पढने पढ़ाने के शौकीन और अच्छी याददाश्त का नमूना मास्टर शमसुल इस्लाम मजाहिरी (1935-2018) जिनके सैंकड़ो शागिर्द का यही कहना है कि अरबी-फारसी और मजहबी इल्मी बातों में वो इलाके में बे मिसाल थे। मरहूम जब कभी किसी शखसियत, सहाबी या शायर आदि के बारे में अपनी याददशत से इतना बहुत सुनाते कि लगता था कि जिसका जिकर कर रहे हैं वो जरूर इनकी पसंदीदा बात है जिसका उन्होंने बहुत अध्ययन किया है। कुरआन की तफसीर, धार्मिक मुबहिसे, आलोचनातम्क किताबें पढने के शौकीन और अच्छी याददाश्त का नमूना मास्टर शमसुल इस्लाम मजाहिरी (1935-2018) जिनके सैंकड़ो शागिर्द का यही कहना है कि इल्मी बातों में वो इलाके में बे मिसाल थे। मरहूम जब कभी किसी शखसियत, सहाबी या शायर आदि के बारे में अपनी याददशत से इतना बहुत सुनाते कि लगता था कि जिसका जिकर कर रहे हैं वो जरूर इनकी पसंदीदा बात है जिसका उन्होंने बहुत अध्ययन किया है। कुरआन की तफसीर, धार्मिक मुबहिसे, आलोचनातम्क किताबें और तारीखी जंगों पर लिखे नाविल आपको बेहद पसंद थे। अच्छा हाफिजा होने के कारण कोई किताबे घर में जमा ना करते क्योंकि उन्हें दोबारा पढने की जरूरत महसूस नहीं होती थी। मुकमल कुरआन हाफिज तो नहीं थे लेकिन कुरआन की आयत अरबी और अनुवाद बता देते थे। आयत सूरत नंबर के लिए अपने धेवते मास्टर हाफिज सलीमुददीन से मालूम किया करते थे। अरबी और फारसी के उस्तादों के उस्ताद थे, आखिर उमर तक अरबी फारसी पढ़ाने का जुनूूून क़ायम रहा।
यामीन नाम से मोलवी और साहब औलाद हो कर शमसुल इस्लाम नाम से दुनयावी पढ़ाई की तरफ धियान दिया। एम ए किया अध्यापक बने। पढ़ाने के शौक में स्कूल बड़े भाई के नाम से अर्थात मदरसा अरबी कमाल शाही खोला और मुफ्त अरबी फारसी सिखाने का ऐलान किया। कुछ समय पहले मदरसा पोते ज़िया उल इस्लाम को देदिया। बड़े भाई मोलवी अब्दुल हक़ को दोस्त अहबाब उनकी दीनदारी और ज़िहानत देख कर कमाल शाह कहते थे। आज भी बिरादरी में ये परिवार कमाल शाह वाला कहलाता है।
अंतिम सफर 5 जनवरी जुमा के दिन होने के अलावा अच्छी बात ये भी थी कि तीनों लड़कों में सबसे अधिक लगाओ जिस से था यानी दिल्ली उर्दू अकादमी आफिसर नजमुल इस्लाम उसके हाथ से आखरी बार पानी पी के सोये । अपनी चुनी हुई पसंद की जगह दफनाए गए , खुश किस्मती से दफन के लिए वो जगह खाली थी। झिंझाना रोड पर क़ब्रिस्तान मालियान फातिहा के लिए विधायक नाहिद हसन आय तो अयादत के लिए चेयरमैन कैराना अनवर हसन आये। शागिर्द अशरफ बिसाती, क़ारी यूनुस और निसार हलवाई ने कफन और दफन की शरई रसूम में अपनी ज़िम्मेदारी निभाई। बड़े लड़के डॉक्टर बदरुल इस्लाम रिटायर्ड स्काउट एंड गाइड कमिश्नर जो अपने नए काम के साथ उमरा कर रहे थे वीडियो कॉल के ज़रिए मय्यत का भीगी आंखों से दीदार किया और काबा में मग़फ़िरत की दुआ की।
बच्चों से ज्यादा दिनों बाद मिलते तो कुछ सवालात के जवाब से प्रगति और उन्नति का अनुमान लगा कर इनाम देते और सबको बताते। आलिमा की डिग्री पराप्त पोती फोजिया के इल्मी जवाबात से बहुत खुश होते। 8 साल के पड़पोते जफर से अक्सर सवाल किया करते।
तावीज को अच्छा नहीं मानते थे लेकिन लिख देते थे। अंगूठे में खोई चीजों को दिखाने का अमल भी किया, खाब की ताबीर पूछने दूर दूर से आते। लेकिन इन बातों पर खुद उनको एतबार व यकीं ना हुआ यही वजह है ये सब किसी नहीं सिखाया।
शायरी पसंद थी अपनी गुफ़्तुगू में मौके के लिहाज से अक्सर शेर पढ़ते लेकिन खुद अपने शेर कभी कभी ही कहते उनकी खुद नविस्त पुस्तक में उनका ये शेर नुमायां तौर पर दिया गया है:
वह 'शम्स' की ताबिश कहां इन हकीर शोलों में।
लाख चिराग जलाए मगर सहर ना हुई।।
मेरठ,अहमदाबाद, सहारनपुर, दिल्ली, सफर किया। पाकिस्तान तीन बार गए वहाँ पर उर्दू की हालत पर अफसोस करते। अरब में हज और उमराह के लिए गए। मदरसा सौलतिया में बतौर फ़ारसी उस्ताद गए मगर वहां की आब ओ हवा माफ़िक़ न होने पर ज़ियादा दिन न रह सके। खाने के ज़ायके के मामले में अपने इलाके को बे नज़ीर माना।
शबे बारात के मौके पर क़ब्रिस्तान जाते हुए राकिमे सतूर अक्सर उनके साथ इख़्तलाफी बहस करते हुए जाता। हर दफा वो पुरानी रिवायत को निभाते और में उनकी खुशी के लिए जाता।
तक़दीर, अज़ाबे क़ब्र, तावीज जैसे मौज़ूआत पर उनकी प्रकाशित किताब ''खुद नविस्त हालात ए ज़िन्दगी खानदान ए कमाल शाह व मास्टर हाजी शमसुल इस्लाम मज़ाहिरी'' में काफी तफसील से लिखा है।
download Link
https://archive.org/details/master-shamsul-islam-mazahiri-kairanvi-khud-nawisht-2013-published मौलाना रहमतुल्लाह कैरानवी पर लिखी गयी उर्दू किताब 'एक मुजाहिद मेमार' को आपने हिंदी में किया था ।
''पुस्तक कैराना कल और '' हिंदी उर्दू में आपने रहनुमायी की और छपवाया भी था यह दोनों किताबें आनलाइन उपलब्ध हैं ।
बतोर यादगार चित्र और विडियोज लिंक
यामीन नाम से मोलवी और साहब औलाद हो कर शमसुल इस्लाम नाम से दुनयावी पढ़ाई की तरफ धियान दिया। एम ए किया अध्यापक बने। पढ़ाने के शौक में स्कूल बड़े भाई के नाम से अर्थात मदरसा अरबी कमाल शाही खोला और मुफ्त अरबी फारसी सिखाने का ऐलान किया। कुछ समय पहले मदरसा पोते ज़िया उल इस्लाम को देदिया। बड़े भाई मोलवी अब्दुल हक़ को दोस्त अहबाब उनकी दीनदारी और ज़िहानत देख कर कमाल शाह कहते थे। आज भी बिरादरी में ये परिवार कमाल शाह वाला कहलाता है।
अंतिम सफर 5 जनवरी जुमा के दिन होने के अलावा अच्छी बात ये भी थी कि तीनों लड़कों में सबसे अधिक लगाओ जिस से था यानी दिल्ली उर्दू अकादमी आफिसर नजमुल इस्लाम उसके हाथ से आखरी बार पानी पी के सोये । अपनी चुनी हुई पसंद की जगह दफनाए गए , खुश किस्मती से दफन के लिए वो जगह खाली थी। झिंझाना रोड पर क़ब्रिस्तान मालियान फातिहा के लिए विधायक नाहिद हसन आय तो अयादत के लिए चेयरमैन कैराना अनवर हसन आये। शागिर्द अशरफ बिसाती, क़ारी यूनुस और निसार हलवाई ने कफन और दफन की शरई रसूम में अपनी ज़िम्मेदारी निभाई। बड़े लड़के डॉक्टर बदरुल इस्लाम रिटायर्ड स्काउट एंड गाइड कमिश्नर जो अपने नए काम के साथ उमरा कर रहे थे वीडियो कॉल के ज़रिए मय्यत का भीगी आंखों से दीदार किया और काबा में मग़फ़िरत की दुआ की।
Qabristan Maliyan link
https://goo.gl/maps/WeQgv9ciz7y
नमाज हमेशा मस्जिद में पढ़ना पसंद करते थे ज़िन्दगी के आखरी दिनों तक कमज़ोरी में भी मस्जिद जाते रहे, तेज चाल सेे चलते। ज़ियादा तर हरकत में रहना पसंद करते। 82 साल की उमर में बगेर चश्मे के पढ़ लेते। सोने, पढ़ने पढ़ाने का वक़्त तय था ।बच्चों से ज्यादा दिनों बाद मिलते तो कुछ सवालात के जवाब से प्रगति और उन्नति का अनुमान लगा कर इनाम देते और सबको बताते। आलिमा की डिग्री पराप्त पोती फोजिया के इल्मी जवाबात से बहुत खुश होते। 8 साल के पड़पोते जफर से अक्सर सवाल किया करते।
तावीज को अच्छा नहीं मानते थे लेकिन लिख देते थे। अंगूठे में खोई चीजों को दिखाने का अमल भी किया, खाब की ताबीर पूछने दूर दूर से आते। लेकिन इन बातों पर खुद उनको एतबार व यकीं ना हुआ यही वजह है ये सब किसी नहीं सिखाया।
शायरी पसंद थी अपनी गुफ़्तुगू में मौके के लिहाज से अक्सर शेर पढ़ते लेकिन खुद अपने शेर कभी कभी ही कहते उनकी खुद नविस्त पुस्तक में उनका ये शेर नुमायां तौर पर दिया गया है:
वह 'शम्स' की ताबिश कहां इन हकीर शोलों में।
लाख चिराग जलाए मगर सहर ना हुई।।
मेरठ,अहमदाबाद, सहारनपुर, दिल्ली, सफर किया। पाकिस्तान तीन बार गए वहाँ पर उर्दू की हालत पर अफसोस करते। अरब में हज और उमराह के लिए गए। मदरसा सौलतिया में बतौर फ़ारसी उस्ताद गए मगर वहां की आब ओ हवा माफ़िक़ न होने पर ज़ियादा दिन न रह सके। खाने के ज़ायके के मामले में अपने इलाके को बे नज़ीर माना।
शबे बारात के मौके पर क़ब्रिस्तान जाते हुए राकिमे सतूर अक्सर उनके साथ इख़्तलाफी बहस करते हुए जाता। हर दफा वो पुरानी रिवायत को निभाते और में उनकी खुशी के लिए जाता।
तक़दीर, अज़ाबे क़ब्र, तावीज जैसे मौज़ूआत पर उनकी प्रकाशित किताब ''खुद नविस्त हालात ए ज़िन्दगी खानदान ए कमाल शाह व मास्टर हाजी शमसुल इस्लाम मज़ाहिरी'' में काफी तफसील से लिखा है।
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https://archive.org/details/master-shamsul-islam-mazahiri-kairanvi-khud-nawisht-2013-published मौलाना रहमतुल्लाह कैरानवी पर लिखी गयी उर्दू किताब 'एक मुजाहिद मेमार' को आपने हिंदी में किया था ।
''पुस्तक कैराना कल और '' हिंदी उर्दू में आपने रहनुमायी की और छपवाया भी था यह दोनों किताबें आनलाइन उपलब्ध हैं ।
बतोर यादगार चित्र और विडियोज लिंक
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सरदी में धूप में रूकावट डाल रहे पत्तों को तोडते हुए 70 वर्षीय मास्टर जी
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पोत मुहम्मद अमन फातिहा पढते हुए
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मास्टर शमसुल इस्लाम की हैंड राईटिंग पुख्ता थी, सवाल नमाज बुराई से रोकती है के जवाब में
छोटे लड़के मुहम्मद उमर
कैरानवी को यह जवाब लिख कर भेजा था जिसमें बताया गया था कि वो कैसी नमाज होती है जो बुराई से राेकती है
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मास्टर जी छत पर धूप लेते हुए
मास्टर जी हरकत में रहने के लिए पेडों को पानी देते हुए
Maulana work for fitness (Private Video for Family Members)
सरदी में धूप में रूकावट डाल रहे पत्तों को तोडते हुए 70 वर्षीय मास्टर जी
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2017 की शबे बारात के मौके पर कब्रिस्तान में हाजरी साथ में छोटे लडके मुहम्मद उमर कैरानवी लेखक ''कैराना कल और आज''
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मरहूम ने अपने लिए यह जगह बहुत पहले चुनी थी कि जहां पानी ना रूके और ढाल हो, झिंझाना रोड पर क़ब्रिस्तान मालियान में खुश किस्मती से यह तमन्ना पूरी हुई
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