मुहम्मद मुहिब अल्लाह एक बोध भिक्षू के सफ़र हिदायत की ईमान अफ़रोज़ आप-बीती
मुहम्मद मुहिब अल्लाह { साबिक़ में स्वामी आनंदा }
मुस्तफ़ाद अज़ मौलाना कलीम सिददीकी
माहनामा ’ अरमूग़ान ‘ जुलाई, अगस्त 2007
आडीयो किताब मुहम्मद उमर कैरानवी
पहली बात
बुध ख़ुदा का अवतार बन कर मैंने 25 साल मज़े मैं ज़िंदगी गुज़ारी, लोग मेरे पैरों पर सज्दे करते रहे, फिर उन लोगों ने मेरे ख़ुदा होने का यक़ीन कर लिया, और मुझे भी इस पर यक़ीन हो चला, मैंने ज़िंदगी का 25 साला तवील अरसा ख़दाईत का लुबादा ओढ़ कर गुज़ारा कि मैं बुध भगवान का अवतार हूँ बुध की सात मर्तबा पैदाइश हुई है जिनमें से में भी एक हूँ मेरा दावा था कि मैं जो भी कहता हूँ वो ख़ुदा का कलाम है इस पर मुझे यक़ीन भी था सिर्फ मुझे ही नहीं बल्कि जो भी ज़ाफ़रानी कपड़े पहने हुए हैं वो सारे के सारे बुद्धा भिक्षू इसी तरह-ए-यक़ीं रखते थे ’’दुनिया का सबसे अज़ीम मज़हब बुध मत है ‘‘ इस अक़ीदा के साथ में दुनिया के मुख़्तलिफ़ ममालिक में इस की नशर-ओ-इशाअत करता रहा जिसके नतीजा में सैकड़ों ममालिक में मेरे शागिर्द और मददगार पैदा हो गए
मेरा हक़ीक़ी भाई आज भी दुनिया में एक मशहूर बुध सन्यासी है वो अमरीका के लास ऐंजलिस शहर में रहता है मैं जब ख़दाईत के लुबादा में ज़िंदगी गुज़ार रहा था,
इस दौर में एक मुस्लमान भाई और बुध मत में मेरे शागिर्द डाक्टर चीपन साकिन मद्रास इन दोनों के ज़रीया मुझे इस्लाम का तआरुफ़ हासिल हुआ और इस्लाम के मुताल्लिक़ मुझे कुछ किताबें अता की गईं मगर मैंने बे तवज्जही में उनका मुताला किया, लेकिन बाद में क़ुरआन-ए-मजीद और मुहम्मद की तारीख़-ओ-सीरत का मुताला मुसलसल जारी रखा, तो उस वक़्त मेरे दिल की गहिराईयों में अपने गुनाहों का एहसास पैदा हुआ, जिसके नतीजा में ख़दाईत का लुबादा ओढ़ कर ज़िंदगी गुज़ारने वाला मैं, रफ़्ता-रफ़्ता एक इन्सान के रूप में आ गया ब्रह्माचारी की ज़िंदगी गुज़ारने वाला में एक शौहर बन गया अकेला एक जिस्म वाला में एक बाप बन गया, दूसरों को सलामती का रास्ता दिखाने वाला मैं ख़ुद सलामती की राह का तालिब हो गया, बुद्धा सन्यासियों और चौपायियों को ख़ुदा मानने वाला में एक अकेले अल्लाह को हक़ीक़ी माबूद तस्लीम करने लगा
मुख़्तसर ये कि मैं पहले ख़ुदा था आज एक इन्सान बन गया अपनी ज़िंदगी के अव्वलता आख़िर हालात आपके सामने मुख़्तसर पेश करता हूँ
मेरी हालत :
बुद्धम् शरणम् गच्छामि, धरमम शरणम् गच्छामि, संगम शरणम् गचामी इन उसूलों पर ज़िंदगी गुज़ारते हुए मेरी ज़बान पर यही अलफ़ाज़ और नारे मुसलसल जारी थे ’’ मैंने बोधि दरख़्त के नीचे बैठ कर इलम हासिल किया, बुध सन्यासी, दुनिया में बुध मत का प्रचारक‘‘
गौतमबुद्ध :
इन्सान को इन्सानी गु़लामी से निकालने वाले, जाहिलियत को ख़त्म करने वाले आर्या क़ौम के ज़ुलम को मिटाने वाले इन्सान को अमन-ओ-सलामती का रास्ता बताने वाले गौतमबुद्ध !
ब्रह्माचारी लोग :-
बुध अक़ीदा को ज़मीन में परचार करने वाले लोग दुनिया की ख़ाहिशात ना रखने वाले ब्रह्माचारी लोग, दरबारी अंदाज़ में बुध वीहारों में ख़ुशीयों की ज़िंदगी गुज़ारने वाले लोग, आर्या वरुण आश्रम धरम ( ज़ात पात के निज़ाम ) के ख़िलाफ़ तलवार ले कर निकले हुए लोग
इन्सान कौन?
इन्सान क्या ख़ुद पैदा हुआ है या किसी ख़ुदा ने इस को पैदा किया है ؟क्यों मौत आती है, मौत के बाद इन्सान को क्या होता है ? मेरा ज़मीर मुझसे इस तरह के सवालात करता रहा, मेरे ज़हन में ये सवालात खटकते रहे गुमशुदा चीज़ों की तलाश की तरह उनके जवाबात तलाश करता रहा जिसकी वजह से मेरे अंदर रफ़्ता-रफ़्ता ख़ाहिशात से नफ़रत पैदा होती गई, मैं हक़ की तलाश में था जिसकी वजह से मेरे दिल में रोशनी की एक किरण रौनुमा हुई पैसा ख़र्च करने से ना हासिल होने वाला रहम-ओ-मुहब्बत और आजिज़ी मेरे दिल में पैदा हो गई, में जिस राह पर चल रहा हूँ वो सही है या ग़लत, ये समझने की तड़प मेरे अंदरपैदा हो गई और इसी तरह-ए-दीगर मज़ाहिब को परखने की आरज़ू मेरे इंद्र पैदा हो गई, उधेड़ उम्र में मेरे अंदर जो फ़िक्र रौनुमा हुई उसने मेरी माज़ी की ज़िंदगी पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र करने का एक मौक़ा फ़राहम क्या,
मैं ज़ात का यादव स्वामी आनंदजी के नाम से मशहूर हुआ, रेशम के तख़्त पर दरबार के ख़ादिम मुझे एक जगह से दूसरी जगह ले जाते, ये रहा मेरे माज़ी का हाल मेरा ख़ानदान तामिल नाडू में राम नाथ पोरम ज़िला में परम कदी से क़रीब आलाकन कुलम में आबाद था, फिर मैंने सुदार कविताई बंदरगाह से बादबानी कश्ती से बर्मा का रुख किया जहां मेरे दादा अपनी फ़ैमिली के साथ ऐश-ओ-आराम की ज़िंदगी गुज़ार रहे थे, में या दो ज़ात में पैदा हुआ हमारे ख़ानदान का पेशा मवेशीयों और चौपायियों को चुराना था, मगर में आज बुध गुरु स्वामी आनंदा कहलाता हूँ, मईशत के लिए बर्मा मुंतक़िल हुआ मगर मैंने तमिल ज़बान को अपनी मादरी ज़बान की हैसियत से बाक़ी रखा मेरे वालिद बचपन ही से एक कट्टर बुद्धिस्ट थे इस लिए बुध मज़हब के तरीक़ा के मुताबिक़ मेरी भी परवरिश करते रहे मुख़्तलिफ़ बुध मंदिरों में मुझे तालीम दी गई, मुझे एक बुद्धा भिक्षू बनाने की मेरे वालिद की बड़ी आरज़ू थी उस के मुताल्लिक़ इन्होंने सारे फ़नून से मुझे सखलाए, रंगून, तिब्बत, चीन, कोरिया, कमबोडिया, जापान इन सारे ममालिक के बुध गुरुओं से मैंने तालीम हासिल की और 19 साल की उम्र तक मुकम्मल तालीम हासिल कर ली और फिर एक दिन बर्मा के दूसरे दार-उल-ख़लाफ़ा मंडला में मुझे बुध मत गुरु चानीसराने एशीया के पाँच बुध गुरुओं में से एक गुरु की हैसियत से तस्लीम कर लिया और ज़ाफ़रानी रंग का लिबास मुझे पहनाया गया और बुध भकशों में मुझे आला मुक़ाम हासिल हो गया, मुझे टोकीयो जापान में बुध मत गुरु ’’ बोधि दासूवा स्व ‘‘ ने ’’ नागासाकी ‘‘मैं मुक़र्रर किया और पूरी दुनिया में इस मज़हब की नशर-ओ-इशाअत की अज़ीम ज़िम्मेदारी मुझे सौंपी गई फिर 101 गुरुओं की सदारत मुझे हासिल हुई उस के बाद मैंने दुनिया-भर में घूम घूम कर बुध मत की नशर-ओ-इशाअत शुरू की जुनूब मग़रिबी एशीया के सतरह ममालिक, जहां बुद्धिस्ट पाए जाते हैं उस के इलावा यूरोप में भी बुध मत की नशर-ओ-इशाअत की कोशिश करता रहा
बुध मत की दुनिया में मुझे इतना बड़ा मुक़ाम हासिल हो गया था, जिसकी कोई हद नहीं, पूरी दुनिया घूमने के लिए हुकूमत की जानिब से मुझे ग्रीन कार्ड अता किए गए, जिसकी वजह से मैं अरब ममालिक के इलावा सारी दुनिया घूम कर इस मज़हब की नशर-ओ-इशाअत करता रहा।मेरा हक़ीक़ी भाई स्वामी नंद आचार्य आज भी अमरीका के लास ऐंजलिस शहर में बुध आश्रम में मठ पति के मन्सब पर है।में भी वहां साढे़ तीन साल तक मठ पत्ती रहा
झाड़ फूंक और करामत :
चीन, तिब्बत, जापान वग़ैरा में झाड़ फूंक के ज़रीया मुझे बड़ी बड़ी करामत हासिल हुई थीं और उनसे मुझे ख़ासी शौहरत हासिल हो गई थी, इस दौर में झाड़ फूंक के ज़रीया अर्वाह को मदऊ करना फिर उनसे पीशीनगोई करवाना मेरा अमल था, काली काढ़ी, कलकत्ता काली, केरला देवी ( ये इलाक़ाई देवियों के नाम हैं ) की पूजा कर के ताँबे की पट्टीयों और धागों पर फूंक मारकर लोगों को देता और देवताओं को 101 चांदी के बर्तनों में बंद करता, मेरा वक़्त ना गुज़रता तो में इस वक़्त उन बर्तनों के देवताओं को बाहर निकाल कर अंधेरों मैं उनसे गुफ़्तगु करता फिर में अपनी मुलाक़ात के लिए आने वाले लोगों और सारी दुनिया के बुद्धिस्टों में देवताओं की ज़बान और पेशीन गोईआं जानने वाला और उनसे बातचीत करने वाला महागुरू आनंद जी के नाम से मशहूर हो गया
आशिर्वाद :
क़ाइदीन और हुक्मराँ अपने सुरों पर मेरा पैर रखवा कर आशिर्वाद लेने को बहुत बड़ा नेक फ़ाल समझते, सिंगापुर के पहले राजा के सर पर पैर रखकर मैंने इस को आशिर्वाद दिया था इसी तरह थाईलैंड के राजा बर्मा पूजो चनीसो यन को भी इस के सर पर पैर रखकर मैंने आशिर्वाद दिया था, इसी तरह हमारे साबिक़ वज़ीर-ए-आज़म राजीव गांधी और जापान के नायब सलतनत इन दोनों के सुरों पर पैर रखकर मैंने आशिर्वाद दिया था, शुक्रवार ( जुमा ) और मंगल को सोने का तख़्त खड़ा कर के एक मटका पानी से जो मेरा पैर धोना चाहता इस अमल की क़ीमत एक लाख रुपया होती, जिसको पाँच आदमी पीते, क्योंकि मैं ख़ुदा का अवतार हूँ
बुध का दूसरा जन्म : देवताओं के सदर ख़ुदाओं से गुफ़्तगु की इस्तिताअत रखने वाला, मलिक और सारी दुनिया में घूमने वाला में था, ला-इलाज बीमारीयों में वो लोग मेरा पेशाब पीते जिससे उनको शिफ़ा हासिल होती, मेरा पेशाब पीने मैं क्या ग़लती थी जब कि मैं उनका ख़ुदा था
क्या इन्सान ख़ुदा है
मैं बोधि दरख़्त के नीचे चांदी के तख़्त पर बैठता हूँ सोना और पैसा सामने रखकर अपने पैरों पर गिरने वाले भगत लोगों को मैं आशिर्वाद देता हूँ वो लोग आशिर्वाद की ग़रज़ से मेरी तलाश में निकलते हैं एक आदमी मेरे पास आकर इल्तिजा करता, गुरु जी में ख़ुदा को नहीं देख सकता आप ही वो अज़ीम ज़िंदा ख़ुदा हैं, मुझे दुनिया की सारी नेअमतें हासिल हैं मगर शादी हुए पाँच साल का अरसा हुआ औलाद से महरूम हूँ, गुरु जी आप मुझे बेहतरीन आशीर्वाद दीजिए, जिसके ज़रीया मुझे औलाद नसीब हो ये कह कर वो शख़्स मेरे पैर पर अपना हाथ रखकर इस हाथ को अपनी आँखों पर मिलता है यहां से मसला शुरू होता है। मेरे आश्रम में मुझे तलाश करने वाला ये भगत बड़ा करोड़पती है इस को अपने जाल में फांसने की मुझे ख़ाहिश होती है इस लिए में उनसे कहता हूँ कि आज शाम की पूजा के बाद तुम्हें तावीज़ दूँगा सोते वक़्त उस को अपने तकिए के नीचे रखना आज रात ख़ुदा तुमसे गुफ़्तगु करे गा कल आकर मुझे बतलाना कि ख़ुदा ने गुफ़्तगु की या नहीं, इत्तिफ़ाक़ से दूसरे दिन उस शख़्स ने मेरा दरवाज़ा खटखटाया उस वक़्त मेरे शागिर्द ने जल्दी से मेरे पास आकर ये ख़बर दी कि गुरु जी वो करोड़पती आया है मैंने शागिर्द से सवाल किया कि कौन सा करोड़पती ? उसने कहा वही जो औलाद की ग़रज़ से आया था और जो तावीज़ ले कर गया था।फ़ौरन में ज़ाफ़रानी कपड़े पहन कर रेशमी पंखा हाथ में ले कर भिक्षू का बर्तन पकड़ कर जैसे अभी बुद्धा नाज़िल हुआ है इस तरह इस आदमी के सामने हाज़िर हुआ वो फ़ौरन पैर पर गिर गया और झट से कहने लगा कि ख़ुदा ने मुझसे गुफ़्तगु कर ली और ख़ुशी से रोने लगा मैं तो ख़ुदा को नहीं देखता मगर मेरे झूटे तावीज़ को पहन कर ये बे वक़ूफ़ कहता है कि ख़ुदा ने इस से कलाम क्या उस की बात सुनते ही में हैरान-ओ-परेशान हो गया।ये में क्या सन रहा हूँ ? 25 साल सर मुंडवा कर, तावीज़ और ज़ाफ़रानी कपड़े पहन कर ब्रह्माचारी की ज़िंदगी गुज़ार कर, सारी ख़ाहिशात को तर्क कर के सन्यासी बन कर, बोधि दरख़्त के नीचे हमेशा बुधा बुधा वज़ीफ़ा चीख़ कर पढ़ने वाला में, और तावीज़ लेने वालों ने मुझे पसेपुश्त डाल कर इस ख़ुदा से गुफ़्तगु कर ली, क्या ये इन्साफ़ है ?अगर उस को गुफ़्तगु करना ही होता तो मुबा मेरे अंदर पैदा हुआ।फिर क़ुरआन का मुताला शुरू किया ये दुनिया और सारी मख़लूक़ के एक ही ख़ालिक़ हैं,झसे गुफ़्तगु करता / साल से मेरे बुध ने मुझसे गुफ़्तगु नहीं की मगर मेरे शागिर्द ने एक तावीज़ तुमको दिया तो उसने कैसे तुमसे गुफ़्तगु कर ली, फांसने वाला जब तक रहे गा फंसने वाले भी तब तक रहेंगे स्वामी का हाल ये है कि ज़ाफ़रानी लिबास में तक़द्दुस का रूप धार कर महान मुक़द्दस हस्तियाँ अगर पुलिस पकड़ ले तो महा पापी निकलें, जिनमें मशहूर नाम ब्रह्मा निंदा स्वामी, चन्द्रास्वामी, मारता अनडतम, जान जोज़फ़ वग़ैरा हैं और मेरे इस्लाफ़ ने मेरे ज़हन में ये बात बिठा दी थी कि मुस्लमान बुज़ूर बाज़ू तबदीली मज़हब कराते हैं, उस के इलावा वो मेरे इस्लाफ़ या दो ज़ात से ताल्लुक़ रखते हैं जिनका पेशा चौपायियों का पालना और परवरिश करना है और साथ ही गाय को ख़ुदा भी मानते हैं मैं बचपन में बुध मत का गुरु था फिर भी मेरे वालिद और वालिदा उस को ख़ुदा तस्लीम करती थीं और मुझे भी इस फे़अल पर उभारती थीं तो मुस्लमान ऐसे ख़ुदा को काट कर बिरयानी बनाता है एक गुरु होने के नाते इस्लाम का मुताला मेरे बस की बात नहीं थी मगर उसी दरमयान बाअज़ मुस्लमानों से मेरे ताल्लुक़ात वाबस्ता हुए इस्लाम ने मुझे घेर लिया : चंद दिन गुज़रने के बाद मुस्लमानों से मेरे ताल्लुक़ात क़वी होते गए और साथ ही इस्लाम को सही तरीक़ा से समझने की सहूलयात फ़राहम होती गईं छोटे छोटे रसाइल का मुताला जारी था, आप मुहम्मद की सीरत के मुताला से क़ुरआन-ए-करीम को पढ़ने का एक शौक़ और जज़ इस से ये बात मुझे मालूम हुई सूरज सुबह तलूअ होता है और शाम में ग़ुरूब होता है, ये तमाम अल्लाह के हुक्म पर हो रहा है ये बात मालूम होने के बाद उस की अज़ीम मख़लूक़ात में ग़ौर फ़िक्र कर के मैं ताज्जुब में पड़ गया।आख़िर-ए-कार इस्लामी फ़िक्र मेरे दिल में रफ़्ता-रफ़्ता बढ़ती रही फिर ये अफ़्क़ार मेरे दिमाग़ में हलचल मचा रहे थे और दिमाग़ को झनजोड़ रहे थे कि इस्लाम को समझना और इस को क़बूल करना चाहीए फिर मेरे दिमाग़ में ख़्याल आया कि क़ुरआन-ए-क्रीम का मुताला एक मर्तबा और कर के देखना चाहीए ये जज़बा मेरे अंदर से उभरा, में यकसूई के साथ क़ुरआन के मुताला में ग़र्क़ होता गया।फिर उस के साथ साथ आश्रम के मेरे रोज़मर्रा के मामूलात में अदम दिलचस्पी बढ़ती गई, सुबह-ओ-शाम अगरबत्ती और मोम-बत्ती सुलगा कर पानी में फूल डाल कर’’ बुद्धम् शरणम् गच्छामि ‘‘ का ज़िक्र करना बंद हो गया
नुक़्ता आग़ाज़ :
क़ुरआन-ए-क्रीम का दो मर्तबा मुताला करने के बाद मेरा ज़हन खुल गया फिर मुझे मालूम हुआ कि मैं गुज़शता 35 साल से गुमराही-ओ-जहालत में था सारी चीज़ें अल्लाह के हाथ में हैं ये जानने के बाद भी ऐश-ओ-आराम का आदी स्वामी ऐश की ज़िंदगी छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ और ना ही मेरे जिस्म ने इस को गवारा क्या, इस दौरान एक दलित क़ाइद मेरे पास आशिर्वाद के ख़्याल से आया मैंने इस के सर पर पैर रखकर आशिर्वाद दिया कि आप 120 साल तक ज़िंदा रहेंगे मगर मेरे आशिर्वाद लेने के 90 दिन बाद वो इंतिक़ाल कर गया इस बात ने मेरे दिल को ललकारा, आवाज़ दी, झिंझोड़ दिया, मेरी ज़िंदगी के इन्क़िलाब का नुक़्ता आग़ाज़ ये था, इसी तरह एक और वाक़िया भी पेश आया ,1991 के पार्लीमैंट इलैक्शन के दौरान साबिक़ प्राइम मिनिस्टर राजीव गांधी कांची के शंकर आचार्य से आशिर्वाद लेने के लिए गए राजीव गांधी के सिरपुर पैर रखकर शंकर आचार्य ने कहा : 101 साल तक आप ज़िंदा रहेंगे और ये भी आशिर्वाद दिया कि हिन्दोस्तान में हमेशा आप ही वज़ीर-ए-आज़म बनेंगे, शंकर आचार्य के आशिर्वाद के सत्ताईसवें दिन राजीव गांधी सिरी पोरम में इन्सानी बम के ज़रीया फ़ौत हो गए ये दोनों वाक़ियात मेरे ज़मीर में खटकते और ललकारते रहते कि में एक बुद्धा स्वामी हूँ मैंने जिसको आशिर्वाद दिया वो 90 दिन में मर गया और हिंदू गुरु शंकर आचार्य ने जिसको आशिर्वाद दिया वो शख़्स सिर्फ़ सत्ताईसवें दिन में इंतिक़ाल कर गया, मुझे मालूम हो गया कि ये आशिर्वाद देने वाला आचार्य भी और बुद्धा भिक्षू भी झूटे ख़ुदा हैं, इस से ज़्यादा ज़िल्लत और क्या हो सकती है इस से ये बात वाज़िह होती है कि इन्सान किसी ताक़त का मालिक नहीं ज़मीन पर सिर्फ अल्लाह का हुक्म चलता है इस हक़ीक़त ने मेरे दिल में यक़ीन पैदा कर दिया और मेरी आँखें खोल कर रख दें कि मुझ जैसे हक़ीर-ओ-ना चीज़ को आशिर्वाद देने का कोई हक़ नहीं।ये बेदारी मेरे अंदर आती ही गई, तवील अरसा से पहना हुआ ज़ाफ़रानी कपड़ा जिस्म से उतार कर फेंक दिया और मुझे यक़ीन हो गया कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद बरहक़ नहीं है
क्या इन्सान ख़ुदा है
क्या मैं ख़ुदा हूँ ? इस्लाम ने ये सोचने पर मुझे मजबूर किया इन्सान इन्सान की हैसियत से ज़िंदगी गुज़ारे यही उस की मेराज है, इन्सान सब बातों से आज़ाद हो सकता है मगर अज़दवाजी ज़िंदगी से आज़ाद होने से वो सड़ गल जाता है, इस्लाम में एक इन्सान को चार बीवीयों के साथ ज़िंदगी गुज़ारने का हक़ है अज़दवाजी ज़िंदगी तर्क कर के सन्यासी बन कर सैकड़ों लड़कीयों के साथ ज़ना कर के उनकी ज़िंदगी बर्बाद करने वाले इस अज़ीम गुनाह और ज़ुलम से इस्लाम ने मुझे बचा लिया।मैंने अपने सर से ज़ाफ़रानी कपड़ा उतार कर फेंक दिया और इन्सान बन गया
गुरु और उनकी बददुआ :
मेरे मुस्लमान होने की ख़बर पूरे बुध मत की दुनिया में जंगल की आग की तरह फैल गई, वक़्त के महागुरू तिब्बत के स्वामी को भी ये ख़बर पहुंच गई हालाँकि वो मेरी हमावक़त तारीफ़ करते रहते थे, मेरे इस्लाम क़बूल करने की ख़बर मिलते ही इन्होंने मुझे मद ओ किया, वाज़िह हो कि वो सिर्फ एक स्वामी ही नहीं थे बल्कि एक माहिर जादू-गुर भी थे में भी ख़ुशी के साथ उनसे मुलाक़ात की ग़रज़ से गया मैंने अपने हालात उन पर वाज़िह किए इन्होंने कहा कि आपके क़बूल इस्लाम से बुध मत को सिर्फ नुक़्सान ही नहीं पहुंचेगा बल्कि बुध मत के अवाम में इज़ाफ़ा की जो तवक़्क़ो है इस में बड़ी गिरावट आए गी इस लिए आप अपने फ़ैसला पर नज़र-ए-सानी कीजिए, मैंने कहा इस फ़ैसला में नज़र-ए-सानी की कोई गुंजाइश नहीं है इस तरह का जवाब ख़ुद मेरे तसव्वुर में भी नहीं था कि में भी इस तरह का जवाब दूँगा एक दौर वो था कि अगर गुरु कहें कि ख़रगोश के तीन पैर होते हैं तो मैं आँख बंद कर के इस की तसदीक़ कर देता कि हाँ ठीक है तीन पीर हैं, उस वक़्त ये जवाब सुनकर वो मुझसे सख़्त नाराज़ हुए और उनका ग़ुस्सा हद से बढ़ गया और इन्होंने मुझे बददुआ दी इस से क़बल में उनकी बददुआ सुनता तो चौंक जाता था कपकपी तारी हो जाती थी, मगर उस वक़्त बददुआ से मुझे कुछ परेशानी नहीं हुई उनकी बददुआ ये थी कि ’’ मेरी बात का इनकार कर के इस्लाम को तर्क नहीं करूँगा ‘‘ कहने वाला … तो … जा, एक सौ पच्चास दिन के इंद्र तेरा एक हाथ और एक पैर मफ़लूज हो जायेगा। इस तरह के ख़ुराफ़ात का इस्लाम में कोई मुक़ाम नहीं है ये बात मुझे मालूम हो गई थी, लेकिन फिर भी शैतान मेरे दिल में वस्वसा डालता रहा कि शायद कुछ बददुआ का असर ज़ाहिर होगा, मगर मैंने इन वस्वसों को नज़रअंदाज करते हुए अल्लाह पर भरोसा किया और वहां से वापिस हुआ उस के बाद में हर दिन मुहतात हो कर ज़िंदगी बसर करने लगा कि कल के दिन अगर किसी मुसीबत में मुबतला हुआ तो लोग अफ़्वाहें फलाएं गे कि ये इस बददुआ का असर है, इस ख़्याल से मैं घबराता और डरता रहा अल्लाह का शुक्र और इस का फ़ज़ल है कि एक सौ पच्चास दिन सलामती के साथ किसी मुसीबत में मुबतला हुए बग़ैर गुज़र गए। एक सौ पच्चास दिन गुज़रने से क़बल मुझे मक्का मुकर्रमा जाने का मौक़ा मिला।अलहमदु लिल्लाह उनकी बददुआ के बाद मैंने अपनी ज़िंदगी में बहुत सी करामात महसूस कीं इस तरह की बददुआ के बाद अक्सर लोग फ़िक्र की वजह से अपनी ज़िंदगी ख़राब कर लेते हैं अल्लाह का फ़ज़ल है कि उन पर ख़तर हालात में भी अल्लाह ने मुझे महफ़ूज़ रखा, सिर्फ इतना ही नहीं बल्कि क़बूल इस्लाम से इन्सान की ज़िंदगी में बहुत सी तबदीलीयां आ जाती हैं उनमें एक चीज़ दूसरों को धोका देने से अपने आपको रोके रखना है गुज़श्ता 45 सालों में एक बुध भिक्षू की शक्ल में मैंने सैकड़ों लोगों को धोका दिया लेकिन आज इस बुरे फे़अल को मुकम्मल भूल गया हूँ इसी तरह मेरे ऊपर वाले गुरुओं के ज़रीया मुझे भी धोका खाना पड़ा मेरी नई ज़िंदगी में ये दोनों बुराईयां ख़त्म हो गईं ज़ाफ़रानी कपड़े मैं मेरी तबीयत में काफ़ी सख़्ती थी, कलिमा तौहीद के इक़रार के बाद एक नर्म-दिल इन्सान बन गया, इस्लाम की वजह से मेरी ज़िंदगी में नई तबदीली आ गई थी
कलमा-ए-तौहीद का इक़रार:
में 3 अक्तूबर 1993 को मद्रास की मस्जिद मामूर में कलिमा तौहीद का इक़रार कर के इस्लामी समाज में दाख़िल हो गया।स्वामी आनंदा से मुहम्मद मुहिब अल्लाह ( यानी अल्लाह से मुहब्बत करने वाला ) बन गया, में नौ मौलूद बच्चा की तरह हो गया था, अल्लाह के नज़दीक तमाम इन्सान बराबर हैं इस उसूल के ज़ायक़ा को अपने इंद्र महसूस किया, आज से मुझे भी सारी दुनिया की मस्जिद में बराबर का हक़ है मुझे भी सारे मुस्लमानों के साथ बराबर नमाज़ पढ़ने का हक़ है, इंशाअल्लाह
आज के बाद से अगर मैं दुनिया की किसी मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की ग़रज़ से जाने का फ़ैसला करूँ तो दुनिया की कोई ताक़त मुझे रोक नहीं सकती जब मैंने इस्लाम क़बूल किया तो मेरे दिल में ये ख़ाहिश हुई कि लोगों के साथ उलफ़त-ओ-मुहब्बत के साथ रहूं और ऐलान करूँ इस भाई चारगी और मुहब्बत का, इस तसव्वुर से सरशार इस्लाम से मुताल्लिक़ मज़ीद मालूमात हासिल करने के लिए मैंने मुस्लमानों की आबादी चिदम् बरनाद ज़िला कायल पटनम का रुख किया वहां मैंने इस्लाम को मज़ीद समझने की कोशिश की इस के बाद मैंने ज़िंदगी का मक़सद मुतय्यन कर लिया अब मेरी ज़िंदगी का मक़सद अपने ईमान को मज़बूत बनाना, इशाअत इस्लाम करना और लोगों में मुसावात का सही तसव्वुर पेश करना है क़बूल इस्लाम से क़बल मुझे इस्लाम से मुताल्लिक़ बहुत सी ग़लत-फ़हमियाँ थीं इसी तरह की ग़लतफ़हमी रखने वाले आज करोड़ों की तादाद में हैं, जो हक़ीक़त में इस्लाम की नेअमत उज़्मा से महरूम हैं ऐसे माहौल में उनको इस्लाम की खूबियां और इस्लामी मुसावात का पैग़ाम दे कर इस्लाम और नेकी की राह पर गामज़न कराना इस्लाम की हक़ीक़त से आश्ना कराना उनकी ग़लत-फ़हमियों को दूर करना और उनको इस्लाम की तरफ़ मदऊ करना ये उम्मत का फ़रीज़ा है :
मुत्तहदा मक़सद के साथ एक उम्मत हो कर इस आयत-ए-करीमा पर अमल करेंगे और इस दीन की नशर-ओ-इशाअत करेंगे तो सैकड़ों की आबादी इस्लाम के सा ये में आ सकती है
मुहम्मद की सीरत :
इन्सानी तारीख़ में ना फ़रामोश करदा और ग़ैरमामूली शख़्सियत अगर कोई है तो वो मुहम्मद हैं आपकी सीरत तुय्यबा पढ़ने के लिए दसियों कुतुब का मैंने मुताला किया, तब मेरी ज़िंदगी में इन्क़िलाब बरपा हुआ, आप 571 में पैदा हुए आपकी ज़िंदगी का गहराई से अगर कोई मुताला कर ले तो आप की सारी ख़सुसीआत समझ में आ जाएँगी आप जैसी ज़िंदगी गुज़ारने वाली शख़्सियत रोय ज़मीन पर आज तक पैदा ही नहीं हुई, उस के इलावा और बहुत सारी ख़सुसीआत आपके अंदर पाया जाती हैं, आपकी ईमानी क़ुव्वत-ओ-जज़बा ईमान, आपका इख़लास-ओ-बाहमी ताल्लुक़ात, आपस के मुआमलात, एक दूसरे के साथ ख़ैर ख़्वाही, हुस्न-ए-सुलूक, इज़्ज़त-ओ-शराफ़त का भरपूर ख़्याल, मेहमान-नवाज़ी का जज़बा, दूसरों पर रहम-ओ-करम, और हमदर्दी का एहसास, इन तमाम ख़ूबीयों की बिना पर आज की साईंसी दुनिया भी आपकी तारीफ़ कर रही है इन्सानी ज़िंदगी के लिए एक आसान तरीक़ा आपकी ज़िंदगी में मिलता है, इस के इलावा कोई और नहीं है जो ये नमूना बन सके आपके मुक़ाम-ओ-मर्तबा को अगर मालूम करना हो तो दूसरों की तारीख़ का मुताला करें, कि वो लोग इन्सानों पर कितना ज़ुलम-ओ-सितम रवा रखते थे, वो बे इंसाफ़ी और फ़िस्क़-ओ-फ़ुजूर में इंतिहा को पहुंच चुके थे उनकी ज़िंदगीयां कैसी थीं और आप की ज़िंदगी कैसी थी यही नहीं बल्कि क़ियामत तक के लोगों के लिए आपकी सीरत एक नमूना है किरदार का ये मोजिज़ा सिर्फ आप की ज़िंदगी में हमें मिलता है दूसरों की ज़िंदगी में ये चीज़ नज़र नहीं आती, इन्सानी तारीख़ की एक अज़ीम शख़्सियत ने कैसे अपनी ज़िंदगी बसर की दूसरों के साथ कैसा सुलूक क्या उस का दलायल के साथ मैंने मुताला किया, नबुव्वत से क़बल चालीस साला ज़िंदगी एक आला और मिसाली ज़िंदगी थी, इस दौर में समाज की मिसाली शख़्सियत आप थे, हर इन्सान के इंद्र कुछ खूबियां होती हैं मगर सारी खूबियां बैयकवक़त अगर एक शख़्स में मौजूद हैं तो वो सिर्फ़ आप हैं
अंग्रेज़ों का इस्लाम के ख़िलाफ़ ये इल्ज़ाम है कि इस्लाम तलवार के ज़ोर से फैला, दरहक़ीक़त ये सबसे बड़ा इल्ज़ाम है इस के जवाब में मिस सरोजनी नाइडो ने अपनी लंदन की स्पीच में ये बात बयान की थी कि इस्लाम की अज़मत दीगर मज़ाहिब के पैरोकारों के मुताल्लिक़ नफ़रत नहीं पैदा करती मुहम्मद के सहाबा और उनके ताबईन ने सिसली तक मैं हुकूमत की और आठ सौ साल तक ईसाईयों की सरज़मीन स्पेन में हुकूमत करते रहे मगर कभी भी उन लोगों ने उनकी इबादत में किसी भी किस्म की कोई भी मुदाख़िलत नहीं की यानी ईसाईयों को उनका मुक़ाम दिया उनके साथ हुस्न-ए-सुलूक किया इज़्ज़त-ओ-एहतिराम से पेश आए और अच्छे ताल्लुक़ात क़ायम किए शायद उस की वजह ये है कि क़ुरआन-ए-करीम मुस्लमानों को सब्र सिखलाता है सलाह उद्दीन अय्यूबी के बारे मैं फ़्रांस के बादशाह ने इस तरह कहा था कि सलाह उद्दीन के बारे में मुझे ताज्जुब है कि वो कैसे इतना अच्छा इन्सान बना, हालाँकि उस के ऊपर किसी किस्म की कोई ज़बरदस्ती नहीं है, मेरा दिल मुझसे कहता है कि तुम भी मुस्लमान बन जाओ
थॉमस आरनल्ड ने कहा सारे मज़ाहिब में सिर्फ इस्लाम ही सारी ख़ूबीयों से भरा हुआ है अवाम की ज़बान से इस्लाम फैला है, माली इमदाद मिलने पर काम करने वाले मबलग़, रक़म के लिए नशर-ओ-इशाअत करने वाले लोग इस्लामी तारीख़ में नहीं हैं सैकड़ों ताजिरो के ज़रीया इस्लाम फैला है अफ़्रीक़ा, चीन वहां इस्लाम फैलने की असल वजह क़ुरआन की इलमी रोशनी है इस रोशनी को फैलाने वाले वहां के मुस्लिम तजार थे
पण्डित सुंदरलाल ने कहा कि मुहम्मद ने फ़तह मक्का के मौक़ा पर एक ऐसा कारनामा अंजाम दिया जिसको तारीख़ कभी फ़रामोश नहीं कर सकती ज़िंदगी-भर आपको सताने वाले तकालीफ़ देने वाले, ज़ुलम-ओ-सितम करने वाले, बे इज़्ज़ती करने वाले सारे लोगों को माफ़ कर दिया, ये दुनिया की फ़ौजी कार्यवाहीयों में एक मिसाली वाक़िया है
हिन्दोस्तान के मशहूर मुअर्रिख़ लाला आशोरी प्रशाद कहते है मुस्लमान वसी-उन-नज़र थे अगर वो लोग हक़ीक़त में ज़ालिम होते तो इतनी तवील मुद्दत तक हिन्दोस्तान में उनके लिए हुकूमत करना नामुमकिन था, पूरी दुनिया और हिन्दोस्तान में भी उनके अक़ीदा के मुताबिक़ वो लोगों के नासेह रहे हिन्दोस्तान की मज़हबी चीज़ों में वो लोग कभी आड़े नहीं आए, मज़हबी मसला में भी कभी इन्होंने हिंदूओं पर ज़बरदस्ती नहीं की ग़ैर मुस्लिमों के साथ वो रहम-ओ-करम के साथ तआवुन करते रहे
मेरे दिल को बदलने वाला क़ुरआन :
मैंने क़ुरआन-ए-क्रीम का मुसलसल मुताला जारी रखा जिसकी वजह से मेरी रूह ज़िंदा हुई, क़ुरआन एक ऐसी किताब है जिसके अंदर इन्सानी ज़िंदगी के हर मुआमला के लिए मोतदिल रहनुमाई पाई जाती है जिसके इलमी दलायल मुझे उम्मीदें दिला रहे थे, सन्यासी होने की वजह से ये तजुर्बा मेरे दिल की गहिराईयों में उतर गया अब में अपनी पुरानी दास्तान यानी जिस मज़हब को मैंने इख़तियार कर रखा था इस मज़हब की हक़ीक़त आपके सामने रखना चाहता हूँ
गौतमबुद्ध और बुध मत :
गौतमबुद्ध की तरह पाँच समाजी इन्क़िलाबी शख़्सियात एशिया में पैदा हुईं
1 नुम्बर तीन हज़ार साल क़बल सौराष्ट्र ईरान में पैदा हुआ
2 नुम्बर दो हज़ार चार-सौ पच्चास साल क़बल Logos चीन में पैदा हुआ
3 नुम्बर दो हज़ार चार-सौ पच्चास साल क़बल कनफ़ीवशयास चीन में पैदा हुआ
4 नुम्बर दो हज़ार छः सौ साल क़बल गौतमबुद्ध हिन्दोस्तान में पैदा हुए
5 नुम्बर दो हज़ार साल क़बल यसवा मसीह फ़लस्तीन में पैदा हुए
570 में आप पैदा हुए, और क़बल मसीह में 473 मैं गौतमबुद्ध हिन्दोस्तान में पैदा हुए,
गौतमबुद्ध 29 वीं साल की उम्र में दरबार छोड़कर निकल गए, और सन्यासी बन गए, 35 वें साल में बोधि दरख़्त के नीचे उनको ज्ञान मिला, 39 साल की उम्र में काशी नदी के किनारे नदी से ढाई किलो मीटर दूर सारनाथ नामी जगह पर आर्या तहज़ीब के वरुण आश्रम धरम ( ज़ात पात का निज़ाम ) के ज़ुलम के ख़िलाफ़ अपने शागिर्दों के दरमयान पहली तक़रीर की ,शुमाली हिन्दोस्तान में बुतपरस्ती और ख़ुदा के नाम पर बे तहाशा जानवरों की बलि देने के ख़िलाफ़ आवाज़ उठा कर इन्क़िलाब बरपा किया
बुध मत के चंद बुनियादी उसूल :
झूट ना बोलीं, ज़ना ना करें, निशा की चीज़ इस्तिमाल ना करें, अहिंसा ( अदम तशद्दुद ) के उसूल पर चलें, गुनाहों से दूर रहें बुतपरस्ती की मुख़ालिफ़त करें इन चीज़ों के लिए गौतमबुद्ध ने ज़िंदगी का बेशतर हिस्सा लगाया अयोध्या से 250 किलोमीटर दूर कुशीनगर के मुक़ाम पर 82 साल की उम्र में इंतिक़ाल कर गए।
गौतमबुद्ध की ज़बान पाली ज़बान थी और बाद में बुद्धा के नाम से एक किताब लिखी गई गौतमबुद्ध इन्सान हो कर पैदा हुए थे बाद में शादी की फिर सन्यासी हो गए और इन्साफ़ की ख़ातिर अपनी ज़िंदगी क़ुर्बान कर के इंतिक़ाल कर गए।उनके इंतिक़ाल के बाद लोग उन्हें को ख़ुदा बना बैठे बुध एक दरबारी सन्यासी थे वो आर्यन क़ौम के शास्त्र और पुराण को नहीं मानते थे। मुल्क के हालात पर अपनी अक़ल से इन्होंने मश्वरा दिया बुध अपनी ज़िंदगी में आर्या लोगों के मुख़ालिफ़ रहे लेकिन उनके मरने के बाद इस मज़हब में आर्यन तहज़ीब को मिलाया गया, जिसकी वजह से महायान और हीना यान वजूद में आए आर्या क़ौम की चालाकी-ओ-मक्कारी से हिन्दोस्तान की ज़मीन से बुध मत को मिटा या गया, इस दौर में जुनूबी हिंद के नाग पटनम इलाक़ा मैं हज़ारों बुध भकशों को आर्या ब्रह्मणों ने फांसी पर लटकाया अब उस वक़्त एशिया के मुख़्तलिफ़ मुल्कों में मुख़्तलिफ़ शक्लों में इस मज़हब पर लोग अमल पैरा हैं जिसकी तफ़सील मुंदरजा ज़ैल है :
महायान तिब्बत में, हीना यान बर्मा सैलून और थाईलैंड में जमबोत जापान में,
क्रेन बूत शुमाली बर्मा में हिन्दोस्तान से बाहर निकल कर एशियाई ममालिक में बुध मत मुख़्तलिफ़ फ़िर्क़ों में बट गया,
हिन्दोस्तान में वर्न आश्रम की मिलावट के साथ बाक़ी रखा गया सैलून बुध मत का एक मुलक है मगर वहां भी निचली ज़ात के लोगों के लिए बुध विहार देहातों में थे और ऊंची ज़ात के लोगों के लिए मख़सूस संग राज बुद्धा विहार ( महलनुमा बुध मंदिर ) शहरों में थे इस तरह द्राविड़ यन और मुख़्तलिफ़ ज़ात वाले आज़ादी की ख़ातिर बुद्धम् शरणम् का नारा बुलंद करते, जुमा के दिन मारी अमन ( मारी अम्मां ) मंदिर में पेट भर खाने के बाद बुध मत हमारा है हमारा है ‘‘ के नारे बुलंद करते।क्या ये बुध मत हमको आज़ादी दे गा आज़ादी का रास्ता : आज़ादी चाहने वाले मेरे दोस्तो ! कहाँ तुमको आज़ादी मिले गी, गुमराही और ज़लालत की राह पर तुम भाग रहे हो दौड़ रहे हो भागो भागो जहां जी चाहे भागो लेकिन अगर तुम्हें दलित बुद्धिस्ट के जाल से निकलना हो तो अपने मज़हब को तर्क कर के इस्लाम के साया तले आ जाओ ।मेरे दलित भाईओ ! तुम पर या बुध नहीं हो और ना ही तुम पिला बुध हो ( ये नदों की ज़ातें हैं ) तुम इस ज़मीन में पैदा हुए इन्सान हो और इन्सान की क़दर तुम्हें इस्लाम ही में मिले गी ’’ चलो तुम इस्लाम की तरफ़ ‘‘ नामी किताब के अंदर उस के मुसन्निफ़ और कमीयूनिसट लीडर ’’
कोड यकाल चलापा ‘‘ ने ख़ुद इस्लाम क़बूल करने के बाद इस तरह लिखा है : अछूत गांधी से पहले भी थे, गांधी के बाद भी थे, आज भी हैं कल भी रहेंगे इस लिए द्राविड़ ज़ात के लोगो ! चलो तुम लोग इस्लाम की तरफ़ तुम्हारी आज़ादी सिर्फ और सिर्फ इस्लाम में है ऑल इंडिया दलित वर्कर्स पार्टी के जनरल सैक्रेटरी डाक्टर चीप्पन (MBBS) का यगमोर ( मद्रास ) के सिरीलंका बुध विहार में पूजा के लिए बराबर आना जाना रहता था, एक मर्तबा इन्होंने वहां के हाल में अंबेडकर जयंती का प्रोग्राम रखने की इजाज़त तलब की वहां के बुध गुरु स्वामी ननदजी शास्त्र ने कहा कि आप सारे पर या बुद्धिस्ट लोगों को सिर्फ ज़ात पात भूलने के लिए बुद्धम् शरणम् का मंत्र कहना है, इस तरह उसने ज़ात की वज़ाहत के साथ नफ़ी में जवाब दिया।तो डाक्टर चीप्पन बुध विहार से निकले और बड़ी हसरत भरी आह भर कर कहा कि जब मुझ जैसे लीडर के साथ इस जैसा सुलूक रूह है तो मेरी ज़ात के अवाम की हालत क्या होगी, उस के बाद इन्होंने एक किताब लिखी ’’ मुकम्मल आज़ादी के लिए सिर्फ़ इस्लाम ‘‘ इस्लाम की आज़ादी, मुसावात और भाई चारगी ने मेरे दिल के अंदर गहिरा असर डाला, इस ताल्लुक़ से में अपने सफ़र हज के कुछ एहसासात पेश करता हूँ
हज का सफ़र :
सफ़र हज के तास्सुरात आपके सामने रखते हुए मुझे बड़ी ख़ुशी-ओ-मुसर्रत हो रही है मुख़्तलिफ़ ममालिक से काब अल्लाह के तवाफ़ के लिए बीस लाख अफ़राद आए हुए थे और उनके साथ सऊदी अरब के बीस लाख अफ़राद बैयकवक़त एक ही आवाज़ में अल्लाहु-अकबर अल्लाहु-अकबर का नारा तकबीर बुलंद कर रहे थे ये मेरे लिए ताज्जुब ख़ैर मंज़र था चालीस लाख का ये मजमा जो अतराफ़ काअबा में जमा था इस में किसी तरह की छूतछात और फ़ख़र-ओ-ग़रूर की कोई शि नज़र नहीं आती थी क्योंकि मैं ज़ात पात के निज़ाम के दरमयान ज़िंदगी का एक तवील अरसा गुज़ार चुका हूँ मगर अब ये मंज़र मेरे दिल की गहिराईयों में उतरता चला गया सफ़ैद रंग के अरबी, का ले रंग के जापानी, सफ़ैद रंग के जापानी, गोरे रंग के हिन्दुस्तानी और काले रंग के हिन्दुस्तानी, गोया सारी दुनिया के लोग एक ही लड़ी में पिरो दिए गए हैं, अतराफ़ काअबा में सफ़ बांध कर नमाज़ पढ़ने की कैफ़ीयत भी बड़ी अजीब थी, ये इन्सानी तारीख़ की तारीख़ों में ही नहीं बल्कि आज की नई दुनिया में भी एक हैरत-अंगेज़ मिसाली इजतिमा था इस्लाम की तालीमात उलफ़त-ओ-मुहब्बत, भाई चारगी और ऐलान मुसावात जिसका अमली तजुर्बा सफ़र हज में मुझे हासिल हुआ वो मेरे दिल-ओ-दिमाग़ के रेशा रेशा में सर अत कर गया
मुस्लमानों के नाम मेरा पैग़ाम : मुसलमानो तुम में का हाज़िर ग़ायब तक इस पैग़ाम को पहुंचाए ‘‘ इस हदीस के मिस्दाक़ बन जाओ ।अगर आप लोग इस वसीयत पर अमल पैरा होगे तो इस्लाम सारी दुनिया में कामयाब हो जाये गा और दुनिया वरअय॒त एलिनास यदख़लोन फ़ी देन अल्लाह अफ़वाजन का मंज़र पेश करे गी, इंशाअल्लाह लेकिन शर्त ये है कि तुम लोग अल्लाह के दीन का नमूना बन जाओ और दुनिया के सामने अमल से ये साबित कर दो कि इस्लाम ही नजात का वाहिद रास्ता है, या रब अलालमीन मुझे और इस उम्मत को इस अज़ीम अमानत को दूसरों तक पहुंचाने की तौफ़ीक़ अता फ़र्मा और हमें आख़िरत के अज़ाब से नजात दे।आमीन अब में अपनी ज़िंदगी का बक़ीया हिस्सा इस पैग़ाम को दूसरों तक पहुंचाने के लिए वक़्फ़ करूँगा और इंशाअल्लाह इसी राह पर आख़िरी सांस तक चलता रहूँगा।वस्सलाम आपका इस्लामी भाई, मुहिब अल्लाह, मद्रास
तशक्कुर इदारा माहनामा ’ अरमूग़ान जुलाई, अगस्त 2007
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