मुहम्मद उमर कैरानवी: May 2019

Thursday, May 30, 2019

दानवों को मुंह चिढ़ाती मुस्लिम बेटियों से कुछ सीखेगा हिन्दू समुदाय? - शिवनाथ झा

इंडिया टुडे के संपादक और बहुचर्चित फेसबुक ऐक्टिविस्ट दिलीप मंडल ने पिछले दिनों आमिर खान के कार्यक्रम सत्यमेव जयते के बारे में अपनी वॉल पर एक अपडेट छोड़ा. इस अपडेट में राजा राममोहन रॉय को अपनी कुलीन बिरादरी के बीच व्याप्त एक बुरी प्रथा को खत्म करने वाला बताया गया था. दिलीप मंडल ने आमिर खान का भी इसलिए सम्मान किया था कि वे भी इलीट में व्याप्त एक बुराई कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ जनजागरण कर रहे हैं. अपडेट में आमिर की सफलता की कामना की गई थी, लेकिन जैसा कि फेसबुक पर अक्सर होता है, बहस मूल मुद्दे से भटक कर होने लगी और निशाने पर आ गया सती प्रथा.
दरअसल दिलीप मंडल मुस्लिम समाज पर इसलिए कुछ कटाक्ष नही कर पाए कि उसमें भ्रूण हत्या की समस्या बिल्कुल न के बराबर है. पैंसठ वर्षों से हम भारत के लोग विश्व के मुस्लिम देशों और मुसलमानों के प्रति “राजनितिक सिद्धि के लिए” भले ही अपने मन में प्रतिरोध और प्रतिशोध की भावना को पाल-पोस कर जीवित रखने की अनवरत चेष्टा करते हों, लेकिन भारत का हिन्दू समाज शायद इस बात को इंकार नहीं कर सकता है कि लड़कियों के मामले में भ्रूण-हत्या मुस्लिम समाज को ग्रसित नहीं कर पाई है.
क्या कहते हैं भारत के शैक्षिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक तथाकथित “ठेकेदार” या “तथाकथित प्रबुद्धजन”? यदि देखा जाये, तो भारत में नारी-भ्रूण-हत्या में समाज के शिक्षित और संभ्रांत वर्ग का जितना हाथ है, शायद अनपढ़ लोगों का नहीं.
पिछले दिनों दिल्ली के एक पॉश इलाके (दक्षिण दिल्ली) का सर्वेक्षण किया गया. हजारों शिक्षित और संभ्रांत वर्ग के पुरुष और महिलाओं से बात की गयी. दुर्भाग्य यह रहा की इस इलाके में रहने वाले 90 फीसदी से भी ज्यादा महिलाएं और पुरुष, जो अपने को “समाज का ठेकेदार” कहलाते हैं और विभिन्न कार्यक्रमों में गला फाड़-फाड़ कर कन्या-भ्रूण हत्या के बारे में लोगों को संवेदनशील करने की कोशिश करते हैं ताकि उनके द्वारा चलाये जा रहे संस्थाओं को भारत सरकार के अलावे विश्व स्तर की अन्य सरकारी खजाने से लक्ष्मी का प्रवेश बना रहे, सबों को बेटा चाहिए, बेटी नहीं. उनके अनुसार “बेटियां तो पराये घर में जाएँगी, फिर इतने बड़े व्यवसाय, उद्योग का मालिक कौन होगा?”
पाश्चात्य देशों की तरह, भारत भी नारी-अपमान, अत्याचार एवं शोषण के अनेकानेक निन्दनीय कृत्यों से ग्रस्त है। उनमें सबसे दुखद ‘कन्या भ्रूण-हत्या’ से संबंधित अमानवीयता, अनैतिकता और क्रूरता की वर्तमान स्थिति हमारे देश की ही ‘विशेषता’ है, उस देश की, जिसे एक धर्म प्रधान देश, अहिंसा व आध्यात्मिकता का प्रेमी देश और नारी-गौरव-गरिमा का देश होने पर गर्व है।
वैसे तो प्राचीन इतिहास में नारी पारिवारिक व सामाजिक जीवन में बहुत निचली श्रेणी पर भी रखी गई नज़र आती है, लेकिन ज्ञान-विज्ञान की उन्नति तथा सभ्यता-संस्कृति की प्रगति से परिस्थिति में कुछ सुधर अवश्य आया है, फिर भी अपमान, दुर्व्यवहार, अत्याचार और शोषण की कुछ नई व आधुनिक दुष्परंपराओं और कुप्रथाओं का प्रचलन हमारी संवेदनशीलता को खुलेआम चुनौती देने लगा है। साइंस व टेक्नॉलोजी ने कन्या-वध की सीमित समस्या को, अल्ट्रासाउंड तकनीक द्वारा भ्रूण-लिंग की जानकारी देकर, समाज में कन्या भ्रूण-हत्या को व्यापक बना दिया है। दुख की बात है कि शिक्षित तथा आर्थिक स्तर पर सुखी-सम्पन्न वर्ग में यह अतिनिन्दनीय काम अपनी जड़ें तेज़ी से फैलाता जा रहा है।
इस व्यापक समस्या को रोकने के लिए गत कुछ वर्षों से कुछ चिंता व्यक्त की जाने लगी है। साइन बोर्ड बनाने से लेकर क़ानून बनाने तक, कुछ उपाय भी किए जाते रहे हैं। जहां तक क़ानून की बात है, विडम्बना यह है कि अपराध तीव्र गति से आगे-आगे चलते हैं और क़ानून धिमी चाल से काफ़ी दूरी पर, पीछे-पीछे। नारी-आन्दोलन भी रह-रहकर कुछ चिंता प्रदर्शित करता रहता है, यद्यपि वह नाइट क्लब कल्चर, सौंदर्य-प्रतियोगिता कल्चर, कैटवाक कल्चर, पब कल्चर, कॉल गर्ल कल्चर, वैलेन्टाइन कल्चर आदि आधुनिकताओं तथा अत्याधुनिकताओं की स्वतंत्रता, स्वच्छंदता, विकास व उन्नति के लिए; मौलिक मानवाधिकार के हवाले से—जितना अधिक जोश, तत्परता व तन्मयता दिखाता है, उसकी तुलना में कन्या भ्रूण-हत्या को रोकने में बहुत कम तत्पर रहता है।
कुछ वर्ष पूर्व एक मुस्लिम सम्मेलन में (जिसका मूल-विषय ‘मानव-अधिकार’ था) एक अखिल भारतीय प्रसिद्ध व प्रमुख एन॰जी॰ओ॰ की एक राज्यीय (महिला) सचिव ने कहा था: ‘पुरुष-स्त्री अनुपात हमारे देश में बहुत बिगड़ चुका है (1000:840, से 1000:970 तक, लेकिन इसकी तुलना में मुस्लिम समाज में यह अनुपात बहुत अच्छा, हर समाज से अच्छा है। मुस्लिम समाज से अनुरोध है कि वह इस विषय में हमारे समाज और देश का मार्गदर्शन और सहायता करें।’
उपरोक्त असंतुलित लिंग-अनुपात (Gender Ratio) के बारे में एक पहलू तो यह है कि कथित महिला की जैसी चिंता, हमारे समाजशास्त्री वर्ग के लोग आमतौर पर दर्शाते रहते हैं और दूसरा पहलू यह है कि जैसा कि उपरोक्त महिला ने ख़ासतौर पर ज़िक्र किया, हिन्दू समाज की तुलना में मुस्लिम समाज की स्थिति काफ़ी अच्छी है। इसके कारकों व कारणों की समझ भी तुलनात्मक विवेचन से ही आ सकती है। मुस्लिम समाज में बहुएं जलाई नहीं जातीं। ‘बलात्कार और उसके बाद हत्या’ नहीं होती। लड़कियां अपने माता-पिता के सिर पर दहेज और ख़र्चीली शादी का पड़ा बोझ हटा देने के लिए आत्महत्या नहीं करती। जिस पत्नी से निबाह न हो रहा हो उससे ‘छुटकारा’ पाने के लिए ‘हत्या’ की जगह पर ‘तलाक़’ का विकल्प है और इन सबके अतिरिक्त, कन्या भ्रूण-हत्या की लानत मुस्लिम समाज में नहीं है।
मुस्लिम समाज यद्यपि भारतीय मूल से ही उपजा, इसी का एक अंग है, यहां की परंपराओं से सामीप्य और निरंतर मेल-जोल की स्थिति में वह यहां के बहुत सारे सामाजिक रीति-रिवाज से प्रभावित रहा तथा स्वयं को एक आदर्श इस्लामी समाज के रूप में पेश नहीं कर सका, बहुत सारी कमज़ोरियों उसमें भी घर कर गई हैं, फिर भी तुलनात्मक स्तर पर उसमें जो सद्गुण पाए जाते हैं, उनका कारण सिवाय इसके कुछ और नहीं हो सकता, न ही है, कि उसकी उठान एवं संरचना तथा उसकी संस्कृति को उत्कृष्ट बनाने में इस्लाम ने एक प्रभावशाली भूमिका अदा की है।
इस्लाम, 1400 वर्ष पूर्व जब अरब प्रायद्वीप के मरुस्थलीय क्षेत्र में एक असभ्य और अशिक्षित क़ौम के बीच आया, तो अनैतिकता, चरित्रहीनता, अत्याचार, अन्याय, नग्नता व अश्लीलता और नारी अपमान और कन्या-वध के बहुत से रूप समाज में मौजूद थे। इस्लाम के पैग़म्बर का ईश्वरीय मिशन, ऐसा कोई ‘समाज सुधर-मिशन’ न था जिसका प्रभाव जीवन के कुछ पहलुओं पर कुछ मुद्दत के लिए पड़ जाता और फिर पुरानी स्थिति वापस आ जाती। बल्कि आपका मिशन ‘सम्पूर्ण-परिवर्तन’, समग्र व स्थायी ‘क्रान्ति’ था, इसलिए आप (सल्ल॰द्) ने मानव-जीवन की समस्याओं को अलग-अलग हल करने का प्रयास नहीं किया बल्कि उस मूल-बिन्दु से काम शुरू किया जहां समस्याओं का आधार होता है। इस्लाम की दृष्टि में वह मूल बिन्दु समाज, क़ानून-व्यवस्था या प्रशासनिक व्यवस्था नहीं बल्कि स्वयं ‘मनुष्य’ है अर्थात् व्यक्ति का अंतःकरण, उसकी आत्मा, उसकी प्रकृति व मनोवृत्ति, उसका स्वभाव, उसकी चेतना, उसकी मान्यताएं व धारणाएं और उसकी सोच तथा उसकी मानसिकता व मनोप्रकृति।
बेटियों की निर्मम हत्या की उपरोक्त कुप्रथा को ख़त्म करने के लिए पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰द्) ने अभियान छेड़ने, भाषण देने, आन्दोलन चलाने, और ‘क़ानून-पुलिस-अदालत-जेल’ का प्रकरण बनाने के बजाय केवल इतना कहा कि ‘जिस व्यक्ति के तीन (या तीन से कम भी) बेटियां हों, वह उन्हें ज़िन्दा गाड़कर उनकी हत्या कर दे, उन्हें सप्रेम व स्नेहपूर्वक पाले-पोसे, उन्हें (नेकी, शालीनता, सदाचरण व ईशपरायणता की) उत्तम शिक्षा-दीक्षा दे, बेटों को उन पर प्रमुखता व वरीयता न दे, और अच्छा-सा (नेक) रिश्ता ढूंढ़कर उनका घर बसा दे, तो पारलौकिक जीवन में वह स्वर्ग में मेरे साथ रहेगा।’
‘परलोकवाद’ पर दृढ़ विश्वास वाले इन्सानों पर उपरोक्त संक्षिप्त-सी शिक्षा ने जादू का-सा असर किया। जिन लोगों के चेहरों पर बेटी पैदा होने की ख़बर सुनकर कलौंस छा जाया करती थी (क़ुरआन, 16:58) उनके चेहरे अब बेटी की पैदाइश पर, इस विश्वास से, खिल उठने लगे कि उन्हें स्वर्ग-प्राप्ति का एक साधन मिल गया है। फिर बेटी अभिशाप नहीं, वरदान, ख़ुदा की नेअमत, बरकत और सौभाग्यशाली मानी जाने लगी और समाज की, देखते-देखते काया पलट गई।
मनुष्य की कमज़ोरी है कि कभी कुछ काम लाभ की चाहत में करता है और कभी डर, भय से, और नुक़सान से बचने के लिए करता है। इन्सान के रचयिता ईश्वर से अच्छा, भला इस मानव-प्रकृति को और कौन जान सकता है? अतः इस पहलू से भी कन्या-वध करने वालों को अल्लाह (ईश्वर) ने चेतावनी दी। इस चेतावनी की शैली बड़ी अजीब है जिसमें अपराधी को नहीं, मारी गई बच्ची से संबोधन की बात क़ुरआन में आई हैः
‘और जब (अर्थात् परलोक में हिसाब-किताब, फ़ैसला और बदला मिलने के दिन) ज़िन्दा गाड़ी गई बच्ची से (ईश्वर द्वारा) पूछा जाएगा, कि वह किस जुर्म में क़त्ल की गई थी’ (81:8,9)।
इस वाक्य में, बेटियों को क़त्ल करने वावालों को सख़्त-चेतावनी दी गई है और इसमें सर्वोच्च व सर्वसक्षम न्यायी ‘ईश्वर’ की अदालत से सख़्त सज़ा का फ़ैसला दिया जाना निहित है। एकेश्वरवाद की धरणा तथा उसके अंतर्गत परलोकवाद पर दृढ़ विश्वास का ही करिश्मा था कि मुस्लिम समाज से कन्या-वध की लानत जड़, बुनियाद से उखड़ गई। 1400 वर्षों से यही धरणा, यही विश्वास मुस्लिम समाज में ख़ामोशी से अपना काम करता आ रहा है और आज भी, भारत में मुस्लिम समाज ‘कन्या भ्रूण-हत्या’ की लानत से पाक, सर्वथा सुरक्षित है। देश को इस लानत से मुक्ति दिलाने के लिए इस्लाम के स्थाई एवं प्रभावकारी विकल्प से उसको लाभांवित कराना समय की एक बड़ी आवश्यकता है.
(लेखक शिवनाथ झा वरिष्ठ पत्रकार है और कई मीडिया घरानों रह चुके हैं।
With Thanks
http://mediadarbar.com/6583/muslim-satyamev-jayate/
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"इस्लाम आतंक? या आदर्श" पुस्तक के  लेखक स्वामी लक्ष्मिशंकाराचार्य ने पिछली किताब में क़ुरआन की २४ आयतों को जिहादी बताते हुए इस्लाम को आंतक से जोड़ा था अब अपनी ही किताब के जवाब में इस्लाम को आदर्श बताया, और सार्वजनिक माफ़ी मांगते हुए कहा की
https://youtu.be/MP-wYcPjoIE
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5 इस्लाम दुश्मन जो दोस्त बन गए ❤️💚
5 Inspirational Muslim Revert Stories
"islam enemies now friends"
5 اسلام دشمن جو دوست بن گئے 🌿
Allah ka Challenge
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Wednesday, May 22, 2019

रोज़ेदार ने इंटर नेशनल बॉक्सिंग मुकाबला जीत लिया روزے دار نے انٹرنیشنل باکسنگ مقابلہ جیت لیا

جولین ولیمز Wishing you a Happy Ramadan
रोज़ेदार जूलियन विलियम्स मुसलमान अमरीकन  प्रोफेसर बॉक्सर ने इंटरनेशनल बॉक्सिंग फाइट जीत ली,
जीत के बाद सबसे पहले अल्लाह को सजदा किया और
अल्हम्दुलिल्लाह कहने के बाद मुसलमानों को रमजान की मुबारकबाद भी दी
जिस से इंटरनेशनल बॉक्सिंग फाइट जीती उसने कभी हार नहीं देखी थी आज तक 23 मुकाबलों में वह कभी नहीं हारा था 24वां मुकाबला रोज़ेदार से हार गया


روزیدار جولین ولیمس
مسلمان امریکن پروفیسر باکسر نے انٹرنیشنل باکسنگ فائٹ جیت لی,
جیت کے بعد سب سے پہلے اللہ کو سجدہ کیا اور
الحمد اللہ کہنے کے بعد مسلمانوں کو رمضان کی مبارکباد بھی دی
جس سے انٹرنیشنل باکسنگ فائٹ جیتی اس نے کبھی ہار نہیں دیکھی تھی
 آج تک23مقابلوں میں وہ کبھی نہیں ہارا تھا24واں مقابلہ روزیدار سے ہار گیا
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New Champion Julian Williams Wishing you a Happy Ramadan, Ramzan Mubarak, Ramadan Kareem, I just want to say Alhamdulillah I'm So Blessed
Julian Williams sprung a shocking upset of the previously unbeaten Jarrett Hurd to capture the WBA and IBF junior middleweight titles on Saturday night at EagleBank Arena in Fairfax, Virginia.
Jarrett Hurd vs Julian Williams full fight | HIGHLIGHTS | PBC ON FOX  https://www.youtube.com/watch?v=jVcAikLBNWo&t=748s
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Thursday, May 2, 2019

Antique Quran 7 lakh hand written एंटीक क़ुरआन اینٹیک قرآن مجید

७ लाख के हदिये वाले इस एंटीक क़ुरआन को मौलाना कलीम सिद्दीकी के मदरसे उस्ताद मौलाना अबू बकर क़ासमी ने लगभग ५ साल की मेहनत से मुकम्मल किया है, वो इस पर हुयी मेहनत को देखते हुए सात लाख हदिया चाहते हैं, वो इस से पहले पांच क़ुरआन कदरदानों को दे चुके, सातवां इस २०१९ की ईद तक तैयार हो जायेगा, ये जो आप देख रहे हैं इस में एक पृष्ठ पर एक पारा खूबसूरत खुशखत नक़्श ओ  निगार के साथ लिखा गया है, हैंड मैड यानी हाथ का बना कागज़ बक़ौल अबू बकर साहब अब सिर्फ जयपुर में मिलता है का इस्तेमाल किया गया है ,जिसकी लैबोरेटरी जांच रिपोर्ट में काग़ज़ की उम्र १५०० से २००० साल की है, जैसा की आप जानते होंगे, एंटीक चीज़ों के दाम में फ़र्क़ आता रहता, फिलहाल तो ये एंटीक क़ुरआन जामा मस्जिद दिल्ली में मशहूर पब्लिशर तंज़ीम के पास है, जहाँ अलग अलग पेशकश की जा रही हैं, आप भी दिलचस्पी लेना चाहते हैं तो इस सिलसिले में राब्ते के नंबर और दीगर तफ्सील वीडियो के डिस्क्रिप्शन में है ,
थैंक यू
Antique Quran
hand written Quran



Antique Quran 7 lakh hand writtenاینٹیک قرآن مجید
 ٧ لاکھ کے ہدیہ‎ اینٹیک قرآن مجید
 والے اس اینٹیک قرآن کو مولانا کلیم صدیقی کے مدرسے استاد مولانا ابو بکر قاسمی نے تقریباً   ٥ سال کی محنت سے مکمل کیا ہے,وہ اس پر ہویی محنت کو دیکھتے ہوئے سات لاکھ ہدیا چاہتے ہیں,وہ اس سے پہلے پانچ
 قرآن قدردانوں کو دے چکے,ساتواں اس ٢٠١٩ کی عید تک تیار ہو جائیگا,یہ جو آپ دیکھ رہے ہیں اس میں ایک صفحے پر ایک پارہ خوبصورت خوشخط نقش او نگار کے ساتھ لکھا گیا ہے,ہینڈ میڈ یعنی ہاتھ کا بنا کاغذ بقول ابو بکر صاحب اب صرف جے پور میں ملتا ہے کا استعمال کیا گیا ہے,جس کی لیبارٹری جانچ رپورٹ میں کاغذ کی عمر ١٥٠٠ سے ٢٠٠٠ سال کی ہے,جیسا کی آپ جانتے ہو نگے,اینٹیک چیزوں کے دام میں فرق آتا رہتا,فی الحال تو یہ اینٹیک قرآن جامع مسجد دہلی میں مشہور پبلشر تنظیم کے پاس ہے,جہاں الگ الگ پیشکش کی جا رہی ہیں,آپ بھی دلچسپی لینا چاہتے ہیں تو اس سلسلے میں رابطہ کے نمبر اور دیگر تفصیل ویڈیو کے ڈسکرپشن میں ہے, شکریہ

Antique Islamic Calligraphy
Antique Book. Holy Quran Koran in Arabic
The holy Quran Koran. Arabic text



Antique Quran hand written Quran