मुहम्मद उमर कैरानवी: April 2020

Thursday, April 30, 2020

कुरआन में मानवता के लिए 99 सीधे आदेश ! जानिए

कुरआन में मानवता के लिए 99 सीधे आदेश ! जानिए
99 direct commands mentioned in the Holy Quran in Hindi
1. बदज़ुबानी से बचो। (सूरह 3:159)
2. गुस्से को पी जाओ। (सूरह 3:134)
3. दूसरों के साथ भलाई करो। (सूरह 4:36)
4. घमंड से बचो। (सूरह 7:13)
5. दूसरों की गलतियां माफ करो। (सूरह 7:199)
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क़ुरआन भाष्य (तफ़सीर) एवं अनुवाद 
https://quranenc.com/en/browse/hindi_omari/15/9
6. लोगों से नरमी से बात करो। (सूरह 20:44)
7. अपनी आवाज़ नीची रखों। (सूरह 31:19)
8. दूसरों का मज़ाक न उड़ाओ। (सूरह 49:11)
9. वालदैन की इज़्ज़त और उनकी फरमानबरदारी करो। (सूरह 17:23)
10. वालदैन की बेअदबी से बचो और उनके सामने उफ़ तक न कहो। (सूरह 17:23)
11. इजाज़त के बिना किसी के कमरे मे (निजी कक्ष) में दाखिल न हो। (सूरह 24:58)
12. आपस में क़र्ज़ के मामलात लिख लिया करो। (सूरह 2:282)
13. किसी की अंधी तक़लीद मत करो। (सूरह 2:170)
14. अगर कोई तंगी मे है तो उसे कर्ज़ उतारने में राहत दो। (सूरह 2:280)
15. ब्याज मत खाओ। (सूरह 2:275)
16. रिश्वत मत खाओ। (सूरह 2:188)
17. वादों को पूरा करो। (सूरह 2:177)
18. आपस में भरोसा कायम रखो। (सूरह 2:283)
19. सच और झूठ को आपस में ना मिलाओ। (सूरह 2:42)
20. लोगों के बीच इंसाफ से फैसला करो। (सूरह 4:58)
21. इंसाफ पर मज़बूती से जम जाओ। (सूरह 4:135)
22. मरने के बाद हर शख्स की दोलत उसके करीबी रिश्तेदारों में बांट दो। (सूरह 4:7)
23. औरतों का भी विरासत में हक है। (सूरह 4:7)
24. यतीमों का माल नाहक मत खाओ। (सूरह 4:10)
25. यतीमों का ख्याल रखो। (सूरह 2:220)
26. एक दूसरे का माल नाजायज़ तरीक़े से मत खाओ। (सूरह 4:29)
27. किसी के झगड़े के मामले में लोगों के बीच सुलह कराओ। (सूरह 49:9)
28. बदगुमानी(guesswork) से बचो। (सूरह 49:12)
29. गवाही को मत छुपाओ। (सूरह 2:283)
30. एक दूसरे के भेद न टटोला करो और किसी की चुगली मत करो। (सूरह 49:12)
31. अपने माल में से खैरात करो। (सूरह 57: 7)
32. मिसकीन गरीबों को खिलाने की तरग़ीब दो। (सूरह 107:3)
33. जरूरतमंद को तलाश कर उनकी मदद करो। (सूरह 2:273)
34. कंजूसी और फिज़ूल खर्ची से बचा करो। (सूरह 17:29)
35. अपनी खैरात लोगों को दिखाने के लिये और एहसान जताकर बर्बाद मत करो। (सूरह 2:264)
36. मेहमानों की इज़्ज़त करो। (सूरह 51:26)
37. भलाई पर खुद अमल करने के बाद दूसरों को बढ़ावा दो। (सूरह 2:44)
38. ज़मीन पर फसाद मत करो। (सूरह 2:60)
39. लोगों को मस्जिदों में अल्लाह के ज़िक्र से मत रोको। (सूरह 2:114)
40. सिर्फ उन से लड़ो जो तुम से लड़ें। (सूरह 2: 190)
41. जंग के आदाब का ख्याल रखना। (सूरह 2:191)
42. जंग के दौरान पीठ मत फेरना। (सूरह 8:15)
43. दीन में कोई ज़बरदस्ती नहीं। (सूरह 2: 256)
44. सभी पैगम्बरों पर इमान लाओ। (सूरह 2: 285)
45. हालते माहवारी में औरतों के साथ संभोग न करो। (सूरह 2:222)
46. ​​मां बच्चों को दो साल तक दूध पिलाएँ। (सूरह 2:233)
47. खबरदार! ज़िना (fornication) के पास किसी सूरत में भी नहीं जाना। (सूरह 17:32)
48. हुक्मरानो(शाशको) को खूबीे देखकर चुना करो। (सूरह 2: 247)
49. किसी पर उसकी ताकत से ज़्यादा बोझ मत डालो। (सूरह 2:286)
50. आपस में फूट मत डालो। (सूरह 3:103)
51. दुनिया की तखलीक चमत्कार पर गहरी चिन्ता करो। (सूरह 3: 191)
52. मर्दों और औरतों को आमाल का सिला बराबर मिलेगा। (सूरह 3: 195)
53. खून के रिश्तों में शादी मत करो। (सूरह 4:23)
54. मर्द परिवार का हुक्मरान है। (सूरह 4:34)
55. हसद और कंजूसी मत करो। (सूरह 4:37)
56. हसद मत करो। (सूरह 4:54)
57. एक दूसरे का कत्ल मत करो। (सूरह 4:92)
58. खयानत करने वालों के हिमायती मत बनो। (सूरह 4: 105)
59. गुनाह और ज़ुल्म व ज़यादती में मदद मत करो। (सूरह 5:2)
60. नेकी और भलाई में सहयोग करो। (सूरह 5: 2)
61. अक्सरियत मे होना सच्चाई का सबूत नहीं। (सूरह 6:116)
62. इंसाफ पर कायम रहो। (सूरह 5:8)
63.जुर्म की सज़ा मिसाली तौर में दो। (सूरह 5:38)
64. गुनाह और बुराई आमालियों के खिलाफ भरपूर जद्दो जहद करो। (सूरह 5:63)
65. मुर्दा जानवर, खून, सूअर का मांस निषेध (हराम) हैं। (सूरह 5: 3)
66. शराब और नशीली दवाओं से खबरदार। (सूरह 5:90)
67. जुआ मत खेलो। (सूरह 5:90)
68. दूसरों की आस्था का मजाक ना उडाओ। (सूरह 6: 108)
69. लोगों को धोखा देने के लिये नाप तौल में कमी मत करो। (सूरह 6:152)
70. खूब खाओ पियो लेकिन हद पार न करो। (सूरह 7:31)
71. मस्जिदों में इबादत के वक्त अच्छे कपड़े पहनें। (सूरह 7:31)
72. जो तुमसे मदद और हिफाज़त और पनाह के तलबगार हो उसकी मदद और हिफ़ाज़त करो। (सूरह 9:6)
73. पाक साफ रहा करो। (सूरह 9:108)
74. अल्लाह की रहमत से कभी निराश मत होना। (सूरह 12:87)
75. अज्ञानता और जिहालत के कारण किए गए बुरे काम और गुनाह अल्लाह माफ कर देगा। (सूरह 16:119)
76. लोगों को अल्लाह की तरफ हिकमत और नसीहत के साथ बुलाओ। (सूरह 16:125)
77. कोई किसी दूसरे के गुनाहों का बोझ नहीं उठाएगा। (सूरह 17: 15)
78. मिसकीनी और गरीबी के डर से बच्चों की हत्या मत करो। (सूरह 17:31)
79. जिस बात का इल्म न हो उसके पीछे(Argue) मत पड़ो। (सूरह 17:36)
80. निराधार और अनजाने कामों से परहेज़ करो। (सूरह 23: 3)
81. दूसरों के घरों में बिला इजाज़त मत दाखिल हो। (सूरह 24:27)
82. जो अल्लाह में यकीन रखते हैं, अल्लाह उनकी हिफाज़त करेगा। (सूरह 24:55)
83. ज़मीन पर आराम और सुकून से चलो। (सूरह 25:63)
84. अपनी दुनियावी ज़िन्दगी को अनदेखा मत करो। (सूरह 28:77)
85. अल्लाह के साथ किसी और को मत पुकारो। (सूरह 28:88)
86. समलैंगिकता से बचा करो। (सूरह 29:29)
87. अच्छे कामों की नसीहत और बुरे कामों से रोका करो। (सूरह 31:17)
88. ज़मीन पर शेखी और अहंकार से इतरा कर मत चलो। (सूरह 31:18)
89. औरतें अपने बनाओ सिंघार पर तकब्बुर (गर्व) ना करें। (सूरह 33:33)
90. अल्लाह सभी गुनाहों को माफ कर देगा सिवाय शिर्क के। (सूरह 39:53)
91. अल्लाह की रहमत से मायूस मत हो। (सूरह 39:53)
92. बुराई को भलाई से दफा करो। (सूरह 41:34)
93. नमाज़ से अपने काम अंजाम दो। (सूरह 42:38)
94. तुम से ज़्यादा इज़्ज़त वाला वो है जिसने सच्चाई और भलाई इख्तियार की हो। (सूरह 49:13)
95. दीन मे रहबानियत मौजूद नहीं। (सूरह 57:27)
96. अल्लाह के यहां इल्म वालों के दरजात बुलंद हैं। (सूरह 58:11)
97. ग़ैर मुसलमानों के साथ उचित व्यवहार और दयालुता और अच्छा व्यवहार करो। (सूरह 60:8)
98. अपने आप को नफ़्स की हर्ष पाक रखो। (सूरह 64:16)
99. अल्लाह से माफी मांगो वो माफ करने और रहम करनेवाला है। (सूरह 73:20)۔

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Quran-tafseer-translation-Hindi-Unicode
क़ुरआन भाष्य (तफ़सीर) एवं अनुवाद,  Hindi Unicode आधुनिक सहूलतों के साथ, Urdu, Bengali.Tamil, Telugu,Gujrati, Malayalam, Nepali के साथ विस्व की बहुत सी भाषाओं में किंग फ़हद प्रेस, अरब की क़ाबिल ए फखर प्रस्तुति। ज़ेरे निगरानी islamhouse dot com
.....…................Sample: चैलेंज .....:
क़ुरआन 15:9:
"वास्तव में, हमने ही ये शिक्षा (क़ुर्आन) उतारी है और हम ही इसके रक्षक[1] हैं।"
https://quranenc.com/en/browse/hindi_omari/15/9

Muhmmad- (The Hundred)-Michael Hart [in Hindi]

"मुहम्मद"- लेखक : माइकल एच. हार्ट
अनुवाद : डा. रफ़ीक़ अहमद


अनुवादक के दो शब्द
.
बहुचर्चित पुस्तक 'द हंड्रेड' (The Hundred) के लेखक डॉक्टर माइकल एच. हार्ट के नाम से संसार अपरिचित नहीं है। वास्तव में वह एक महान विद्वान एवं प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी अनेक बहुमूल्य कृतियों से मानव जगत को प्रभावित किया है। डॉक्टर हार्ट का क्षेत्र अतिविस्तृत है। वे मात्र एक लेखक ही नहीं बल्कि महान दार्शनिक, ज्योतिषाचार्य, गणितज्ञ, विधिवेत्ता एवं महान वैज्ञानिक भी हैं।

उन्होंने संसार के ऐसे महान ऐतिहासिक व्यक्तियों का परिचय कराने तथा उनके महत्वपूर्ण कार्यों का मूल्यांकन करने का निश्चय किया जिन्होंने मानव जाति पर असीम उपकार किए हैं। वास्तव में उन्होंने निष्पक्ष विवेचना की और उन महान विभूतियों का कार्य अनुसार स्तर भी निर्धारित किया। उन्होंने संसार की 100 महान विभूतियों के नाम भी क्रमबद्ध रूप से उल्लेख किए जिनमें प्रथम नाम अंतिम सन्देष्टा हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम का है द्वितीय नाम न्यूटन, तृतीय हजरत ईसा मसीह, चतुर्थ गौतम बुध एवं पंचम नाम कन्फ्यूशियस का है।
डॉक्टर हार्ट ईसाई धर्म पर विश्वास करते हैं। इसके परिणाम स्वरूप संपूर्ण ईसाई जगत इनसे रूष्ट हो गया और उनको कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, परंतु डॉक्टर माइकल हार्ट इस विरोध से तनिक भी विचलित नहीं हुए और साहस पूर्वक उसका सामना करते रहे उन्होंने विचारको एवं विद्वानों को चुनौती दी कि यदि वह मेरे इस चयन से सहमत नहीं है तो उचित तर्क दें। परंतु विश्व में कोई भी व्यक्ति उचित तर्क प्रस्तुत न कर सका।

डॉक्टर माइकल एच. हार्ट ने अपनी पुस्तक में महान विभूति (हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) को प्रथम स्थान दिया है। उससे हिंदी जगत को परिचित कराने के उद्देश्य से मैंने 'द हंड्रेड' के प्रथम लेख का अनुवाद हिंदी में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है।
आशा है पाठक गण इस प्रयास का निष्पक्ष एवं न्याय पूर्ण मूल्यांकन करेंगे।
  रफीक अहमद ,फतेहपुर (यू.पी.)
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…........…मुहम्मद….......
…...लेखक : माइकल एच. हार्ट ......
       मेरे द्वारा मानव इतिहास के सर्वाधिक प्रभावशाली महापुरुषों की सूची में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) को प्रथम स्थान देने पर पाठकों को आश्चर्य होगा और कुछ को मेरे इस चयन पर आपत्ति भी हो सकती है, परंतु मानव इतिहास में वह एक अकेले ऐसे महापुरुष थे जिन्होंने धार्मिक तथा राजनीति दोनों ही स्तरों पर महान सफलता प्राप्त की है।

साधारण परिवार में जन्मे और पले बढ़े हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने विश्व के सबसे बड़े धर्मों में से इस्लाम धर्म की स्थापना की और सर्वाधिक प्रभावशाली तथा महान राजनेता बन गए। उनके देहांत के तेरह-चौदह सौ वर्षों के बाद आज भी उनका प्रभाव सर्वाधिक सशक्त और उतना ही प्रबल एवं व्यापक है।

  प्रस्तुत पुस्तक में अधिकांश उन महापुरुषों का उल्लेख है जिनको सभ्यता एवं संस्कृति के प्रमुख केंद्रों तथा अत्यंत सभ्य एवं राजनीतिक राष्ट्रों में जन्म लेने तथा पालन पोषण का शुभ अवसर एवं लाभ प्राप्त हुआ है। परंतु हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का जन्म 570 ईसवी में दक्षिण अरब के मक्का शहर में हुआ था, जो उस समय दुनिया का अत्यंत पिछड़ा हुआ क्षेत्र था। वह क्षेत्र व्यापार, कला और ज्ञान के केंद्रों से बहुत दूर था। वह मात्र 6 वर्ष की अल्पायु में ही अनाथ हो गए और उनका पालन पोषण सामान्य ढंग से हुआ। इस्लामी परंपराओं से यह विदित होता है कि वे  निरक्षर थे और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार उस समय आया जब उन्होंने 25 वर्ष की आयु में एक विधवा से शादी की जब वह 40 वर्ष की अवस्था को पहुंचे तो उनमें ऐसे असाधारण लक्षण प्रकट हुए कि वे एक महत्वपूर्ण एवं महान व्यक्ति बन गए हैं।

  उस समय अधिकांश अरब निवासी मूर्तिपूजक थे और विभिन्न देवी देवताओं की उपासना करते थे। मक्का में ईसाई तथा यहूदी भी आबाद थे जिनकी संख्या बहुत थोड़ी थी और निसंदेह हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने उनसे भी यह सुना की संपूर्ण ब्रह्माण्ड का सृष्टा, स्वामी और शासक मात्र एक ईश्वर है। जब हजरत मुहम्मद (सल्ल.) 40 वर्ष के हुए तो उनको पूर्ण विश्वास हो गया कि वही ईश्वर उन से संबोधित हो रहा है और उसने उन्हें सत्य धर्म के प्रचार एवं प्रसार हेतु चुन लिया है।

3 वर्षों तक हजरत मुहम्मद (सल्ल.) अपने परम मित्रों एवं सगे संबंधियों के बीच इस्लाम का प्रचार करते रहे। फिर लगभग 613 ईसवी में उन्होंने सार्वजनिक रूप से इस्लाम का प्रचार आरंभ कर दिया। जब धीरे-धीरे उनके अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी तो मक्का के सरदार उन्हें अपने लिए गंभीर खतरा समझने लगे। परिस्थितिवश 622 ईसवी में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) इस्लाम धर्म के प्रचार एवं अपनी सुरक्षा हेतु मक्का से मदीना (जो कि मक्का से लगभग 200 मील दूर उत्तर में स्थित है) प्रस्थान कर गए जहां उनको गौरवपूर्ण राजनीतिक शक्ति प्राप्त हुई।

        मक्का से मदीना प्रस्थान करने की यह घटना हिजरत के नाम से जानी जाती है जोकि हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के जीवन की एक क्रांतिकारी घटना थी। मक्का में उनके अनुयायियों की संख्या अत्यंत कम थी जबकि मदीना में उनके समर्थकों की संख्या बहुत बढ़ गई और वहां उनको इतनी ख्याति एवं शक्ति प्राप्त हुई कि वह एक कुशल शासक बन गए। अगले कुछ ही वर्षों में, जबकि हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के अनुयायियों की संख्या में दिन-ब-दिन वृद्धि होती गई, उसी बीच मक्का और मदीना के मध्य जंगो का एक सिलसिला चल पड़ा। जन्मों का यह सिलसिला 630 ईसवी में तब रुका जब हजरत मुहम्मद (सल्ल.) को मक्का पर विजय प्राप्त हुई और उन्होंने एक सफल विजेता के रूप में मक्का में प्रवेश किया। उनके जीवन के शेष ढाई वर्षों में अरब के कबायली कबीलों ने बड़ी तेजी से इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। 632 ई. में जब हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का स्वर्गवास हुआ तो वह उस समय दक्षिणी अरब के सर्वाधिक प्रभावशाली शासक थे ।

        अरब के बद्दू कबीले उग्र लड़ाके के रूप में विख्यात थे। परंतु उनकी संख्या बहुत कम थी तथा वे आपसी मतभेद एवं विनाशकारी युद्ध की महामारी से ग्रस्त थे। देश के उत्तर में आबाद कृषि प्रधान क्षेत्रों की सेनाओं के साथ उनकी कोई तुलना नहीं थी। हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने पहली बार उन बद्दुऒं को एकता की लड़ी में पिरोया और उनको एक ईश्वर की उपासना के लिए प्रेरित किया। इसके फलस्वरूप अरब सेना की एक छोटी सी टुकड़ी ने मानव इतिहास के पन्नों पर अपने विजयों की लंबी श्रंखला दर्ज करवा दी। अरब के पूर्वोत्तर में स्थित विशाल ईरानी साम्राज्य तथा उत्तर पश्चिम बाइजेंटाइन अथवा पूर्वी रोमन साम्राज्य जिसका प्रमुख केंद्र कुस्तुनतुनिया था, को अरब सेनाओं ने जीत लिया फिर भी हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कर्मों एवं कथनों से प्रेरित एवं उत्साहित अरब सेनाओं ने शीघ्र ही मेसोपोटामिया, सीरिया तथा फिलिस्तीन को युद्ध में पराजित कर दिया। 642 ईसवी में अरबो ने  मिस्र को वाईजेन्टाइन साम्राज्य छीन लिया और 637 ईसवी में कादसिया युद्ध में ईरानी सेनाओं को तथा 642 ईसवी में नेहवंड की सेनाओं को कुचल डाला। परंतु इन सबके बावजूद इन व्यापक विजय अभियानों में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के परम मित्रों तथा उतराधिकारियों जोकि अबू बकर और उमर इब्ने ख़त्ताब (रज़ि.)  के नेतृत्व में जारी थे, अरबों का आगे बढ़ना नहीं रुका। 711 ई. तक अरब सेनाओं ने उत्तरी अफ्रीका से लेकर अटलांटिक महासागर तक संपूर्ण क्षेत्र पर पूर्ण रूप से अपना अधिकार जमा लिया। फिर वह यहां से उत्तर की ओर मुड़ी और जिब्राल्टर के जलडमरूमध्य को पार करती हुई हुई विज़ीगोथिक स्पेनी साम्राज्य को भी जीत लिया।

   एक समय के लिए तो ऐसा प्रतीत होने लगा था की मुस्लिम सेना पूरे ईसाई यूरोप को अपने अधीन कर लेगी। परंतु 732 ईसवी में टू अर्स के प्रसिद्ध युद्ध में जिसमें मुस्लिम सेना फ्रांस के मध्य तक पहुंच चुकी थी, अंततः फ्रांसीसी सेनाओं से पहली बार पराजित हो गई। फिर भी सदी की इतनी अल्प अवधि में ही पैगंबर द्वारा प्रेरित बद्दू कबीलों की उत्साही सेनाओं ने भारतीय उपमहाद्वीप की सीमाओं से लेकर अटलांटिक महासागर तक के एक विशाल क्षेत्र पर अपनी विजय पताका लहरा दी, जो कि उस समय तक विश्व की सबसे बड़ी हुकूमत थी। उन सभी क्षेत्रों के निवासियों ने भारी संख्या में इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया।

    लेकिन यह सारी विजय अस्थाई सिद्ध नहीं हुई। ईरानी लोग पैगंबर के धर्म के प्रति वफादार तो रहे लेकिन उन्होंने अरबों से आजादी हासिल कर ली और 700 वर्षों के बाद स्पेनी सेनाओं ने दोबारा पूरे स्पेन को ईसाई क्षेत्र में बदल डाला। परंतु उत्तरी अफ्रीका के संपूर्ण तट की भांति, मेसोपोटामिया और मिस्र जो की प्राचीन सभ्यता के प्रमुख केंद्र माने जाते थे, अरब में ही रहे। यह नया धर्म अपनी विशेषताओं के कारण मुस्लिम सेनाओं द्वारा विजित क्षेत्रों से भी दूर, बहुत  दूर-दूर तक फेलता रहा है, आज अफ्रीका तथा मध्य एशिया में यहां तक कि पाकिस्तान उत्तरी भारत और इंडोनेशिया में करोड़ों की संख्या में इस धर्म के मानने वाले लोग मौजूद हैं। इंडोनेशिया में तो यह धर्म एकता का सूत्र ही है हालांकि भारतीय उपमहाद्वीप में हिंदुओं तथा मुसलमानों के मध्य झगड़े इस एकता की राह में सबसे बड़ी रुकावट है।

    यह प्रश्न उठता है कि मानव इतिहास पर पड़े हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के प्रभाव का मूल्यांकन कैसे किया जा सकता है? दूसरे धर्मों की तरह इस्लाम का भी अपने अनुयायियों के जीवन पर व्यापक प्रभाव है। प्रस्तुत पुस्तक में विश्व के लगभग सभी बड़े धर्मों के संस्थापकों को स्थान मिला है। परंतु इस बात पर लोगों को आश्चर्य हो सकता है कि विश्व में ईसाइयों की संख्या मुसलमानों से लगभग दोगुनी होते हुए भी हजरत मुहम्मद (सल्ल.) को प्रथम स्थान पर रखा गया है और हजरत ईसा को नहीं। इस निर्णय के दो प्रमुख कारण है प्रथम हजरत मुहम्मद (सल्ल.) ने इस्लाम धर्म के विकास में जितना महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उसकी तुलना मैं हजरत ईसा मसीह ने ईसाई धर्म के लिए नहीं निभाई। यद्यपि ईसाई धर्म की नैतिक एवं धार्मिक सिद्धांतों, जो कि यहूदी धर्म से भिन्न है, की स्थापना का श्रेय हजरत ईसा मसीह को जाता है, तथापि सेंट पॉल ईसाई धर्म के मुख्य विस्तारक थे तथा ईसाई धर्म के सिद्धांतों के मुख्य प्रचारक और न्यू टेस्टामेंट के अधिकांश भाग के लेखक थे।

     हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम इस्लामी धर्म शास्त्र और उसकी मूल धार्मिक एवं नैतिक सिद्धांतों के प्रतिपादक और प्रनेता थे। इसके अतिरिक्त उन्होंने इस्लाम धर्म के विस्तार में तथा उसके सिद्धांतों को व्यवहारिकता प्रदान करने में मुख्य भूमिका भी निभाई। इसके अलावा वह पवित्र धर्म ग्रंथ कुरआन के प्रस्तुतकर्ता भी थे जोकि हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की दिव्य दृष्टि का एक संकलन है और जो हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के जीवन काल में ही अत्यंत विश्वस्त लोगों द्वारा उन व्हयों (ईशवाणी) को लिपिबद्ध कर लिया गया था। और उनके देहांत के कुछ दिन बाद ही उन प्रति लेखों को संकलित कर सुरक्षित कर लिया गया था। इसलिए क़ुरआन मुहम्मद (सल्ल.) की पवित्र शिक्षाओं के ठीक ठीक उन्हीं मूल शब्दों में पेश करता है जबकि हजरत ईसा की शिक्षाओं का कोई संकलन मूल  स्वरूप मैं उपलब्ध नहीं है। मुसलमानों के जीवन मैं कुरआन का जितना महत्व एवं प्रभाव है उसकी तुलना में ईसाइयों के जीवन पर बाइबल का प्रभाव नहीं है। हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का प्रभाव कुरआन के माध्यम से मुसलमानों पर व्यापक है। वास्तव में ईसाइयों के जीवन और कर्म पर हजरत ईसा मसीह तथा सेंट पॉल दोनों के संयुक्त प्रभाव को मिलाकर जितना प्रभाव है उससे बहुत अधिक और अत्यंत व्यापक प्रभाव मुसलमानों के जीवन और कर्म पर हजरत मुहम्मद (सल्ल.) का है । विशुद्ध  धार्मिक स्तर पर यह प्रतीत होता है कि मानव इतिहास में हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम उतना ही प्रभावशाली है जितना कि ईसा मसीह ।

     इतना ही नहीं, हजरत मुहम्मद (हजरत ईसा मसीह के विपरीत) राजनैतिक तथा धार्मिक लीडर भी थे वास्तव में अरबों के विजय अभियानों के पीछे एक प्रबल प्रेरक शक्ति होने के कारण वह मानव इतिहास में सर्वाधिक एवं सर्वकालिक शक्तिशाली राजनेता के रूप में स्वीकार किए गए हैं।

      विश्व की अनेक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं के संबंध में एक व्यक्ति यह कह सकता है की यह घटनाएं तो होनी थी और किसी विशेष राजनीतिक नेता के मार्गदर्शन के बिना घटित होती। उदाहरण स्वरूप दक्षिणी अमेरिका के बहुत से उपनिवेशो ने स्पेन से स्वतंत्रता प्राप्त कर ली जबकि साइमन वौलिवर का कोई अस्तित्व भी नहीं था। लेकिन अरब के विजय अभियानों के बारे में यह नहीं कहा जा सकता। हजरत मुहम्मद (सल्ल.) से पूर्व ऐसा कुछ नहीं था और ऐसा कहने का कोई औचित्य भी नहीं है कि यह सारी विजय हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के बिना भी प्राप्त की जा सकती थी। मानव इतिहास में इन विजयों की तुलना केवल 13वीं शताब्दी में मंगोलो की विजयों से की जा सकती है जो बुनियादी तौर पर चंगेज़ खां के प्रभाव का नतीजा थी।  हालांकि यह सारी विजये अरब विजयो की अपेक्षा अधिक व्यापक थी परंतु स्थाई सिद्ध नहीं हो सकी और मंगोलो के कब्जे में केवल वही क्षेत्र रह गए हैं, जो चंगेज खान से पहले ही उनके कब्जे में थे।

      अरबों के अनेक विजय अभियान मंगोलो के विजय अभियान से बहुत भिन्न है। इराक से मोरक्को तक अरब देशों की एक पूरी श्रंखला है, जो ना केवल इस्लाम धर्म पर विश्वास रखने के कारण बल्कि उनके बीच अरबी भाषा , इतिहास और संस्कृति के कारण जुड़े हुए हैं। इस्लाम धर्म में कुरआन को केंद्रीयता प्राप्त है और यह पवित्र ग्रंथ विशुद्ध अरबी भाषा में अवतरित हुआ है, जिसके कारण अरबी भाषा टूटने और विभिन्न स्थानीय बोलियों में बटने से 13-14 सौ वर्ष व्यतीत हो जाने के बाद आज भी सुरक्षित है। जबकि आजकल इन अरब देशों के बीच टकराव और मतभेद अवश्य पाए जाते हैं परंतु यह मतभेद और भिन्नतायें इतने बड़े पैमाने पर नहीं है कि इनके कारण अरब देशों और वहां की जनता के बीच पाई जाने वाली एकता जैसी महत्वपूर्ण चीज को नजरअंदाज कर दिया जाए। उदाहरण स्वरूप 1973 -74 में अरब देशों द्वारा लगाए गए तेल प्रतिबंधों में ना तो ईरान और ना ही इंडोनेशिया शामिल था जबकि यह दोनों ही देश तेल उत्पादक देश है और दोनों ही इस्लाम धर्म के अनुयायी हैं इस संबंध में यह नहीं कहा जा सकता है कि सभी अरब देश या केवल अरब देश इस प्रतिबंध में सम्मिलित हुए।

      तो हम देखते हैं कि मानव इतिहास में सातवीं शताब्दी में अरबों द्वारा जो विजय अभियान चलाए गए थे, आज भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं, यही राजनैतिक और धार्मिक प्रभाव का अद्वितीय समिश्रण, मेरे विचार में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) को मानव इतिहास का एकमात्र सर्वाधिक प्रभावशाली व्यक्ति होने का पात्र ठहराता है।
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लेखक : माइकल एच. हार्ट
अनुवाद : डा. रफ़ीक़ अहमद
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The 100 Most Influential People In History - Michael Hart



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