڈ کا کپتان مقرر کیا گیا تھا 2013 سے دنیا کے مہنگے ترین کلب مانچسٹر یونائٹیڈ سے وابستہ ہے اور مانچسٹر یونائٹیڈ کو ایف اے کپ اور یورپالیگ ٹائٹل جتوایا


Friday, June 5, 2020

राशियन क़ुरआन अनुवादक : ईमान फालेरिया बोरोखोफा

फालेरिया बोरोखोफा
रशियन से हिंदी अनुवाद करके विकिपीडिया के लिये लिखा गया।

फालेरिया बोरोखोफा (जन्म: 14 मई, 1940 - 2019; अरबी: فاليريا بوروخوفا) या ईमान फालेरिया बोरोखोफा: रूसी अनुवादक[1]और दुभाषिया थीं । इंग्लिश से रशियन में अनुवाद में माहिर थीं। क़ुरआन का रशियन भाषा में अनुवाद किया था।
परिचय
ईसाई धर्म से इस्लाम धर्म अपनाया। "ईमान" नाम को अपने प्रथम नाम के रूप में जोड़ा।
मुहम्मद सईद अल-रशद से विवाह किया।
1981 में अपने पति और धार्मिक विद्वानों के एक समूह की मदद से दमिश्क की यात्रा की।
1991 में क़ुरआन का अनुवाद रशियन भाषा में पूरा किया। जिसे रूस और मध्य एशिया के अनुमोदन के साथ अल-अजहर की 1997 में समीक्षा के बाद प्रकाशित किया गया था। इस अनुवाद को बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में रूसी भाषा में लिखा गया सबसे महत्वपूर्ण भी माना जाता है।

पुरस्कार और उपाधियाँ
इतिहास में वह एक विदेशी भाषा में डिप्लोमा करने वाली पहली महिला थी।
ईमान फालेरिया बोरोखोफा को रूसी लेखक संघ की सदस्यता और रूस और इस्लामिक सेंट्रल एशियाई देशों में कई साहित्यिक और वैज्ञानिक अकादमियों की सदस्यता दी गई।
रूस में यूरोपीय क्षेत्र के मुस्लिमों के धार्मिक प्रशासन से "धार्मिक एकता के लिए" पदक जीता।
6 नवंबर, 2003 - इस्लामी गणतंत्र ईरान के राष्ट्रपति , मोहम्मद खातमी ने मुस्लिम दुनिया में "पवित्र कुरआन के सेवक" के महत्वपूर्ण पुरस्कार से सम्मानित किया।
ईमान फालेरिया बोरोखोफा को बिजनेस ऑनलाइन " के ऑनलाइन संस्करण के "रूस के शीर्ष 100 प्रभावशाली मुसलमानों" में 60 वां स्थान हासिल किया ।

मृत्यु
इमान फालेरिया बोरोखोफा का निधन 79 वर्ष की उम्र में 2 सितंबर, 2019 को सोमवार को मास्को में निधन हुआ। मास्को में खोवैंस्की कब्रिस्तान में दफ़न की गयी।

बाहरी कड़ियाँ
ईमान फालेरिया बोरोखोफा के काम पर आधारित वेबसाइट iman.tora.ru/
–------–--------------------

इन्हें भी देखें जो मैं ने लिखे[edit source]





urdu wiki par

#Page title Date Original size Current size Links
1فاليريا بوروخوفا7912,596Log · History · Page History · Top Edits · Pageviews
2فاطمہ گرم9261,035Log · History · Page History · Top Edits · Pageviews
3امینہ اسلمی1,7751,840Log · History · Page History · Top Edits · Pageviews
4سلطانہ فریمین1,7731,809Log · History · Page History · Top Edits · Pageviews
5غازی محمود دھرمپال

















वालेरी पोरोखोव का निधन हो गया। हम उस महिला के बारे में क्या जानते हैं जिसने कुरान का रूसी में अनुवाद किया था।


 4 सितंबर, 2019, 17:00

 19605
वलेरिया प्रोखोरोवा
वेलेरिया प्रोखोरोवा / फोटो Zinovoevcenter.com से

2 सितंबर को, एक मुस्लिम सार्वजनिक व्यक्ति वालेरी पोरोखोव का निधन हो गया। हम उसके जीवन और वैज्ञानिक गतिविधि के बारे में बात करते हैं।

प्रसिद्ध मुस्लिम सार्वजनिक व्यक्ति, एक साथ दुभाषिया और रूसी में कुरान के शब्दार्थ अनुवाद के लेखक, वेलेरिया (ईमान) पोरोखोवा का 79 साल की उम्र में मॉस्को में निधन हो गया। इस बारे में जानकारी 2 सितंबर को रूस के मुफ्तीस परिषद की वेबसाइट पर प्रकाशित हुई थी 
"रूस के मुफ़्तीस परिषद की ओर से, रूसी संघ के मुसलमानों का आध्यात्मिक प्रशासन और स्वयं व्यक्तिगत रूप से, मैं सम्मानित वेलेरिया (इमान) पोरोखोवा की मृत्यु पर अपनी गंभीर संवेदना व्यक्त करता हूं। वह केवल एक साथ व्याख्या करने वाली नहीं थीं, बल्कि आधुनिक रूसी इतिहास में पवित्र कुरान की एकमात्र अनुवादक थीं।" एक बयान में मुफ्ती शेख रवील गितनदीन ने कहा।
विभिन्न स्रोतों ने वेलेरिया की मृत्यु के कारण के रूप में एक लंबी बीमारी का हवाला दिया, विशेष रूप से, फुफ्फुसा और कैंसर।

जीवनी

वेलेरिया पोरोखोवा का जन्म 1940 में रूसी शहर उख्ता में वंशानुगत महानुभावों के परिवार में हुआ था। उसके पिता पावेल पोरोखोव को स्टालिनवादी दमन के वर्षों के दौरान गोली मार दी गई थी। माँ नताल्या, "लोगों के दुश्मन की पत्नी" होने के नाते, वेलेरिया को जन्म दिया, निर्वासन में रही, और ख्रुश्चेव पिघल में वह मास्को वापस जाने में सक्षम हुई, जहाँ उसने लगभग 30 वर्षों तक मेडिकल अकादमी में एक शिक्षिका के रूप में काम किया।
अपनी जवानी में जीवनसाथी के साथ वेलेरिया
वेलेरिया अपने युवावस्था में अपने पति के साथ / फोटो वेलेरिया पोरोखोवा की आधिकारिक वेबसाइट से
1975 में, वेलेरिया पोरोखोवा ने दमिश्क विश्वविद्यालय के शरिया संकाय के स्नातक, मुहम्मद सईद अल-रोशद से शादी की, उस समय उन्होंने मॉस्को ऑटोमोटिव इंस्टीट्यूट में अध्ययन किया था। जैसा कि वेलेरिया ने अपने संस्मरणों में लिखा है , मुहम्मद ने उनसे मुलाकात के बाद छठे दिन एक प्रस्ताव रखा और सबसे पहले एक निर्णायक इनकार किया।
"लेकिन, इनकार कर दिया, मैं जानबूझकर पूर्वी आदमी की मानसिकता की ख़ासियत को नजरअंदाज कर दिया, उसकी इच्छाओं को प्राप्त करने में मजबूत और राजसी। मुहम्मद ने संस्थान में अकादमिक अवकाश लिया और आठ महीने तक मुझे, मेरी माँ, नादेज़्दा पावलोवना के साथ प्यार किया, लेकिन पूरे परिवार के साथ। सामान्य तौर पर, "वलेरिया ने कहा।
वेलेरिया दो बेटों की माँ है - आंद्रेई (अपनी पहली शादी से बेटा) और खालिद।
वेलेरिया पोरोखोवा ने अल-फुरकान मॉस्को इस्लामिक एजुकेशन सेंटर की परिषद का नेतृत्व किया, जिसके महानिदेशक उनके पति हैं। 2000 में, वह रूसी मुसलमानों के सीधे पथ के धार्मिक संगठन की सह-अध्यक्ष बनीं। वह अंतर्राष्ट्रीय फंड "इंटरफेथ सद्भाव और स्थिरता" के अध्यक्ष थे।

रूसी में कुरान का अनोखा अनुवाद

वलेरिया पोरोखोवा द्वारा कुरान के अनुवाद को विहित अल-अजहर इस्लामिक रिसर्च अकादमी (मिस्र, काहिरा) द्वारा मान्यता प्राप्त थी, जो इस्लामी दुनिया में श्रम की सर्वोच्च मान्यता है।
1985 से 1990 के दशक की शुरुआत तक, वैलेरिया पोरोखोवा दमिश्क में रहती थी, जहाँ उसने पवित्र पुस्तक का अनुवाद किया। उसके पास मॉरिस थोरेज़ मॉस्को स्टेट पेडागोगिकल इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन लैंग्वेजेज का डिप्लोमा था, वह अपने इतिहास में किसी विदेशी भाषा के डिप्लोमा की रक्षा करने वाली पहली महिला थी।
वैलेरी प्रोखोरोवा (दाएं से दूसरा) यूएई के अरबपति कारोबारी अब्दुल्ला अल गुरिरा से मिलने गए
Valery Prokhorov (दाएं से दूसरे) UAE से अरबपति व्यवसायी अब्दुल्ला अल गुरिरा का दौरा / साइट Klauzura.ru से फोटो
वालिया ने कहा, "मैं चाहता था कि कुरान का अनुवाद किसी व्यक्ति द्वारा रूसी में नहीं किया जाए, जैसा कि वे कहते हैं, बाहर से, लेकिन वह जो कहता है, उस पर विश्वास करके। केवल इस तरह से अपने सार, पूर्वाग्रह और पूर्वाग्रह के बिना इसका अर्थ बता सकता है," वालिया ने कहा।
वेलेरिया ने अरबी पाठ की सामग्री को दिखाने के लिए, रूप, कल्पना और शास्त्र की शैली को संरक्षित करने की मांग की। अनुवाद काव्यात्मक रूप में किया गया था, इसे काम करने में 11 साल लग गए।
विशेषज्ञों ने वेलेरिया पोरोखोवा के काम की प्रशंसा की। तो, कार्नेगी सेंटर के मास्को शाखा के एक विशेषज्ञ अलेक्सेई मालाशेंको ने अनुवाद को "एक शानदार काव्य कृति" कहा।
अक्ताऊ में वलेरी पोरोखोव धर्म पर अपना व्याख्यान देते हैं
अक्ताऊ में वलेरी पोरोखोव धर्म / फोटो पर अपना व्याख्यान देते हैं: फोटो
प्रसिद्ध सोवियत प्राच्यविद आंद्रेई बर्टेल्स ने कहा: "पोरोखोवा पहले अनुवादक हैं जिन्होंने कुरान के वर्चस्व के स्वर्गीय संगीत को प्रसारित किया।"
इंटरनेशनल चैरिटेबल फाउंडेशन ह्यूमन अपील इंटरनेशनल (यूएई) के अनुसंधान केंद्र ने अपनी विश्लेषणात्मक रिपोर्ट में संकेत दिया कि "उनके विश्लेषण के परिणामों ने अनुवाद के स्पष्ट मुस्लिम अभिविन्यास का संकेत दिया, जो मूल इस्लामी परंपरा में बनाया गया था, और अर्थ के संचरण में विकृतियों की अनुपस्थिति थी।"
यूएई के राष्ट्रपति शेख जायद बिन सुल्तान अल-इंहान ने अनुवाद के प्रकाशन के बाद, पोरोखोवा के काम का गहन विश्लेषण किया। आठ वैज्ञानिकों ने विश्लेषणात्मक अध्ययन में भाग लिया - चार अरब देशों से, चार रूस से। विद्वानों के अनुमोदन के बाद, शेख ने रमजान के पवित्र महीने में रूसी मुसलमानों को उपहार के रूप में 25 हजार प्रतियों के संचलन के साथ अनुवाद के प्रकाशन को वित्त पोषित किया।

पोरोखोवाया के अनुवाद की आलोचना

"द कुरान; अनुवाद का अर्थ" पुस्तक की व्यापक मान्यता के बावजूद, इसके लिए धर्मशास्त्रियों की प्रतिक्रिया मिश्रित थी।
"उसके काम को उसकी उच्च-प्रोफ़ाइल शैली द्वारा प्रतिष्ठित किया गया है। लेकिन साथ ही, इसका अनुवाद कई कुरान के शब्दों का सटीक अर्थ और, इसके अलावा, शर्तों से अवगत नहीं करता है," अज़रबैजान इस्लामी विद्वान एलमीर कुलीयेव ने कहा।
तातार विश्व पत्रिका के साथ एक साक्षात्कार में, कुरानवाद में प्रसिद्ध रूसी विशेषज्ञ, यिफिम रेजवान, ने भी पोरोखोवा के अनुवाद को रद्द करने के बारे में जानकारी से इनकार किया। उनके अनुसार, अल-अजहर आयोग ने केवल पाठ के अरबी संस्करण को मुद्रित करने की अनुमति दी, जो निश्चित रूप से कुरान के अनुवाद के किसी भी संस्करण में मौजूद होना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इसमें त्रुटियां नहीं हैं।
"क्या हम अंतर को समझते हैं? रूसी अनुवाद की कोई बात नहीं थी! लेकिन रूसी पाठ के लेखक और संपादक ने इस दस्तावेज़ को अल-अजहर द्वारा अनुवाद के पाठ के आधिकारिक इस्लामी केंद्र द्वारा आधिकारिक अनुमोदन के रूप में प्रकाशित किया," येफिम रेजवान ने कहा।

इस्लाम धर्म को अपनाया

वेलेरिया केवल 45 साल की उम्र में इस्लाम में आई थीं। उसके कबूलनामे से, वह जीवन भर विश्वास करती रही।
वैलेरिया ने विश्वास की राह पर चलते हुए कहा, "मेरी मां को उसी Tsarskoye Selo कैथरीन कैथेड्रल में Tsar की बेटी के रूप में बपतिस्मा दिया गया था। उसने मुझे बपतिस्मा देने का आदेश दिया। यह मेरी बहुत बड़ी इच्छा है।"
अपने पति के साथ वेलेरिया पोरोखोवा
वेलेरिया पोरोखोवा अपने पति / फोटो के साथ: Islamdag.ru
1981 में, वेलेरिया ने रूढ़िवादी बपतिस्मा प्राप्त किया।
वेलेरिया पोरोखोवा ने कोम्सोमोल्स्काया प्रवीडा के साथ एक साक्षात्कार में कहा , "मेरे पति एक अरब हैं, और मैंने तुरंत उन्हें i। उनका अपना विश्वास है, मेरा अपना विश्वास है ।"
लेकिन कुरान में वेलेरिया की दिलचस्पी बढ़ी। एक साक्षात्कार में, उसने कहा कि पवित्र सुरा ने उसे बताया कि इस्लाम हर चीज के लिए कितना सहिष्णु है - धर्म, लोग, मानव अधिकार। 1985 में यह शौक उसे सीरिया ले जाने के लिए प्रेरित करता है, जहाँ वह इस्लाम और उसके मध्य नाम "ईमान" (वेरा - अरब ) को स्वीकार करती है 
"मैंने कुरान पढ़ा और कुछ बिंदु पर मुझे एक तरह की अंतर्दृष्टि महसूस हुई, जिसने मुझे अंदर से उकसाया। मेरे पूरे दिल से मुझे लगा कि मैं एक मुस्लिम था और इस पवित्र पुस्तक में एक भी शब्द नहीं था, जिसके साथ मेरा दिल सहमत नहीं होगा," वेलेरिया ने हमारे बारे में बताया इस्लाम में इसका परिवर्तन।
सीरिया में, वेलेरिया अरब संस्कृति में शामिल हो गए, उन्होंने दर्शन, धर्म और इस्लामी दुनिया के इतिहास पर कई काम किए। एक साक्षात्कार में, उसने स्वीकार किया कि उसके भाग्य में सबसे महत्वपूर्ण उपहार मुस्लिम विश्वास की एक समझ है।

पोरोखोवा और कजाकिस्तान

वलेरिया ने अक्सर कजाकिस्तान में धार्मिक मुद्दों पर अपनी राय साझा की। 2011 में, जब कजाकिस्तान में राज्य के संस्थानों में प्रार्थना कक्ष बंद थे, तो उसने इस निर्णय का समर्थन किया। उनकी राय में, सिविल सेवक, जिनके कार्यों पर राज्य की समस्याओं के निर्णय निर्भर करते हैं, दैनिक प्रार्थना करने की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए संस्थानों में प्रार्थना कक्ष की आवश्यकता नहीं होती है।
वेलेरिया पोरोखोवा ने अनिवार्य प्रार्थना करने के लिए कुरान के आदर्श के बारे में कहा, "इस्लाम में इस तरह की एक गंभीर अवधारणा है" प्रार्थनाओं को एकत्रित करना। "यह तब है जब आप दिन की प्रार्थनाएं छोड़ते हैं और शाम को अतिरिक्त प्रार्थना करते हैं।"
कज़ान में वलेरी प्रोखोरोव
कज़री / फोटो में वैलेरी प्रोखोरोव
एक अन्य साक्षात्कार में, पोरोखोव ने पश्चिमी कजाकिस्तान में कट्टरपंथी सलाफिज़्म की समस्या को छुआ । उन्होंने धार्मिक चरमपंथ के विषय पर कजाकिस्तान गणराज्य के जनरल प्रॉसीक्यूटर कार्यालय के कर्मचारियों के लिए व्याख्यान दिया।
"रूस में, सलाफिज़्म के उपदेशकों को यह कहते हुए बेदखल कर दिया गया:" हम आपके बहुत आभारी हैं, आपने सलाम अलैकुम में भी योगदान दिया। और उन्हें भेज दिया। और कजाकिस्तान में, यह किया जाना चाहिए। कोई समारोह नहीं। आपको अपनी सीमाओं के भीतर भ्रम की आवश्यकता क्यों है? ”- पोरखोव ने 2011 में कज़ाकिस्तान को सलाह दी।
अलमाटी की यात्रा के दौरान इमांगली तस्मागमबेटोव के साथ वालेरी पोरोखोव
वेलेरिया पोरोखोवा की आधिकारिक वेबसाइट से अल्माटी / फोटो की यात्रा के दौरान इमांगली तस्मागमबेटोव के साथ वेलेरी पोरोखोव
2013 में, कज़ाकिस्तान में बुर्का या हिजाब पहनने के विवादों पर टिप्पणी करते हुए, पोरोखोवा ने सिफारिश की कि कज़ाख महिलाएँ बुर्का न पहनें। उनके अनुसार, अरब देशों में महिलाओं के लिए बुर्का प्रासंगिक है, जहाँ वह महिलाओं की त्वचा को धूप और धूल के तूफान से बचाती है। इसी समय, पोरखोवा रूस और मध्य एशिया में हिजाब पहनने वाली मुस्लिम महिलाओं के विरोध में नहीं थी। वेलेरिया खुद टोपी पहनना पसंद करती थीं, उन्होंने कहा कि जो महिलाएं बूढ़ी हैं और लंबे समय से शादीशुदा हैं, वे हेडस्कार्फ़ नहीं बल्कि दूसरी टोपी पहन सकती हैं।
मध्यरात्रि की प्रार्थना के बाद मास्को के कैथेड्रल मस्जिद में गुरुवार, 5 सितंबर को वेलेरिया पोरोखोवा के लिए विदाई होगी। जनाज़ की नमाज़ अदा करने के बाद, पोरोखोव को खोव्स्की कब्रिस्तान में दफनाया जाएगा।