मुहम्मद उमर कैरानवी: May 2020

Wednesday, May 27, 2020

सिल्विया रोमानो ने इस्लाम को जाना समझा अपहरणकर्ताओं की कैद में

कोरोना के कारण लोकडाउन में दुनिया परेशान है तो इन्हीं दिनों में अपहरण कर्ताओं की क़ैद से इसाई मिशनरी की सहायक लड़की के मुसलमान बनने से हैरान भी हैं।
रोम: इटली में अल-शबाब आतंकवादी समूह से जुड़े सोमाली आतंकवादियों द्वारा सोमालिया, पूर्वी अफ्रीका में 18 महीने तक बंदी बनाए रखने के बाद रोम लौट आईं एक सहायता कर्मी सिल्विया रोमानो की छुटने की खुशी मनाई गयी, आने पर इटली के प्रधानमंत्री ने भी स्वागत किया।

तुर्की के सुरक्षा सूत्रों के अनुसार, 18 महीने क़ैद में गुज़ार चुकी 25 वर्षीय, सिल्विया रोमानो, जिसने प्रेसवार्ता में कहा कि उसने क़ुरआन में पढ़ने के बाद इस्लाम में धर्मांतरण किया था को तुर्की की एमआईटी खुफिया एजेंसी और इतालवी और सोमाली सरकार के अधिकारियों के संयुक्त प्रयास के बाद बचाया गया था।

रोमानो को नवंबर 2018 में केनिया से अपहरण किया गया था वहां वो इसाई मिशनरी की तरफ से खेल के माध्यम से अनाथों को शिक्षित करने में मदद करती थी। सोमालिया ले जाया गया था।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार लगभग 34 करोड़ रुपए में इतालवी नागरिक को रिहा करवाये जाने पर
पूर्वे इतालवी प्रधानमंत्री के भाई सिल्वियो बर्लुस्कोनी ने कहा:
"सिलविया के आने पर खुश हूं लेकिन उसको क़ैदियों जैसे लिबास (पर्दे, इस्लामी लिबास) में देखकर समझ नहीं पा रहा, ना समझ सकूंगा यह कैसे हुआ।"

इस्लामी लिबास में देखने के बाद किये गए प्रश्नों के उत्तर में
इस्लाम धर्म अपनाने का कारण मीडिया को ये बताया कि
कैद में मेरा वक़्त कट नहीं रहा था तब मैंने उनसे कुछ किताबें देने को कहा। उन्होंने किताबों का एक बंडल कमरे में रख दिया, दूसरी किताबों के साथ इस में अंग्रेज़ी भाषा में क़ुरआन भी था जिसे मैं पढ़ती रही और मेरे अन्दर परिवर्तन होता गया। कुछ महीनों के बाद मैंने अंतिम फ़ैसला कर लिया कि अब मुझे इस धर्म को अपना लेना चाहिए जिसके बारे में ये क़ुरआन तफ़सील से बताता है, यहां तक कि एक रोज़, मैंने अज़ान की आवाज़ सुनी तो उसने मेरे दिल की दुनिया ही बदल दी। अब मैं क़ुरआन के साथ नमाज़ भी पढ़ती हूँ, जिस से मुझे बहुत सुकून मिलता है, और अब मेरा नाम सिल्विया आयशा है।

उम अलमोमनीन हज़रत आईशा रज़ी अल्लाहू अन्हा के नाम पर सिल्विया से आईशा बनने पर इटली की दाएं बाज़ू की पार्टियां बहुत गुस्से में हैं और अपने ग़ुस्से का इज़हार कर रही हैं, दाएं बाज़ू की जमात की एक अहम रहनुमा साइमन ऐंगलो ने अपने ग़ुस्से का इज़हार इन अलफ़ाज़ में किया:
 "क्या किसी ने सुना है कि कोई यहूदी नाज़ियों के क़बज़े में रहा हो और बड़ी मशक़्क़त के बाद उस को क़ैद से रिहा कराया गया हो, और वो यहूदी, यहूदियत छोड़कर के नाज़ी लिबास पहन कर के आया हो और उस का सरकारी सम्मान किया गया हो?'
एक दूसरे सियासतदां मासीमो ने अपने फेसबुक वाल पर ये तबसरे किया '
"क्या मैं सिल्विया रोमानो की रिहाई से ख़ुश हो सकता हूँ, हरगिज़ नहीं, हमें नहीं मालूम था कि हुकूमत मुल्क में एक मुस्लिम की संख्या बढ़ाने के लिए चालीस लाख यूरो की तावान फिरौती दे रही है"

इस्लाम क़बूल करने के बाद आईशा (सिल्विया रोमानो को जान से मारने की धमकीयां भी मिल रही हैं,14/ मई 2020 बरोज़ मंगल वे अपने घर के सेहन में टहल रही थी कि उनके घर के सामने धमाका हुआ और फिर उन को फ़ोन पर धमकी दी गई कि ये सिर्फ़ वार्निंग थी, नतीजा भुगतने से पहले अपना फ़ैसला बदल दो,
आईशा ने इसकी रिपोर्ट फ़ौरन पुलिस स्टेशन में दर्ज करा दी जिसके नतीजे में आईशा के घर के इर्द-गिर्द पुलिस तैनात कर दी गई है।
आईशा से जब इन धमकीयों के बारे में पूछा गया तो उनका जवाब था'
"इन धमकियों का हमें पहले दिन से अंदाज़ा था, और क़ुरआन पढ़ कर भी हमने यही सीखा कि इस्लाम लाने के बाद आज़माईशें तो आती ही हैं, में इन धमकीयों से बिलकुल घबराने वाली नहीं हूँ, में एक आक़िल बालिग़ लड़की हूँ, मैंने सोच समझ कर इस्लाम क़बूल किया है,और मेरे देश का क़ानून भी मुझे अपनी मर्ज़ी का फ़ैसला लेने की आज़ादी देता है ''

रोमनो ने सरकारी अधिकारियों से ये भी कहा, "सौभाग्य से मैं शारीरिक और मानसिक रूप से ठीक हूं।" "मैं वास्तव में खुश हूं, और अब मैं सिर्फ अपने परिवार के साथ समय बिताना चाहता हूं।"
सिल्विया रोमानो अर्थात सिल्विया आएशा अपने अपहरण करने वालों के व्यवहार की शिकायत नहीं की जबकि तुर्की सहित कई देशों मुसलमान एक मुस्लिम बहन के बदले में फिरौती लेने से नाराज़ हैं।
सोशल मीडिया चर्चा खूब चल रही है, किसी को Yvonne Ridley युवान रिडले जर्नालिस्ट
की याद आ रही है, जो 2001में 10 दिन की तालिबान की कैद में इस्‍लाम को समझ गयी थीं और इस्लाम कुबूल किया था।
इस में कोन जीता और कौन हारा, हम तो यही कहेंगे अल्लाह बहतर जानता है।
खुदा हाफिज
,,,,

Italian aid worker returns home after rescue from Somali militants
https://arab.news/bjsak
Silvia Romano accepts Islam; Becomes target of Italian far-right hate campaign
https://www.globalvillagespace.com/silvia-romano-accepts-islam-becomes-target-of-italian-far-right-hate-campaign/
سیلفیا رومانو سے عائشہ تك كا سفر
اطالوی خاتون نے اغوا کاروں کے حسنِ سلوک سے اسلام قبول کر لیا
https://alert.com.pk/archives/12134
Keyword:
Silviya romano
Silvia romano convert to islam
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Silvia romano hindi
Silvia romano Urdu
यावोन रिडले, यवोन रिडले ,युवान रिडले
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"इस्लामी विचारधारा से हारा यूरोपीय विस्तारवाद"
"आतिफ सुहैल सिद्दीक़ी"
पश्चिमी समाज मे जारी इस्लामी के विरुद्ध शीत युद्ध इस बात का घोतक है कि वैचारिक और बोद्धिक स्तर पर पश्चिमी सभ्यता इस्लामी विचारधारा के आगे धराशाई हो चुकी है, और हो भी क्यों ना? स्विस सांसद डेनियल स्ट्रिच जिन्होने स्विट्ज़र्लॅंड मे मस्जिदों पर प्रतिबंध लगाने के लिये स्विस संसद मे मुहिम छैड़ी वही डेनियल इस्लाम का अंगीकार कर अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिये युरोप मे इस्लाम के प्रचारक बन बैठे हैं, यही हाल इस्लामी दुनिया के विरुद्ध यूरोपीय कूटनीति को दशा देने वाले मुराद विलफ़्रिड होफमान की है, होफमान इस्लाम से शत्रुता करते करते प्रेम करने लगे अंततः इस्लाम का ही अंगीकार कर बैठे, इस्लाम की शरण मे आ कर जर्मनी मे सब से बड़ा इस्लामी चहरा बन चुके हैं, पूरा यूरोप स्तब्ध है. एसी ही कुछ कहानी ब्रिटिश पत्रकार युआन रिडले की है, गई तो अफ़ग़ानिस्तान तालिबान के महिलाओं के विरुद्ध अत्याचार पर एक रिपोर्ट तैयार करने, पर युवान पर अफ़ग़ानिस्तान मे इस्लाम का एसा जादू चला कि ब्रिटेन वापस आ कर इस्लाम की सेविका बन गईं, नग्नता की प्रतीक यूरोपीय सभ्यता मे सर से पेर तक हिजाब मे ढकी हुई युवान अब सेकड़ों ब्रिटिश महिलाओं को तालिबानी इस्लाम का ही पाठ पढ़ा रही हैं, इस्लाम का अगला शिकार बनी पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेर की ब्रिटिश ब्रॉडकॅसटर व पत्रकार साली सारा जेन बूथ. 2010 मे इस्लाम की शरण मे आ गईं. अमेरिका की फ्लोरिडा स्टेट के लकाइना माइक फ़्रीमान ने तो अमेरिका मे भूचाल ही मचा दिया, वह पहली एसी अमेरिकी माहिल बनीं जिन्हे अमेरिकन सरकार को ढके हुए चहरे के साथ ड्राइविंग लाइसेन्स जारी करना पड़ा, इस्लाम की शरण मे आने के पश्चात इस्लामी प्रतीकों को पूरी तरह अपनाने वाली लकाइना ने अपने धार्मिक अधिकारों के लिये अमेरिकी सरकार को न्यायपालिका मे चुनौती दी और हिजाब के साथ अपना ड्राइविंग लाइसेन्स लेने मे सफलता प्राप्त की. अब कोई भला बताए, कौन से तालिबान अमेरिका मे लकाइना को बुर्का पहन कर गाड़ी चलाने के लिये मजबूर कर रहे थे? इस्लाम के विरुद्ध युद्ध लड रहे पश्चिमी समाज और सरकार मे तो उस समय हताशा की लहर दौड़ गई जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति निक्सन के सलाहकार तथा युनाइटेड स्टेट्स नैशनल सेक्यूरिटी काउन्सिल के पूर्व उप-निदेशक डा. रॉबर्ट डिक्सन करेन ने घोषणा करदी कि वह मन की शान्ती और एक सफल जीवन जीने के लिये इस्लाम की शरण मे जा रहे हैं. डिक्सन के इस्लाम कबूल करने से पश्चिमी मीडिया को लगने लगा कि अब तो इस्लाम वाइट हाउस मे भी विराजमान हो चुका है. एसे नामो की लिस्ट भरी पड़ी है, उदाहरणतः, स्टीवन दिमितरे जॉर्जियो, मार्क हॅन्सन, लेडी एवेलाइन कोब्बोल्ड, लीयपोल्ड वीएस, स्टीफन शवर्ट्ज़, कीथ मौरिस एलिसन, मरमेडूक पिक्थाल, जोनाथन ब्राउन, गेरी कार्ल, मेलकम दसवें इत्यादि एसे प्रभावशाली पश्चिमी मुस्लिमों की लिस्ट है जिन्होने पश्चिमी सभ्यता मे ही इस्लाम के बिल्कुल विपरीत परिस्थितियों मे आंखे खोलीं, कितने तो इनमे इस्लाम के सख्त विरोधी थे, पर इस्लाम की बोद्धिकता उनके सर चढ कर बोली.
https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/saveindiacampaign/%E0%A4%AF-%E0%A4%B0-%E0%A4%AA-%E0%A4%95-%E0%A4%87%E0%A4%B8-%E0%A4%B2-%E0%A4%AE-%E0%A4%95-%E0%A4%B5-%E0%A4%B0-%E0%A4%A6-%E0%A4%A7-%E0%A4%AF-%E0%A4%A6-%E0%A4%A71/

Tuesday, May 19, 2020

Paighmber muhammad पैग़म्बर मुहम्मद सल्ल. की शादियों पर एक दृष्टि

अगर आप पैग़म्बर मुहम्मद की तमाम शादियों का जायजा लें तो आपको मालूम होगा कि यह शादियां या तो समाजिक सुधार के लिए की गयीं थी या सियासी वजहों से,अपनी खाहिश की तस्‍कीन के लिए यह शादियां हरगिज नहीं की गयी थीं।

आपने पहला निकाह 25 की उम्र में 40 साल की विधवा हज़रत खदीजा से किया,जिस ज़माने में विधवा विवाह बहुत अधिक बुरा माना जाता था। हज़रत ख़दीजा इस्लाम धर्म स्वीकार करनेवाली पहली महिला हुई।
 25 साल उनके मरने तक आपकी उम्र 50 साल हो गयी तब भी आपने दूसरा निकाह न किया,
तमाम निकाह 53 से 56 में किए गये,, अगर शादियों की वजह से सेक्‍स होता तो जिन्‍दगी के आखरी सालों में यह खाहिश न जागती, चिकित्‍सा विज्ञान भी यही कहता है कि उम्र बढने के साथ सेक्‍स की खाहिश घटती जाती है
2 बिवियों के अलावा सबी  की उमरें 36 और 50 के बीच थीं,

दूसरा निकाह आपकी पसंद का केवल हजरत आयशा से है बाकी तमाम हालात के पेशे नजर हैं तब एक राष्ट्र नायक भी बन चुके थे, सियासी और समाजी सुधार के लिए किए गये थे जैसे:

हजरत जवेरिया के कबीले के साथ मुसलमानों के ताल्‍लुक बहुत खराब थे, उन्‍हें हराया गया और हज़रत जवेरिया से निकाह कर लिया गया तो उन्‍होंने तमाम मुसलमान कैदियों के यह कह कर रिहा कर दिया कि हम अपने दामाद के रिश्‍तेदारों को किस तरह कैद रख सकते हैं,,, इस वाकिए से इस कबीले के तालुक मुसलमानों के साथ बहुत अच्‍छे हो गये।

हजरत मैमूना ऐसे कबीले की थीं जिसने 70 मुसलमानों को शहीद कर दिया था, इन से शादी करने से सारा कबीले ने मुहम्‍मद साहब को अपना रहनुमा मान लिया

हजरत उम्‍म हबीबा मक्‍का के सरदार अबू सुफयान की बेटी थी लिहाजा जाहिर है इस निकाह ने फतह मक्‍का के हवाले से अहम किरदार अदा किया

हजरत जैनब से निका यह गलत तस्‍ववुर खतम करने के लिये की गई कि गोद लिया हुआ असल बेटे की तरह होता है और उसकी विधवा से शादी नहीं हो सकती।

हजरत आयशा
आपके दोस्‍त अबु बकर की बेटी थीं हदीस के मुताबिक उन्‍होंने 6 साल की उम्र में आपसे सगाई कर दी थी,,, (रूकैया मक्‍सूद, मौलाना हबीबुर रहमान कांधलवी और कई मशहूर आलिमों का अपनी दलीलों से कहना है उनकी उम्र विवाह के समय 19 साल थी),,,, फिर 3 साल बाद आपके साथ शादी हुई,,, इस शादी से मुसलमानों के लिए यह मिसाल भी बनती है कि अगर 9 साल की लडकी कि किन्‍हीं कारणों से शादी करनी पडे तो की जा सके,, आपको मुसलामनों के लिए नमूना बनाया गया आपके हर अमल की मुसलमान नकल करने का पाबंद है, आप दोनों की शादी शुदा जिंदगी मिसाली साबित हुई,,
हदीसों यानि याददाश्‍तों का अधिकतर हिस्‍सा यानि 2210 हदीस हजरत आयशा की याददाश्‍त से ली गयी हैं

पिता अपनी 6 साल की  बेटी हजरत आयशा रजी. का निकाह(रुख़्सती, विदाई नहीं) सबसे सच्चा और अच्छा पति समझते हुए अपने दोस्‍त पेगम्‍बर मुहम्‍मद सल्‍ल. से करते हैं,
4 साल के बाद 10 साल की आयु में अर्थात 9 साल 7 महीने की उमर में रुख़्सती(कुछ इसे 19 की उम्र बताते है) होती है,,
18 साल की उम्र में 9 साल  साथ रहने के बाद पति मुहम्‍मद सल्‍ल देहांत हो जाता है।

हज़रत आइशा-अल्लाह उनसे खुश रहे
18 या 28 साल की उम्र में अकेली होने से 66 छियासठ साल की उम्र में निधन होने तक क्‍या करती रहीं?
48 साल तक क्‍या किया? 
बेशक इस्लाम को मज़बूत करती रहीं,  क़ुरआन और अपने 
आदर्श पति की शिक्षाओं को फैलती रहीं।
....
تحقیق عمرِ عائشہ
تحریر مولانا حبیب الرحمان صدیقی کاندھالوی
Hazrat Ayesha By Maulana Habibur Rahman S Kandhlavi
https://archive.org/details/TehqeeqEUmarEHazratAyeshaByMaulanaHabiburRahmanSiddiquiKandhlavi
Full text of "Aishah - A study of her age at the time of her marriage with Prophet Muhammad"
https://archive.org/details/AishahAStudyOfHerAgeAtTheTimeOfHerMarriageWithProphetMuhammad
Review of "Hazrat A’ishah Saddiqah (R.A.A.) – A study of her age at the time of her marriage" by Ruqaiyyah Waris Maqsood
https://www.mohammedamin.com/Reviews/Age-of-Aishah.html

इस्लाम, मुहम्‍मद और कुरआन पर महापुरूषों के विचार-islam-quran-comments-non-muslims

http://islaminhindi.blogspot.com/2009/12/islam-quran-comments-non-muslims.html


Friday, May 15, 2020

Ruqaiyyah Waris Maqsood रुकैया वारिस मकसूद

विकिपीडिया केे लिये लिखा।
रुकैया वारिस मकसूद (इंग्लिश: Ruqaiyyah Waris Maqsood) इसाई धर्म से इस्लाम धर्म में आने वाली इस्लाम और अन्य विषयों पर लगभग चालीस पुस्तकों की ब्रिटिश लेखक हैं।

परिचय[edit source]

मकसूद का जन्म 1942 में लंदन में हुआ था। उन्होंने 1963 में हूल विश्वविद्यालय से ईसाई धर्मशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री हासिल की, 1986 में ईसाई धर्म से इस्लाम में धर्म परिवर्तन किया। उन्होंने तीस से अधिक वर्षों तक यूनाइटेड किंगडम में धार्मिक अध्ययन पढ़ाया। 1996 में अपनी सेवानिवृत्ति से पहले माध्यमिक स्कूल में धार्मिक शिक्षा की प्रमुख थीं।
धार्मिक विषयों पर चालीस से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। अपने पहले विवाहित नाम रोजालीन केंड्रिक के तहत, उन्होंने ईसाई धर्मशास्त्र के पहलुओं के बारे में कई किताबें लिखीं। 1992 से, उन्होंने अंग्रेजी बोलने वाले लोगों को इस्लाम का परिचय देने के लिए बहुत पुस्तकें लिखी।

पहचान बनने वाली पुस्तकें[edit source]

"मुस्लिम मैरिज गाइड"[1] पहचान बनी और पैग़म्बर मुहम्मद की पत्नी हज़रत आयेशा की विवाह के समय की आयु की रिसर्च बुक[2] "Aishah - A study of her age at the time of her marriage with Prophet Muhammad[3]" से चर्चित[4] हो गयीं।

इन्हें भी देखें[edit source]

बाहरी कड़ियाँ[edit source]

रुकैया वारिस मकसूद Amazon India

सन्दर्भ[edit source]

  1.  "The Muslim Marriage Guide".
  2.  "Archive :"Aishah - A study of her age at the time of her marriage with Prophet Muhammad"".
  3.  "Full text of "Aishah - A study of her age at the time of her marriage with Prophet Muhammad"".
  4.  "Review of "Hazrat A'ishah Saddiqah (R.A.A.) – A study of her age at the time of her marriage" by Ruqaiyyah Waris Maqsood".

Saturday, May 9, 2020

Maulana sana ullah amritsari مولانا ثناء اللہ امرتسری

مولانا ثناء اللہ امرتسری
ہمارا دین اسلام مکمل ضابطہ حیات ہے۔ اس کی اساس نیکی کا حکم دینے اور بُرائی سے روکنے پر ہے۔ خالق کائنات نے نیکی کا حکم دینے کی خاطر کم و بیش ایک لاکھ چوبیس ہزار انبیا کو معبوث فرمایا اور یہ سلسلہ خاتم النبین حضور نبی کریمﷺ پر آ کر تکمیل کو پہنچا۔ لیکن جوں جوں ملتِ اسلامیہ تفریق کے کلیے میں بٹتی گئی، اسلام اور ہمارے عقائد پر اغیار کی یورش برپا ہونے لگی۔
کبھی دین اسلام کی بنیاد پہ مغربی مفکرین نے ضرب لگائی، تو کبھی شدت پسند یہود و نصاریٰ نے اس کے خلاف دشنام طرازیاں کیں۔ کبھی متعصب ہندوئوں نے مخالفانہ پروپیگنڈا کیا، تو کبھی سکھوں نے دین اسلام کو فطرت کے منافی قرار دیا۔ یہ نہ تھمنے والا طوفان بدتمیزی جاری تھا کہ بیسویں صدی عیسوی میں ایک ملعون، مرزا غلام احمد قادیانی نے مارِ آستین کا کام کیا۔ جنوری ۱۸۹۱ء میں اس نے دعویٰ مسیحیت کر دیا۔ اسلام دشمن قوتوں نے اس کو بھرپور تقویت دینے کی ٹھانی اور فتنہ قادیانیت بڑی تیزی پھیلنے لگا۔
اب یہ وقت مسلمان علما کرام کے گھر اور مسجد میں بیٹھنے نہیں بلکہ میدان میں اتر کر طاغوت سے نبردآزما ہونے کا تھا۔ اسی وقت مولانا محمد حسین بٹالویؒ تن تنہا اسلام مخالف قوتوں کے سامنے سینہ سپر ہوئے۔ ان کے استغاثہ پر سید نذیر حسین دہلویؒ نے مرزا قادیانی پر سب سے پہلا فتویٰ تکفیر جاری کیا۔ یہی نہیں بلکہ برصغیر کے نامور علما کرام کے دستخط کروا کر قادنیوں کے کفر پر مہر ثبت کر دی۔ اسی دوران ملت اسلامیہ کے ایک اور عظیم سپوت نے مرزا قادیانی کے چیلنج پر اس کے گھر جا کر اسے للکارا۔ تاریخ اس مردِ حق کو فاتح قادیان‘ شیخ الاسلام مولانا ثناء اللہ امرتسریؒ کے نام سے جانتی ہے۔
ع مائیں جنتی ہیں ایسے بہادر خال خال
مولانا ثناء اللہ امرتسریؒ وسیع المطالعہ، وسیع النظر، وسیع المعلومات اور باہمت عالم دین ہی نہیں دین اسلام کے داعی، محقق، متکلم، متعلم، مناظر مصنف، مفسر اور نامور صحافی بھی تھے۔ آبائو اجداد اصلاً کشمیر کے رہنے والے تھے۔ منٹو خاندان سے تعلق تھا۔ والد محترم کا نام خضر تھا جو ۱۸۶۰ء میں ڈوگرا حکمران رانا رنبیر سنگھ کی ستم رانیوں سے تنگ آ کر امرتسر میں سکونت پذیر ہوئے۔ وہیں ۱۸۷۰ء میں مولانا ثناء اللہ نے جنم لیا۔  آپؒ نے ابتدائی تعلیم امرتسر میں پائی۔ سات سال کی عمر میں والد اور چودہ برس کی عمر تک پہنچتے والدہ بھی داغِ مفارقت دے گئیں۔ اس سے پہلے کہ احساس یتیمی متاثر کرتا، تقدیر آپؒ کو تاریخ میں امر کرنے کا عزم کرچکی تھی۔ بنیادی تعلیم مولانا احمد اللہ امرتسر سے حاصل کرنے کے بعد استاد پنجاب، مولانا حافظ عبدالمنان وزیرآبادی سے علم حدیث کی کتابیں پڑھیں۔ ۱۸۸۹ء میں سند فراغت حاصل کر صحیحین پڑھنے دہلی سید نذیر حسین دہلوی کے پاس پہنچے۔
طلب علم کی پیاس ہی کچھ ایسی ہے جو بجھ نہیں پاتی۔ چناںچہ وہاں سے علمی وعملی طور پر بہرہ مند ہونے کے بعد مدرسہ مظاہرالعلوم سہارن پور سے مستفید ہوئے۔ انہی دنوں دارالعلوم دیوبند کی مسند تدریس پر مولانا محمود حسنؒ فائز تھے۔ مولانا ثناء اللہ امرتسری باقاعدہ ان کے حلقہ شاگردی میں بھی شامل ہوئے۔ آپؒ ہمیشہ دیوبند کی سند فراغت کو اپنے لیے باعث افتخار قرار دیتے تھے۔
ع مرض بڑھتا گیا جوں جوں دوا کی
کے مصداق علم کی پیاس بڑھتی ہی چلی جا رہی تھی۔ آپ پھر فیض عام مدرسہ، کانپور پہنچے۔ ۱۸۹۶ء میں مدرسہ فیض عام میں ایک جلسہ ہوا اور آٹھ طلبہ کو سند فراغت دی گئی۔ ان آٹھ طلبہ میں ایک مولانا ثناء اللہ امرتسریؒ تھے۔ اس کے بعد ۱۹۰۶ء میں پنجاب یونیورسٹی سے مولوی فاضل کا امتحان پاس کیا۔ مولانا کے پیش نگاہ دفاعِ اسلام اور پیغمبر اعظم جناب محمد رسول اللہﷺ کی عزت و ناموس کی حفاظت کا کام تھا۔ یہودونصاریٰ کی طرح ہندو بھی اسلام کے درپے آزار تھے۔ مولانا کی اسلامی حمیت نے یہودونصاریٰ، ہندو اور قادیانیوں کو دندان شکن جواب دیے۔ عیسائیت کے رد میں آپ نے درج ذیل کتب لکھیں:
۱۔ تقابل ثلاثہ:۱۹۰۴ء میں پادری ٹھاکردت کی کتاب ’’عدم ضرورت قرآن‘‘ کے جواب میں۔۲۔ جوابات نصاریٰ: ۱۹۳۰ء میں پادری سلطان پال کے جواب میں تحریر کی گئی۔۳۔ توحید تثلیث اور راہ نجات: ۱۹۱۴ء میں شائع ہوئی۔۴۔ اسلام اور مسیحیت: اس میں عیسائیوں کی تین کتابوں کا بخوبی جواب دیا۔۵۔ تفسیر سورۂ یوسف اور تحریفات بائبل: اس میں ثابت کیا کہ عیسائیوں نے ہر دور میں بائبل میں تحریفات کی ہیں۔
یہود و نصاریٰ کے ساتھ ہندو بھی اسلام دشمنی میں پیش پیش تھے۔ آپؒ نے درج ذیل کتب ہندوئوں کو جواب دینے کی خاطر لکھیں:
۱۔ حق پرکاش: ۱۹۰۰ء میں طبع ہوئی۔ ستیارتھ پرکاش نے قرآن مجید پرجو ۱۵۹ اعتراضات کیے تھے، مولاناؒ نے ان کا منہ توڑ عالمانہ جواب لکھا۔۲۔ کتاب الرحمن: پنڈت دھرم کی کتاب ’’کتاب اللہ وید ہے یا قرآن‘‘ کا مسکت جواب تحریر کیا۔۳۔ ترک اسلام: غازی محمود المعروف دھرم پال ۱۹۰۳ء میں ہندو ہو کر آریہ سماج چلے گئے اور ایک زہریلی کتاب ’’ترک اسلام‘‘ لکھی۔ اس سے مسلم حلقوں میں کافی بے چینی پھیل گئی۔ مولانا ثناء اللہ امرتسری نے اس کا جواب ’’تُرک اسلام‘‘ کی شکل میں لکھا۔ اسی کتاب کو پڑھ کر دھرم پال دوبارہ مشرف بہ اسلام ہو گیا۔۴۔ مقدس رسولﷺ: بدنام رسالہ ’’رنگیلا رسول‘‘ کے جواب میں لکھی گئی۔ مولانا مرحوم ’’مقدس رسولؐ‘‘ اور ’’اسلام اور مسیحیت‘‘ کو اپنے لیے باعث نجات سمجھتے تھے۔
یہ حقیقت ہے کہ آپؒ نے جس سرگرمی و تندہی سے عقیدہ ختم نبوتﷺ کا دفاع کیا، ایسی سعادت کم ہی مسلمانوں کے حصے میں آئی ہے۔ آپؒ نے اسلام کی حقانیت کو ہر موڑ پر ہر حوالے سے ثابت کیا۔ ۱۸۹۱ء میں جب مرزا قادیانی نے دعویٰ مسیحیت کیا‘ آپ اس وقت طالب علم تھے۔ زمانہ طالب علمی ہی میں آپؒ نے ردِ قادیانیت کو اختیار کر لیا۔ آپؒ نے پھر قادیانیت کے خلاف اتنا جوش و خروش دکھایا کہ مرزا قادیانی اپنے گھر تک محدود ہو کر رہ گیا۔
ردِ قادیانیت میں مولانا ثناء اللہ امرتسریؒ نے درج ذیل تصانیف لکھیں: ’’تاریخ مرزا، فیصلہ مرزا، الہامات مرزا، نکات مرزا، عجائبات مرزا، علم کلام مرزا، شہادت مرزا، شاہ انگلستان اور مرزا، تحفہ احمدیہ، مباحثہ قادیانی، مکالمہ احمدیہ، فتح ربانی، فاتح قادیان اور بہااللہ اور مرزا۔‘‘ درج بالا تصانیف کے علاوہ آپؒ نے لاتعداد مناظرے کیے اور ہر جگہ اسلام کی حقانیت کو ثابت کیا۔ آپ بھی مولانا کی حاضر جوابی اور برجستہ گوئی پڑھیے اور سر دھنیے۔
اردو ادب کے نامور ادیب اور مفسر قرآن، مولانا عبدالماجد دریا آبادی لکھتے ہیں، ایک جگہ معروف آریہ سماجی مناظر نے شروع میں ہی خم ٹھونک کر مولانا سے کہا ’’آپ مسلمان ہی کب ہیں جو اسلام کی طرف سے وکیل بن کر آ گئے؟ یہ دیکھیے، مسلمان علما کے فتاویٰ، یہ سب آپ کی تکفیر میں ہیں۔‘‘ یہ کہا اور میز پر فتوئوں کا ڈھیر لگا دیا۔
جب وہ اپنی کہہ چکا‘ تو مولانا کڑک کر بولے ’’اچھا صاحب! میں ابھی مسلمان ہوتا ہوں اور آپ تمام حاضرین مجلس گواہ رہیں۔‘‘ یہ کہہ کر باآواز بلند کلمہ شہادت پڑھا اور بولے ’’فرمائیے اب تو کوئی عذر باقی نہ رہا؟‘‘ مسلمان خوشی سے باغ باغ ہو گئے اور آریہ سماجی سے کوئی جواب نہ بن پڑا۔ ایک اور جگہ عیسائی مناظر نے دوران مناظرہ کہا ’’اگر آپ کے رسول کریمﷺ کے اتنے ہی مقبول تھے، تو اپنے لخت جگر حسینؓ کو کربلا میں شہید ہوتے دیکھ کر ان کی سفارش کیوں نہ کی؟‘‘ مولانا مرحومؒ نے نہایت متانت سے جواب دیا ’’کہا تو تھا مگر اللہ تعالیٰ نے جواب دیا، ظالم عیسائیوں نے میرے اکلوتے بیٹے مسیح کو صلیب پر لٹکا دیا اور میں کچھ نہ کر سکا، حسینؓ تو پھر بھی تیرا نواسہ ہے۔‘‘
یہ جواب سن کر عیسائی مناظر اپنا سا منہ لے کر رہ گیا۔ آپؒ کو اللہ تعالیٰ نے بے پناہ خوبیوں سے نوازا تھا بقول اقبالؒ ع وہ زمانے میں معزز تھے مسلمان ہو کر تم خوار ہوئے تارکِ قرآن ہو کرعقیدہ ختم نبوتؐ کا دفاع کرنے کی تاریخ جب بھی لکھی گئی، اس میں مولانا ثناء اللہ امرتسریؒ کا ذکر سنہرے حروف میں آئے گا۔ آپ۱۵؍مارچ ۱۹۴۸ء کو جہانِ فانی سے کوچ کر گئے۔جب تک روئے کائنات پر ایک بھی مسلمان باقی ہے، عقیدہ ختم نبوتؐ کا تحفظ اور دفاع جاری رہے گا ؎
نہ جب تھا‘ نہ اب ہے‘ نہ ہو گا میسر
شریکِ خدا اور جوابِ محمدؐ
 

Sunday, May 3, 2020

क़ुरआन भाष्य (तफ़सीर) एवं अनुवाद, Hindi Unicode

क़ुरआन भाष्य (तफ़सीर) एवं अनुवाद,  Hindi Unicode आधुनिक सहूलतों के साथ, Urdu, Bengali.Tamil, Telugu,Gujrati, Malayalam, Nepali के साथ विस्व की बहुत सी भाषाओं में किंग फ़हद प्रेस, अरब की क़ाबिल ए फखर प्रस्तुति। ज़ेरे निगरानी islamhouse डॉट कॉम
Quran-tafseer-translation-Hindi-Unicode
https://quranenc.com/en/browse/hindi_omari/15/9
.....…................Sample: चैलेंज .....: 
क़ुरआन 15:9:
"वास्तव में, हमने ही ये शिक्षा (क़ुर्आन) उतारी है और हम ही इसके रक्षक[1] हैं।"
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1. यह ऐतिहासिक सत्य है। इस विश्व के धर्म ग्रंथों में क़ुर्आन ही एक ऐसा धर्म ग्रंथ है जिस में उस के अवतरित होने के समय से अब तक एक अक्षर तो क्या एक मात्रा का भी परिवर्तन नहीं हुआ। और न हो सकता है। यह विशेषता इस विश्व के किसी भी धर्म ग्रंथ को प्राप्त नहीं है। तौरात हो अथवा इंजील या इस विश्व के अन्य धर्म शास्त्र हों, सब में इतने परिवर्तन किये गये हैं कि सत्य मूल धर्म की पहचान असंभव हो गय है। इसी प्रकार इस (क़ुर्आन) की व्याख्या जिसे ह़दीस कहा जाता है, वह भी सुरक्षित है। और उस का पालन किये बिना किसी का जीवन इस्लामी नहीं हो सकता। क्यों कि क़ुर्आन का आदेश है कि रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) तुम्हें जो दें उस को ले लो। और जिस से रोक दें उस से रुक जाओ। (देखियेः सूरह ह़श्र, आयतः 7) क़ुर्आन कहता है कि हे नबी! अल्लाह ने आप पर क़ुर्आन इस लिये उतारा है कि आप लोगों के लिये उस की व्याख्या कर दें। क़ुर्आन कहता है कि हे नबी! (सूरह नह़्ल, आयतः 44) जिस व्याख्या से नमाज़, व्रत आदि इस्लामी अनिवार्य कर्तव्यों की विधि का ज्ञान होता है। इसी लिये उस को सुरक्षित किया गाय है। और हम ह़दीस के एक-एक रावी के जन्म और मौत का समय और उस की पूरी दशा को जानते हैं। और यह भी जानते हैं कि वह विश्वसनीय है या नहीं? इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि इस संसार में इस्लाम के सिवा कोई धर्म ऐसा नहीं है, जिस की मूल पुस्तकें तथा उस के नबी की सारी बातें सुरक्षित हों।
Maulana Azizul Haque al-Umari's translation of the meanings of the noble Qur'an into Hindi
(Madinah: King Fahd Glorious Quran Printing Complex, 1433 AH)
Translation of the meaning of Aya 9 Sura Al-Hijr - Hindi translation - Noble Quran encyclopedia https://quranenc.com/en/browse/hindi_omari/15/9
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प्रश्न: कुरान पर टीका किसने लिखा
उत्तर: बहुतों ने लिखा, मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी ने दो भाषाओं में अर्थात अरबी और उर्दू में लिखा।
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