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9 जंगों में किसी एक में भी 100 से अधिक व्यक्ति नहीं मारे गए,,मुहम्मद सल्ल. ने अपने जीवन में अल्लाह के लिये 9 जंगे लडी, उन जंगों की रिपोर्ट से हम बहुत कुछ समझ सकते हैं by Dr Aslam Qasmi
1.बद्र
कबः हिजरत के दूसरे वर्ष मक्के वालों का मदीने पर पहला आक्रमण
कहाँ: मदीने से बाहर बद्र नामक स्थान
परिणामः मक्के वालों के सत्तर लोग युद्ध में मारे गए। एवं चौदह मुसलमान शहीद हुए।
2. ओहद
कबः हिजरत के तीसरे वर्ष मक्के वालों का मदीने पर दूसरा आक्रमण
कहाँ: मदीने के पास ओहद नामक पहाड़ी के नीचे
परिणामः कई मुसलमान शहीद हुए
3. खन्दक
कबः हिजरत के चौथे साल मक्के वालों का मदीने पर तीसरा आक्रमण
कहाँ: मदीने के द्वार पर खाई खोदी गई
परिणामः शत्रु की फौज खाई पार न कर सकी अतः खोदी गई कोई युद्ध नहीं हुआ।
4. सुलह हुदैबिया
कबः हिजरत के छठे साल मु. सल्ल. उमरा करने हेतु मक्के में प्रवेश करना मक्के वालो ने मक्के से बाहर रोक दिया
कहाँ: मक्के से बहार “हुदैबिया'' नामक स्थान पर
परिणामः कोई युद्ध नही हुआ एवं दोनों पक्षों में संधि हो गई।
5. फ़तह मक्काः
कबः हिजरत के आठवे साल जब मक्के वालों ने संधि को तोड़ दिया।
कहाँ: मक्का
परिणामः कोई युद्ध नहीं हुआ न ही जान व माल की कोई हानि हुई।
6. ख़ैबर
कबः हिजरत सातवां साल ।
कहाँ: मदीने के पास की खैबर नामक बस्ती में
परिणामः बहुत मामूली झड़प हुई जिसमें एक यहूदी मारा गया
7. मौता
कबः हिजरत सातवां साल ।
कहाँ: जार्डन का पश्चिमी तट
परिणामः घमासान युद्ध हुआ घमासान युद्ध हुआ कई मुस्लिम सिपाही शहीद हुए
8. हुनैन
कबः हिजरत का नौवाँ साल
कहाँ: मक्के के पूर्वी ओर से मुसलमानों पर तीरंदाजी
परिणामः मुस्लमानों को सामने डटा देख शत्रु मैदान छोड़ कर भाग गया
9. तबूक
कबः हिजरत का आठवाँ साल
कहाँ: अरब का उत्तरी तट कोई युद्ध नहीं हुआ।
सन् दस हिजरी में मुहम्मद सा. सल्ल. ने “हज“ अदा किया एवं “हज“ करने के बाद आप केवल दो महीने इक्कीस दिन के बाद इस संसार से परलोक सिधार गए। अतः आपके पूरे जीवन काल में उक्त वर्णित घटनाओं के अतिरिक्त कोई एक भी ऐसी घटना नही हुई जिसमें किसी प्रकार की कहा सुनी भी हुई हो। आइए अब यह भी
देखें कि उक्त नौ घटनाओं मे से युद्ध कितने है।
जैसा कि ज्ञात है कि “गज़वा-ए-खंदक”, “सुलह, हुदैबिया” “तबूक एवं फ़तह मक्का” में तनिक भी युद्ध नहीं हुआ। और ख़ैबर व हुनैन में मामूली व इस प्रकार की झड़प हुई कि उसे युद्ध नहीं कहा जा सकता। अतः निश्चित रूप से यह स्पष्ट हो जाता है कि मुहम्मद सल्ल. के पूरे जीवन काल में युद्ध की केवल तीन घटनाएँ हुई, इनमें आपकी ओर से युद्ध आरम्भ नही किया गया, बल्कि आत्मरक्षा करने हेतु मजबूरन आपको युद्व करना पड़ा।
मुहम्मद साहब के समय में जो तीन युद्ध हुए उनमें “जंग-ए-बदर” और मौता इन दोनों में जान व माल की अधिक हानि हुई परंतु किसी में भी 100 से अधिक व्यक्ति नहीं मारे गए, और धन की कोई ऐसी हानि नहीं हुई जो किसी राष्ट्र या कौम/कबीले को प्रभावित कर सके, जहाँ तक समय की बात है अगर उक्त प्रकार के सभी युद्धों में लगे समय को जोड़ लिया जाए तो उसकी कुल अवधि दो दिन से भी कम होती है।
War and Peace in the Quran
The Islamic relationship between individuals and nations is one of peace. War is a contingency that becomes necessary at certain times and under certain conditions. Muslims learn from the Qur’an that God’s objective in creating the human race in different communities was that they should relate to each other peacefully (Quran 49:13).
लोगों हमने तो तुम सबको एक मर्द और एक औरत से पैदा किया और हम ही ने तुम्हारे कबीले और बिरादरियाँ बनायीं ताकि एक दूसरे की शिनाख्त करे इसमें शक़ नहीं कि ख़ुदा के नज़दीक तुम सबमें बड़ा इज्ज़तदार वही है जो बड़ा परहेज़गार हो बेशक ख़ुदा बड़ा वाक़िफ़कार ख़बरदार है
http://tanzil.net/#trans/hi.hindi/49:13
and the changing of fear into a sense of safety is one of the rewards for those who believe and do good deeds (Quran 24:55).
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(ऐ ईमानदारों) तुम में से जिन लोगों ने ईमान क़ुबूल किया और अच्छे अच्छे काम किए उन से ख़ुदा ने वायदा किया कि उन को (एक न एक) दिन रुए ज़मीन पर ज़रुर (अपना) नाएब मुक़र्रर करेगा जिस तरह उन लोगों को नाएब बनाया जो उनसे पहले गुज़र चुके हैं और जिस दीन को उसने उनके लिए पसन्द फरमाया है (इस्लाम) उस पर उन्हें ज़रुर ज़रुर पूरी क़ुदरत देगा और उनके ख़ाएफ़ होने के बाद (उनकी हर आस को) अमन से ज़रुर बदल देगा कि वह (इत्मेनान से) मेरी ही इबादत करेंगे और किसी को हमारा शरीक न बनाएँगे और जो शख्स इसके बाद भी नाशुक्री करे तो ऐसे ही लोग बदकार हैं
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