क़ुरआन का निगेहबान अल्लाह है :
''बेशक हम ही ने क़ुरआन नाज़िल किया और हम ही तो उसके निगेहबान भी हैं'' (15:9)
बंदे खताओं के पुतले हैं, जमात इस्लामी के डाक्टर फारूक खां का किया हुआ कुरआन की सूरत 24:26 का हिंदी अनुवाद तीन तरह से मिलता है
गन्दी औरते गन्दें
मर्दों के लिए (मुनासिब) हैं online
गंदी चीज़े गन्दें
लोगों के लिए है online
मौलाना मौदूदी के उर्दू अनुवाद को हिंदी किया तो लिखा
''नापाक स्त्रीयां नापाक पुरूषों के लिए हैं.. ''
दोनों तर्जुमे अभी ऑनलाइन हैं
इस आयत पर सिकंदर अहमद कमाल ने फ़ारूक़ खान से बात की उन्होंने बदल दिया इस आयत का तर्जुमा।
गन्दी
औरते गन्दें मर्दों के लिए (मुनासिब) हैं और गन्दे मर्द गन्दी औरतो के लिए
और पाक औरतें पाक मर्दों के लिए (मौज़ूँ) हैं और पाक मर्द पाक औरतों के लिए
लोग जो कुछ उनकी निस्बत बका करते हैं उससे ये लोग बुरी उल ज़िम्मा हैं उन
ही (पाक लोगों) के लिए (आख़िरत में) बख़्शिस है (24:26) farooq khan and
nadWi
गंदी
चीज़े गन्दें लोगों के लिए है और गन्दे लोग गन्दी चीज़ों के लिए, और अच्छी
चीज़ें अच्छे लोगों के लिए है और अच्छे लोग अच्छी चीज़ों के लिए। वे लोग
उन बातों से बरी है, जो वे कह रहे है। उनके लिए क्षमा और सम्मानित आजीविका
है (24:26)
Corrupt
women are for corrupt men, and corrupt men are for corrupt women; good
women are for good men and good men are for good women. The latter are
absolved from anything they may say; forgiveness and an honourable
provision await them. (24:26)
Translator: waheed uddin khan
सिकंदर अहमद कमाल इस आयत बारे में लिखते हैं
अशुद्ध कर्म अशुद्ध इन्सानों के लिए हैं और अशुद्ध आदमियों से अशुद्ध कार्य ही होते हैं और अच्छे कर्म और अच्छी बातें अच्छे लोगो के लिए हैं और अच्छे लोग अच्छे कर्म ही करते है वह कभी बुरी बातो के पास नही जाते और आस्तिको का दामन पवित्र है उन बातो से जो बनाने वाले बनाते है और सम्मान की जीविका हैं (26) {64ः10,11}नोट:- सूरत नूर की आयत 26 का अनुवाद यह किया गया है कि पतित स्त्रीयां पतित पुरूषों के लिए हैं और पतित पुरूष पतित स्त्रीयों के लिए हैं या पवित्र स्त्रीयां पवित्र पुरूषों के लिए है और पवित्र पुरूष पवित्र स्त्रीयों के लिए हैं यदि इस अनुवाद को उचित मान लिया जाय जबकि यह अनुवाद मिथ्या है तो महामना लूत अ0 की पत्नी बुरी थी और फिरऔन की पत्नी सदाचारी आस्तिक थी एक दुष्ट और एक आस्तिक और दोनो में से दुष्ट स्त्री सदाचारी नबी की पत्नी और आस्तिक सदाचारी स्त्री एक नास्तिक फिरऔन की पत्नी थी. इस प्रकार आयत का अनुवाद पतित पुरूष और पतित स्त्री वाला अनुचित है उचित भाव यह है जो मैंने लिखा है.
इसकी पुष्टि स्वयं आयत (24:23) और (24:26) कर रही है (24:23) में भी सीगा (विभाग) बहुवचन है और (24:23) में भी सीगा बहुवचन है और न ही आयात में किसी एक स्त्री का नाम है जिनमें कहा गया है कि बुरी बातों से आस्तिक पुरुष और आस्तिक स्त्री पवित्र है जो यह कपटि लोग बना रहे हैं.
अब देखा जाए कि यह मिथ्या अनुवाद क्यों किया गया? यह इसलिए कि कथनों की पुस्तकों में एक काल्पनिक कथा अंकित है जिसमें श्रीमती आयशा र0 पर दोषारोपण किया गया है. इस दोषारोपण की मुक्ति (24:26) में कर दी गई है यह तो सत्य है कि (24:26) में दोषारोपण बुरी बातों का खण्डन किया गया है परन्तु क्या अनुवाद उचित किया गया है और श्रीमती आयशा र0 पर आरोप ठीक है? न तो अनुवाद ही पतित स्त्री पुरुष वाला उचित है और न ही आयशा र0 पर आरोप ठीक है पुरी सूरत में किसी स्थान पर भी न आयशा का नाम है और न ही जमीर एक वचन की है. अपितु सीगा बहुवचन है अतः यह घटना इफक आयशा वाली बिल्कुल मिथ्या है. जिसका विस्तार मैंने अपनी पुस्तक ‘नामूस रसूल’ में किया है अवलोकन हो.
वास्तव में कपटियों ने मुसलमानों में मतभेद और झगड़ा कराने के लिए कुछ ऐसे आरोप आस्तिक पुरुषों और स्त्रियों पर लगाए या लगाऐंगे जो मिथ्या होंगे सादा सरल मुसलमान उनकी पुष्टि न करते हुए आपस में चर्चा करने लगे इस अनुचित और आशंका पूर्ण बात से बचाने के लिए ईश्वर ने मुसलमानों को यह बताया कि ऐ मुसलमानों
ऐसे अवसरों पर ऐसा व्यवहार न करना यह ठीक नहीं है अपितु करना यह है कि यदि कोई अनुचित बातें सुनो तो उसको अपने बड़ों के पास ले जाओ वह उसकी छान-बीन करेंगे और यथार्थ को पा लेंगे और आरोप लगाने वालों से कहेंगे कि तुम अपने चार साक्षी लाओ यह विधि बताई है जिसको ईश्वर ने अपनी कृपा और अनुकम्पा कहा है और सूरत नूर का नाम ही नूर इसलिए है कि इसमें सब बातें वह है जिन पर व्यवहार करने से एक उत्तम प्रकाश युक्त समाज अस्तित्व में आ जाता है और प्रकाश ही प्रकाश हो जाता है (नूर)
पूरी सूरत में किसी भी शब्द से यह प्रकट नहीं हो रहा कि यह आरोप आयशा पर था जो एक युद्ध से वापसी पर घड़ा गया. इस आरोप के प्रभाव में तो कपटियों की ओर से पूरे आस्तिक आते थे जिसका खण्डन (24:26) में कर दिया गया है और बड़े स्पष्ट शब्दों में कहा गया कि आस्तिक जो होगा वह कभी अनुचित कार्य नहीं करेगा. वह सदैव उचित कार्य करेगा। अतः उनकी ओर यह आरोप मिथ्या है.
इफक से सम्बन्धित जो कथन वर्णन किए जाते हें उन पर विचार करने से यह घटना बिल्कुल मिथ्या सिद्ध होती है उदाहरणतः धर्म युद्ध से वापसी पर सैना रात्रि में विश्राम कर रही थी आयशा शौच करने के लिए सैना से बाहर गई. उसी समय सैना चल दी आयशा र0 छूट गई और बाद में एक सहाबी उनको लेकर दोपहर के समय सेना में आए.
विचारणीय बात यह है कि सेना में केवल आयशा र0 ही एक स्त्री थी और न थी? जबकि और भी अवश्य होंगी. ऐसी दशा में आयशा स्त्रियों के साथ जाती जैसा स्त्रियों का नियम है यदि मान लिया जाये केवल वही थीं तो मुहम्मद स0 से बताकर जाना था या मुहम्मद स0 उनके साथ जाते या मुहम्मद स0 उनकी प्रतीक्षा करते. यदि यह भी सम्भव नहीं तो शौच के लिए सेना से दूर न जाती कहीं पास में ही बैठ जाती. रात्रि ही तो थी और जब सेना चलती तो आ जाती ऐसा तो नहीं था कि सेना में न तो कुछ सामान था और आदमी भी थोड़े थे और बिना किसी आहट के चल दिए. आयशा को सूचना न हुई? ऐसा नहीं है अपितु पूरी सेना थी और ऊंट, घोड़े, खच्चर इत्यादि साथ थे उन पर साज बान्ध कर सामान लादना था. ऐसी दशा में घोड़े हिनहिनाते, ऊंट बिलबिलाते, आदमी चलते फिरते ध्वनी देते एक दूसरे को तो आयशा को सूचना हो जाती और वह आ जाती.
सब बातों को छोड़ों केवल एक रखो कि चलते समय मुहम्मद स0 तो अवश्य ही आयशा को देखते इसके अतिरिक्त डोली उठाने वाले भी अनुमान न कर सके कि डोली खाली है या भरी. क्या मुहम्मद स0 (नाऊजू) ऐसे अनजान थे कि अपनी पत्नी को भी ज्ञात न कर सके और चल दिए और दोपहर तक समाचार न लिया. अरे मार्ग में कहीं तो फजर की नमाज़ पढ़ी होगी वहां देखते. परन्तु यह कुछ न हुआ और सेना चलती रही ईश्वर बुद्धि दे.
परन्तु भाईयो! यह कुछ नहीं हुआ अतः यह कथा बिल्कुल मिथ्या है दोषारोपण है. और आगे सुनो कपटियों ने आयशा को एक साहबी के साथ अकेले आते देखकर दोषारोपण आरम्भ कर दिया. आरोप लगाने वाले जाने पहचाने थे. मुहम्मद स0 ने ईश्वर के बताए नियमानुसार उनसे चार साक्षी नहीं मांगे और लगभग एक माह तक यह बातें ऐसे ही भ्रमण करती रहीं. तब जाकर कहीं मुहम्मद स0 ने मस्जिद में मुसलानों से कहा कि मेरी सहायता करो. इस छान-बीन के समय अन्सार के दो परिवारों में झगड़ा हुआ उन झगड़ा करने वालों में एक नाम साद बिन मआज का भी है. कि उसने खड़े होकर कहा कि ऐ ईश्वर के रसूल यदि आरोप लगाने वाला मेरे परिवार का व्यक्ति है तो मैं उसे वध कर दूं. परन्तु क्या साद बिन मआज उस समय जीवित थे? वह तो लगभग दस-ग्यारह माह पहले एक युद्ध में घायल होकर मृतक हो गए थे. फिर वह कहां से आ गए? इसलिएभी इफक की कथा मिथ्या है. इस झगड़े को मुहम्मद स0 ने समझाकर समाप्त किया और छान-बीन पूरी न हो सकी. और जब मस्जिद में कहा था तो मुहम्मद स0 ने पूरे विश्वास के साथ कहा था कि आयशा निर्दोष है.
फिर श्रीमान अली से ज्ञात किया तो उन्होंने कहा आयशा को छोड़ दो उनके सिवा और बहुत स्त्रियां हैं उनसे विवाह कर लो. उसामा बिन जै़द से ज्ञात किया श्रीमती जैनब बिनते जहश से ज्ञात किया उन्होंने प्रशंसा की. फिर आपने बुरेरा सेविका से ज्ञात किया उन्होंने भी कुछ कमी के साथ प्रशंसा की. परन्तु बुरेरा सेविका उस समय आपके पास नहीं थी फिर ज्ञात कहां और किससे किया?
आयशा से भी प्रश्न किया उन्होंने क्या प्रश्न किया हर व्यक्ति जानता है पुस्तकों में लिखा है. यह प्रसंग लगभग एक माह तक चलता रहा. इस चक्र में वही भी न आई. जब मुहम्मद स0 अधिक व्याकुल हो गए तो ईश्वर ने आयत 26 अवतरित करके आयशा को निर्दोष होने की घोषणा की और सबको बड़ा हर्ष हुआ क्या आयत में आयशा का नाम है?
विचित्र बात है यह प्रसंग काफी दिनों तक चलता रहा और ईश्वर के नियमानुसार कुछ न हुआ? इन सब बातों पर विचार करने से यह बात सामने आती है कि यह कथा मिथ्या है अतः हमें तुरन्त अपनी पुस्तकों से इसको निकाल देना चाहिए. अन्यथा जो आरोप किसी ने घड़ा था वह चलता रहेगा और आरोप रसूल स0, सहाबा और अजवाज सब पर है अतः अब यह समाप्त होना चाहिए.
ناپاک کام ناپاک انسانوں کے لئے ہیں اور ناپاک آدمیوں سے ناپاک کام ہی ہوتے ہیں. اور اچھے کام اوراچھی باتیں اچھے لوگوں کے لئے ہیں اور اچھے لوگ اچھے کام ہی کرتے ہیں وہ کبھی بُری باتوں کے پاس نہیں جاتے. اور مومنوں کا دامن پاک ہے ان باتوں سے جو بنانے والے بناتے ہیں اور رزق کریم ہے (۲۶) [۶۶:۱۰،۱۱]
نوٹ:۔ سورت نور کی آیت ۲۶؍ کا اکثر ترجمہ یہ کیا گیا ہے کہ خبیث عورتیں خبیث مردوں کے لئے ہیں اور خبیث مرد خبیث عورتوں کے لئے ہیں. پاکیزہ عورتیں پاکیزہ مردوں کے لئے اور پاکیزہ مرد پاکیزہ عورتوں کے لئے ہیں. اگر اس ترجمے کو صحیح مان لیا جائے جب کہ یہ ترجمہ غلط ہے تو حضرت لوطؑ کی بیوی بُری تھی اور فرعون کی بیوی نیک مومن تھی ایک بداور ایک مومن، اور دونوں میں سے بدعورت نیک نبی کی بیوی اور مومن نیک عورت ایک کافر فرعون کی بیوی تھی. اس طرح آیت کا ترجمہ خبیث مرد اور خبیث عورت والا غلط ہے. صحیح مفہوم وہ ہے جو میں نے لکھا ہے.
اس کی تصدیق خود آیت (۲۴:۲۳ اور ۲۴:۲۶) کررہی ہے . (۲۴:۲۳) میں بھی صیغہ جمع ہے اور (۲۴:۲۶) میں بھی صیغہ جمع ہے اور نہ ہی آیات میں کسی ایک عورت کا نام ہے جن میں کہا گیا ہے کہ بُری باتوں سے مومن مرد اور مومن عورتیں پاک ہیں جو یہ منافق لوگ بنارہے ہیں.
اب دیکھا جائے کہ یہ غلط ترجمہ کیوں کیا گیا ہے؟ یہ اس لئے کہ روایات کی کتابوں میں ایک فرضی قصہ درج ہے جس میں حضرت عائشہؓ پر تہمت لگائی گئی ہے اور اس تہمت کی برات (۲۴:۲۶) میں کردی گئی ہے یہ تو صحیح ہے کہ (۲۴:۲۶) میں تہمت بُری باتوں کی تردید کی گئی ہے مگر کیا ترجمہ صحیح کیا گیا ہے. اور حضرت عائشہ پر الزام ٹھیک ہے؟ نہ تو ترجمہ ہی خبیث عورت آدمی والا صحیح ہے اور نہ ہی عائشہؓ پر الزام صحیح ہے سیاق وسباق میں کسی جگہ بھی نہ عائشہ کا نام ہے اور نہ ہی ضمیر واحد مونث کی ہے. بلکہ صیغہ جمع کا ہے . اس لئے یہ واقعہ افک عائشہ والا بالکل غلط ہے جس کی تفصیل میں نے اپنی کتاب ناموس رسول میں کی ہے ملاحظہ ہو.
حقیقت میں منافقین نے مسلمانوں میں اختلاف اور جھگڑا کرانے کے لئے کچھ ایسے الزام مومن مردوں اور عورتوں پر لگائے یا لگائیں گے جو غلط ہوں گے سادہ مسلمان ان کی تصدیق نہ کرتے ہوئے آپس میں چرچہ کرنے لگیں اس غلط اور خطرناک بات سے بچانے کے لئے اللہ نے مسلمانوں کو یہ بتایا کہ اے مسلمانوں ایسے حالات میں ایسا عمل نہ کرنا یہ ٹھیک نہیں ہے بلکہ کرنا یہ ہے کہ اگر کوئی غلط بات سنوتو اس کو اپنے بڑوں کے پاس لے جاؤ وہ اس کی تحقیق کریں گے اور حقیقت کو پالیں گے اور تہمت لگانے والوں سے کہیں گے کہ تم اپنے چارگواہ لاؤ یہ طریقہ بتایا ہے. جس کو اللہ نے اپنا فضل اور رحمت کہا ہے. اور سورت نور کا نام ہی نور اس لئے ہے کہ اس میں سب باتیں وہ ہیں جن پر عمل کرنے سے ایک بہترین نورانی معاشرہ وجود میں آجاتا ہے اور نور ہی نور ہوجاتا ہے.
پوری سورت میں کسی بھی لفظ سے یہ ظاہر نہیں ہورہا کہ یہ الزام عائشہ پر تھا. جو ایک جنگ سے واپسی پر گھڑا گیا. اس الزام کی زد میں تو منافقوں کی طرف سے پورے مومن آتے تھے. جس کی تردید (۲۴:۲۶) میں کردی گئی ہے. اور بڑے صاف الفاظ میں کہا گیا کہ مومن جو ہوگا وہ کبھی غلط کام نہیں کرے گا وہ ہمیشہ صحیح کام کرے گا اس لئے ان کی طرف یہ الزام غلط ہے.
افک سے متعلق جوروایات بیان کی جاتی ہیں ان پر غور کرنے سے یہ واقعہ بالکل غلط ثابت ہوتا ہے. مثلاً غزوہ سے واپسی پر لشکر رات میں قیام کررہا تھا. عائشہ حوائج ضروریہ سے فراغت کے لئے لشکر سے باہر گئیں اُسی دوران لشکر نے کونچ کردیا عائشہؓ چھوٹ گئیں اور بعدمیں ایک صحابی ان کو لے کر دوپہر کے وقت لشکر میں آئے.
قابل غور بات یہ ہے کیا لشکر میں صرف عائشہؓ ہی تنہاعورت تھیں اور نہ تھیں؟ جب کہ اور بھی ضرور ہوں گی. ایسی حالت میں عائشہ عورتوں کے ساتھ جاتی جیسا عورتوں کا قاعدہ ہے. اگر مان لیا جائے صرف وہی تھیں تو محمدؐ سے بتاکر جانا تھا یا محمدؐ ان کے ساتھ جاتے یا محمدؐ ان کا انتظار کرتے. اگر یہ بھی ممکن نہیں تو فراغت کے لئے لشکر سے دور نہ جاتیں کہیں پاس میں ہی بیٹھ جاتیں. رات ہی تو تھی. اور جب لشکر چلتا تو آجاتیں. ایسا تو نہیں تھا کہ لشکر میں نہ تو کچھ سامان تھا اور آدمی بھی تھوڑے تھے اور بغیر کسی آہٹ کے چل دئے. عائشہؓ کو خبر نہ ہوئی؟ ایسا نہیں ہے بلکہ پورا لشکر تھا اور اونٹ گھوڑے خچر وغیرہ ساتھ تھے ان پر سازباندھ کر سامان لادھنا تھا. ایسی حالت میں گھوڑے ہنہناتے اونٹ بلبلاتے آدمی چلتے پھرتے آواز دیتے ایک دوسرے کو توعائشہ کو خبر ہوجاتی اور وہ آجاتی.
سب باتوں کو چھوڑو صرف ایک رکھو کہ چلتے وقت محمدؐ توضرور ہی عائشہؓ کو دیکھتے؟ علاوہ ازیں ڈولی اٹھانے والے بھی اندازہ نہ کرسکے کہ ڈولی خالی ہے یا بھری. کیا محمدؐ (نعوذ) ایسے بے خبر تھے کہ اپنی زوجہ کو بھی معلوم نہ کرسکے اور چل دئے. اور دوپہر تک خبرنہ ملی. ارے راستے میں کہیں تو نماز فجر پڑھی ہوگی وہاں دیکھتے مگر یہ کچھ نہ ہوا اور لشکر چلتارہا اللہ عقل دے.
مگر بھائیو! یہ کچھ نہیں ہوا اس لئے یہ واقعہ بالکل غلط ہے. الزام تراشی ہے. اور آگے سنو منافقین نے عائشہ کو ایک صحابی کے ساتھ تنہاآتے دیکھ کر الزام تراشی شروع کردی. الزام لگانے والے جانے پہچانے تھے. محمدؐ نے اللہ کے بتائے قانون کے مطابق ان سے چارگواہ طلب نہیں کئے اور تقریباً ایک ماہ تک یہ باتیں ایسے ہی گردش کرتی رہیں. تب کہیں جاکر محمدؐ نے مسجد میں مسلمانوں سے کہا کہ میری مدد کرو اس تحقیق کے وقت انصار کے دو قبیلوں میں جھگڑا ہوا. ان جھگڑاکرنے والوں میں ایک نام سعد بن معاذ کا بھی ہے کہ اس نے کھڑے ہوکر کہا کہ اے اللہ کے رسول اگر الزام لگانے والا میرے قبیلہ کا آدمی ہے تو میں اسے قتل کردوں. مگر کیا سعد بن معاذ اس وقت زندہ تھے؟ وہ تو تقریباً دس گیارہ ماہ پہلے ایک جنگ میں زخمی ہوکر انتقال کرگئے تھے پھر وہ کہاں سے آگئے؟ اس لئے بھی افک کا قصہ غلط ہے اس جھگڑے کو محمدؐ نے سمجھا کر ختم کیا اور تحقیق پوری نہ ہوسکی اور جب مسجد میں کہا تھا تو محمدؐ نے پورے یقین کے ساتھ کہا تھا کہ عائشہؓ بے قصور ہے.
پھر حضرت علیؓ سے معلوم کیا تو انہوں نے کہا عائشہؓ کو چھوڑدو ان کے سوا اور بہت عورتیں ہیں ان سے نکاح کرلو. اسامہ بن زید سے معلوم کیا حضرت زینب بنت جحش سے معلوم کیا انہوں نے تعریف کی. پھرآپ نے بریرہ خادمہ سے معلوم کیا اس نے بھی کچھ کمی کے ساتھ تعریف کی مگر بریرہ خادمہ اس وقت آپ کے پاس نہیں تھی. پھر معلوم کہاں اور کس سے کیا؟
عائشہؓ سے بھی سوال کیاانہوں نے کیا سوال کیا ہر آدمی جانتا ہے کتابوں میں لکھا ہے یہ معاملہ تقریباً ایک ماہ تک چلتا رہا. اس دوران وحی بھی نہ آئی. جب محمدؐ زیادہ پریشان ہوگئے تو اللہ نے آیت (۲۶) نازل کرکے عائشہ کی برات کا اعلان کیا اور سب کو بڑی خوشی حاصل ہوگئی کیا آیت میں عائشہ کا نام ہے؟
عجیب بات ہے یہ قصہ کافی دنوں تک چلتا رہا اور اللہ کے قانون کے مطابق کچھ نہ ہوا؟ ان سب باتوں پر غور کرنے سے یہ بات سامنے آتی ہے کہ یہ قصہ غلط اور جھوٹ ہے. اس لئے ہمیں فوراً اپنی کتابوں سے اس کو نکال دینا چاہیے. ورنہ جو الزام کسی نے گھڑا تھا وہ چلتا رہے گا. اور یہ الزام رسول صحابہ، ازواج سب پر ہے اس لئے اب یہ ختم ہونا چاہیے.
اس کی تصدیق خود آیت (۲۴:۲۳ اور ۲۴:۲۶) کررہی ہے . (۲۴:۲۳) میں بھی صیغہ جمع ہے اور (۲۴:۲۶) میں بھی صیغہ جمع ہے اور نہ ہی آیات میں کسی ایک عورت کا نام ہے جن میں کہا گیا ہے کہ بُری باتوں سے مومن مرد اور مومن عورتیں پاک ہیں جو یہ منافق لوگ بنارہے ہیں.
اب دیکھا جائے کہ یہ غلط ترجمہ کیوں کیا گیا ہے؟ یہ اس لئے کہ روایات کی کتابوں میں ایک فرضی قصہ درج ہے جس میں حضرت عائشہؓ پر تہمت لگائی گئی ہے اور اس تہمت کی برات (۲۴:۲۶) میں کردی گئی ہے یہ تو صحیح ہے کہ (۲۴:۲۶) میں تہمت بُری باتوں کی تردید کی گئی ہے مگر کیا ترجمہ صحیح کیا گیا ہے. اور حضرت عائشہ پر الزام ٹھیک ہے؟ نہ تو ترجمہ ہی خبیث عورت آدمی والا صحیح ہے اور نہ ہی عائشہؓ پر الزام صحیح ہے سیاق وسباق میں کسی جگہ بھی نہ عائشہ کا نام ہے اور نہ ہی ضمیر واحد مونث کی ہے. بلکہ صیغہ جمع کا ہے . اس لئے یہ واقعہ افک عائشہ والا بالکل غلط ہے جس کی تفصیل میں نے اپنی کتاب ناموس رسول میں کی ہے ملاحظہ ہو.
حقیقت میں منافقین نے مسلمانوں میں اختلاف اور جھگڑا کرانے کے لئے کچھ ایسے الزام مومن مردوں اور عورتوں پر لگائے یا لگائیں گے جو غلط ہوں گے سادہ مسلمان ان کی تصدیق نہ کرتے ہوئے آپس میں چرچہ کرنے لگیں اس غلط اور خطرناک بات سے بچانے کے لئے اللہ نے مسلمانوں کو یہ بتایا کہ اے مسلمانوں ایسے حالات میں ایسا عمل نہ کرنا یہ ٹھیک نہیں ہے بلکہ کرنا یہ ہے کہ اگر کوئی غلط بات سنوتو اس کو اپنے بڑوں کے پاس لے جاؤ وہ اس کی تحقیق کریں گے اور حقیقت کو پالیں گے اور تہمت لگانے والوں سے کہیں گے کہ تم اپنے چارگواہ لاؤ یہ طریقہ بتایا ہے. جس کو اللہ نے اپنا فضل اور رحمت کہا ہے. اور سورت نور کا نام ہی نور اس لئے ہے کہ اس میں سب باتیں وہ ہیں جن پر عمل کرنے سے ایک بہترین نورانی معاشرہ وجود میں آجاتا ہے اور نور ہی نور ہوجاتا ہے.
پوری سورت میں کسی بھی لفظ سے یہ ظاہر نہیں ہورہا کہ یہ الزام عائشہ پر تھا. جو ایک جنگ سے واپسی پر گھڑا گیا. اس الزام کی زد میں تو منافقوں کی طرف سے پورے مومن آتے تھے. جس کی تردید (۲۴:۲۶) میں کردی گئی ہے. اور بڑے صاف الفاظ میں کہا گیا کہ مومن جو ہوگا وہ کبھی غلط کام نہیں کرے گا وہ ہمیشہ صحیح کام کرے گا اس لئے ان کی طرف یہ الزام غلط ہے.
افک سے متعلق جوروایات بیان کی جاتی ہیں ان پر غور کرنے سے یہ واقعہ بالکل غلط ثابت ہوتا ہے. مثلاً غزوہ سے واپسی پر لشکر رات میں قیام کررہا تھا. عائشہ حوائج ضروریہ سے فراغت کے لئے لشکر سے باہر گئیں اُسی دوران لشکر نے کونچ کردیا عائشہؓ چھوٹ گئیں اور بعدمیں ایک صحابی ان کو لے کر دوپہر کے وقت لشکر میں آئے.
قابل غور بات یہ ہے کیا لشکر میں صرف عائشہؓ ہی تنہاعورت تھیں اور نہ تھیں؟ جب کہ اور بھی ضرور ہوں گی. ایسی حالت میں عائشہ عورتوں کے ساتھ جاتی جیسا عورتوں کا قاعدہ ہے. اگر مان لیا جائے صرف وہی تھیں تو محمدؐ سے بتاکر جانا تھا یا محمدؐ ان کے ساتھ جاتے یا محمدؐ ان کا انتظار کرتے. اگر یہ بھی ممکن نہیں تو فراغت کے لئے لشکر سے دور نہ جاتیں کہیں پاس میں ہی بیٹھ جاتیں. رات ہی تو تھی. اور جب لشکر چلتا تو آجاتیں. ایسا تو نہیں تھا کہ لشکر میں نہ تو کچھ سامان تھا اور آدمی بھی تھوڑے تھے اور بغیر کسی آہٹ کے چل دئے. عائشہؓ کو خبر نہ ہوئی؟ ایسا نہیں ہے بلکہ پورا لشکر تھا اور اونٹ گھوڑے خچر وغیرہ ساتھ تھے ان پر سازباندھ کر سامان لادھنا تھا. ایسی حالت میں گھوڑے ہنہناتے اونٹ بلبلاتے آدمی چلتے پھرتے آواز دیتے ایک دوسرے کو توعائشہ کو خبر ہوجاتی اور وہ آجاتی.
سب باتوں کو چھوڑو صرف ایک رکھو کہ چلتے وقت محمدؐ توضرور ہی عائشہؓ کو دیکھتے؟ علاوہ ازیں ڈولی اٹھانے والے بھی اندازہ نہ کرسکے کہ ڈولی خالی ہے یا بھری. کیا محمدؐ (نعوذ) ایسے بے خبر تھے کہ اپنی زوجہ کو بھی معلوم نہ کرسکے اور چل دئے. اور دوپہر تک خبرنہ ملی. ارے راستے میں کہیں تو نماز فجر پڑھی ہوگی وہاں دیکھتے مگر یہ کچھ نہ ہوا اور لشکر چلتارہا اللہ عقل دے.
مگر بھائیو! یہ کچھ نہیں ہوا اس لئے یہ واقعہ بالکل غلط ہے. الزام تراشی ہے. اور آگے سنو منافقین نے عائشہ کو ایک صحابی کے ساتھ تنہاآتے دیکھ کر الزام تراشی شروع کردی. الزام لگانے والے جانے پہچانے تھے. محمدؐ نے اللہ کے بتائے قانون کے مطابق ان سے چارگواہ طلب نہیں کئے اور تقریباً ایک ماہ تک یہ باتیں ایسے ہی گردش کرتی رہیں. تب کہیں جاکر محمدؐ نے مسجد میں مسلمانوں سے کہا کہ میری مدد کرو اس تحقیق کے وقت انصار کے دو قبیلوں میں جھگڑا ہوا. ان جھگڑاکرنے والوں میں ایک نام سعد بن معاذ کا بھی ہے کہ اس نے کھڑے ہوکر کہا کہ اے اللہ کے رسول اگر الزام لگانے والا میرے قبیلہ کا آدمی ہے تو میں اسے قتل کردوں. مگر کیا سعد بن معاذ اس وقت زندہ تھے؟ وہ تو تقریباً دس گیارہ ماہ پہلے ایک جنگ میں زخمی ہوکر انتقال کرگئے تھے پھر وہ کہاں سے آگئے؟ اس لئے بھی افک کا قصہ غلط ہے اس جھگڑے کو محمدؐ نے سمجھا کر ختم کیا اور تحقیق پوری نہ ہوسکی اور جب مسجد میں کہا تھا تو محمدؐ نے پورے یقین کے ساتھ کہا تھا کہ عائشہؓ بے قصور ہے.
پھر حضرت علیؓ سے معلوم کیا تو انہوں نے کہا عائشہؓ کو چھوڑدو ان کے سوا اور بہت عورتیں ہیں ان سے نکاح کرلو. اسامہ بن زید سے معلوم کیا حضرت زینب بنت جحش سے معلوم کیا انہوں نے تعریف کی. پھرآپ نے بریرہ خادمہ سے معلوم کیا اس نے بھی کچھ کمی کے ساتھ تعریف کی مگر بریرہ خادمہ اس وقت آپ کے پاس نہیں تھی. پھر معلوم کہاں اور کس سے کیا؟
عائشہؓ سے بھی سوال کیاانہوں نے کیا سوال کیا ہر آدمی جانتا ہے کتابوں میں لکھا ہے یہ معاملہ تقریباً ایک ماہ تک چلتا رہا. اس دوران وحی بھی نہ آئی. جب محمدؐ زیادہ پریشان ہوگئے تو اللہ نے آیت (۲۶) نازل کرکے عائشہ کی برات کا اعلان کیا اور سب کو بڑی خوشی حاصل ہوگئی کیا آیت میں عائشہ کا نام ہے؟
عجیب بات ہے یہ قصہ کافی دنوں تک چلتا رہا اور اللہ کے قانون کے مطابق کچھ نہ ہوا؟ ان سب باتوں پر غور کرنے سے یہ بات سامنے آتی ہے کہ یہ قصہ غلط اور جھوٹ ہے. اس لئے ہمیں فوراً اپنی کتابوں سے اس کو نکال دینا چاہیے. ورنہ جو الزام کسی نے گھڑا تھا وہ چلتا رہے گا. اور یہ الزام رسول صحابہ، ازواج سب پر ہے اس لئے اب یہ ختم ہونا چاہیے.